मेरा नाम पूजा है।
कुछ दिनों पहले ही मैंने Bhauja डॉट कॉम के बारे में सुना और कुछ कहानियाँ पढ़ी भी !
मैं भी आपके साथ मेरा साथ कई सालों पहले घटी एक घटना के बारे में बताना चाहती हूँ।
यह एक सच्ची घटना है जिसमें मेरी एक गलती के कारण मेरी जिंदगी ही बदल गई।
उस दिन मुझे पता चला कि अनचाहा सेक्स क्या होता है, कैसे आपके अपने रिश्तेदार आपके जिस्म से खेलते हैं।
उस दिन मुझे मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार से यह गहरा लेकिन यादगार आनन्ददायक जख्म मिला।
मैं अब आपको इस बारे में पूरी बात बताती हूँ।
मैं राजस्थान के एक जिले की रहने वाली हूँ। मैं एक पतिव्रता औरत हूँ, मेरा कभी किसी और मर्द के साथ कोई चक्कर या सम्बन्ध नहीं रहा।
घर वालों ने 18 साल की उम्र में ही मेरी शादी करवा दी थी।
मेरे घर में पति, सास-ससुर, देवर और दो बच्चे हैं।
मेरी ननद की शादी हो चुकी है और उसे भी एक बच्चा है। ननद भी हमारे ही शहर में रहती है। ननदोई जी खुद का काम करते हैं।
एक बार मैंने अपनी बहन को खुद के जेवरों में से कुछ जेवर दे दिए थे और उनका नाम अपनी सास पर लगा दिया कि मैंने उनको दिए थे और उन्होंने खो दिए होंगे।
हमारे घर में इस बात का काफी बवाल रहा था पर समय के साथ बात आई गई हो गई थी।
पर पता नहीं कहाँ से, कैसे एक दिन ननदोई जी को यह बात पता लग गई कि मैंने वो जेवर अपनी बहन को दे दिए थे।
ननदोई जी ने यह बात मुझे बताई तो मैं डर गई क्योंकि अगर यह बात मेरे पति को या घर वालों की पता चल जाती तो वो तो मुझे घर से बाहर ही निकल देते।
मैंने उनसे गुहार लगाई कि वो यह बात किसी को न बतायें।
उन्होंने कहा- इस बात को छुपाने में मेरा क्या फायदा हो सकता है। मैंने कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है मगर मैं बाद में आपको जो चाहिए वो दे दूँगी।
इस पर वो मान गए और किसी को नहीं बताया।
इन बातों को कुछ महीने बीत गए और ननदोई जी ने किसी को नहीं बताया तो मैं थोड़ी निश्चिंत हो गई पर मन में डर तो लगा ही रहा।
इन्हीं दिनों हमारे रिश्तेदारी में एक शादी होनी थी और उसमें हम सभी को और ननद और ननदोई जी को भी जाना था।
शादी की खरीददारी के लिए सबने तय किया कि बाजार एक साथ चलेंगे।
रविवार का दिन जाने के लिए तय हुआ।
रविवार सुबह ननद का फोन आया कि ननदोई जी मार्किट नहीं जा सकेंगे, वो आराम करना चाहते हैं।
तो मेरे ससुर ने कहा- जंवाई जी यही यहाँ आकर आराम करें, तुम्हे छोड़ भी देंगे और घर और बच्चों की देखभाल भी हो जाएगी।
दोपहर 12 बजे के करीब वो आ गये और हम सब जाने को तैयार होने लगे।
इतने में ननदोई जी मेरे पास आए और कहा- आज तुम मार्किट नहीं जाओगी, बहाने से मना कर दो वरना मैं जेवर वाली बात सब को शाम को बता दूँगा।
मैं डर गई और सिरदर्द का बहाना बना कर घर पर ही रुक गई।
बच्चों को छोड़ कर सब दोपहर दो बजे तक मार्किट चले गए।
तीनों बच्चे हॉल में खेल रहे थे। मैं और ननदोई जी हॉल में सोफे पर बैठे थे।
ननदोई जी मेरे पास आकर बोले- तुम बगल वाले कमरे में जाकर मेरा इंतजार करो।
मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, मैं बगल वाले कमरे में जाकर उनका इंतजार करने लगी।
करीब दस मिनट बाद वो आये और कहने लगे- भाभी, आपने कहा था कि मुझे जो चाहिए वो आप मुझे देंगी।
मैंने कहा- हाँ कहा तो था, पर आपको क्या चाहिए?
मैंने डरते हुए पूछा और कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है।
ननदोई जी- आपके पास तो देने के लिए बहुत कुछ है।
मैं- मेरे पास क्या है? मैं समझी नहीं !
हालाँकि मैं समझ गई थी कि वो क्या चाहते हैं पर मैंने टालने के लिए ऐसा कह दिया।
ननदोई जी- मुझे आप चाहिएँ !
मैं- क्या मतलब?
ननदोई जी- मतलब यह कि इस बेड पर मैं आपके साथ सोना चाहता हूँ।
मैं बुरी तरह से डर गई और रोते हुए उनसे कहा- ऐसा मत करो, किसी को पता चला तो मेरा क्या होगा !
ननदोई जी- किसी को पता नहीं चलेगा। जब जेवर वाली बात किसी को पता नहीं चली तो यह कैसे पता चलेगी?
पर मैं मानने को तैयार ही नहीं थी।
काफी देर तक मनाने के बाद भी जब मैं उनके साथ सेक्स के लिए राजी नहीं हुई तो उन्होंने मुझे बेड पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
ननदोई जी- अगर चिल्लाने की कोशिश की तो अब सबको पता लग जायेगा और सारी बात खुल जाएगी।
मेरे बच्चे बगल में हॉल में खेल रहे थे, इस कारण मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी, बस चुपचाप उनका निर्जीव सा विरोध कर रही थी क्योंकि मैं जानतैइ थी कि मेरी करनी मेरे सामने आ रही है, आज तो मुझे ननदोई जी के नीचे आना ही है।
मैं अपने हाथ पैर चला कर उन्हें मुझ से दूर करने की कोशिश करने लगी।
मैं जानती थी कि ये सब बेकार ही जायेगा क्योंकि ननदोई जी एक ताकतवर मर्द हैं, मेरी ननद रानी पहले ही उनकी ताकत के किस्से मुझे सुना चुकी थी।
मुझे सोच कर रोमांच भी हो रहा था कि पता नहीं इतना बांका मर्द मुझे कित्ना मज़ा देगा चोद कर ! मानसिक रूप से मैं चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी पर विरोध तो जारी था।
ननदोई जी एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को ऊपर कर दिया।
साड़ी को ऊपर करके उन्होंने मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया। पैंटी को नीचे सरकते ही उन्होंने अपना एक पांव उस पैंटी पर रख कर उसे नीचे करने लगे। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरे पैर मारने से उनका यह काम आसान हो गया और मेरी पैंटी नीचे हो गई और मेरे एक पैर से निकल गई।
अब मेरे दोनों पैर आजाद हो गए और ननदोई जी का काम मेरी गलती से आसान हो गया।
मैं अब भी खुद को बचने की पूरी कोशिश कर रही थी।
मैं अब थक चुकी थी पर कोशिश कर रही थी।
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड…
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड मेरी चूत में थोड़ा सा घुस गया और मेरे मुख से एक हल्की से आह निकल गई।
ननदोई जी ने फिर दोनों हाथों से मेरे हाथ काबू में किये और मेरे सर को सीधा कर अपने होंठ मेरे होठों से लगा दिए और एक जोरदार प्रहार के साथ पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।
मैं एक इंच ऊपर की ओर खिसक गई थी। दर्द से उभरी मेरी चीख मेरे मुख के अंदर ही दब गई।
मैं अब तक बुरी तरह से थक गई थी और मेरे में जरा भी शक्ति नहीं बची थी। मैं दर्द के मारे रो रही थी और ननदोई जी अपनी मनमानी कर रहे थे, वो मुझे लगातार चोदे जा रहे थे।
अब मैंने थकान के कारण विरोध करना बंद कर दिया और चुपचाप उनको मनमानी करने देने लगी क्योंकि अब कोई फायदा ही नहीं था मैं तो चुद गई थी।
ननदोई जी लगातार ऊपर नीचे हो रहे थे और विरोध न होता देख उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर मेरे उरोज निकाल लिए और उनको चूसने लगे।
मैं एक और सर कर उन्हें ये सब करने दे रही थी।
अब तो मुझे भी मजा आने लगा था। आखिर थी तो मैं भी एक औरत ही।
करीब दस मिनट बाद मुझे मेरी मंजिल मिलने लगी तो मैं खुद ननदोई जी से चिपकने लगी मेरे मुँह से आहें निकलने लगी और आखिर झड़ने से पहले मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं खुद ब खुद ननदोई जी से चिपक गई और उनमें समाने की कोशिश करने लगी।
मैं झड़ चुकी थी और मेरे अंदर बिल्कुल भी शक्ति नहीं बची थी।
ननदोई जी ने मुझे उल्टा कर घोड़ी बना दिया।
मैं चुपचाप घोड़ी बन गई। और उन्होंने वापस अपना लंड मेरी चूत में डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मैं बुरी तरह से थक और टूट चुकी थी पर ननदोई जी थे कि चोदे जा रहे थे।
कुछ देर बाद फिर मुझे सीधा कर लेटाया और चूत में लंड डाल कर सवार हो गए।
अब उनके झटके जोर से लग रहे थे।
मैं लगातार ऊपर नीचे हो रही थी, कमरे में फच फच की आवाजें गूंज रही थी।
मेरे चूचे बुरी तरह से हिल रहे थे और न चाहते हुए भी मेरे मुख से आनन्द पूरित सिसकारियाँ निकल रही थी।
ये सिसकारियाँ और आवाजें उन्हें जोश दे रही थी।
करीब 5 मिनट के बाद उनका वीर्य मेरी चूत में जाता हुआ महसूस हुआ और वो मेरे पर ही हांफ़ते हुए लेट गए।
वो और मैं पसीने से लथपथ थे।
दस मिनट बाद वो चुपचाप उठे और कपड़े पहने और कहा- देखो, चुदाई तो हुई ही, अगर तुम मेरी बात मान लेती तो तुम्हें जो मजा बाद में आया, वो शुरू से आता।
और इतना कह कर कमरे के बाहर चले गए।
मैंने कुछ नहीं कहा, अपने कपड़े ठीक किये और थकान होने पर वहीं लेट गई और सोचने लगी- ननदोई जी सही कह रहे हैं कि मजा आता।
पता नहीं कब ही मुझे नींद आ गई।
नींद में ही मुझे मेरे पावों पर कुछ महसूस हुआ पर थकान में मुझे आराम दे रहा था। मैं लेटी ही रही पर थोड़ी देर में चूत में किसी की अंगुली महसूस हुई तो मैं जग गई।
देखा कि ननदोई जी मेरे बगल में पूरे नंगे होकर लेटे है और यह सब कर रहे हैं।
मेरे जागते ही मेरे होंटों को चूसने लगे और मेरे वक्ष के उभारों को दबाने लगे।
मुझे इसमें अब मजा आने लगा था।
मैंने कहा- बच्चे आ जायेंगे !
ननदोई जी ने कहा- वो तो सो गए हैं दूसरे कमरे में ! हम आराम से चुदाई के मजे लेंगे।
अब तो मैं भी उन्हें सहयोग कर रही थी। मेरे होंठ चूसते चूसते उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया और यही मेरी ब्रा के साथ भी किया।
मेरे स्तन अब नंगे होकर उनके सामने आ गए थे।
ननदोई जी- इनको मैं कबसे चूसना चाहता था। अब मौका लगा है।
मैं- जितना चाहे, उतना चूसो, ये अब तुम्हारे भी हैं।
ननदोई जी- और किसके हैं?
मैं- आपके भैया भी तो चूसते हैं।
ननदोई जी हंसने लगे और चुचूक को मुँह में लेकर चूसने लगे।
अब उन्होंने मेरे साड़ी और पेटीकोट को भी उतार दिया। पैंटी तो मैंने पहने ही नहीं थी सो मेरी चूत पूरी तरह से उनके सामने आ गई। मेरी चूत देखते ही वो पागल हो गए और चूत को चाटने लगे।
इससे में बुरी तरह से झन्ना गई, मेरे पति ने ऐसे कभी नहीं किया था।
मैं तो पागलों की तरह उनके सर को अपनी चूत पर दबा रही थी।
मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी।
थोड़ी देर बाद वो खुद मेरे ऊपर लेट मेरे जिस्म से खेलने लगे।
मुझे इसमें मजा आ रहा था और पता नहीं कब उन्होंने मेरी चूत में लंड डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मेरी तो हालत ही पतली हो गई।
कुछ देर बाद वो उठे और बेड पर लेट गए मुझे लंड पर बैठने को कहा।
मैं चूत का निशाना लगा कर लंड पर बैठ गई। ऐसा लगा कि उनका लंड मेरी चूत में काफी अंदर चल गया।
ननदोई जी मुझे आगे पीछे कर रहे थे इसमें मुझे मजे आने लगे और मैं खुद ही ऐसा करने लगी।
दो मिनट में ही मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं ननदोई जी पर पस्त हो कर लेट गई, मैं झड़ गई थी और ऐसे ही लेटी रही।
अब ननदोई जी ने मुझे बेड पर लेटाया और मेरी चूत में अपना लंड पेलते हुए मेरी चुदाई चालू कर दी।
वो जबरदस्त झटके मार रहे थे, मैं लगातार ऊपर नीचे खिसक रही थी।
मेरे बूब्स तो बुरी तरह से झूल रहे थे।
ननदोई जी की नज़रें भी मेरी चूचियों पर थी और उनको देख उनकी स्पीड और तेज हो जाती।
मेरी आँखें बंद हो गई मेरे मुख से आहें और सिसकारियाँ निकल कर कमरे में गूंज रही थी।
मेरे हाथ उनकी कमर पर फिर रहे थे और मैंने अपनी दोनों टांगें उनके कूल्हों पर लगा दी थी।
ननदोई जी मुझे चूमते, कभी मेरे दुग्ध-कलशों पर काटते पर मुझे इसमें बड़ा मजा आ रहा था।
कुछ देर बाद ननदोई जी ने मुझे घोड़ी बना दिया।
मैंने सोचा कि ऐसे ही चूत चोदेंगे पर उनके इरादे कुछ और थे, उन्होंने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख दिया।
मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले की उन्होंने लंड पर दबाव बना दिया, दर्द के मारे मैं तो आगे की ओर हुई पर ननदोई जी ने मेरी कमर को कस कर पकड़ रखा था।
दूसरी बार उन्होंने पूरा का पूरा लंड गांड के छेद में घुसा दिया। मेरे मुख से तो चीख ही निकल गई और दर्द के मारे मैं तो रोने लगी।
मैं- प्लीज मुझे चोदो ! पर ऐसे मत करो, मेरी तो गांड ही फट गई। मैं मर जाऊँगी !
ननदोई जी- कोई नहीं मरता गांड मरवाने से !
मैं- आप ऐसे ही आगे से चोद लो न।
मैंने रोते हुए कहा। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
ननदोई जी- थोड़ी देर में मजा आएगा, देखना !
और धक्के मारना चालू कर दिया।
वाकयी में थोड़ी देर बाद मेरा दर्द कम होने लगा और मुझे मजा आने लगा।
अब तो मैं भी गांड हिला हिला कर गांड मरवाने लगी।
5 मिनट में ही ननदोई जी ने मुझे बेड पर ऐसे ही लेटा दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरी गांड मारने लगे।
कुछ देर बाद ही ननदोई जी ने मेरी गांड में अपना वीर्य छोड़ कर उसे पूरा भर दिया।
ननदोई जी हाँफते हुए मेरे ऊपर ऐसे ही पसर गए और थकान के मारे हम सो गए।
करीब एक घंटे बाद मेरी आँख खुली तो पाया कि हम दोनों बिना कपड़ों के ऐसे ही पड़े हैं।
मैंने पहले अपने कपड़े पहने और ननदोई जी को जगाया कि कपड़े पहन लें !
पर वो तो न जाने किस मिट्टी के बने थे, वापस मुझे बेड पर खींच लिया और मेरे कपड़े उतारने लगे।
मैंने उन्हें इसके लिए मना किया और कहा- बच्चे उठ कर कभी भी आ सकते हैं, ऐसे में कपड़े कब पहनूँगी।
आखिरकार वो कपड़े पहने पहने ही सेक्स करने को राजी हो गए।
ननदोई जी ने तो फिर सीधे ही मेरी चूत में लंड डाल दिया और चालू हो गए और एक बार फिर मेरी जबरदस्त चुदाई की।
चुदाई के बाद जब बाथरूम देखा तो पाया कि मेरी चूत तो सूज कर लाल हो गई है और फूल गई है।
पर मुझे इसमें बड़ा मजा आया।
कुछ दिनों पहले ही मैंने Bhauja डॉट कॉम के बारे में सुना और कुछ कहानियाँ पढ़ी भी !
मैं भी आपके साथ मेरा साथ कई सालों पहले घटी एक घटना के बारे में बताना चाहती हूँ।
यह एक सच्ची घटना है जिसमें मेरी एक गलती के कारण मेरी जिंदगी ही बदल गई।
उस दिन मुझे पता चला कि अनचाहा सेक्स क्या होता है, कैसे आपके अपने रिश्तेदार आपके जिस्म से खेलते हैं।
उस दिन मुझे मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार से यह गहरा लेकिन यादगार आनन्ददायक जख्म मिला।
मैं अब आपको इस बारे में पूरी बात बताती हूँ।
मैं राजस्थान के एक जिले की रहने वाली हूँ। मैं एक पतिव्रता औरत हूँ, मेरा कभी किसी और मर्द के साथ कोई चक्कर या सम्बन्ध नहीं रहा।
घर वालों ने 18 साल की उम्र में ही मेरी शादी करवा दी थी।
मेरे घर में पति, सास-ससुर, देवर और दो बच्चे हैं।
मेरी ननद की शादी हो चुकी है और उसे भी एक बच्चा है। ननद भी हमारे ही शहर में रहती है। ननदोई जी खुद का काम करते हैं।
एक बार मैंने अपनी बहन को खुद के जेवरों में से कुछ जेवर दे दिए थे और उनका नाम अपनी सास पर लगा दिया कि मैंने उनको दिए थे और उन्होंने खो दिए होंगे।
हमारे घर में इस बात का काफी बवाल रहा था पर समय के साथ बात आई गई हो गई थी।
पर पता नहीं कहाँ से, कैसे एक दिन ननदोई जी को यह बात पता लग गई कि मैंने वो जेवर अपनी बहन को दे दिए थे।
ननदोई जी ने यह बात मुझे बताई तो मैं डर गई क्योंकि अगर यह बात मेरे पति को या घर वालों की पता चल जाती तो वो तो मुझे घर से बाहर ही निकल देते।
मैंने उनसे गुहार लगाई कि वो यह बात किसी को न बतायें।
उन्होंने कहा- इस बात को छुपाने में मेरा क्या फायदा हो सकता है। मैंने कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है मगर मैं बाद में आपको जो चाहिए वो दे दूँगी।
इस पर वो मान गए और किसी को नहीं बताया।
इन बातों को कुछ महीने बीत गए और ननदोई जी ने किसी को नहीं बताया तो मैं थोड़ी निश्चिंत हो गई पर मन में डर तो लगा ही रहा।
इन्हीं दिनों हमारे रिश्तेदारी में एक शादी होनी थी और उसमें हम सभी को और ननद और ननदोई जी को भी जाना था।
शादी की खरीददारी के लिए सबने तय किया कि बाजार एक साथ चलेंगे।
रविवार का दिन जाने के लिए तय हुआ।
रविवार सुबह ननद का फोन आया कि ननदोई जी मार्किट नहीं जा सकेंगे, वो आराम करना चाहते हैं।
तो मेरे ससुर ने कहा- जंवाई जी यही यहाँ आकर आराम करें, तुम्हे छोड़ भी देंगे और घर और बच्चों की देखभाल भी हो जाएगी।
दोपहर 12 बजे के करीब वो आ गये और हम सब जाने को तैयार होने लगे।
इतने में ननदोई जी मेरे पास आए और कहा- आज तुम मार्किट नहीं जाओगी, बहाने से मना कर दो वरना मैं जेवर वाली बात सब को शाम को बता दूँगा।
मैं डर गई और सिरदर्द का बहाना बना कर घर पर ही रुक गई।
बच्चों को छोड़ कर सब दोपहर दो बजे तक मार्किट चले गए।
तीनों बच्चे हॉल में खेल रहे थे। मैं और ननदोई जी हॉल में सोफे पर बैठे थे।
ननदोई जी मेरे पास आकर बोले- तुम बगल वाले कमरे में जाकर मेरा इंतजार करो।
मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, मैं बगल वाले कमरे में जाकर उनका इंतजार करने लगी।
करीब दस मिनट बाद वो आये और कहने लगे- भाभी, आपने कहा था कि मुझे जो चाहिए वो आप मुझे देंगी।
मैंने कहा- हाँ कहा तो था, पर आपको क्या चाहिए?
मैंने डरते हुए पूछा और कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है।
ननदोई जी- आपके पास तो देने के लिए बहुत कुछ है।
मैं- मेरे पास क्या है? मैं समझी नहीं !
हालाँकि मैं समझ गई थी कि वो क्या चाहते हैं पर मैंने टालने के लिए ऐसा कह दिया।
ननदोई जी- मुझे आप चाहिएँ !
मैं- क्या मतलब?
ननदोई जी- मतलब यह कि इस बेड पर मैं आपके साथ सोना चाहता हूँ।
मैं बुरी तरह से डर गई और रोते हुए उनसे कहा- ऐसा मत करो, किसी को पता चला तो मेरा क्या होगा !
ननदोई जी- किसी को पता नहीं चलेगा। जब जेवर वाली बात किसी को पता नहीं चली तो यह कैसे पता चलेगी?
पर मैं मानने को तैयार ही नहीं थी।
काफी देर तक मनाने के बाद भी जब मैं उनके साथ सेक्स के लिए राजी नहीं हुई तो उन्होंने मुझे बेड पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
ननदोई जी- अगर चिल्लाने की कोशिश की तो अब सबको पता लग जायेगा और सारी बात खुल जाएगी।
मेरे बच्चे बगल में हॉल में खेल रहे थे, इस कारण मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी, बस चुपचाप उनका निर्जीव सा विरोध कर रही थी क्योंकि मैं जानतैइ थी कि मेरी करनी मेरे सामने आ रही है, आज तो मुझे ननदोई जी के नीचे आना ही है।
मैं अपने हाथ पैर चला कर उन्हें मुझ से दूर करने की कोशिश करने लगी।
मैं जानती थी कि ये सब बेकार ही जायेगा क्योंकि ननदोई जी एक ताकतवर मर्द हैं, मेरी ननद रानी पहले ही उनकी ताकत के किस्से मुझे सुना चुकी थी।
मुझे सोच कर रोमांच भी हो रहा था कि पता नहीं इतना बांका मर्द मुझे कित्ना मज़ा देगा चोद कर ! मानसिक रूप से मैं चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी पर विरोध तो जारी था।
ननदोई जी एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को ऊपर कर दिया।
साड़ी को ऊपर करके उन्होंने मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया। पैंटी को नीचे सरकते ही उन्होंने अपना एक पांव उस पैंटी पर रख कर उसे नीचे करने लगे। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरे पैर मारने से उनका यह काम आसान हो गया और मेरी पैंटी नीचे हो गई और मेरे एक पैर से निकल गई।
अब मेरे दोनों पैर आजाद हो गए और ननदोई जी का काम मेरी गलती से आसान हो गया।
मैं अब भी खुद को बचने की पूरी कोशिश कर रही थी।
मैं अब थक चुकी थी पर कोशिश कर रही थी।
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड…
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड मेरी चूत में थोड़ा सा घुस गया और मेरे मुख से एक हल्की से आह निकल गई।
ननदोई जी ने फिर दोनों हाथों से मेरे हाथ काबू में किये और मेरे सर को सीधा कर अपने होंठ मेरे होठों से लगा दिए और एक जोरदार प्रहार के साथ पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।
मैं एक इंच ऊपर की ओर खिसक गई थी। दर्द से उभरी मेरी चीख मेरे मुख के अंदर ही दब गई।
मैं अब तक बुरी तरह से थक गई थी और मेरे में जरा भी शक्ति नहीं बची थी। मैं दर्द के मारे रो रही थी और ननदोई जी अपनी मनमानी कर रहे थे, वो मुझे लगातार चोदे जा रहे थे।
अब मैंने थकान के कारण विरोध करना बंद कर दिया और चुपचाप उनको मनमानी करने देने लगी क्योंकि अब कोई फायदा ही नहीं था मैं तो चुद गई थी।
ननदोई जी लगातार ऊपर नीचे हो रहे थे और विरोध न होता देख उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर मेरे उरोज निकाल लिए और उनको चूसने लगे।
मैं एक और सर कर उन्हें ये सब करने दे रही थी।
अब तो मुझे भी मजा आने लगा था। आखिर थी तो मैं भी एक औरत ही।
करीब दस मिनट बाद मुझे मेरी मंजिल मिलने लगी तो मैं खुद ननदोई जी से चिपकने लगी मेरे मुँह से आहें निकलने लगी और आखिर झड़ने से पहले मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं खुद ब खुद ननदोई जी से चिपक गई और उनमें समाने की कोशिश करने लगी।
मैं झड़ चुकी थी और मेरे अंदर बिल्कुल भी शक्ति नहीं बची थी।
ननदोई जी ने मुझे उल्टा कर घोड़ी बना दिया।
मैं चुपचाप घोड़ी बन गई। और उन्होंने वापस अपना लंड मेरी चूत में डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मैं बुरी तरह से थक और टूट चुकी थी पर ननदोई जी थे कि चोदे जा रहे थे।
कुछ देर बाद फिर मुझे सीधा कर लेटाया और चूत में लंड डाल कर सवार हो गए।
अब उनके झटके जोर से लग रहे थे।
मैं लगातार ऊपर नीचे हो रही थी, कमरे में फच फच की आवाजें गूंज रही थी।
मेरे चूचे बुरी तरह से हिल रहे थे और न चाहते हुए भी मेरे मुख से आनन्द पूरित सिसकारियाँ निकल रही थी।
ये सिसकारियाँ और आवाजें उन्हें जोश दे रही थी।
करीब 5 मिनट के बाद उनका वीर्य मेरी चूत में जाता हुआ महसूस हुआ और वो मेरे पर ही हांफ़ते हुए लेट गए।
वो और मैं पसीने से लथपथ थे।
दस मिनट बाद वो चुपचाप उठे और कपड़े पहने और कहा- देखो, चुदाई तो हुई ही, अगर तुम मेरी बात मान लेती तो तुम्हें जो मजा बाद में आया, वो शुरू से आता।
और इतना कह कर कमरे के बाहर चले गए।
मैंने कुछ नहीं कहा, अपने कपड़े ठीक किये और थकान होने पर वहीं लेट गई और सोचने लगी- ननदोई जी सही कह रहे हैं कि मजा आता।
पता नहीं कब ही मुझे नींद आ गई।
नींद में ही मुझे मेरे पावों पर कुछ महसूस हुआ पर थकान में मुझे आराम दे रहा था। मैं लेटी ही रही पर थोड़ी देर में चूत में किसी की अंगुली महसूस हुई तो मैं जग गई।
देखा कि ननदोई जी मेरे बगल में पूरे नंगे होकर लेटे है और यह सब कर रहे हैं।
मेरे जागते ही मेरे होंटों को चूसने लगे और मेरे वक्ष के उभारों को दबाने लगे।
मुझे इसमें अब मजा आने लगा था।
मैंने कहा- बच्चे आ जायेंगे !
ननदोई जी ने कहा- वो तो सो गए हैं दूसरे कमरे में ! हम आराम से चुदाई के मजे लेंगे।
अब तो मैं भी उन्हें सहयोग कर रही थी। मेरे होंठ चूसते चूसते उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया और यही मेरी ब्रा के साथ भी किया।
मेरे स्तन अब नंगे होकर उनके सामने आ गए थे।
ननदोई जी- इनको मैं कबसे चूसना चाहता था। अब मौका लगा है।
मैं- जितना चाहे, उतना चूसो, ये अब तुम्हारे भी हैं।
ननदोई जी- और किसके हैं?
मैं- आपके भैया भी तो चूसते हैं।
ननदोई जी हंसने लगे और चुचूक को मुँह में लेकर चूसने लगे।
अब उन्होंने मेरे साड़ी और पेटीकोट को भी उतार दिया। पैंटी तो मैंने पहने ही नहीं थी सो मेरी चूत पूरी तरह से उनके सामने आ गई। मेरी चूत देखते ही वो पागल हो गए और चूत को चाटने लगे।
इससे में बुरी तरह से झन्ना गई, मेरे पति ने ऐसे कभी नहीं किया था।
मैं तो पागलों की तरह उनके सर को अपनी चूत पर दबा रही थी।
मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी।
थोड़ी देर बाद वो खुद मेरे ऊपर लेट मेरे जिस्म से खेलने लगे।
मुझे इसमें मजा आ रहा था और पता नहीं कब उन्होंने मेरी चूत में लंड डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मेरी तो हालत ही पतली हो गई।
कुछ देर बाद वो उठे और बेड पर लेट गए मुझे लंड पर बैठने को कहा।
मैं चूत का निशाना लगा कर लंड पर बैठ गई। ऐसा लगा कि उनका लंड मेरी चूत में काफी अंदर चल गया।
ननदोई जी मुझे आगे पीछे कर रहे थे इसमें मुझे मजे आने लगे और मैं खुद ही ऐसा करने लगी।
दो मिनट में ही मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं ननदोई जी पर पस्त हो कर लेट गई, मैं झड़ गई थी और ऐसे ही लेटी रही।
अब ननदोई जी ने मुझे बेड पर लेटाया और मेरी चूत में अपना लंड पेलते हुए मेरी चुदाई चालू कर दी।
वो जबरदस्त झटके मार रहे थे, मैं लगातार ऊपर नीचे खिसक रही थी।
मेरे बूब्स तो बुरी तरह से झूल रहे थे।
ननदोई जी की नज़रें भी मेरी चूचियों पर थी और उनको देख उनकी स्पीड और तेज हो जाती।
मेरी आँखें बंद हो गई मेरे मुख से आहें और सिसकारियाँ निकल कर कमरे में गूंज रही थी।
मेरे हाथ उनकी कमर पर फिर रहे थे और मैंने अपनी दोनों टांगें उनके कूल्हों पर लगा दी थी।
ननदोई जी मुझे चूमते, कभी मेरे दुग्ध-कलशों पर काटते पर मुझे इसमें बड़ा मजा आ रहा था।
कुछ देर बाद ननदोई जी ने मुझे घोड़ी बना दिया।
मैंने सोचा कि ऐसे ही चूत चोदेंगे पर उनके इरादे कुछ और थे, उन्होंने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख दिया।
मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले की उन्होंने लंड पर दबाव बना दिया, दर्द के मारे मैं तो आगे की ओर हुई पर ननदोई जी ने मेरी कमर को कस कर पकड़ रखा था।
दूसरी बार उन्होंने पूरा का पूरा लंड गांड के छेद में घुसा दिया। मेरे मुख से तो चीख ही निकल गई और दर्द के मारे मैं तो रोने लगी।
मैं- प्लीज मुझे चोदो ! पर ऐसे मत करो, मेरी तो गांड ही फट गई। मैं मर जाऊँगी !
ननदोई जी- कोई नहीं मरता गांड मरवाने से !
मैं- आप ऐसे ही आगे से चोद लो न।
मैंने रोते हुए कहा। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
ननदोई जी- थोड़ी देर में मजा आएगा, देखना !
और धक्के मारना चालू कर दिया।
वाकयी में थोड़ी देर बाद मेरा दर्द कम होने लगा और मुझे मजा आने लगा।
अब तो मैं भी गांड हिला हिला कर गांड मरवाने लगी।
5 मिनट में ही ननदोई जी ने मुझे बेड पर ऐसे ही लेटा दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरी गांड मारने लगे।
कुछ देर बाद ही ननदोई जी ने मेरी गांड में अपना वीर्य छोड़ कर उसे पूरा भर दिया।
ननदोई जी हाँफते हुए मेरे ऊपर ऐसे ही पसर गए और थकान के मारे हम सो गए।
करीब एक घंटे बाद मेरी आँख खुली तो पाया कि हम दोनों बिना कपड़ों के ऐसे ही पड़े हैं।
मैंने पहले अपने कपड़े पहने और ननदोई जी को जगाया कि कपड़े पहन लें !
पर वो तो न जाने किस मिट्टी के बने थे, वापस मुझे बेड पर खींच लिया और मेरे कपड़े उतारने लगे।
मैंने उन्हें इसके लिए मना किया और कहा- बच्चे उठ कर कभी भी आ सकते हैं, ऐसे में कपड़े कब पहनूँगी।
आखिरकार वो कपड़े पहने पहने ही सेक्स करने को राजी हो गए।
ननदोई जी ने तो फिर सीधे ही मेरी चूत में लंड डाल दिया और चालू हो गए और एक बार फिर मेरी जबरदस्त चुदाई की।
चुदाई के बाद जब बाथरूम देखा तो पाया कि मेरी चूत तो सूज कर लाल हो गई है और फूल गई है।
पर मुझे इसमें बड़ा मजा आया।