"अजीब चुदाई थी वो"ये कहानी आप सभी को बहत अच्छा लगे ये मेरा उमीद हे। में आपका सुनीता भाभी आप को bhauja.com को स्वागत करता हूँ।
यह महज एक कहानी या सच्ची घटना नहीं है ये मेरे दिल की यादें हैं, मेरे साथ हुआ अन्याय है, दुआ कीजिएगा कि ऐसा किसी और के साथ ना हो।
मैंने अपने दोस्तों से सुना था कि जिसे चूत मिलने लगती है, अगर वो चाहे तो उसे मिलती ही जाती है और जिसको नहीं मिलती उसका तो पहली चूत मारना भी पहाड़ उठाने समान होता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
सुना था कि जब भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। लेकिन ये नहीं कहा गया था कि जब लेता है तो गाण्ड फाड़ के लेता है। जब दुनिया देखी तब हक़ीकत का पता चला।
इससे पहले कहानी शुरू हो, मैं अपने बारे में बता दूँ, मैं सावन दुबे लखनऊ के एक बहुत ही प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के तृतीय वर्ष का छात्र हूँ। दिखने में सामान्य कद-काठी, थोड़ा सा गोरा और आकर्षक हूँ। शायद आपको यह कहानी पसंद ना आए क्योंकि इसमे मैं गंदे शब्द बहुत कम प्रयोग करूँगा। मुझे प्यार वाले सेक्स की बजाय, चुदाई वाला प्यार जरा कम पसंद है।
किशोरावस्था में मैं बहुत ही शर्मीला था, इसके कारण मेरे हाथ से दो लड़कियां निकल गईं, जिसमें एक का नाम था नेहा। वो मुझे बहुत प्यार करती थी और मैं भी उतना ही उसे चाहता था।
कौन कहता है कि गोरी लड़कियां सुंदर होती हैं। मेरे ख्याल से तो सेक्स के लिए तो फिगर मस्त होना ज़रूरी होता है, जो उसको कामिनी देवी (सेक्स की देवी) ने बखूबी दिया था। उसकी 5’5′ की लंबाई, गेहुँआ रंग, 34-28-32 की फिगर, अब और क्या चाहिए किसी के लण्ड को खड़ा करने के लिए…! खास कर मुझको..!
बात उन दिनों की है, जब मैं 11वीं में पढ़ता था और इत्तेफ़ाक़न वो भी 11वीं में ही पढ़ती थी लेकिन अफ़सोस मेरे साथ नहीं..!
वो मेरे गाँव के पश्चिम में पढ़ती थी और मैं पूरब में।
लेकिन संयोग ये कि वो मेरे दोस्त की बहन थी या ये कह लीजिए कि मैंने उसके भाई से दोस्ती की थी और इसी कारण मैं उसके घर में रोज 3 से 4 घंटे बिताता था।
11वीं की परीक्षा के बाद मेरी कोचिंग की पढ़ाई भी चल रही थी और उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, क्योंकि वो कला वर्ग से थी और मैं विज्ञान वर्ग से पढ़ रहा था।
बात जून महीने की है, उसके घर के बगल में एक लड़के की शादी हुई, इन दोनों के घर के बीच में एक मंदिर था, जहाँ हम मिला करते थे।
एक दिन कोचिंग से लौटने के बाद हम दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे, वो मेरे दाईं ओर थी और मैं उसके तथा दीवार के बीच में था। उसकी चूचियाँ मेरे दाएँ हाथ से सटी हुई थीं। वो कुछ ज़्यादा ही चुदासी हो रही थी।
‘सावन, लोग शादी के बाद क्या करते हैं..?’ उसने पूछा।
‘सुहागरात..’ मैंने कहा।
‘इसीलिए तो ये अभी-अभी जिसकी शादी हुई थी, वो.. दिन-रात घर में ही रहता है, ये तो लगता है कि सुहागदिन भी मना रहा है।’
थोड़ी देर चुप्पी रहने के बाद…
नेहा- चलो हम लोग भी करते हैं, जो शादी के बाद किया जाता है।
‘कहाँ करेंगे..? जगह नहीं है.. ना ही तेरे घर में ना ही मेरे घर में…!’ मैंने कहा।
थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा- चलो मेरे तालाब के किनारे जो झाड़ी उगी है, उसमे छिप कर करते हैं।
मैं- हम्म.. ठीक है, लेकिन साथ में जाएँगे तो लोग शक़ करेंगे।
‘तू पहले जा और मैं बाद में आती हूँ..!’ उसने कहा।
मैं तालाब के किनारे आकर बैठ गया। मुझे इतना तो पता था कि पहली बार चोदने पर लड़के पहले झड़ जाते हैं और लड़की देर से झड़ती है।
इसके ठीक अगली बार में यह उल्टा होने लगता है।
मतलब कि लड़की जल्दी झड़ती है और लड़का देर तक लगा रहता है।
चूंकि मैं पहले झड़ना नहीं चाहता था तथा तालाब तक आते-आते मेरा मन भी वासना से भर गया था इसलिए मैंने मूठ मार ली ताकि नेहा की चुदाई अच्छे से कर सकूँ।
पर दिल है की मानता नहीं, पहली चुदाई का जो जोश होता है, वो तो जिसने किया होगा उसे ही पता होगा। मैं तो केवल उन पाठकों के लिए लिख रहा हूँ जो आज तक चुदाई का आनन्द नहीं प्राप्त कर सके।
अभी आधे घंटे भी नहीं बीते थे कि मेरा लण्ड केवल ये सोचकर खड़ा हो गया कि आज जिंदगी मे पहली बार चुदाई करूँगा। आधे घंटे किसी तरह इंतजार किया, मेरा लण्ड फूल कर फटा जा रहा था, मैंने एक बार और मूठ मार ली।
आहह…! अब जाकर कुछ आराम मिला, लेकिन जो आनन्द की प्राप्ति चूत चोदने में मिलती है, वो इन हाथों से कहाँ मिलेगी..?
चूत के साथ-साथ, चुंबन करने के लिए गुलाबी होंठ, नरमदार बड़े-बड़े चूचे और उन पर गुलाबी चूचुक, इन सबका रसपान का आनन्द मूठ मारने में कहाँ मिलेगा..! इंतज़ार की भी एक हद होती है, चूत का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने पर विवश कर रहा था और नेहा के आने का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने से रोक रही थी, धिक्काऱ रही थी कि तुझे इतना भी कंट्रोल नहीं है कि थोड़ी देर और इंतज़ार कर ले..!
अंत मैं मैंने अब मूठ ना मारने का निर्णय किया और अपने घड़ी में समय देखा। अब डेढ़ घंटे बीत चुके थे, शायद उसे आना ना था, कामदेव को कुछ और ही मंज़ूर था। उसके ना आने से मन थोड़ा उदास था, मगर खुशी भी थी, इसलिए कि ऐसे रोमान्टिक तरीके से मूठ मैंने पहली बार मारा था। मैं सीधे उसके घर गया और उसको छोड़कर सबसे बातें की।
मेरी नाराज़गी उसे पता चल गई, घर से आते वक़्त उसने पूछा- नाराज़ हो?
मैं- हाँ..!
‘परसों गुड़िया (बगल के घर की एक लड़की) की शादी है, मैं और मेरे घर वाले शादी में वहीं रहेंगे..!’ उसने कहा।
‘तो..?’ मैंने कहा।
नेहा- मैं माहवारी के दर्द का बहाना बना कर अपने घर आ जाऊँगी और फिर चुदाई करेंगे।
अब हम लोग इतना खुल गए थे कि चुदाई जैसे शब्द का प्रयोग कर सकें।
मैं- ठीक है..!
एक ना एक दिन तो चुदना ही था।
आज दिन भी तय हो गया।
मेरा दिल फिर से हिलोरें खाने लगा, लेकिन मैंने अपने आप पर नियंत्रण किया। समय से पहले खुशी का इंतज़ार ठीक नहीं है, कहीं इस बार भी मूठ ही ना मारना पड़ जाए।
शादी का दिन आ गया, शादी वाले घर में मैं भी था और वो भी थी। मैं भी बहुत खुश था वो भी बहुत खुश थी। शादी किसी और की होने वाली थी, लेकिन सुहागरात हम लोग मनाने वाले थे।
मैंने मन ही मन कामदेव को धन्यवाद दिया कि इन्होंने मेरे लिए इतना अच्छा इंतजाम किया था।
शायद इसीलिए उन्होंने मेरा तालाब वाला प्रोग्राम कैंसिल किया था।
बीच में मैंने मौका निकाल कर पूछ लिया, ‘मैं तेरे घर कब पहुँचूँ..!’
‘ठीक 2 बजे..!’ उसने बताया।
अभी 11 बज रहे हैं, मैं ज़्यादा थक भी गया हूँ, क्यों ना 2-3 घंटे सो लूँ। रात भर जागना जो है..! ये सोच कर मैं अपने घर सोने चला गया। ये नींद भी ना, आज आ क्यूँ नहीं रही…! अरे आएगी कहाँ से..! आज अपनी सुहागरात जो मनानी है। अच्छा चलो सोचते हैं कि शुरू कहाँ से करेंगे..!
वो अक्सर मेरे होंठों को कहती है कि बहुत गुलाबी है। मेरी जान आज से ये होंठ तुम्हारे हो गए जब चाहे तब पी लेना इनका रस, लेकिन इनको भी तुम्हारे दूध पीने हैं, तुम्हारी चूचियों ने इनको बहुत तड़पाया है। आज तो मैं तुम्हारा पूरा दूध खाली कर दूँगा। नहीं पहले चूची नहीं पियूँगा, पहले होंठ चुसूंगा फिर होंठ चूसते हुए ही कपड़े निकालूँगा, फिर ब्रा निकालूँगा उसके बाद अपने इन हाथों से चूचियों को मसलूँगा, फिर दूध पियूँगा।
अरे तुम कब आईं..? मैं तो तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था।
‘तुम नहीं आए तो मैं चली आई… सावन, तुम्हारे होंठ बहुत गुलाबी हैं..!’
मैं- हम्म और तुम्हारे भी..!
नेहा- धत्त्त.. मेरे तुम्हारे जितना नहीं है।
मैं- आओ देखते हैं.. किसके ज़्यादा गुलाबी हैं।
नेहा- कैसे..?
मैं- दोनों के होंठ एक पास करके आईने में देखते हैं।
नेहा- ठीक है।
‘देखो तुम्हारे ज़्यादा गुलाबी हैं..!’ आईने में देखते हुए उसने बोला।
मैं- हाँ.. वो तो है, तुम्हें भी अपने गुलाबी करवाने हैं..?
यही होता है एक परिपक्व और मंजे हुए खिलाड़ी और नौसिखिए में अंतर…! हम दोनों को पता था कि चुदाई करनी है, मिले भी थे इसीलिए लेकिन फिर भी एक झिझक थी, एक अनुभव हीनता थी।
वो रातें सोच कर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ।
उसने बोला- कैसे?
‘आँखे मूंदो..!’
मैंने आईना नीचे रख दिया, अब होंठ उसके भी काँप रहे थे और मेरे भी। हिम्मत करके होंठों को होंठों से मिलाया और हाथ को हल्के से उसकी कमर में डाला। शायद वो भी मेरे होंठ का इंतज़ार कर रही थी। हम दोनों की जीभ कब आपस में अठखेलियाँ करने लगीं कुछ पता ही नहीं चला।
हम दोनों की जीभ कब आपस में अठखेलियाँ करने लगीं कुछ पता ही नहीं चला।
कभी ऊपर वाले होंठ मेरे मुँह में तो कभी नीचे वाले होंठ। इसी बीच उसने भी मुझे पकड़ लिया था। कमरे में केवल पंखे और हमारी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी, मेरे हाथ उसके कूल्हों पर गया और मैंने उसको नज़दीक खींच लिया।
‘अरे ये तो पूरी ताक़त से खड़ा है..!’
हम दोनों को ये बात तभी पता चली, जब मेरा लण्ड उसके जाँघों में रमणीय स्थल ढूँढ रहा था।
हे कामदेव, पिछली बार मैंने यह सोच कर मुठ मारी थी कि अच्छे से चोदूँगा.. तो आपने चूत नहीं दिलवाई और आज चूत दिलवाई तो मूठ मारने का मौका नहीं दिया। कहीं ऐसा ना हो कि मैं नेहा से पहले झड़ जाऊँ। कैसी लीला कर रहे हैं आप मेरे साथ..!
‘सावन..! बत्ती तो बुझा दो..!’
‘हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. अभी कर देता हूँ।’
मैंने बिजली बंद कर दी, तब तक वो बिस्तर पर जा चुकी थी। चुदाई की चुदास दोनों तरफ लगी थी।
मैं भी बिस्तर पर पहुँचा और और उसके कपड़े उतारने लगा, उसने अपने कपड़े उतारने में मेरी मदद भी की। मैंने उसकी समीज़ उतार दी, समीज़ उतरने के बाद पता चला कि साली शर्म तो केवल रौशनी रहने पर ही आती है।
अब वो केवल ब्रा में थी, हम लोग चुम्बन करते-करते बिस्तर पर लेट गए। मैं बगल में लेटा था और मेरे हाथ उसके चूचों पर चल रहे थे और उसके हाथ मेरे लण्ड पर काबू पा चुके थे।
हाय.. इतना झटका तो जब मैं हाथ लगाता हूँ तो यहाँ नहीं देता है और नेहा के हाथों से इतने झटके…!
कौन कहता है कि हम नौसिखिए हैं, जिस तरह की काम-क्रीड़ा में लीन थे, कोई नहीं कह सकता था..! लेकिन जब ब्रा का हुक नहीं खुला, तब मुझे अपनी औकात समझ में आ गई। इसमें भी उसने मेरी मदद की।
हे कामदेव…! क्या चूचियाँ थीं…!
ऐसी चूची तो मैंने ब्लू-फिल्म में भी नहीं देखी। मैं तो उसके ऊपर ऐसे टूट पड़ा, जैसे कि अगर ना मिले तो मर ही जाउँगा।
एक चूची को मुँह में भर लिया और दूसरी को हाथ से मसलने लगा।
थोड़ी देर बाद मुझे कराहने की आवाज़ सुनाई देने लगी, पता नहीं उसे दर्द हो रहा था या मज़ा आ रहा था, या दोनों का मिश्रण था। उसने मेरी शर्ट का बटन खोल दिया और फिर मेरा लण्ड पकड़ लिया।
मैंने शर्ट उतार दिया और लगे हाथ पैंट भी उतार दी।
अब मैं केवल फ्रेंची में था और वो सलवार में पड़ी थी। मैंने फिर से चूचे पीने शुरू किए, उसकी साँसें बहुत लम्बी-लम्बी चल रही थीं। चूचे भी ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने एक हाथ से सलवार खोल दी। उसने पता नहीं कब सलवार नीचे उतार दी।
क्या मनोरम दृश्य था, मेरा एक हाथ चूची मसल रहा था, दूसरा चूत मसल रहा था। मुँह में चूची थी, मेरा लण्ड नेहा के हाथ में था। ऐसा लग रहा था जैसे हम लोग दो नहीं एक ही हैं। मैं तो स्वर्ग में विचरण कर रहा था।
अब मैंने हम दोनों की चड्डी उतारी और उसकी चूत पर हाथ फिराने लगा। उसकी चूत से गीला-गीला तरल पदार्थ निकल रहा था। उसकी सीत्कारें और बढ़ने लगीं। मेरी ऊँगलियाँ पता नहीं क्या ढूँढ रही थीं। मेरी ऊँगलियों के साथ-साथ उसका हाथ भी मेरे लण्ड पर बहुत तेज़ी से चल रहा था। मुझे चरम सुख प्राप्त हो रहा था और शायद उसे भी।
ओह तेरी..! ये क्या हो गया..! मैं तो झड़ने लगा।
चलो अच्छा हुआ कि मेरे साथ-साथ वो भी झड़ गई, मेरा हाथ उसके पानी से और उसके हाथ मेरे पानी से सन गए। अब जाकर उसने आँखें खोलीं। हम दोनों की नज़रें मिलीं और दोनों मुस्कुरा दिए। दोनों के चेहरे पर शांति का भाव था किंतु संतुष्टि का नहीं।
केवल इतने से ही मेरा और उसका एक रिश्ता सा हो गया था। अब हम बार-बार चुम्बन कर रहे थे और एक-दूसरे को देख रहे थे। धीरे-धीरे हम लोगों के हाथ भी हरकत करने लगे। उसकी चूचियाँ थोड़ी ढीली ज़रूर हो गई थीं पर मुझे मज़ा उतना ही आ रहा था। उसने लण्ड को फिर से आगे-पीछे करना शुरू किया और बीच-बीच मे मेरे टट्टों को भी सहला रही थी।
हमारी हरकतें तेज हुईं, मेरा लण्ड और उसकी चूची दोनों ही सख़्त होती चली गईं। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं होंठ चूसते-चूसते उसके पैरों के बीच आ गया।
उसने टाँगें चौड़ी कर लीं और मेरी कमर के पीछे बाँध लीं। मैंने अपने लण्ड को सैट करके हल्का सा धक्का दिया, मगर ये क्या.. ये तो अन्दर गया ही नहीं… फिसल गया।
फिर मेरी सहायता नेहा ने की।
कितना प्यार करती थी, मेरी भावनाओं को भी समझ जाती है या फिर शायद उसे भी चुदने की जल्दी थी।
उसने अपने चूत के द्वार पर मेरे लण्ड का मुहाना टिकाया और सीत्कार के साथ कहा- हुम्म…!
मैं समझ गया, मैंने फिर से धक्का लगाया और उसने अपनी कमर उठाई, फिर हम दोनों लोग रुक गए। चेहरे पर एक दर्द की सिकन सी आ गई।
मेरे लण्ड के निचले भाग में जलन हो रही थी, शायद उसे भी जलन हो रही थी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने एक और धक्का लगाया और कस कर उसे पकड़ लिया, हम दोनों आपस में ऐसे चिपके थे जैसे कभी जुदा ही ना हों।
थोड़ी देर बाद उसने अपनी कमर को हिलाना शुरू किया, मुझे भी थोड़ा आराम मिल चुका था, तो मैंने भी सहयोग किया। मेरा लण्ड उसकी चूत में ऐसे जा रहा था कि जैसे किसी ने मुठ्ठी में भींच रखा हो।
और गर्म..! इतनी गर्म तो किसी को 104 डिग्री बुखार पर भी नहीं होता है।
धीरे-धीरे हमारी कमर की स्पीड बढ़ने लगी लेकिन मेरे ख्याल से मेरा लण्ड अभी केवल 3-4 इंच ही अन्दर गया था।
मैंने फिर से थोड़ा ज़ोर से धक्का मारा, लगभग 7 इंच लण्ड अन्दर चला गया। हम दोनों की मुँह से ‘आहह’ की आवाज़ निकली, जिसमें दर्द और आनन्द दोनों का पुट था। मैंने उसकी तरफ देखा, आँखों में आँसू थे लेकिन फिर भी चेहरे पर मुस्कान थी।
आँखों ही आँखों में इशारा हो गया, कमर तेज़ी से चलने लगी, थोड़ी-थोड़ी देर पर चुम्बन भी कर रहे थे। अब उसकी चूत थोड़ी ढीली हो गई थी। मेरा लण्ड आसानी से अन्दर-बाहर हो रहा था।
कमरे में केवल तेज साँसों और ‘आहह आह’ की आवाजें आ रही थीं। उसकी चूत धीरे-धीरे फिर सिकुड़ने लगी और तेज़ी के साथ झड़ गई।
अब चूत फिर से ढीली हो गई, मेरा काम अभी नहीं हुआ था, वो थोड़ी शिथिल हुई पर फिर भी थोड़ी देर बाद मेरा साथ देने लगी।हम दोनों की कमर फिर से तेज़ी से चलने लगी।
कमरे में इस बार ‘फ़च… फ़च’ की आवाजें आ रही थीं। उसकी चूचियाँ ज़ोर-ज़ोर से आगे-पीछे ही रही थीं क़ि एकाएक मेरे दांत भिंचने लगे, मुठ्ठियाँ बंधने लगीं और मैं तेज़ी के साथ उसकी चूत में ही अपनी पिचकारी छोड़ने लगा। मेरे साथ-साथ वो फिर से झड़ गई।
कितना मनोरम होता है यह मिलन, इसके लिए लोग क्या से क्या नहीं करते।
काश.. ऐसी रातें रोज आतीं, ऐसा मधुर-मिलन रोज़ होता।
उसके ऊपर से हट कर मैं बगल में लेट गया।
‘नेहा, कैसा लगा?’ मैंने पूछा।
उसने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर आँखें झुका लीं।
नज़रों में तृप्ति के भाव देख कर मुझे कुछ और पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
‘नेहा, कपड़े पहन लेते हैं या और..!’ मैंने कहा।
उसने शरमाते हुए अपनी कपड़े पहनना शुरू कर दिए।
कपड़े पहन कर मैंने बिजली जलाई, चादर पर खून के धब्बे देखकर हम दोनों के आँखों में आश्चर्य के भाव तथा खुशी के पुट थे। एक-दूसरे को देखा फिर हँस दिए। मैंने जल्दी से चादर समेटा और बिस्तर के नीचे डाल दिया
‘आओ नेहा बैठते हैं!’ मैंने कहा।
‘नहीं, अब मुझे जाना चाहिए!’ उसने बोला।
‘अरी, थोड़ी देर बैठो तो सही, फिर चली जाना!’
हम दोनों लोग बैठ करने लगे, उसका हाथ मेरे हाथ में था।
‘कैसा लगा.. मज़ा आया?’
‘अच्छा लगा, बहुत मज़ा आया!’ उसने बोला।
हमारी टाँगें नीचे लटकी हुई थीं, उसके बालों में हाथ फिराते हुए, लेटते हुए मैंने पूछा- अब कब मिलेंगे हम लोग?
‘मौका देखकर, लोगों की नज़रों से छिपकर कभी भी मिल लेंगे…!’ कातिल अदा से उसने बोला।
मैं- कभी ब्लू-फिल्म देखी है तूने?
उसने कहा- नहीं!
बात करते-करते पता नहीं कब नींद आ गई। सुबह जब आँख खुली तो मुझे बहुत ही तन्दरुस्ती महसूस हो रही थी।
बिस्तर से उतरते ही मैं पेशाब करने गया, पेशाब करते वक्त देखा कि मेरे लण्ड पर कोई खून नहीं है, जबकि वीर्य है, लण्ड के नीचे की चमड़ी भी पकड़ी हुई थी।
मेरे कैपरी पर वीर्य के धब्बे थे! मन में शंका उत्पन हुई कि कहीं मेरा रात में ‘नाइट-फाल’ तो नहीं हुआ है?
नहीं..!
कैपरी पर लगे हुए धब्बे किसी और दिन के हो सकते हैं, खून वीर्य में घुल गया होगा, इसीलिए दिखाई नहीं दे रहा है।
सेक्स करते वक्त लण्ड की चमड़ी फटना कोई ज़रूरी तो नहीं!
सबूत देखकर दिमाग़ कह रहा था कि ‘नाइट-फाल’ है, मगर दिल मानने को तैयार नहीं था। कल रात वो आई थी, मुझे बखूबी याद है।
कभी दिल दिमाग़ पर भारी पड़ रहा था। कभी दिमाग़ दिल पर, मेरे पैर अब लड़खड़ाने लगे, खड़ा होना मुश्किल लग रहा था।
तभी फटते दिमाग़ में एक आइडिया आया, अभी खून का खून और वीर्य का वीर्य कर देते हैं। चल कर चादर देखता हूँ। दौड़ा-दौड़ा अपने कमरे में आया।
ये क्या.. चादर तो बिस्तर पर ही पड़ी है..!
मैंने दिमाग़ पर जोर डाला कि मैंने रात में चादर बिस्तर से उठाई या नहीं। कुछ याद नहीं आ रहा, शायद नहीं उठाई होगी.. पास चल कर खून के धब्बे देख लेते हैं।
नहीं…! ऐसा नहीं हो सकता…!
किसी ने मेरी चादर बदल दी होगी, लेकिन इतनी सुबह कौन मेरे रूम मे आएगा। मैंने तसल्ली के लिए बिस्तर के नीचे देखा तो वहाँ भी कोई चादर नहीं थी।
अब यह तो स्पष्ट हो गया कि रूम में कोई नहीं आया था। दिमाग़ दिल पर हावी हो चुका था। मेरा भ्रम था कि वो आई थी।
मुझे बहुत दु:ख हुआ, इसलिए नहीं कि यह सब सपना निकला, बल्कि इसलिए कि मैं उसके घर नहीं जा पाया।
हे कामदेव… मैंने क्या बिगाड़ा है आपका..! क्यों किया ऐसा मेरे साथ..!
मेरा शरीर धीरे-धीरे अब तपने लगा था। मुझे आराम की ज़रूरत थी। मैं बिस्तर पर गया, पता नहीं कब नींद आ गई। आँख खुली तो मुँह में थर्मामीटर, बगल में डॉक्टर और भाई खड़ा था।
डॉक्टर थर्मामीटर निकालते हुए बोला- 104 डिग्री बुखार है!
ये बोल किससे रहा है?
दूसरी तरफ देखा तो माँ और नेहा थीं। इससे पहले कोई बोले कि नेहा ने बोला- होगा क्यों नहीं… इतनी मेहनत जो कर रहा है।
‘मेहनत?’ भाई ने आश्चर्य से पूछा।
‘हाँ… गर्मी की छुट्टी में भी पढ़ाई!’ उसने बोला।
थोड़ी देर बाद सब लोग चले गए सिवाय नेहा के।
मैं आज बहुत खुश हूँ। आज क्या कल रात से ही बहुत खुश हूँ।
‘क्यों?’ मैंने पूछा।
‘इतनी जल्दी भूल गए? कल रात जो तुमने मुझे खुशी दी इसलिए। लेकिन मैं तुमसे नाराज़ भी हूँ।’
‘क्यों?’ मैंने पूछा।
‘तुम अपना वो मेरे मुँह में क्यों डाल रहे थे?’ उसने कहा।
‘क्या वो?’ मैंने कहा।
‘अपना लण्ड..!’ उसने चारों तरफ देखने के बाद धीरे से कहा।
मेरा सर फिर से चकराने लगा, लेकिन डॉक्टर की सुई का असर तब तक हो चुका था।
‘सॉरी!’ मैंने कहा।
अब मैं फिर से दो तरफ़ा स्थिति में फँस रहा था।
‘और सुनो.. जब अगली बार मिलने आना ज़रा संभाल कर आना, दीदी को शक़ हो गया है!’ उसने बोला।
फिर वो चली गई। लेकिन अब सब कुछ साफ था। फिर मैंने माँ से पूछा, तो उसने बताया कि मुझे तो रात से ही बुखार है, रात में भी सुई लगी और सुबह भी।
इसका मतलब या तो रात में वो किसी और से चुदी है या मेरी तरह ही सपना देखा है।
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यह महज एक कहानी या सच्ची घटना नहीं है ये मेरे दिल की यादें हैं, मेरे साथ हुआ अन्याय है, दुआ कीजिएगा कि ऐसा किसी और के साथ ना हो।
मैंने अपने दोस्तों से सुना था कि जिसे चूत मिलने लगती है, अगर वो चाहे तो उसे मिलती ही जाती है और जिसको नहीं मिलती उसका तो पहली चूत मारना भी पहाड़ उठाने समान होता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
सुना था कि जब भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। लेकिन ये नहीं कहा गया था कि जब लेता है तो गाण्ड फाड़ के लेता है। जब दुनिया देखी तब हक़ीकत का पता चला।
इससे पहले कहानी शुरू हो, मैं अपने बारे में बता दूँ, मैं सावन दुबे लखनऊ के एक बहुत ही प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के तृतीय वर्ष का छात्र हूँ। दिखने में सामान्य कद-काठी, थोड़ा सा गोरा और आकर्षक हूँ। शायद आपको यह कहानी पसंद ना आए क्योंकि इसमे मैं गंदे शब्द बहुत कम प्रयोग करूँगा। मुझे प्यार वाले सेक्स की बजाय, चुदाई वाला प्यार जरा कम पसंद है।
किशोरावस्था में मैं बहुत ही शर्मीला था, इसके कारण मेरे हाथ से दो लड़कियां निकल गईं, जिसमें एक का नाम था नेहा। वो मुझे बहुत प्यार करती थी और मैं भी उतना ही उसे चाहता था।
कौन कहता है कि गोरी लड़कियां सुंदर होती हैं। मेरे ख्याल से तो सेक्स के लिए तो फिगर मस्त होना ज़रूरी होता है, जो उसको कामिनी देवी (सेक्स की देवी) ने बखूबी दिया था। उसकी 5’5′ की लंबाई, गेहुँआ रंग, 34-28-32 की फिगर, अब और क्या चाहिए किसी के लण्ड को खड़ा करने के लिए…! खास कर मुझको..!
बात उन दिनों की है, जब मैं 11वीं में पढ़ता था और इत्तेफ़ाक़न वो भी 11वीं में ही पढ़ती थी लेकिन अफ़सोस मेरे साथ नहीं..!
वो मेरे गाँव के पश्चिम में पढ़ती थी और मैं पूरब में।
लेकिन संयोग ये कि वो मेरे दोस्त की बहन थी या ये कह लीजिए कि मैंने उसके भाई से दोस्ती की थी और इसी कारण मैं उसके घर में रोज 3 से 4 घंटे बिताता था।
11वीं की परीक्षा के बाद मेरी कोचिंग की पढ़ाई भी चल रही थी और उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, क्योंकि वो कला वर्ग से थी और मैं विज्ञान वर्ग से पढ़ रहा था।
बात जून महीने की है, उसके घर के बगल में एक लड़के की शादी हुई, इन दोनों के घर के बीच में एक मंदिर था, जहाँ हम मिला करते थे।
एक दिन कोचिंग से लौटने के बाद हम दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे, वो मेरे दाईं ओर थी और मैं उसके तथा दीवार के बीच में था। उसकी चूचियाँ मेरे दाएँ हाथ से सटी हुई थीं। वो कुछ ज़्यादा ही चुदासी हो रही थी।
‘सावन, लोग शादी के बाद क्या करते हैं..?’ उसने पूछा।
‘सुहागरात..’ मैंने कहा।
‘इसीलिए तो ये अभी-अभी जिसकी शादी हुई थी, वो.. दिन-रात घर में ही रहता है, ये तो लगता है कि सुहागदिन भी मना रहा है।’
थोड़ी देर चुप्पी रहने के बाद…
नेहा- चलो हम लोग भी करते हैं, जो शादी के बाद किया जाता है।
‘कहाँ करेंगे..? जगह नहीं है.. ना ही तेरे घर में ना ही मेरे घर में…!’ मैंने कहा।
थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा- चलो मेरे तालाब के किनारे जो झाड़ी उगी है, उसमे छिप कर करते हैं।
मैं- हम्म.. ठीक है, लेकिन साथ में जाएँगे तो लोग शक़ करेंगे।
‘तू पहले जा और मैं बाद में आती हूँ..!’ उसने कहा।
मैं तालाब के किनारे आकर बैठ गया। मुझे इतना तो पता था कि पहली बार चोदने पर लड़के पहले झड़ जाते हैं और लड़की देर से झड़ती है।
इसके ठीक अगली बार में यह उल्टा होने लगता है।
मतलब कि लड़की जल्दी झड़ती है और लड़का देर तक लगा रहता है।
चूंकि मैं पहले झड़ना नहीं चाहता था तथा तालाब तक आते-आते मेरा मन भी वासना से भर गया था इसलिए मैंने मूठ मार ली ताकि नेहा की चुदाई अच्छे से कर सकूँ।
पर दिल है की मानता नहीं, पहली चुदाई का जो जोश होता है, वो तो जिसने किया होगा उसे ही पता होगा। मैं तो केवल उन पाठकों के लिए लिख रहा हूँ जो आज तक चुदाई का आनन्द नहीं प्राप्त कर सके।
अभी आधे घंटे भी नहीं बीते थे कि मेरा लण्ड केवल ये सोचकर खड़ा हो गया कि आज जिंदगी मे पहली बार चुदाई करूँगा। आधे घंटे किसी तरह इंतजार किया, मेरा लण्ड फूल कर फटा जा रहा था, मैंने एक बार और मूठ मार ली।
आहह…! अब जाकर कुछ आराम मिला, लेकिन जो आनन्द की प्राप्ति चूत चोदने में मिलती है, वो इन हाथों से कहाँ मिलेगी..?
चूत के साथ-साथ, चुंबन करने के लिए गुलाबी होंठ, नरमदार बड़े-बड़े चूचे और उन पर गुलाबी चूचुक, इन सबका रसपान का आनन्द मूठ मारने में कहाँ मिलेगा..! इंतज़ार की भी एक हद होती है, चूत का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने पर विवश कर रहा था और नेहा के आने का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने से रोक रही थी, धिक्काऱ रही थी कि तुझे इतना भी कंट्रोल नहीं है कि थोड़ी देर और इंतज़ार कर ले..!
अंत मैं मैंने अब मूठ ना मारने का निर्णय किया और अपने घड़ी में समय देखा। अब डेढ़ घंटे बीत चुके थे, शायद उसे आना ना था, कामदेव को कुछ और ही मंज़ूर था। उसके ना आने से मन थोड़ा उदास था, मगर खुशी भी थी, इसलिए कि ऐसे रोमान्टिक तरीके से मूठ मैंने पहली बार मारा था। मैं सीधे उसके घर गया और उसको छोड़कर सबसे बातें की।
मेरी नाराज़गी उसे पता चल गई, घर से आते वक़्त उसने पूछा- नाराज़ हो?
मैं- हाँ..!
‘परसों गुड़िया (बगल के घर की एक लड़की) की शादी है, मैं और मेरे घर वाले शादी में वहीं रहेंगे..!’ उसने कहा।
‘तो..?’ मैंने कहा।
नेहा- मैं माहवारी के दर्द का बहाना बना कर अपने घर आ जाऊँगी और फिर चुदाई करेंगे।
अब हम लोग इतना खुल गए थे कि चुदाई जैसे शब्द का प्रयोग कर सकें।
मैं- ठीक है..!
एक ना एक दिन तो चुदना ही था।
आज दिन भी तय हो गया।
मेरा दिल फिर से हिलोरें खाने लगा, लेकिन मैंने अपने आप पर नियंत्रण किया। समय से पहले खुशी का इंतज़ार ठीक नहीं है, कहीं इस बार भी मूठ ही ना मारना पड़ जाए।
शादी का दिन आ गया, शादी वाले घर में मैं भी था और वो भी थी। मैं भी बहुत खुश था वो भी बहुत खुश थी। शादी किसी और की होने वाली थी, लेकिन सुहागरात हम लोग मनाने वाले थे।
मैंने मन ही मन कामदेव को धन्यवाद दिया कि इन्होंने मेरे लिए इतना अच्छा इंतजाम किया था।
शायद इसीलिए उन्होंने मेरा तालाब वाला प्रोग्राम कैंसिल किया था।
बीच में मैंने मौका निकाल कर पूछ लिया, ‘मैं तेरे घर कब पहुँचूँ..!’
‘ठीक 2 बजे..!’ उसने बताया।
अभी 11 बज रहे हैं, मैं ज़्यादा थक भी गया हूँ, क्यों ना 2-3 घंटे सो लूँ। रात भर जागना जो है..! ये सोच कर मैं अपने घर सोने चला गया। ये नींद भी ना, आज आ क्यूँ नहीं रही…! अरे आएगी कहाँ से..! आज अपनी सुहागरात जो मनानी है। अच्छा चलो सोचते हैं कि शुरू कहाँ से करेंगे..!
वो अक्सर मेरे होंठों को कहती है कि बहुत गुलाबी है। मेरी जान आज से ये होंठ तुम्हारे हो गए जब चाहे तब पी लेना इनका रस, लेकिन इनको भी तुम्हारे दूध पीने हैं, तुम्हारी चूचियों ने इनको बहुत तड़पाया है। आज तो मैं तुम्हारा पूरा दूध खाली कर दूँगा। नहीं पहले चूची नहीं पियूँगा, पहले होंठ चुसूंगा फिर होंठ चूसते हुए ही कपड़े निकालूँगा, फिर ब्रा निकालूँगा उसके बाद अपने इन हाथों से चूचियों को मसलूँगा, फिर दूध पियूँगा।
अरे तुम कब आईं..? मैं तो तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था।
‘तुम नहीं आए तो मैं चली आई… सावन, तुम्हारे होंठ बहुत गुलाबी हैं..!’
मैं- हम्म और तुम्हारे भी..!
नेहा- धत्त्त.. मेरे तुम्हारे जितना नहीं है।
मैं- आओ देखते हैं.. किसके ज़्यादा गुलाबी हैं।
नेहा- कैसे..?
मैं- दोनों के होंठ एक पास करके आईने में देखते हैं।
नेहा- ठीक है।
‘देखो तुम्हारे ज़्यादा गुलाबी हैं..!’ आईने में देखते हुए उसने बोला।
मैं- हाँ.. वो तो है, तुम्हें भी अपने गुलाबी करवाने हैं..?
यही होता है एक परिपक्व और मंजे हुए खिलाड़ी और नौसिखिए में अंतर…! हम दोनों को पता था कि चुदाई करनी है, मिले भी थे इसीलिए लेकिन फिर भी एक झिझक थी, एक अनुभव हीनता थी।
वो रातें सोच कर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ।
उसने बोला- कैसे?
‘आँखे मूंदो..!’
मैंने आईना नीचे रख दिया, अब होंठ उसके भी काँप रहे थे और मेरे भी। हिम्मत करके होंठों को होंठों से मिलाया और हाथ को हल्के से उसकी कमर में डाला। शायद वो भी मेरे होंठ का इंतज़ार कर रही थी। हम दोनों की जीभ कब आपस में अठखेलियाँ करने लगीं कुछ पता ही नहीं चला।
हम दोनों की जीभ कब आपस में अठखेलियाँ करने लगीं कुछ पता ही नहीं चला।
कभी ऊपर वाले होंठ मेरे मुँह में तो कभी नीचे वाले होंठ। इसी बीच उसने भी मुझे पकड़ लिया था। कमरे में केवल पंखे और हमारी साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी, मेरे हाथ उसके कूल्हों पर गया और मैंने उसको नज़दीक खींच लिया।
‘अरे ये तो पूरी ताक़त से खड़ा है..!’
हम दोनों को ये बात तभी पता चली, जब मेरा लण्ड उसके जाँघों में रमणीय स्थल ढूँढ रहा था।
हे कामदेव, पिछली बार मैंने यह सोच कर मुठ मारी थी कि अच्छे से चोदूँगा.. तो आपने चूत नहीं दिलवाई और आज चूत दिलवाई तो मूठ मारने का मौका नहीं दिया। कहीं ऐसा ना हो कि मैं नेहा से पहले झड़ जाऊँ। कैसी लीला कर रहे हैं आप मेरे साथ..!
‘सावन..! बत्ती तो बुझा दो..!’
‘हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. अभी कर देता हूँ।’
मैंने बिजली बंद कर दी, तब तक वो बिस्तर पर जा चुकी थी। चुदाई की चुदास दोनों तरफ लगी थी।
मैं भी बिस्तर पर पहुँचा और और उसके कपड़े उतारने लगा, उसने अपने कपड़े उतारने में मेरी मदद भी की। मैंने उसकी समीज़ उतार दी, समीज़ उतरने के बाद पता चला कि साली शर्म तो केवल रौशनी रहने पर ही आती है।
अब वो केवल ब्रा में थी, हम लोग चुम्बन करते-करते बिस्तर पर लेट गए। मैं बगल में लेटा था और मेरे हाथ उसके चूचों पर चल रहे थे और उसके हाथ मेरे लण्ड पर काबू पा चुके थे।
हाय.. इतना झटका तो जब मैं हाथ लगाता हूँ तो यहाँ नहीं देता है और नेहा के हाथों से इतने झटके…!
कौन कहता है कि हम नौसिखिए हैं, जिस तरह की काम-क्रीड़ा में लीन थे, कोई नहीं कह सकता था..! लेकिन जब ब्रा का हुक नहीं खुला, तब मुझे अपनी औकात समझ में आ गई। इसमें भी उसने मेरी मदद की।
हे कामदेव…! क्या चूचियाँ थीं…!
ऐसी चूची तो मैंने ब्लू-फिल्म में भी नहीं देखी। मैं तो उसके ऊपर ऐसे टूट पड़ा, जैसे कि अगर ना मिले तो मर ही जाउँगा।
एक चूची को मुँह में भर लिया और दूसरी को हाथ से मसलने लगा।
थोड़ी देर बाद मुझे कराहने की आवाज़ सुनाई देने लगी, पता नहीं उसे दर्द हो रहा था या मज़ा आ रहा था, या दोनों का मिश्रण था। उसने मेरी शर्ट का बटन खोल दिया और फिर मेरा लण्ड पकड़ लिया।
मैंने शर्ट उतार दिया और लगे हाथ पैंट भी उतार दी।
अब मैं केवल फ्रेंची में था और वो सलवार में पड़ी थी। मैंने फिर से चूचे पीने शुरू किए, उसकी साँसें बहुत लम्बी-लम्बी चल रही थीं। चूचे भी ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने एक हाथ से सलवार खोल दी। उसने पता नहीं कब सलवार नीचे उतार दी।
क्या मनोरम दृश्य था, मेरा एक हाथ चूची मसल रहा था, दूसरा चूत मसल रहा था। मुँह में चूची थी, मेरा लण्ड नेहा के हाथ में था। ऐसा लग रहा था जैसे हम लोग दो नहीं एक ही हैं। मैं तो स्वर्ग में विचरण कर रहा था।
अब मैंने हम दोनों की चड्डी उतारी और उसकी चूत पर हाथ फिराने लगा। उसकी चूत से गीला-गीला तरल पदार्थ निकल रहा था। उसकी सीत्कारें और बढ़ने लगीं। मेरी ऊँगलियाँ पता नहीं क्या ढूँढ रही थीं। मेरी ऊँगलियों के साथ-साथ उसका हाथ भी मेरे लण्ड पर बहुत तेज़ी से चल रहा था। मुझे चरम सुख प्राप्त हो रहा था और शायद उसे भी।
ओह तेरी..! ये क्या हो गया..! मैं तो झड़ने लगा।
चलो अच्छा हुआ कि मेरे साथ-साथ वो भी झड़ गई, मेरा हाथ उसके पानी से और उसके हाथ मेरे पानी से सन गए। अब जाकर उसने आँखें खोलीं। हम दोनों की नज़रें मिलीं और दोनों मुस्कुरा दिए। दोनों के चेहरे पर शांति का भाव था किंतु संतुष्टि का नहीं।
केवल इतने से ही मेरा और उसका एक रिश्ता सा हो गया था। अब हम बार-बार चुम्बन कर रहे थे और एक-दूसरे को देख रहे थे। धीरे-धीरे हम लोगों के हाथ भी हरकत करने लगे। उसकी चूचियाँ थोड़ी ढीली ज़रूर हो गई थीं पर मुझे मज़ा उतना ही आ रहा था। उसने लण्ड को फिर से आगे-पीछे करना शुरू किया और बीच-बीच मे मेरे टट्टों को भी सहला रही थी।
हमारी हरकतें तेज हुईं, मेरा लण्ड और उसकी चूची दोनों ही सख़्त होती चली गईं। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं होंठ चूसते-चूसते उसके पैरों के बीच आ गया।
उसने टाँगें चौड़ी कर लीं और मेरी कमर के पीछे बाँध लीं। मैंने अपने लण्ड को सैट करके हल्का सा धक्का दिया, मगर ये क्या.. ये तो अन्दर गया ही नहीं… फिसल गया।
फिर मेरी सहायता नेहा ने की।
कितना प्यार करती थी, मेरी भावनाओं को भी समझ जाती है या फिर शायद उसे भी चुदने की जल्दी थी।
उसने अपने चूत के द्वार पर मेरे लण्ड का मुहाना टिकाया और सीत्कार के साथ कहा- हुम्म…!
मैं समझ गया, मैंने फिर से धक्का लगाया और उसने अपनी कमर उठाई, फिर हम दोनों लोग रुक गए। चेहरे पर एक दर्द की सिकन सी आ गई।
मेरे लण्ड के निचले भाग में जलन हो रही थी, शायद उसे भी जलन हो रही थी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था मैंने एक और धक्का लगाया और कस कर उसे पकड़ लिया, हम दोनों आपस में ऐसे चिपके थे जैसे कभी जुदा ही ना हों।
थोड़ी देर बाद उसने अपनी कमर को हिलाना शुरू किया, मुझे भी थोड़ा आराम मिल चुका था, तो मैंने भी सहयोग किया। मेरा लण्ड उसकी चूत में ऐसे जा रहा था कि जैसे किसी ने मुठ्ठी में भींच रखा हो।
और गर्म..! इतनी गर्म तो किसी को 104 डिग्री बुखार पर भी नहीं होता है।
धीरे-धीरे हमारी कमर की स्पीड बढ़ने लगी लेकिन मेरे ख्याल से मेरा लण्ड अभी केवल 3-4 इंच ही अन्दर गया था।
मैंने फिर से थोड़ा ज़ोर से धक्का मारा, लगभग 7 इंच लण्ड अन्दर चला गया। हम दोनों की मुँह से ‘आहह’ की आवाज़ निकली, जिसमें दर्द और आनन्द दोनों का पुट था। मैंने उसकी तरफ देखा, आँखों में आँसू थे लेकिन फिर भी चेहरे पर मुस्कान थी।
आँखों ही आँखों में इशारा हो गया, कमर तेज़ी से चलने लगी, थोड़ी-थोड़ी देर पर चुम्बन भी कर रहे थे। अब उसकी चूत थोड़ी ढीली हो गई थी। मेरा लण्ड आसानी से अन्दर-बाहर हो रहा था।
कमरे में केवल तेज साँसों और ‘आहह आह’ की आवाजें आ रही थीं। उसकी चूत धीरे-धीरे फिर सिकुड़ने लगी और तेज़ी के साथ झड़ गई।
अब चूत फिर से ढीली हो गई, मेरा काम अभी नहीं हुआ था, वो थोड़ी शिथिल हुई पर फिर भी थोड़ी देर बाद मेरा साथ देने लगी।हम दोनों की कमर फिर से तेज़ी से चलने लगी।
कमरे में इस बार ‘फ़च… फ़च’ की आवाजें आ रही थीं। उसकी चूचियाँ ज़ोर-ज़ोर से आगे-पीछे ही रही थीं क़ि एकाएक मेरे दांत भिंचने लगे, मुठ्ठियाँ बंधने लगीं और मैं तेज़ी के साथ उसकी चूत में ही अपनी पिचकारी छोड़ने लगा। मेरे साथ-साथ वो फिर से झड़ गई।
कितना मनोरम होता है यह मिलन, इसके लिए लोग क्या से क्या नहीं करते।
काश.. ऐसी रातें रोज आतीं, ऐसा मधुर-मिलन रोज़ होता।
उसके ऊपर से हट कर मैं बगल में लेट गया।
‘नेहा, कैसा लगा?’ मैंने पूछा।
उसने मेरी तरफ देखा और शर्मा कर आँखें झुका लीं।
नज़रों में तृप्ति के भाव देख कर मुझे कुछ और पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
‘नेहा, कपड़े पहन लेते हैं या और..!’ मैंने कहा।
उसने शरमाते हुए अपनी कपड़े पहनना शुरू कर दिए।
कपड़े पहन कर मैंने बिजली जलाई, चादर पर खून के धब्बे देखकर हम दोनों के आँखों में आश्चर्य के भाव तथा खुशी के पुट थे। एक-दूसरे को देखा फिर हँस दिए। मैंने जल्दी से चादर समेटा और बिस्तर के नीचे डाल दिया
‘आओ नेहा बैठते हैं!’ मैंने कहा।
‘नहीं, अब मुझे जाना चाहिए!’ उसने बोला।
‘अरी, थोड़ी देर बैठो तो सही, फिर चली जाना!’
हम दोनों लोग बैठ करने लगे, उसका हाथ मेरे हाथ में था।
‘कैसा लगा.. मज़ा आया?’
‘अच्छा लगा, बहुत मज़ा आया!’ उसने बोला।
हमारी टाँगें नीचे लटकी हुई थीं, उसके बालों में हाथ फिराते हुए, लेटते हुए मैंने पूछा- अब कब मिलेंगे हम लोग?
‘मौका देखकर, लोगों की नज़रों से छिपकर कभी भी मिल लेंगे…!’ कातिल अदा से उसने बोला।
मैं- कभी ब्लू-फिल्म देखी है तूने?
उसने कहा- नहीं!
बात करते-करते पता नहीं कब नींद आ गई। सुबह जब आँख खुली तो मुझे बहुत ही तन्दरुस्ती महसूस हो रही थी।
बिस्तर से उतरते ही मैं पेशाब करने गया, पेशाब करते वक्त देखा कि मेरे लण्ड पर कोई खून नहीं है, जबकि वीर्य है, लण्ड के नीचे की चमड़ी भी पकड़ी हुई थी।
मेरे कैपरी पर वीर्य के धब्बे थे! मन में शंका उत्पन हुई कि कहीं मेरा रात में ‘नाइट-फाल’ तो नहीं हुआ है?
नहीं..!
कैपरी पर लगे हुए धब्बे किसी और दिन के हो सकते हैं, खून वीर्य में घुल गया होगा, इसीलिए दिखाई नहीं दे रहा है।
सेक्स करते वक्त लण्ड की चमड़ी फटना कोई ज़रूरी तो नहीं!
सबूत देखकर दिमाग़ कह रहा था कि ‘नाइट-फाल’ है, मगर दिल मानने को तैयार नहीं था। कल रात वो आई थी, मुझे बखूबी याद है।
कभी दिल दिमाग़ पर भारी पड़ रहा था। कभी दिमाग़ दिल पर, मेरे पैर अब लड़खड़ाने लगे, खड़ा होना मुश्किल लग रहा था।
तभी फटते दिमाग़ में एक आइडिया आया, अभी खून का खून और वीर्य का वीर्य कर देते हैं। चल कर चादर देखता हूँ। दौड़ा-दौड़ा अपने कमरे में आया।
ये क्या.. चादर तो बिस्तर पर ही पड़ी है..!
मैंने दिमाग़ पर जोर डाला कि मैंने रात में चादर बिस्तर से उठाई या नहीं। कुछ याद नहीं आ रहा, शायद नहीं उठाई होगी.. पास चल कर खून के धब्बे देख लेते हैं।
नहीं…! ऐसा नहीं हो सकता…!
किसी ने मेरी चादर बदल दी होगी, लेकिन इतनी सुबह कौन मेरे रूम मे आएगा। मैंने तसल्ली के लिए बिस्तर के नीचे देखा तो वहाँ भी कोई चादर नहीं थी।
अब यह तो स्पष्ट हो गया कि रूम में कोई नहीं आया था। दिमाग़ दिल पर हावी हो चुका था। मेरा भ्रम था कि वो आई थी।
मुझे बहुत दु:ख हुआ, इसलिए नहीं कि यह सब सपना निकला, बल्कि इसलिए कि मैं उसके घर नहीं जा पाया।
हे कामदेव… मैंने क्या बिगाड़ा है आपका..! क्यों किया ऐसा मेरे साथ..!
मेरा शरीर धीरे-धीरे अब तपने लगा था। मुझे आराम की ज़रूरत थी। मैं बिस्तर पर गया, पता नहीं कब नींद आ गई। आँख खुली तो मुँह में थर्मामीटर, बगल में डॉक्टर और भाई खड़ा था।
डॉक्टर थर्मामीटर निकालते हुए बोला- 104 डिग्री बुखार है!
ये बोल किससे रहा है?
दूसरी तरफ देखा तो माँ और नेहा थीं। इससे पहले कोई बोले कि नेहा ने बोला- होगा क्यों नहीं… इतनी मेहनत जो कर रहा है।
‘मेहनत?’ भाई ने आश्चर्य से पूछा।
‘हाँ… गर्मी की छुट्टी में भी पढ़ाई!’ उसने बोला।
थोड़ी देर बाद सब लोग चले गए सिवाय नेहा के।
मैं आज बहुत खुश हूँ। आज क्या कल रात से ही बहुत खुश हूँ।
‘क्यों?’ मैंने पूछा।
‘इतनी जल्दी भूल गए? कल रात जो तुमने मुझे खुशी दी इसलिए। लेकिन मैं तुमसे नाराज़ भी हूँ।’
‘क्यों?’ मैंने पूछा।
‘तुम अपना वो मेरे मुँह में क्यों डाल रहे थे?’ उसने कहा।
‘क्या वो?’ मैंने कहा।
‘अपना लण्ड..!’ उसने चारों तरफ देखने के बाद धीरे से कहा।
मेरा सर फिर से चकराने लगा, लेकिन डॉक्टर की सुई का असर तब तक हो चुका था।
‘सॉरी!’ मैंने कहा।
अब मैं फिर से दो तरफ़ा स्थिति में फँस रहा था।
‘और सुनो.. जब अगली बार मिलने आना ज़रा संभाल कर आना, दीदी को शक़ हो गया है!’ उसने बोला।
फिर वो चली गई। लेकिन अब सब कुछ साफ था। फिर मैंने माँ से पूछा, तो उसने बताया कि मुझे तो रात से ही बुखार है, रात में भी सुई लगी और सुबह भी।
इसका मतलब या तो रात में वो किसी और से चुदी है या मेरी तरह ही सपना देखा है।
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