क्या कुछ चल रहा होगा, इन सब बातों को सोचते हुए मैंने यह कहानी लिखी है।
तो मज़ा लीजिये।
दोस्तो, मेरा नाम कुसुम है, मैं अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती हूँ, परिवार में मेरे पति एक बेटा, अवि 8 साल का और बेटी अंकिता 13 साल की है।
बात करीब 2 साल पहले की है मगर मैं आपको कुछ और पीछे ले जाना चाहती हूँ। दरअसल मैं गाँव में पली बढ़ी, दसवीं के बाद मैं एक छोटे शहर में आ गई, वहाँ की आबो हवा ने मेरी नई नई चढ़ती जवानी को और भी महका दिया। मेरा पहला बॉय-फ्रेंड मेरे कॉलेज का सहपाठी बना। मगर हम दोनों के बीच कुछ ज़्यादा नहीं हुआ क्योंकि हम दोनों सच्चे प्यार करने वाले थे, हमें था कि शादी के बाद सब कुछ करेंगे। तो एक दो चुम्बन और थोड़ा बहुत बोबे दबाने के मेरे बॉय-फ्रेंड ने मेरे साथ और कुछ नहीं किया।
कॉलेज खत्म हुआ तो घर वालों ने शादी कर दी।
मैं बहुत रोई, मगर मेरे रोने की किसे परवाह थी। शादी होने पर मैं अपने पति के साथ दिल्ली उनके घर आ गई और मेरी शादीशुदा ज़िंदगी की गाड़ी चल पड़ी, बच्चे भी हो गए।
विशेष बात यह है कि मेरे पति सेक्स के बहुत दीवाने हैं, उनके दिमाग में हर वक़्त सेक्स ही सेक्स भरा रहता है। आज शादी के 15 साल बाद भी वो ऐसे भूखों की तरह मुझ पर टूटते हैं और ऐसे भूखे भेड़िये की तरह मुझे नोचते हैं जैसे कभी कोई औरत ही न देखी हो।
बेशक मुझे पता है कि मेरे अलावा भी उनकी और भी सहेलियाँ हैं, जिनसे उनके ताल्लुक़ात हैं, मगर मैंने देख कर भी इन बातों को अनदेखा कर रखा है क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं अकेली उनकी सेक्स की आग को शांत नहीं कर सकती।
मुझे यह भी पता है कि इसी के चलते इन्होंने मेरी छोटी बहन को भी नहीं बख्शा, उससे भी ये अपने नाजायज संबंध रखते हैं, मगर अब जब इन्होंने उससे कर ही लिया तो मेरे हाये तौबा मचाने से क्या होगा।
खैर छोड़ो, एक दिन इन्होंने मुझे बताया कि इन्होंने एक क्लब जॉइन किया है और बहुत बढ़िया क्लब है, सब दोस्त लोग अपनी अपनी बीवियों के साथ वहाँ आते है, खाते है पीते हैं, और एंजॉय करते हैं।
मैंने इस बात पर कोई खास गौर नहीं की।
मगर उसके बाद अक्सर बातों बातों में ये उस क्लब की तारीफ करते, उसमें आने वाले शादीशुदा जोड़ों की, उनके बिंदासपन की बहुत तारीफ करते।
मुझे ऐसे लगता कि जैसे ये खुद हैं, एक नंबर के लुच्चे, वैसे ही इनका क्लब होगा, तो मैं कोई खास रुचि न दिखाती।
एक दिन इनके क्लब के एक दोस्त अर्जुन और उनकी बीवी सरोज हमारे घर आए, हमसे खूब बातें की, चाय नाश्ता हुआ, दोनों मियां बीवी ने बहुत अच्छे से, बड़े सलीके से बातचीत की, मुझे दोनों बहुत अच्छे लगे।
रात को खाना खा कर वो चले गए।
बाद में मेरे पति ने कहा कि एक दिन हम भी इनके घर जाएंगे।
अगले महीने हम भी उनके घर गए, फिर दोनों मियां बीवी ने हमारा बहुत आदर सत्कार किया। खाना खाने के बाद मैं और सरोज बाहर लौन में टहल रही थी तो बातों बातों में सरोज ने मुझे भी उनका क्लब जॉइन करने की ऑफर की।
मैंने कहा- ऐसा क्या है उस क्लब में? ये भी बहुत तारीफ करते हैं।
सरोज बोली- तुम्हारी कोई ऐसी अधूरी ख़्वाहिश है, जो अब तक तुम अपने जीवन में पूरी नहीं कर सकी?
मैंने कहा- नहीं, सब कुछ तो है मेरे पास!
वो हंसी और बोली- कभी दिल चाहा कि सड़क पे बिल्कुल नंगी होकर दौड़ूँ, खुले बीच पे सेक्स करूँ, कोई ऐसा आदमी जिसे तुम नहीं जानती, कभी नहीं मिली, उसका लिंग मुँह में लेकर चूसूँ?
मुझे बड़ा अजीब लगा मगर अब मैं अपने पति के क्लब की हकीकत जान गई थी, मैंने हैरान होकर कहा- यह क्या बकवास है, मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती।
‘तो सोचो मेरी जान, ज़िंदगी सिर्फ एक बार मिली, इसका जितना लुत्फ उठा सकती हो उठा लो, जिस दिन मर गए उसके बाद कौन याद करने वाला है!’ सरोज बोली।
मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि उस औरत को क्या कहूँ, फिर भी मैंने थोड़ा अपने आपको संयत करते हुआ कहा- मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा कुछ भी कर सकती हूँ।
‘अगर करना चाहती तो कर लेती?’ उसने उल्टा प्रश्न किया।
मैं तो चुप ही हो गई क्योंकि मैं उसका क्या जवाब देती।
वो बोली- देख कुसुम… अगर अब मेरा दिल करे कि मैं यहाँ अपने घर के लौन में अपने सारे कपड़े उतार कर सैर करूँ, तो तुम क्या सोचती हो, क्या मैं ऐसा कर सकती हूँ?
मैं तो पशोपेश में पड़ गई- पता नहीं!?!
मैं सिर्फ यही बोल सकी।
‘तो देख…’ कह कर उसने एक मिनट में ही अपनी साड़ी, ब्लाउज़, ब्रा और पेटीकोट उतार दिये, सच कहूँ मुझे बड़ी शर्म आई, मगर वो औरत मेरे सामने बिल्कुल नंगी होकर खड़ी हो गई।
‘चल तू भी उतार से सलवार कमीज़ और आज़ाद हो जा इन कपड़ों के बंधनों से!’ कह कर उसने मेरा दुपट्टा खींच लिया।
मैंने दोनों हाथों से अपने को ढकने की कोशिश की तो उसने मुझे अपनी बाहों में ले लिया।
‘कुसुम तुम बहुत खूबसूरत हो, और अपनी इस खूबसूरती को कैद करके मत रख, इसे खुला छोड़ दे, अपनी ज़िंदगी का भरपूर मज़ा ले!’ कह कर उसने मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिये, मैं उसे रोक नहीं पाई, जब उसने मुझे चूमा तो मैं बुत बनी खड़ी रही, मेरे दोनों होंठों को उसने अपने होंठों में ले लिया।
लेसबियन सेक्स का मेरा यह पहला अनुभव था, थोड़ा चूसने के बाद मैंने अपना विरोध कम कर दिया और उसका थोड़ा सा साथ दिया।
मेरी तरफ से विरोध कम देख कर उसने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ सहलाने शुरू कर दिये और फिर मेरी कमीज़ पकड़ के ऊपर उठानी शुरू की, मैं भी यंत्रवत सी अपने हाथ ऊपर उठाने लगी, बेशक मेरी कमीज़ थोड़ी सी टाइट थी, मगर उसने मेरी कमीज़ उतार के दूर फेंक दी, अब मैं सिर्फ ब्रा और सलवार में उसकी बाहों में खड़ी थी, और वो मेरे होंठो के बाद अब मेरी गर्दन और कंधों को चूमते चूमते ब्रा से बाहर दिख रहे मेरे स्तनों को चूम चाट रही थी।
स्तनों से नीचे वो पेट पे आ गई और उसके बाद, मेरी कमर के इर्द गिर्द, अपने होंठों और जीभ से गुदगुदी करने लगी।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसका सर पकड़ लिया। इसमें कोई शक नहीं था कि मैं भी पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी, और सब शर्म लिहाज छोड़ चुकी थी।
तभी कमरे में से मेरे पति और अर्जुन बाहर आ गए, दोनों उस वक़्त सिर्फ अंडरवियर में थे। उन्हें देख कर तो मेरी सारी मस्ती छू हो गई, मैं झट से अपना कमीज़ उठाने भागी, मगर सरोज ने मेरा हाथ बड़ी मजबूती से पकड़ लिया।
मैं अपने एक हाथ से अपना नंगापन छुपाने की कोशिश कर रही थी कि ये और अर्जुन दोनों मेरे अगल बगल आकर खड़े हो गए। दोनों ने अपने अपने अंडर’वियर उतार दिये, अब मेरे सामने तीन इंसान बिल्कुल नंगे खड़े थे, ये बोले- ग्रो अप कुसुम, एंजॉय द लाइफ!
अर्जुन मेरे पास बैठ गया और मेरे कंधे पे हाथ रख कर बोला- भाबी, क्यों शर्माती हो, देखो सरोज कितनी बिंदास है, तुम भी बिंदास बन जाओ।
कहते कहते उसने अपना हाथ मेरी पीठ से फिराते हुये, मेरे चूतड़ों पर और मेरी योनि को भी छू लिया।
मैं तो उसके बाद उठ कर भाग ही खड़ी हुई, अपनी कमीज़ उठाई और चलते चलती ही पहन के घर से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी के पास जाकर खड़ी हो गई।
उसके बाद हम घर आ गए।
मैंने अपने पति से भी कोई बात नहीं की। सरोज और अर्जुन के फोन आए पर मैंने बात नहीं की।
मगर ये हार मानने वालों में से नहीं थे, थोड़े दिनों बाद इन्होंने फिर से मुझे मनाना शुरू कर दिया कि कुछ नहीं होता, सबको अपनी ज़िंदगी एंजॉय करने का हक़ है।
मगर मेरे दिल में ये सवाल थे कि मैं कैसे अपने ही पति के सामने किसी और के साथ सेक्स कर सकती हूँ, कहीं अगर किसी बात पर इन्होंने मुझे इस बात का ताना मार दिया तो? अगर मुझे छोड़ दिया तो? अगर मेरे घर परिवार, आस पड़ोस, या बच्चों को पता चल गया तो मैं तो जीते जी मर जाऊँगी।
मगर ये रोज़ मुझे समझाते रहे, मनाते रहे।
एक दिन फिर ऐसा आया जब अर्जुन और सरोज फिर से हमारे घर आए। इस बार इन्होंने चाय की जगह बीयर पार्टी रखी, मैंने पहले इनके कहने पे 2-3 बार बीयर पी थी, तो उस दिन भी थोड़ी सी पी ली।
मुझे जब हल्का सा नशा हो गया तो ये और अर्जुन दोनों मेरे अगल बगल आकर बैठ गए, दोनों अपनी अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने अपने लण्ड बाहर निकाल लिए, एक हाथ में इन्होंने मुझे अपना पकड़ा दिया और दूसरे हाथ में अर्जुन ने अपना लिंग पकड़ा दिया। सरोज नीचे कार्पेट पर बैठ गई, उसने अपनी साड़ी ऊपर उठाई और बोली- आज मेरी चूत में आग लगी है, है कोई बुझाने वाला, है कोई ऐसा लण्ड वाला जो मेरी चूत की प्यास अपने गर्म माल से बुझा दे?
मैं देख कर हैरान थी कि वो औरत हम तीनों के सामने अपनी चूत को मसल रही थी, कभी अपनी उँगलियाँ अपनी चूत में डालती तो कभी चूत से निकाल के अपने मुँह में डाल के चाट जाती।
हम तीनों उसको देख रहे थे, मुझे नहीं पता कब अर्जुन और इन्होंने मेरे दोनों बूब्स पकड़ लिए और धीरे धीरे दबाने लगे।
शराब और शवाब अपने पूरे जलवे पे था, अर्जुन ने मेरा मुँह अपनी तरफ घुमाया और मेरे होंठों को चूमने लगा। मैंने भी उसका साथ दिया, मेरे पति ने अपने हाथों से मेरी शर्ट और ब्रा ऊपर उठा कर मेरे दोनों बूब्स बाहर निकाल लिए और चूसने लगे।
मगर फिर भी न जाने क्यों मेरे दिल में अंदर एक तूफान उठा था, कि ये सब गलत है।
दोनों मर्दों के लण्ड तन कर लोहा हो चुके थे।
अर्जुन उठा और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह पे रख के अंदर धकेल दिया, एक बड़ा ही नमकीन सा, कसैला सा टेस्ट मेरे मुँह में घुल गया, ऐसा नहीं कि मैंने पहले कभी लण्ड नहीं चूसा था, सेक्स के दौरान हम पति पत्नी
अक्सर मुख मैथुन करते हैं, और मैं भी बड़े शौक से अपने पति का लण्ड चूस लेती हूँ, मगर यह तो बिल्कुल एक पराए मर्द का लण्ड था, मैं कैसे इसे मुँह में लेकर चूसूँ।
पर अब जब मुँह में घुस ही चुका था तो मैंने थोड़ा सा चूसा, इधर अर्जुन ने मुझे बुक किया तो मेरे पति ने खड़े होकर सरोज को कमर से पकड़ कर उल्टा घूमा दिया और उसकी हवा में ऊपर उठी दोनों टाँगों के बीच अपना मुँह लगा के उसकी चूत चाटने लगे और वो हवा में उल्टी लटकी मेरे पति का लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी।
मगर मैं फिर भी इस सब को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, मैंने अर्जुन से कहा- मैं ये सब नहीं कर सकती, प्लीज़ मुझे छोड़ दो, मुझसे नहीं होगा।
वो बोला- कोई बात नहीं, अगर तुम्हारा दिल नहीं करता तो मत करो, मगर यहाँ बैठी तो रह सकती हो।
मैंने हामी भर दी।
मैं सोफ़े पे बैठी सब देख रही थी और दोनों मर्द उस औरत पे टूट पड़े, कभी वो उसके मुँह में लण्ड देता, तो कभी वो उसकी चूत
मे डाल के पेलता। करीब डेढ़ दो घंटे वो तीनों सेक्स का नंगा नाच खेलते रहे और मैं सोफ़े पर बैठी, अपने ही पति को किसी और औरत से संभोग करते देख रही थी।
यह तो एक शुरुआत थी, इसके बाद और भी एक बार ऐसा सब हुआ।
मैं उनके बीच तो होती मगर मैंने अपने पति के अलावा किसी से सेक्स नहीं किया। बेशक अर्जुन और सरोज के सामने किया और खूब खुल्म खुल्ला किया पर किया सिर्फ अपने पति से।
एक दिन इन दोनों ने कहा- अब किसी दिन सारे क्लब की मीटिंग बुलाते हैं, सब एक साथ एंजॉय करेंगे।
पार्टी के लिए शहर से बाहर किसी का फार्म हाउस बुक किया गया। पहले मैंने मना करने की सोची, मगर बाद में सोचा कि करना तो अपने पति से ही है, तो जाने में क्या दिक्कत है, और किसी से नहीं करूंगी, पर 8-10 लोगों को एक साथ सेक्स करते देखने का रोमांच ही कुछ और होगा।
कोई भी साधारण इंसान सेक्स बेशक न करे मगर देखने में तो सब की रुचि होती है।
शनिवार की शाम का प्रोग्राम था। मेरे पति ने मुझे एक नई साड़ी ला कर दी, जब मैंने उसका ब्लाउज़ देखा तो वो किसी ब्रा से ज़्यादा बड़ा नहीं था।
करीब 5 बजे हम दोनों तैयार हो गए, अर्जुन और सरोज अपनी गाड़ी में हमे लेने आए।
जब अर्जुन ने मुझे देखा तो बोला- वाह भाभी, आप तो पूरी सेक्स बॉम्ब लग रही हो, क्या शानदार साड़ी है।
मैं उसका इशारा समझ गई के मेरे उघड़े हुये स्तनों की तारीफ कर रहा है।
जब हम पार्टी हाल में पहुंचे तो देखा वहाँ सिर्फ दो चार लोग ही आए थे, मगर 6 बजते बजते करीब 15-16 लोग और आ गए। हम सब मिला के कुल 11 औरतें और 10 मर्द थे।
पहले तो हल्के स्नैक्स के साथ कोल्ड ड्रिंक पेश की गई। बाहर का कोई आदमी नहीं था, सब आपस में ही मिल जुल कर एक दूसरे को सर्व कर रहे थे।
मैं क्योंकि पहली बार क्लब में आई थी, तो मुझे सब से मिलवाया गया- ये फलां साहब हैं, ये मिस्सेज वो हैं।
खास बात ये के हर औरत वहाँ ऐसे बन के आई थी जैसे किसी फिल्म की हीरोइन हो। सब की सब पोज़ मार रही थी, मर्द उनसे फ्लर्ट कर रहे थे, मगर सब कुछ बहुत ही शालीन आंदज में था, कोई बदतमीजी नहीं।
काफी देर बैठे बातें करते रहे, सब आपस में हंसते बोलते रहे। करीब साढ़े सात बजे व्हिस्की शुरू हो गई, करीब करीब सभी मर्द औरतों के हाथ में गिलास थे, मैंने भी एक बीयर ले ली।
जब दो तीन पेग सब के अंदर चले गए तो सब के सब का बातचीत का लहजा ही बदल गया। शराब के नशे ने शवाब को भी मस्त कर दिया।
औरतें अब खुल रही थी, सबसे पहले सविता बिल्कुल बीच में पड़े बड़े टेबल पे चढ़ गई और सबके सामने उसने अपनी साड़ी उतार दी, फिर अपना ब्लाउज़ और पेटीकोट भी उतार कर इस तरह फेंका जैसे कोई बार डांसर हो।
वो सिर चड्डी और ब्रा में बहुत ही भोंडा मगर कामुक सा डांस कर रही थी। उसके साथ एक साहब भी ऊपर चढ़ गए और केवल एक चड्डी, जिसमें उनका तना हुआ लण्ड साफ दिख रहा था, सविता से चिपक चिपक के डांस करने लगे।
फिर तो चल सो चल, सभी मर्द और औरतें अपने कपड़े उतारने लगे और थोड़ी ही देर में एक सभ्य पार्टी एक सेक्स पार्टी में बदल गई। यह पहली बार था कि मैंने एक साथ इतने लोगों को नंगा देखा था।
अब जब सब नंगे हो गए तो हम भी हो गए। तभी अर्जुन ऊपर मेज़ पर चढ़ गया और बोला- डियर फ्रेंड्स, आज हमारे बीच एक नई मेम्बर आई हैं, मैं चाहता हूँ के आप सब उनका अपने खास अंदाज़ में स्वागत करें।
यह सुन कर सभी औरत और मर्द मेरे आस पास आ गए और हरेक ने मुझे अपनी में लेकर पहले मेरे होंठ चूमे, फिर मेरे दोनों स्तन पकड़ कर दबाये और मेरी चूत को सहलाया, बल्कि मर्दो ने तो अपना लण्ड से मेरी चूत पे रगड़ा।
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मैं तो देख कर हैरान थी कि ये सब मेरे साथ क्या हो रहा है, मगर इस सबमें मुझे मज़ा भी आया।
एक ही घड़ी में 12 लंडों को मेरी चूत ने चूम लिया।
उसके बाद मुझे बीच वाली बड़ी मेज़ पे चढ़ा दिया गया और सब मर्द औरतों ने मेरे नंगे बदन को बड़े गौर से देखा, सब मर्द मुझे चोदने के लिए अपनी अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। यहाँ तक 3 औरतों ने भी मुझे लेसबियन सेक्स के लिए पेशकश की।
मैं बड़ी हैरान थी, मैं एक बाज़ार में बिकने वाली रंडी जैसी महसूस कर रही थी। खैर मुझे किसी एक को चुनना था, और वो भी मेरा पति नहीं होना चाहिए।
बड़ा सोचने के बाद मैंने एक पुरुष को चुना, उसने मुझे टेबल से उतारा और गोद में उठा कर साइड में ले गया, मुझे नीचे कालीन पे ही लिटा दिया।
सब लोग हमारे आस पास घेरा बना कर बैठ गए।
उसने मुझसे पूछा- पहले क्या पसंद करोगी, फोरप्ले करें, मेरा लण्ड चूसोगी, अपनी चूत चटवाओगी, या सीधा सेक्स करें? मैंने कहा- जो आपको पसंद हो।
‘तो ठीक है, मेरे स्टाइल में करते हैं, और मैं चाहता हूँ तुम बिना किसी झिझक या शर्म के मेरा साथ दो।’ उसने कहा।
मैंने अपने पति की तरफ देखा, वो मुस्कुरा दिये तो मैंने भी हामी भर दी।
सबसे पहले उस मर्द ने मेरे माथे को चूमा, फिर आँखों की पलकों को, फिर गालों को, उसके बाद मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये, मैंने भी चुंबन में उसका साथ दिया।
मेरे होंठ चूमता चूमता वो बिल्कुल मेरे ऊपर लेट गया। मैंने उसको अपनी बाहों में भर लिया, और अपनी टाँगें खोल कर उसको अपने से सटा लिया।
वो बड़े ही प्यार से मेरे होंठ चूसता रहा फिर नीचे मेरे स्तनो को चूसा, और कमर के इर्द गिर्द गुदगुदी करता हुआ, मेरी चूत तक जा पहुंचा, थोड़ी सी मेरी चूत को चाटा, जो पहले ही पानी से भीगी पड़ी थी।
उसके बाद उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरी चूत के पास लेजा कर पूछा- डालूँ?
तो आस पास बैठे सब लोग शोर मचाने लगे- नहीं कुसुम, मत डालने देना, मत करने देना!
सब हंस रहे थे।
मैंने उसे अपनी इजाज़त दी, उसने लण्ड मेरी चूत पे रखा और हल्के से धक्के से उसके लण्ड का थोड़ा सा हिस्सा, मेरी चू’त में दाखिल हो गया।
जब लण्ड अंदर घुसा तो मेरे मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई।
सब लोगों ने तालियाँ बजा कर ऐसे शोर मचाया जैसे किसी ने बर्थडे केक काटा हो।
एक सज्जन ने तो एक पूरी बीयर की बोतल हम दोनों पे उड़ेल दी। हम दोनों बीयर से भीग गए, मगर बिना किसी की परवाह किए हम दोनों अपने आप में खोये रहे, हम दोनों आस पास से बेखबर अपने ही सेक्स में मग्न थे।
जब हमारा शुरू हो गया तो आस पास भी सब लोग, कोई किसी से तो कोई किसी से, सेक्स में मशगूल हो गया। किसी के पास दो मर्द थे तो किसी के पास दो औरतें।
हर कोई मस्त था।
फिर उसने मुझे कहा- कुसुम घोड़ी बन जाओ।
मैं उसके कहे अनुसार घोड़ी बन कर खड़ी हो गई, उसने पीछे से मेरी चूत में लण्ड डाला और मुझे चोदने लगा।
सच में किसी पराये मर्द से चुदवाने का अलग ही मज़ा है, चाहे काम वो भी वही करता है मगर दिल में एक अजब सा एहसास होता है।
मैंने अपने पति को ढूंढने के लिए इधर उधर देखा, वो मुझसे काफी दूर किसी और औरत को अपना लण्ड चुसवा रहे थे, मेरे आस पास हर कोई बिना किसी को जाने अपनी अपनी सेक्स की इच्छा पूरी करने में लगा था।
तभी एक महाशय मेरे पास आए और नीचे लेट कर मेरे स्तन चूसने लगे, एक और आए और उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से लगा दिया, मैं चूसने लगी।
सच में बड़ा मज़ेदार काम था।
करीब 5-6 मिनट की चुदाई के बाद मैं झड़ गई, मेरा हो गया तो मैंने बता दिया- मेरा तो हो गया, अब आप भी अपना छुटवा दो।
वो बोला- बस एक मिनट, अगर तुम मेरे ऊपर आ जाओ, तो मेरा बहुत जल्दी हो जाता है।
वो नीचे लेट गया, मैं उसकी कमर पे बैठ गई और मैंने खुद उसका लण्ड सेट करके अपनी चूत में डाल लिया, और खुद ऊपर नीचे उछल उछल कर सेक्स करने लगी।
सेक्स करते करते मेरे दिमाग में ये विचार चल रहे थे, कि ‘ये सब मैं क्या कर रही हूँ, कौन है यह आदमी जिससे मैं चुदवा रही हूँ, कौन हैं ये लोग, जो सरेआम सेक्स का खेल खेल रहे हैं, और मैं इन सबके बीच बिल्कुल नंगी किसी अंजान मर्द का लण्ड ले रही हूँ।’
मगर फिर मैंने सोचा ‘जब सब एंजॉय कर रहे हैं, तो मुझे क्या दिक्कत है।’
2-3 मिनट की चुदाई के बाद उसका भी हो गया, उसने कहा- बस मेरा भी होने वाला है, लण्ड बाहर निकाल कर अपने हाथ से कर दो, अगर मुँह में ले सकती हो तो मुँह से कर दो।
मैंने उसका लण्ड अपनी चूत से निकाला और मुँह में ले लिया, और उसने अपना वीर्य से मेरा मुँह भर दिया।
जब उसका पूरी तरह से हो गया तो मैं बाथरूम गई और वहाँ जाकर थूक दिया, फ्रेश होकर मैं बाहर आ गई और सोफ़े पर बैठ कर औरों को देखने लगी।
तकरीबन सभी खल्लास हो चुके थे, कुछ वैसे ही लेटे थे, 10 एक मिनट में सभी फ्रेश होकर वापिस आ गए।
उसके बाद सबने खाना खाया, सब के सब बिल्कुल नंगे।
विवाह शादियों में जब आप खाना लेते हैं तो औरतें इस बात का ख्याल रखती हैं कि कोई मर्द उनसे छू न जाए और मर्द इस ताक में होते हैं, किसी औरत की गाँड से वो अपना लण्ड घिसा ले।
मतलब घस्सम घस्से के पूरे चांस होते हैं, मगर यहाँ तो किसी को परवाह ही नहीं थी।
किसी भी पुरुष को मैंने किसी औरत के साथ ऐसी हरकत करते नहीं देखा, शायद सब के सब सेक्स की भूख शांत कर चुके थे, इसलिए किसी के दिमाग में यह ख्याल नहीं था।
वैसे भी आम तौर पर हर मर्द पराई औरतों को नंगी देखने के चाहवान होते हैं, मगर यहाँ तो पहले से ही सबकी सब नंगी खड़ी थी तो किसी ने कोई बदतमीजी नहीं की।
खाना खाकर सबने खुद अपनी अपनी प्लेट धोई, सब काम निपटा कर सबके सब फिर से वहीं इकट्ठा हो गए।
फिर सभी से कहा गया कि जो जो और से करना चाहते हैं, वो रुके रहे, अगर किसी को जाना है तो वो जा सकता है।
2-4 मेम्बर चले गए, बाकी सब रुके रहे, हम भी क्योंकि अब मेरी शर्म उतर चुकी थी और मैं खुद अभी कम से कम 2-3 और मर्दों से चुदने का प्रोगाम बना चुकी थी।