मैं आभार प्रकट करता हूँ अपनी खूबसूरत साली का जिसने मुझे इस घटना को आपके सामने लाने की इजाजत दी। औरत की इज्जत और उसकी संवेदनशीलता को देखते हुए मैंने इसे उसकी स्वीकृति पाने के बाद ही लिखा। उसने न केवल इस ‘आपबीती’ को ध्यान से पढ़ा बल्कि उसके मनोभावों और अनुभवों को इतनी सूक्ष्मता से समझने के लिए मेरी प्रशंसा की और अपनी ओर से कुछ संशोधन करके इसे और अपने अनुभवों के नजदीक ला दिया।
यह बात और महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है कि मैंने उसके साथ बड़ी जबर्दस्ती की, हालाँकि वास्तविक सेक्स की क्रिया तक पहुँचते पहुँचते वह राजी बल्कि सहयोगी हो चुकी थी, जो उसकी अब तक दबी शारीरिक इच्छाओं के एकाएक निकल पड़ने का रास्ता मिलने के कारण स्वाभाविक था। उस ‘उद्धार’ के बाद वह मुझसे निसंकोच हो गई और उसकी बेहद सुंदर, स्त्रियोचित, संवेदनशील, गरिमापूर्ण प्रकृति से मेरा साक्षात्कार हुआ।
मुझे खुशी है कि उसने अंतत उस ‘उद्धार’ के लिए मेरा आभार माना। मैंने टाइपिंग की सुविधा तथा उसकी इज्जत मर्यादा का खयाल करके इसमें केवल उसका नाम बदल दिया है। सुलक्षणा काफी लम्बा नाम है और कुछ पुराने फैशन का भी जिसे आज की आधुनिक पढ़ी-लिखी लड़की के साथ जोड़ना अनुकूल नहीं लगता। इसकी अपेक्षा ‘लाजो’ काफी छोटा, टाइपिंग में आसान और उसकी सलज्ज प्रकृति के अनुकूल लगा।
और मैं सबसे अधिक आभार प्रकट करता हूँ अपनी विलक्षण पत्नी का जिसके सहयोग बिना यह घटना घटी ही नहीं होती। वो तो इस ‘महाभारत’ की कृष्ण ही थी– सूत्रधार से लेकर कर्ता-धर्ता सब कुछ ! मैं तो उसकी इस इस महान ‘लीला’ में अर्जुन की भाँति निमित्त मात्र था !
अथ कथारम्भ:
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?” मेरी हट़टी-कट़टी पत्नी का यह बेलगाम जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। वह सिर्फ शरीर से नहीं मन से भी तगड़ी थी। और सच को बिल्कुल हथौड़ामार अंदाज में कहने की कायल थी।
मैं आश्चर्य करता था ऐसी तगड़ी हरियाणवी बीवी की ऐसी कोमल, छरहरी, बंगालन जैसी मुलायम बहन कैसे हो गई, रसगुल्ले-सी नरम। कस के पकड़ो तो डर लगे कि टूट न जाए। मन में ममता उमड़े, ऐसी खूबसूरती कि हिफाजत से कहीं छुपाकर रख लेने का दिल चाहे।छरहरी, लेकिन सही जगहों पर भरी हुई। यकीन नहीं होता दोनों एक ही पेट से जन्मी हैं। मेरी बीवी के विपरीत उसके तौर-तरीके महीन थे। वह शालीन, शर्मीली, बात को अप्रत्यक्ष बनाकर कहने वाली, मीठा बोलने वाली।
बीवी के साथ सेक्स में जहाँ जोड़ के दो पहलवानों की भिड़ंत का मजा आता था, वहीं उस कोमल, लुचपुच, सखुए की नई टहनी-सी लचकीली साली के साथ सेक्स की कल्पना मुँह में पानी भर देती। कैसी होगी उसकी चमड़ी की छुअन ! कैसी होंगी उसकी मुलायम पसलियों का अपनी छाती पर एहसास ! कैसे लगेंगे हथेलियों में उसके स्तन ! कैसी महसूस होगी लिंग पर कसी उसकी योनि की मक्खनी लिपटन !
बदकिस्मती से उसको पति भी उसके जैसा ही मुलायम और सिंगल चेसिस वाला मिला था। ठठाकर हँसने की जगह औरतों की तरह मुँह छिपाकर हँसता। आवाज भी थोड़ी पतली–औरत और मर्द के बीच की सी। आइआइटी इंजीनियर का लेबल देखकर शादी हो गई थी। था तो लम्बा लेकिन मुझे और मेरी बीवी दोनों को वह बीमार-सा लगता। बीवी की तो नजर में ही उसके लिए उपेक्षा दिखती- “मरियल साला, मेरी बहन तो बर्बाद हो गई।”
मैं समझाता, “तुम्हें ही तो लगता है वह बर्बाद हो गई। उसको देखो तो वह कितनी खुश है।”
“क्या खुश रहेगी? हुँह !” वह भुनभुनाती।
मैं मनाता काश उस गुलाब की कली का एक बार मेरे से जोड़ हो जाए। उसे एक बार पता चले कि असल मर्द का स्वाद कैसा होता है। फिर उस लल्लू इंजीनियर को हाथ भी न लगाने देगी। मुझे कभी-कभी लगता भी कि वह मुझे नजर बचाकर गौर से, एक अलग भाव से देखती है। लेकिन इसे वहम मानकर उड़ा देता !
हर मर्द को लगता है कोई भी सुंदर औरत उसे ही देख रही है। फिर मैं अपनी बीवी से बेहद संतुष्ट भी था। वह सुंदर थी और मेरे मनोनुकूल लम्बी, गोरी और दमदार। उसकी हर चीज बड़े साइज की थी- शरीर के अंग से लेकर बातें तक ! खुलकर देती ! खुलकर कहती ! कोई कम दमखम और आत्मविश्वास वाला पुरुष उसे सम्हाल भी नहीं पाता।
साली में अगर कमनीयता, कोमलता और संकोच का सौंदर्य था तो मेरी पत्नी में भव्यता, पुष्टि और आत्मविश्वास का। दोनों अपने अपने तरीके से सुंदर थीं।
रेशमा की अपनी बहन पर तरस बढ़ती जा रही थी। शायद साली भी अपने पति से खुश नहीं थी। उसके बारे में रेशमा बताती उसका पति अक्सर बाहर ही टूर पर भागता रहता है, लाजो से बचता सा है।
‘केवल सुख-सुविधाएँ जुटा देने से क्या होगा, औरत क्या केवल सुख सुविधाएँ ही चाहती है?’ रेशमा उसके बारे में कहते हुए कभी-कभी मुझे एक अलग नजर से देखती। शुरू में लगता कि वह मुझे देखकर बहन की अपेक्षा अपनी किस्मत पर खुश हो रही है। मैं गर्व से फूलता। पर धीरे-धीरे लग रहा था बात इतनी सी नहीं है। मगर आगे यह जिधर जाती थी उसकी कल्पना भी भयावह लगती थ। ऐसी दिलेर और निष्ठावान बीवी के रहते ऐसी बात सोची भी कैसे जा सकती थी।
मैं अपने साढू भाई की तरफ़दारी करता, “नौकरी में जरूरत है तो टूर करना ही पड़ेगा। वो क्या मना कर देगा कि नहीं जाएँगे? काम काम है। तुम लोगों की तरह घर नहीं बैठ सकता।”
पर पत्नी़ नहीं मानती, “वो असल में औरत से भागता है, मुझे तो लगता है वह बचने के लिए और ज्यादा टूर लगाने लगा है।”
मैं कहता, “ऐसा क्यों सोचती हो, उस पर जिम्मेदारियाँ बढ़ रही होंगी। आइआइटी का इंजीनियर है।”
पर पत्नी की निगाहों में ‘मुझे मत समझाओ, सब समझती हूँ’ का भाव मेरी बातों को व्यर्थ कर देता।
मैं तटस्थ दिखने और लाजो के प्रति अपने आकर्षण की झलक न लगने देने के लिए उस लल्लू इंजीनियर का पक्ष लेता रहता।
पर रेशमा पर मेरी तटस्थता का कोई असर नहीं था। उसकी झक बढ़ती जा रही थी। मेरे लिए तो अनुकूल स्थिति थी। फिर भी मैं कभी कभी चिढ़ाने के लिए उसे छेड़ देता, “क्या पता वो ‘लल्लू’ ठीक हो, लाजो में ही कुछ… मेरा मतलब कोई प्राब्लम वगैरह?”
रेशमा भड़क जाती, “उसके बारे में ऐसी बात भी नहीं कहना ! वो मेरी बहन है। उसका दुर्भाग्य है नहीं तो वो उसे असली रूप में देखकर कोई भी मर्द दाँतों तले उंगलियाँ दबाए रह जाता।”
मैं पूछता, “तुम्हें कैसे मालूम उसका ‘असली’ रूप? तुमने देखा है?”
वह और चिढ़ती, “मेरी बहन है ना, तुम्हारी होती तो उसका दर्द समझ में आता।”
वह कहती, “उसे खुशी पाने का पूरा हक है। किस्मत ने धोखा दिया तो क्या हुआ, किस्मत का रोना केवल कायर रोते हैं। दिल गुर्दे वाले तो खुशी हासिल करते हैं।”
“जरूर !” मैं कहता।
लाजो निस्संदेह सुंदर थी और उसे ‘खुशी’ देने में जीजा से अधिक किसकी रुचि हो सकती थी?
“पर क्या उसमें इसे हासिल करने की हिम्मत है?”
रेशमा उदासी में साँस छोड़ती, “यही तो मुश्किल है ! बड़ी डरपोक है, कुछ नहीं करेगी, संकोच में ही मरती रहेगी।”
लेकिन वह केवल खीझते रहने तक सीमित नहीं थी। एक बार उसने उसकी बातें करते हुए अचानक मुझसे पूछ डाला, “तुमको लाजो कैसी लगती है?”
मैं इतने दिनों से इस सवाल का इंतजार कर ही रहा था। मैं इस सवाल से बचना चाहता था।
“क्यों क्या बात है?”
“कुछ नहीं, पर बताओ ना।”
“अच्छी ! पर तुमसे अधिक नहीं, तुम उससे बहुत अच्छी हो।”
“ओह मैं अपनी बात नहीं कर रही।”
मैंने दिल कड़ा करके कह दिया- बहुत अच्छी, बेहद सुंदर !
वह कुछ बोलने को उद्यत हुई पर चुप रह गई। यह कहानी आप bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने बात में हँसी घोलने की कोशिश की, “पर क्या पता उसे मैं बेवकूफ लगता होऊँ। इतना वफादार मर्द जो हूँ।”
पर उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। अब मुझे लगा मुझे आगे बढ़कर लगाम थामनी चाहिए, “मैं कुछ-कुछ समझ रहा हूँ तुम क्या चाहती हो। पर क्या यह सही होगा?”
बोलते ही लगा कि इसमे तो मेरी स्वीकृति दिख जा रही है, तुरंत सुधारने की कोशिश की, “मेरा मतलब मैं तो ऐसा नहीं चाहता।”
मेरी पत्नी ने मुझे तरस खाने वाली निगाह से देखा, औरत से बच पाना बड़ा मुश्किल होता है।
“सही समझने का शुक्रिया !” मैं समझ नहीं पाया इसमें व्यंग्य है या तारीफ।
मैं सोच नहीं पाया कि क्या बोलूँ, मुँह से निकला, “लाजो पतिव्रता है, वह कभी नहीं मानेगी।”
मैं खुद सोचता रह गया कि इसका क्या मतलब हुआ, क्या मैं सचमुच यही बोलना चाहता था?
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यंग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यंग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
बाथरूम में फ्लश की आवाज के कुछ क्षणों बाद वह प्रकट हुई।
“बोलो !”
मैं सन्न था। पतंगे की तरह छिपने की कोशिश करती मेरी लाजो की कामना एकदम से उसकी सच्चाई के चिमटे की पकड़ में आकर छटपटा रही थी। फिर भी मैं मुस्कुरा पड़ा। मेरी हट्टी-कट्टी पत्नी का यह बेलौस जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। इस डायलॉग के साथ ही लाजो के साथ सोने की सम्भावना जैसे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई, जैसे हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लूँगा। मेरी बीवी चमत्कार करने में सक्षम थी। मुझे कोई फिक्र नहीं हुई कि लाजो कैसे मेरे पहलू में आएगी।
वह मेरे पास आई और मेरे सिर पर हाथ फेरा।
“मैं जानती हूँ तुम उसे चाहते हो !”
मैंने अपने सिर पर घूमते उसके हाथ को खींचकर चूम लिया।
वह हँस पड़ी, “यू आर सो क्यूट !” उसने कान पकड़कर मेरा सिर हिलाया, “मुझसे छिपना चाहते हो?”
मैंने उसे बाहों में घेर लिया।
लाजो ही अब मेरे हर पल हर साँस में होगी।
और तभी:
“तुम चाहती हो आज रात मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ?” लाजो ने अपनी बड़ी बहन से पूछा, “आज की रात मैं कोई किताब पढ़कर काटने के लिए सोच रही थी। तुम जानती हो अकेले नींद नहीं आती।”
रेशमा ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर रखा था। लाजो की आवाज से महसूस हुई उसकी नजदीकी ने दिल की धड़कन बढ़ा दी। वैसे तो जब रेशमा ने उसे आने का प्रस्ताव किया तभी से मेरा अंग उत्तेजित हो रहा था।
“यहाँ मैं तुम्हें तुम्हारे जीजाजी के पास सुला दूँगी।” रेशमा ने मुझे आँख मारी।
”धत्त, क्या बोलती हो?”
“तुमसे मिले कई दिन हो गए, आज दोनों बहनें मिलकर ढेर सारी बातें करेंगी।”
“और जीजाजी?”
“वे ऑफिस की एक पार्टी में जा रहे हैं, रात को देर से लौटेंगे। कल छुटटी ही है, इसलिए चिंता नहीं।”
“ठीक है, मैं जल्दी आऊँगी।”
“आधे घंटे में आ जाओ।”
“इतनी जल्दी? ठीक है आठ बजे तक आती हूँ।”
चुदने को आ रही औरत की उत्तेजक आवाज ! भोली को क्या मालूम हमने उसके लिए क्या योजना बनाई थी। घड़ी में सवा सात बज रहे थे। काले बालों के झुरमुट में छिपी गुलाबी वैतरणी पैंतालीस मिनट में प्रकट होने वाली थी। वैतरणी को पार कराने वाली मेरी नैया पैंट में जोर जोर हिचकोले खाने लगी।
“तैयार हो जाओ मैन, योर टाइम इज कमिंग।” रेशमा की आवाज गंभीर थी।
हमने घर व्यवस्थित किया, सोफे पर नया कवर डाल दिया। आज मेरी साली कोई सामान्य रूप से थोड़े ही आने वाली थी। आज तो उसका जश्न होगा। पलंग पर एक खूबसूरत नई चादर बिछाई, सिरहाने एक झक सफेद तौलिया रख लिया। उसके निकलने वाले प्रेमरसों की छाप लेने के लिए। अगर वो अनछुई, अक्षतयौवना होती तो उसकी सील टूटने के रक्त की छाप भी ले लेता।
मेरी आतुरता दिख जा रही थी और मैं यह सब पत्नी की योजना होने के बावजूद मन में शर्मिन्दा हो रहा था। मुझे रेशमा के चेहरे पर खेलती हँसी के पीछे एक व्यंग्य दिख रहा था लेकिन उसमें साथ में एक निश्चय की दृढ़ता भी थी।
सबकुछ तैयार करके हमने एक दूसरे को देखा। पंद्रह मिनट बच रहे थे, किसी भी क्षण आ सकती थी।
रेशमा ने लाजो को फोन लगाया, “कहाँ हो?”
वह रास्ते में थी और पाँच मिनट में पहुंचने वाली थी।
रेशमा ने मुझे देखा, “योर टाइम हैज कम। मुझे लगता है अब तुम शॉवर में चले जाओ और उसके लिए तैयार रहो।”
लाजो ने तीन बार घंटी बजाई पर दरवाजा नहीं खुला। उसने धक्का दिया। दरवाजा खुल गया। भीतर कोई नहीं था। उसने ‘दीदी ! दीदी !’ की आवाज लगाई, उत्तर नहीं आया, बेडरूम में झाँका, खाली था, अटैच्ड बाथरूम में शॉवर चलने की आवाज आ रही थी।
“दीदी नहा रही हैं।”
वह बिस्तर पर बैठ गई और उसके बाहर आने का इंतजार करने लगी। बेड पर एकदम नया चादर देखकर खुश हुर्इ, दीदी मुझे कितना मानती है। सिरहाने रखी पत्रिकाओं को उलटा-पलटा, दो तीन इंडिया टुडे और गृहशोभा के बीच में अंग्रेजी डेबोनेयर का एक ताजा अंक था।
हमारा अंदाजा था अकेले में वह जरूर उसे ही देखेगी।
उसके कवर पर एक कमर में छोटी तिकोनी गमछी लपेटे टॉपलेस मॉडल की तस्वीर थी।
‘दीदी-जीजाजी भी काफी रंगीनमिजाज हैं।’ पन्ने पलटती हुई वह बुदबुदाई।
मैंने अनुमान लगाया कि अब तक नहाने के लिए पर्याप्त समय बीत चुका है। मुझे दरवाजे की घंटी सुनाई पड़ चुकी थी, यानि लाजो आ चुकी थी। अब अगर वह बेडरूम में होगी तो बिस्तर पर ही बैठी होगी। अकेली लड़की के सामने नंगे जाना दुस्साहस था। पर यही योजना का पहला चरण था। मैंने मन को कड़ा किया और शॉवर बंद किया और स्टैंड से तौलिया खींच लिया…
बाथरूम खोलकर मैं सिर पर तौलिया डाले बालों को पोंछता बेडरूम में सीधा बिस्तर की दिशा में चला आया। बिस्तर पर उसकी आकृति नजर आई पर उसे मैं अनदेखा करता हुआ किनारे रखी मेज पर से अपना कपड़ा उठाने के लिए घूम गया…
लाजो डेबोनेयर देख रही थी। मॉडलों की सेक्सी तस्वीरें, पाठकों के सेक्स अनुभव, अमरीका में मिस न्यूड प्रतियोगिता, धारावाहिक सेक्स कहानी। यह सब उसे बेहद आकर्षित कर रहे थी। उसका पति ऐसी चीजें नहीं लाता था। शादी के पहले सहेलियों के साथ उसने कुछ मैग्जीन्स देखे थे, पर शादी के बाद ये चीजें मुहाल हो गईं।
शॉवर बंद होने की आवाज सुनकर उसने अनुमान लगाया अब दीदी निकलेंगी। सोचा जब तक दीदी तैयार होकर निकलेगी तब तक जल्दी से थोड़ा और देख लूँ। तभी उसने बाथरूम से बाहर आती तौलिए से सिर ढकी नंगी पुरुष आकृति देखी। उसके पेड़ू के नीचे अर्द्धउत्थित विशाल लिंग चलने से हिल रहा था।
उसने तुरंत नजर हटा ली, भय से वहीं पर गड़कर रह गई।
‘बाप रे !’ लाजो बाथरूम में लौटती उस पुरुष आकृति के कसे नितंबों को देखती बुदबुदाई। चलने से उसमें गड्ढे बन रहे थे। ऊँची काया, चौड़ी पीठ, मजबूत कमर, कसी जाँघें ! क्या शरीर था ! उसका झूलता हुआ हल्का उठा आश्चर्य जगाता ‘कितना बडा !’ लिंग तो जैसे दिमाग में छप गया।
अपने आप में आकर उसने नजर घुमाई। गोद में खुली डेबोनेयर में एक नंगी मॉडल उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। उसने झट से किताब बंद कर दी और दूसरी पत्रिकाओं के नीचे दबा दिया। उठकर ड्राइंग हॉल में चली आई और सोफे पर बैठकर धड़कनों को शांत करने और सांसों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लगी।
“तुम आ गई ! मैं दो मिनट के लिए बगल वाली के पास गई थी।” रेशमा अंदर घुसते हुए और दरवाजा बंद करती हुई बोली, “तुम्हें इंतजार न करना पड़े इसलिए दरवाजा खुला छोड़कर गई थी।”
और अवसरों पर स्वाभाविक यह होता कि लाजो उठकर बड़ी बहन के गले मिलती, पर आज वह बैठी रह गई। उसका उड़ा-उड़ा चेहरा साफ पकड़ में आ रहा था। रेशमा समझ गई चाल कामयाब हुई है, तीर निशाने पर लगा है।
“तुम ठीक तो हो न?”
“मैं… अँ.ऽ. अँ.ऽ. अँ.ऽ… ठीक हूँ। लगता है गर्मी है।” वह दुपट्टे से पंखा करने लगी।
“हाँ, गर्मी तो है, ठण्स पानी या कोकाकोला लाऊँ?”
“कोकाकोला…”
रेशमा कमरे में आई। मुझे देखकर मुस्कुराई।
“लगता है कुछ देख लिया है उसने !” वह फ्रिज का दरवाजा खोलकर बोतल निकालने लगी।
“कुछ नहीं, पूरा का पूरा देखा है !” मैं घमंड से बोला।
“तैयारी में दिख रहे हो, बल्ले बल्ले !” उसने मेरे पतले सिल्क पजामे को पकड़कर शरारत से नीचे खींचा। अंदर खड़े लिंग की पूरी रूपरेखा स्पष्ट नजर आ रही थी।
“मेरी बेचारी बहन के बचने की कोई संभावना नहीं।” उसने नकली हमदर्दी में मुँह बनाया।
“मुझे थोड़ा समय दो और फिर बाहर आ जाओ।” कोकाकोला की बोतल लिए वह चली गई।
हॉल में जाकर उसने लाजो को पकड़ाया। लाजो तुरंत ग्लास लेकर एक बड़ा घूँट गटक गई।
“तुम्हारे जीजाजी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं। उनसे भेंट हुई कि नहीं?”
“उँ..ऽऽ ..न.. न… नहीं तो !”
“सचमुच?” मैं भीतर आता हुआ बोला। मेरा प्रत्याशा में खड़ा लिंग झीने रेशमी पजामे के भीतर से पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। मैं आकर उन दोनों के सामने खड़ा हो गया।
लाजो झूठ पकड़ा जान कर लजा गई। मुझे देखते ही उसकी नजर सीधे पजामे की ओर गई और नीचे झुक गई। मुझे लगा उसकी नजर वहाँ एक बटा दस सेकंड के लिए ठहरी थी। रेशमा को भी ऐसा लगा, वह गौर कर रही थी।
“सुंदर है ना !”
लाजो ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई।
“पजामा !” रेशमा ने मेरी कमर की ओर इशारा किया। वह लाजो को मुझे देखने का मौका दे रही थी। क्रीम कलर के झीने कपड़े के अंदर मेरा उत्तेजित लिंग पजामे को भीतर से बाहर ठेले हुए था। उसकी मोटी गुलाबी थूथन भी उसे दिख रही होगी।
“कल ही खरीद कर लाई हूँ, अच्छा है ना?”
लाजो पसीने पसीने हो रही थी। दीदी उधर ही दिखा रही थी जिधर उसकी नजर भी नहीं उठ रही थी। जल्दी जल्दी से कुछ घूँट गटकी, “अच्छा है। मुझे बड़ी गर्मी लग रही है।”
“सुरेश, जाओ और भिगाकर फेस क्लॉथ ले आओ।
मैं वहाँ से चला आया।
“जरा शरीर में हवा लगने दो।” कहकर रेशमा ने उसके कंधे पर से साड़ी पिन खोलकर साड़ी का पल्लू पीठ के पीछे से खींचकर उसकी गोद में गिरा दिया। लाजो ने आँखें बंद कर ली और सोफे की पीठ पर लद गई।
मैं बर्फ के पानी से भिगोकर तौलिया ले आया। कंधे से साड़ी हटने के बाद लाजो के स्तनों से भरी ब्लाउज मादक लग रही थी।
“यह लो !” मैंने रेशमा को तौलिया पकड़ा दिया।
रेशमा पानी चूते तौलिये को देखकर मुसकुराई। लाजो मेरी आवाज सुनकर साड़ी से छाती ढकने का उपक्रम करने लगी।
रेशमा उसकी गर्दन पर तौलिया रखकर हल्के हलके दबाने लगी। उसने तौलिए के दोनों छोरों को सामने रखते हुए बीच का हिस्सा़ उसकी गर्दन में पहना दिया और दबा-दबाकर गर्दन, गले और नीचे की खुली जगह को पोंछने लगी।
“आऽऽऽह !” लाजो के मुँह से अच्छा लगने की आवाज निकली। उसकी आँखें बंद थीं। वह देख नहीं पाई कि तौलिए से चूता पानी उसके ब्लाउज और ब्रा को भिगा रहा है। पानी उसके कपड़ों के अंदर घुसकर पेट पर से चूता हुआ उसकी साड़ी के अंदर घुस रहा था।
जब उसको अपनी पैंटी के भीतर ठंडक महसूस हुई तो उसकी आँख खुली। पानी उसके भगप्रदेश के बालों से होता हुआ गर्म कटाव के अंदर उतर गया था और उसकी सुलगती योनि में सुरसुराहट पैदा कर रहा था।
“मैं भीग गई हूँ।”
“ओह, सॉरी !” कहकर रेशमा ने उस पर से तौलिया उठा लिया।
भीगने से ब्लाउज इतनी चिपक गया थ कि भीतर की ब्रा का उजलापन साफ नजर आ रहा था और सामने निप्पलों की काली छाया तक का पता चल रहा था। उन गोलाइयों को अनावृत देखने की इच्छा मन में उमड़ पड़ी। वह किसी कलाकार की रची तस्वीर सी लग रही थी, गोरेपन के कैनवस पर गुलाबी रंग से रंगी तस्वीर ! सिर्फ आधे कंधे और छातियों को ढकती गुलाबी कपड़े की परत, गुलाबी रंग के भीतर से प्रत्यक्ष होती उजली ब्रा की आभा ! मचलते स्तन ! ब्लाउज के नीचे सुतवें पेट की पतली तहें ! मैं मंत्रमुग्ध देख रहा था।
रेशमा ने उसकी गोद में पड़ी भीगी साड़ी के पल्लू के ढेर को उठाया और कहा, “इसे खोल दो, एकदम भीग गई है।”
लाजो हड़बड़ाई, “जीजाजी देख लेंगे।”
“मैं चला जाता हूँ।” मैं वहाँ से हट गया। बेडरूम के अंदर आकर दरवाजे की ओट से झाँकने लगा।
रेशमा उसको खड़ा करके साड़ी खींच रही थी। लाजो एक बार इधर सिर घुमा कर देखा कि मैं देख तो नहीं रहा हूँ।
साड़ी का ढेर नीचे पैरों के पास गिराकर रेशमा ने उसको एक बार भरपूर निगाह से देखा। जवानी की लहक भरपूर थी।
लाजो उसकी नजर से परेशान होती हुई बोली, “ऐसे क्या देख रही हो?”
“ब्लाउज से पानी चू रहा है। इसको भी उतार दो।”
“नहीं, जीजाजी…”
“जीजाजी कमरे में हैं, जल्दी कर लो।”
लाजो बदन ढकने के लिए भीगी साड़ी उठाने को झुकी। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
रेशमा बोली, “वैसे ही ठहरो, भीगा हुआ खोलने में तुमको परेशानी होगी। मैं खोल देती हूँ।” कहती हुई वह उसकी झुकी हुई पीठ पर से ब्लाउज के हुक खोलने लगी।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
लाजो के मुँह से ‘अर्र… अरे !’ की चीख निकली और वह एकदम हड़बड़ाकर साड़ी लपेटकर सोफे पर धम से बैठ गई। मेरे पहुँचते ही रेशमा ने भीगा ब्लाउज और ब्रा मेरी ओर बढ़ा दिया “प्लीज, जरा इसे बालकनी में सूखने के लिए फैला दोगे?”
“खुशी से।”
“थैंक्यू !”
क्या मजेदार विडम्बना थी। रेशमा लाजो पर जबर्दस्ती कर रही थी और मुझे थैंक्यू कह रही थी। थैंक्यू तो मुझे कहना चाहिए था। जिस चोली और ब्रा को उतारने के सपने मैं कब से देख रहा था वह वह अब मेरे हाथ में थी ! पानी में भीग कर गहरे गुलाबी रंग की हो गई चोली और सफेद ब्रा। दोनों भीगे होने के बावजूद उसके बदन से गर्म थे।
लाजो साड़ी लपेटे झुकी हुई थी। आधी से ज्यादा पीठ खुली थी। पीठ के बीच उभरी रीढ़ की हड्डी नीचे नितम्बों की शुरुआत के पास जाकर अंदर धँस रही थी जिसके गड्ढे के ऊपर साये की डोरी धनुष की प्रत्यंचा जैसी तनी थी। उसके अंदर छोटा सा अंधेरा। रहस्यमय ! अंदर दबे खजाने !
मैंने भीगे वक्षावरणों में मुँह घुसाकर सूंघा। लाजो के बदन की ताजा गंध ! पसीने और परफ्यूम की खुशबू मिली। मैं पजामे के अंदर इतना तन गया था कि चलना मुश्किल हो रहा था। अलगनी पर ब्रा को फैलाते समय मैंने फीते में कंपनी का फ्लैप देखा- 36 सी साइज। बिना बच्चे के ‘सी’ साइज ! लाजो उतनी पतली नहीं है !
मेरे जाने के बाद लाजो रेशमा पर बिगड़ी, “तुमने जीजाजी को क्यों बुलाया?”
“भीगी साड़ी ही लपेटे रहोगी?”
“मुझे कोई कपड़ा दो।”
“जीजाजी उधर हैं।”
“नहीं, पहले कपड़ा दो।”
“जानू !” रेशमा पुकारी, “एक कपड़ा लेते आओ।”
“नहीं…” लाजो चीख पड़ी।
“ठीक है।” रेशमा ने मुझे रोका, “अभी उधर ही रहो।”
“दे रही हो?” उसने लगभग हुक्म के अंदाज में पूछा।
लाजो हैरान उसे देखती रह गई, खुद उसकी बड़ी बहन उसके साथ क्या कर रही है ! उसे यकीन नहीं हो रहा था वह किधर ले जाई जा रही है। टॉपलेस तो हो ही चुकी थी ! आश्चर्य और उत्तेजना से लगभग लाल हो गई थी।
रेशमी पजामा… अंदर तम्बू के पोल की तरह तना लिंग, मोटी जांघें, रोशनी में चमकती भीगी चौड़ी पीठ, कठोर नितम्ब… एक एक छवि उसके दिमाग ताश के पत्तों की तरह फेर रही थी।
“छोड़ो !” रेशमा ने उसके कंधे से साड़ी खींची। छाती पर लाजो के हाथों का दबाव ढीला पड़ गया। रेशमा उसके स्तनों के सामने से कपड़े को खींचती हुई हँसी, “मुझसे कैसी शरम !”
रेशमा ने लाजो को खड़ी करके उसकी कमर के चारों तरफ से साड़ी खींचकर निकाल लिया। लाजो ने दुबारा प्रतिरोध की कोशिश की पर ‘जीजाजी को बुलाऊँ?’ की धमकी सुनकर शांत हो गई। साड़ी निकलने के बाद साए में उसकी पतली कमर और नीचे क्रमश: फैलते कूल्हों का घेरा पता चलने लगा। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
‘मेरी बहन सुंदर है !’ रेशमा बोली।
उत्तेजित होने के बावजूद शर्म से लाजो की आँखों में आँसू आ गए। उसने बाँहों से स्तन ढक लिए।
रेशमा ने साड़ी उठाई और चली गई। कमरे में आकर मेरे हाथ में देकर बोली, “यह लो ! एक और पुरस्कार !”
साड़ी के स्पर्श से मेरा ऐसे ही दुखने की हद तक टाइट हो रहा लिंग और तनकर जोर जोर धड़कने लगा। टॉपलेस लाजो कैसी लग रही होगी? मन हुआ दौड़कर उसके पास चला जाऊँ।
“यू आर ग्रेट। मैं तुम्हारा दीवाना हूँ।” मैं रेशमा का बेहद एहसानमंद हो गया।
“ऐसी बीवी तुम्हें नहीं मिलेगी।” वह घमण्ड से बोली। उसने पजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर थपकी दी और बोली, “अब तैयार रहो, तुम्हारी जरूरत पड़ेगी। मुझे नहीं लगता वह मुझे आसानी से पेटीकोट उतारने देगी।”
लिंग पर थपकी से मेरे बदन में करेंट की लहरें दौड़ गईं, मैंने आग्रह किया, “इस पर एक चुम्बन देती जाओ, प्लीज।”
उसके गुलगुले होठों से मेरे लिंग का सख्त मुँह टकराया और मेरी भूख और बढ़ गई। मैंने पजामें की इलास्टिक नीचे खिसकाई, “बस एक बार मुँह के अंदर लेके…”
पर वह उठ गई, “अब यह लाजो से ही करवाना !” कहकर चली गई।
मैं ठगा-सा रह गया। इतनी दूर तक स्वयं कहेगी मैंने सोचा नहीं था। मैंने फिर अपने-आपको उसका बेहद कृतज्ञ महसूस किया।
मैंने दरवाजा खोला और अर्द्धनग्न लाजो को देखने के लिए बाहर चला आया। हॉल के अंदर न जाकर रास्ते में ही खड़ा हो गया। रेशमा अब मुझे बुलाने वाली थी।
:
लाजो सोच रही थी दीदी उसके लिए कपड़े लाने गई है। उसके दिमाग में उथल-पुथल मची थी। अपनी बाँह हटाकर देखी, चूचियाँ खड़ी थीं, घबराकर उसने उन्हें फिर से दबा लिया। नग्न पुरुष के अंगों का दृश्य उसके दिमाग में बार बार घूम रहा था। अपने पति का उसने देखा था मगर आज देखे पुरुष का तो… हर दृश्य उसकी योनि में ‘फुक’ का सा स्पंदन उठा रहा था। हर स्पंदन के साथ बदन में एक लहर-सी दौड़ जाती थी। वह उसे भूलने की कोशिश कर रही थी। अर्द्धनग्न अवस्था में बैठी समझ नहीं पा रही थी क्या करे।
जब दीदी खाली हाथ लौटी तो वह उलझन में पड़ गई।
“कपड़े?” उसने पूछा, उसका हाथ छाती पर दबा था।
“एक ही बार लेना।”
क्या मतलब? वह सवालिया निगाह से देखती रह गई।
“तुम्हारा पेटिकोट भी तो भीगा है।”
लाजो की नजर नीचे गई। सामने बड़ा सा धब्बा था, मानो पेशाब किया हो। साया भींगकर जाँघों और बीच में फूले उभार पर चिपक गया था। अंदर काला धब्बा-सा दिख रहा था। शायद बालों का।
लाजो उसे तुरंत हथेली से छिपा कर बोली, “नहीं…”
“अंदर पैंटी नहीं पहनी हो क्या?”
“तुम पागल हो गई हो !”
रेशमा सोफे पर बैठ गई, ” तुम्हारे जीजाजी कह रहे थे लाजो आए इतनी देर हो गई, उसने मुझसे बात नहीं की?”
“दीदी, प्ली…ऽ….ऽ….ऽ….ज!”
“तुम उनकी चहेती साली हो, वो तुमसे बात करना चाहते हैं ! बुलाऊँ उनको?”
लाजो को लग रहा था वह स्वप्न तो नहीं देख रही। उसके साथ क्या हो रहा है? ऊपर नंगी और नीचे केवल साए में एक विचित्र अवस्था में थी। शर्म से गली जा रही थी लेकिन निचले ओठों के अंदर छुपा भगांकुर बेलगाम धुकधुकाए जा रहा था। सारा शरीर सनसनी से और शर्म से लाल हो रहा था। उसका मन हुआ कि भागकर बाथरूम या रसोई में छिप जाए।
एक आवेग में उठी, पर मुड़ते ही देखा जीजाजी रास्ते में खड़े हैं, वापस पीछे मुड़ी। दीदी सीधे उसकी आँखों में देख रही थी। अब बैठने में उसे बेहद कायरता और शर्म महसूस हुई। वह जस की तस खड़ी रह गई।
“जानूँ, लाजो के लिए ‘कपड़ा’ ले आओ।” रेशमा ने ‘कपड़ा’ को थोड़ा विशेष रूप से उच्चरित किया।
“वो पीली वाली, नैन्सी किंग की।”
‘पीली वाली, नैन्सी किंग की’ नाइटी थी जो हमने हाल में ही खरीदी थी। शिफॉन और नायलॉन की बनी। पीले रंग की। इतनी झीनी थी कि इसके इनर और आउटर दोनों पहनने के बाद भी अंग साफ नजर आते थे। इनर कंधों से पतले स्ट्रैप्स से टंगता था और काफी नीचे उतर कर छातियों को आधे से अधिक खुला छोड़कर शुरू होता था। मैं इनर छोड़कर केवल आउटर ले गया। इसको पहनना तो कुछ न ही पहनने के बराबर था।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’। पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई। छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’ पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई ‘छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।’
मगर औरत ही समझती है कि कब, कैसी और कितनी शर्म उल्लंघन के लायक है। मैंने जब रेशमा को कपड़ा देकर जाना चाहा तो उसने मुझे रोक दिया, “ठहरो, साया लेकर जाना।”
वह उठ खड़ी हुई। लाजो के एक बार हारने के बाद उस पर उसका नियंत्रण और बढ़ गया था। आत्मशविश्वास से भरी उसके पास बढ़कर पहुंची और उसका दायाँ हाथ पकड़कर झटककर खींच लिया !
मेरे लिए तो जैसे सृष्टि ही उलट गई ! लाजो की दोनों छातियाँ भरी, गोल, गोरी, शिखर पर गाढ़े गुलाबी गोल धब्बे, मानों भगवान द्वारा लगाया गया quality checked की मुहर ! बीच में उठे किंचित लंबे, तने, रसीले चूचुक, चूसने के लिए पुकारते हुए से ! निर्णय करना मुश्किल था कि लाजो के चेहरे और चूचुकों में कौन ज्यादा लाल थे !!!
लाजो के दिमाग में जैसे अंधेरा छा गया था। दीदी उसका दायाँ हाथ मजबूती से पकड़े थी। उसका बायाँ हाथ पेड़ू पर से हटकर स्तनों पर आ गया।
पर अब साया असुरक्षित था ! दीदी यही तो उतारने के लिए उद्यत है, उसने आँखें मूंद लीं।
रेशमा अपनी बहन पर इतने अधिकार और नियंत्रण से उन्मत्त हो रही थी, उसकी योजना आशातीत रूप से सही काम कर रही थी। उसने उसका दायाँ हाथ पकड़े ही झुककर उसकी कमर में साये की डोरी का बंधन टटोला। लाजो दुविधा में पड़ गई कि स्तन ढके या वस्तिस्थल।
जब तक वह कुछ सोचती, रेशमा ने डोर का खुला सिरा खोजकर खींच दिया।
लाजो ने एक बार अंतिम सहायता के लिए सिर उठाकर मेरी ओर देखा– दुश्मन से ही दुश्मन के खिलाफ सहायता की भीख। मगर मेरी ओर घुमाते ही उसकी नजर मेरे पजामे की ओर झुक गई जहाँ एक विशाल क्रुद्ध सर्प खड़ा फुँफकार रहा था। पता नहीं क्यों, तभी उसी क्षण उसे लगा कि वह सर्प उसे काटे बिना छोड़ेगा नहीं, अब वह नहीं बचेगी ! उसे एहसास हुआ कि उस सर्प को देखकर खुद उसके अंदर भी कोई सर्प जाग गया है जो उससे मिलने के लिए अपनी स्वतंत्र मर्जी से चलेगा।
अपनी निरंतन धुक धुक कर रही भगनासा पर उसे क्रोध आया।
रेशमा कमर में उंगली घुसाकर खींच खींचकर डोर को ढीला कर रही थी। डोर कमर में धँसने का निशान छोड़ती अलग हो रही थी। लाजो ने नंगी होने से बचने के लिए छाती पर से हाथ हटाकर साया पकड़ लिया।
एक हाथ हवा में दीदी के हाथ में, दूसरी से साया पकड़ी, नंगी गोरी बाँहें, कंधे, सीना, दोनों चमकते चूचुकों के काले वृत्त लिए गोरे स्तन जो लाजो के शर्म बचाने की कोशिश में आगे झुकने से और अच्छे से झूल रहे थे ! लाजो अजब मादक, उत्तेजक, दयनीय और हास्यास्पद लग रही थी। मेरी इच्छा हुई उसे बाँहों में भरकर पुचकारकर प्यार करूँ।
लाजो के सामने साया पकड़ लेने पर रेशमा मुस्कुराई, वह अपना हाथ उसकी कमर के पीछे ले गई। रीढ़ के गड्ढे में हाथ घुसकार उसने साए को ढीला किया। लाजो कुछ नहीं कर सकती थी। पीछे सूखी होने के कारण डोर आसानी से खिंच गई और साया ढीला होकर नितम्बों पर सरक गया। काली पैंटी आधे से ज्यादा प्रकट हो गई। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
लाजो साये को पकड़कर रोकने की कोशिश करती गिड़गिड़ाई, “दीऽऽ दीऽऽ… जीजाजी देख रहे हैं।”
“सही कहती है।” वह मेरी ओर मुड़ी, “तुम इसको देख रहे हो और यह तुमको नहीं देख पा रही है। अपना पजामा उतार दो।” वह कठोरता से बोली।
लाजो ने ये शब्द़ सुने, वह अवाक मेरी ओर देखने लगी, उसके मुँह से बोल नहीं फूटे। मैं पसोपेश में पड़ गया। उसे बुरा तो नहीं लगेगा? पर अब हम वहाँ पहुँच गए थे जहाँ किसी के लिए भी दुविधा में पड़ना अच्छा नहीं था। लाजो के लिए भी नहीं।
जिस बिन्दु पर वह पहुँच चुकी थी वहाँ से उसे अनचुदे छोड़ देना उसके लिए सिर्फ अपमानजक होकर रह जाता। मेरी बीवी दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ रही थी। मुझे उसका साथ देना था।
मैंने अपनी कमर की इलास्टिक में अंगूठे फँसाए और नीचे खिसका दिया। मेरा लिंग उसकी तंग परिधि से स्प्रिंग की तरह छूटकर बाहर निकला और हिलकर सीधा लाजो की ओर इशारा करने लगा।
कोई कुछ नहीं बोला। समय जैसे ठहर गया। कुछ सेकंड ऐसे ही बीते। लाजो मेरी और मेरे लिंग की लाल क्रुद्ध आँखों की तपिश में झुलसती रही।
रेशमा शांत थी। उसने लाजो का हाथ छोड़ दिया, घुटनों के बल बैठ गई।
अब लाजो एक ही दिशा में जा सकती थी– संभोग।
फिर भी उसने डूबने से पहले हाथों से छिपाकर लाज बचाने की एक बेहद कमजोर कोशिश की।
लाजो ने हाथ ऊपर बढ़ाए। दोनों तरफ से साए का कपड़ा बटोरकर मुट्ठी में लिया। मुट्ठी कसी और…
लाजो की धड़कन रुक गई, अब गया… गया..
रेशमा एक क्षण ठहरी, उसकी तड़पन और यातना का मजा लिया, फिर उसके हाथों में हरकत हुई और…
साया एक झटके से दीवार की तरह नीचे आ गिरा। संगमरमरी जांघें, गोल पिंडलियाँ, नीचे गिरे साये के घेरे में छिपी एड़ियाँ… छोटी सी पैंटी, बेहद संक्षिप्त, अपर्याप्त ! वाक्य के बीच ‘कॉमा’ (अर्द्धविराम) सी…
लाजो ने गिरने से बचने के लिए बहन के ही कंधे का सहारा ले लिया। मेरी इच्छा हुई अब रेशमा को रोकूँ। पूर्ण नग्न करना शय्या पर उत्तप्त कामक्रिया के समय ही अच्छा लगेगा।
किंतु रेशमा बंदूक से छूटी गोली की तरह पूरे वेग में थी। उसने लाजो की पैंटी में उंगलियाँ फँसाई और नीचे खींची। पैंटी जरा सा नितम्बों पर अटकी, पर खिंचाव की ताकत से फिसलकर नीचे आ गई। घुटनों में आकर रुकी।
मैंने देखा– पैरों के बीच से गुजरती उसकी पतली पट्टी! पानी से और उसके प्रेमरसों से भीगी ! उसे एक बार मुँह से छूने का खयाल मन में तैर गया। रेशमा ने पैंटी नीचे खिसकाकर उसकी एक एड़ी उठाई। लाजो ने विरोध नहीं किया। बहन का सहारा लिए लाजो का दूसरा पाँव भी उठाकर रेशमा ने पैंटी को निकालकर अलग फेंक दिया।
मैंने देखा– उसके तने चूचुक, गर्व से भरे उभरे स्तनों के माथे पर मुकुट की तरह सजे। पेड़ू से नीचे काली घनी फसल… मानों स्वर्ग के द्वार पर काले बादलों का झुण्ड ! साफ, केले के तने जैसी जांघें… किसी अकल्पनीय लोक से उतरी रति की साक्षात् मूर्ति…!
रेशमा ने मेरी ओर देखा, मैं आगे बढ़ा, रति की देवी के समक्ष… और समीप… और निकट… जबतक कि मेरे लिंग का कठोर मुँह उसके कोमल पेट में कोंचने न लगा… मेरी छाती ने उसके साँवले गुलाबी चूचुकों का स्पर्श किया और…
उस देवी ने आँखें मूंद लीं।
मुलायम गोलाइयाँ मेरी छाती पर दबकर चपटी हो गईं। मैंने उसके झुके माथे पर देखा– सिंदूर का दाग… उसके चुदे, भोगे, पुरुष के नीचे मर्दित होने का प्रमाण… मुझे गुस्सा सा आया… रति की देवी के समक्ष वह नकारा नपुंसक इंजीनियर… स्साला…
मेरे होंठ नीचे झुके- उसकी कान को हल्के दाँतों से काटने के लिए, उसकी धड़कती गर्दन पर छोटे छोटे चुम्बन अंकित करने के लिए… उसके नमकीन पसीने को चखने के लिए ! मेरे हाथ उसके बदन को घेरते हुए उसके पीछे की ओर बढ़े और उसके गोल नितम्बों को ढकते हुए उनपर टिक गए। मैंने उसे कसकर अपने में दबा लिया और उसके होंठों को ढूँढने लगा। उसकी बेहद गोपनीय उर्वर फसल, जिसे अबतक सिर्फ उसके पति ने देखा था, मेरी जाँघों पर फिरती हुई गुदगुदी पैदा करने लगी…
लाजो की पलकें उठीं। एक क्षण के अंश भर के लिए मुझसे आँखें मिलीं और अपनी लाल झलक देकर रेशमा की ओर मुड़ गईं। रेशमा उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। लाजो निश्चित नहीं थी कि क्या हो रहा है लेकिन उसका शरीर अब उसकी कुछ सुनने को तैयार नहीं था। उसकी एक ही इच्छा थी- वह जवान मर्द शरीर जिसने उसे बाँहों में पकड़ रखा था उसे प्यार करे, नहीं, उसे चोदे, उसकी ज्वाला शांत करे।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
आगे बंद कमरे में लाजो के संग क्या हुआ:
दरवाजा बंद होने की आवाज उस शांत कमरे में आत्मा के अंदर तक गूंज गई। मैं खड़ा रह गया। पीछे लौटने का रास्ता सदा के लिए बंद हो गया था लाजो के लिए। रेशमा ने मुझे कितना बड़ा तोहफा दिया था– खुद अपनी बहन ! नंगी करके ! अब मैं उसे चो… सोचकर मेरे लिंग में फुरहुरी दौड़ गई ! कितनी बड़ी बात !!
लाजो मेरी चंगुल में थी। पंख नुची मुर्गी की तरह, चाकू खाने को तैयार। बिस्तर के बीच में बिछा सफेद तौलिया उसके खून का स्वाद चखने के लिए पुकार रहा था।
रेशमा को पूरा यकीन था कि लाजो की योनि अब भी खून बहाएगी? पता नहीं ! मुझे तो नहीं लगता था !
मैं आगे बढ़ा और उसे बिस्तर पर लिटाने के लिए हाथ आगे बढ़ाए पर उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं, अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए उसने खुद को मुझमें चिपका लिया। मैंने अपने दाहिने हाथ में उसके मुड़े घुटनों को उतारना चाहा तो वह दोनों पैरों को मेरी कमर के दोनों तरफ लपेटकर मुझमें छिपकिली की तरह चिपक गई। अपना चेहरा उसने मेरे गले में घुसा लिया।
मुझे उसकी इस अदा पर प्यार आया, मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसके दोनों पैर पीछे मेरी जांघों पर लिपटे थे।
मैंने उसके पीठ के पीछे झाँका– रीढ़ की सीधी हड्डी, पतली कमर और मेरे हाथ पर दबने से नितम्बों के उभरे मांस। नितम्बों के बीच शुरू होती दरार का आभास। औरत का जिन्दगी भर मोहित और उत्साहित किए रहने वाला शरीर। त्वचा से त्वचा का चिकना, मखमली, मुलायम स्पर्श। हाथों और पाँवों की आतुर जकड़। भगवान करे यह जकड़ कभी ढीली नहीं हो।
मैंने उसके कटाव के ऊपरी हिस्से में अंदर की गर्म गीली कोमलता में अपने लिंग की फिसलन महसूस की और पता नहीं कैसे उस वक्त मुझे लगा मैं उसे प्यार करने लगा हूँ। लगा कि इस एहसास से अलग कोई प्यार हो ही नहीं सकता, इस एहसास के बाद उससे प्यार होने से बचा नहीं जा सकता।
मेरे गले पर उसकी गर्म साँसों की टकराहट और मेरी छाती पर उसके उभरे मांसल वक्षों का दबाव, पेट पर उसके मुलायम रेशमी पेट का स्पर्श, कमर में उसकी जांघों का मांसल बंधन, मेरी धड़कन से टकराती उसकी धड़कन – सब इतने मग्न कर लेने वाले थे कि मैं उससे एकाकार होने के लिए आतुर हो उठा। दो कदम चलता बिस्तर के कोने तक आया और घूम कर उस पर थोड़ा सा चूतड़ टिकाकर बैठ गया। पीछे लिपटी उसकी एँड़ियों को उठाकर अपने पीछे बिस्तर पर रख लिया।
गोद में आकर उसकी ठुड्डी और कंठ मेरे मुँह के सामने आ गए। कंठ के अंदर गटकने की सरसराहट ने मेरे चूमते होंठों को गुदगुदाया। नर्म गले के नीचे कॉलर बोन की कठोर सतह, पसीने का नमकीन स्वाद। उसके शरीर की मादक गंध। मैंने और गरदन झुकाकर उसके स्तनों को चूसना चाहा पर वह मुझसे चिपटी थी और नीचे उसकी गीली फूल की पंखड़ियों में सरकते लिंग की असह्य उत्तेजना में इतना धैर्य मुश्किल था। मेरे कान में उसकी सिसकारियों और तेज गर्म साँसों ने मुझे उत्साहित किया और मैं उसकी योनि के रास्ते को अपने लिंग की सीध में लाने के लिए पीछे झुक गया।
वह अपने स्तनों के प्रकट हो जाने की लज्जा में अलग नहीं होना चाह रही थी, जबकि मैंने उन्हें उनकी पूरी भव्यता में उन पर चमकते साँवले घेरे के बीच उठे चूचुकों के साथ उसकी बहन के सामने देखा था। उसकी लाचार और लज्जित मुद्रा का सौंदर्य मेरे मन में पैठ गया था।
मैंने उसे चूमते हुए अपने बदन से लिपटी उसकी बाँहों को धीरे-धीरे ढीला किया और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर अलगाया। मुझे खुशी हुई कि उसने बाधा नहीं डाली। सामने प्रकट हुए स्तनों पर मैंने जानबूझ कर उन पर कोई हरकत नहीं की, नहीं तो वह फिर शर्म से लिपट जाती।
ढीला होकर अलग बैठते ही मेरे लिंग पर उसका भार पड़ा और लिंग उसके जांघों के बीच की दरार को लम्बाई में ढकता हुआ उसमें धँस गया। मैंने लाजो को बाँहों में कसकर दबा लिया। उसकी योनि और गुदा के बीच की नाजुक चमड़़ी लिंग की कठोर सतह पर खिंचकर फटने लगी और लाजो कराहकर मेरी गोद में और आगे खिसक गई।
मुझे उसके दर्द पर खुशी हुई। मेरे मन में उसके लिए कोमलता और क्रूरता दोनेां के भाव एक साथ आ रहे थे। आज असल मर्द का स्वाद ले रही हो, दर्द तो होगा ही। और कैसे कैसे दर्द सहने पड़ेंगे, देखना। अभी तो उस असली अंदर प्रवेश का, असल बलि चढ़ने का दर्द तो बाकी ही है। धीरे-धीरे रेतकर प्राण निकालूंगा। मर्द केवल मजे की चीज नहीं है। मगर पर इस दर्द को पाने के बाद इस दर्द को पाने के लिए रोओगी।
मैंने उसकी दोनों बगलों में हथेली डालकर उसे गोद से थोड़ा उठाया और एक बाँह से उसको थामकर दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे उसकी योनि का छेद ढूंढने लगा। मैं समझ सकता था कि वह मुझे बाथरूम से निकलते समय नंगा देखने के बाद पूरे कपड़ों के उतरने तक कितनी देर से उत्तेजित अवस्था में रही होगी। पूरी चूत डबडबा रही थी और लिंग उसमें फिसल रहा था। मेरी उंगलियां भीग गईं।
उस अनमोल रस को बाद में चखूँगा !
मैंने उसकी तहों के बीच छिपी योनि का द्वार ढूंढ निकाला और लिंग को उसमें निर्दिष्ट करने लगा। लाजो मेरी गर्दन पर भार डालकर लिंग से योनि को बचाने की कोशिश करने लगी। पर वह बेसहारा थी, आगे से हाथ निकाल नहीं सकती थी और पीछे उसके पाँव सीधे होकर बिस्तर पर रखे थे।
मैंने एक शैतानी की, हाथ बढ़ाकर सिरहाने से तकिया खींचा और अपनी पीठ पीछे उसकी एड़ियों के नीचे घुसा दिया। उसकी एड़ियाँ और उठ गईं और वह उन पर कोई भार लेने में असमर्थ हो गई। मेरे उत्सुक लिंग को प्रवेश द्वार मिल गया और मैंने उसे वहीं टिका दिया। अब उसे अपने से अलग करना जरूरी था, ताकि अंदर का रास्ता लिंग की सीध में आ सके। मैंने हाथ पीछे ले जाकर तकिये पर उसके पाँव जकड़े और बाएँ हाथ को ढीला छोड़ते हुए पीछे झुक गया। लाजो पाँव उठे रहने के कारण आगे झुक नहीं सकती थी। उसने मुझे छोड़ दिया और सीधी बैठ गई। योनि की लाइन लिंग की लाइन में मिल गई और लाजो अपने भार से ही उसपर धँसने लगी। तलवार म्यान में समाने लगी।
मैंने चाहा नहीं था उसमें इस तरह का प्रवेश। मैंने तो खूब रोमैंटिक मिलन का ख्वाब देखा था। उसे बिस्तर पर लिटा कर, स्वयं उसके कपड़े उतारते हुए, उसे खूब चूमकर चूसकर गर्म करने की कल्पना की थी। मगर लाजो की स्थिति को देखते हुए मुझे यही स्वाभाविक लगा। उसकी अपमानित और असहाय अवस्था में थोड़ा बल प्रयोग के साथ संभोग ही सही रहेगा।
और यह भी कम मीठा नहीं था। लाजो किसी कुँआरी कन्या जैसी कसी हुई लग रही थी। शायद उसका पति छोटा था और मेरा यूँ भी सामान्य से थोड़ा ओवरसाइज। लाजो ने मेरी जांघों पर हाथ टिकाकर उसपर भार डालकर बचने की कोशिश की थी पर मैंने पीछे झु्ककर पीठ से उसकी एड़ियों को दबा दिया। उसकी कलाइयों को कसकर पकड़ा और फूल-सा उठा दिया। उसने अपने सामने स्तनों को ढकने के लिए जोर लगाया पर मैं आराम से अपने सामने खुले उस मजेदार दृश्य का पान करता रहा। साथ में मैं कमर से हल्के हल्के झटके दे रहा था। वह अनायास मुझमें सरकती जा रही थी।
स्वर्ग में प्रवेश भी इससे आनंददायक होता होगा क्या?
पर यह अभी भी आधा ही था, और इसी में उसके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ उभर रही थीं। मैं फैलने के लिए उसे ज्यादा समय नहीं दे रहा था, बस प्रवेश की गति को नियंत्रित किए था। अब पूर्ण प्रवेश का आश्चर्य देने के लिए उसके पैरों को मोड़ना था। मैंने उसे खुद से चिपकाया और पीछे से उसके पैरों को निकालते हुए बिस्तर पर पीछे खिसका और घूमते हुए उसे झटके से अपनी दूसरी ओर गिरा लिया। इस काम में मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर निकलने को हो आया। मैंने उसे वापस अंदर भेजा और अंदर धँसाए धँसाए ही उसके नितम्बों को खींचकर तौलिये पर ले आया।
लेकिन इस उठापटक में वह सचेत हो गई और विरोध करने लगी। मैंने अपनी छाती पर उसके कुछ कोमल मुक्कों का मजा लिया फिर उसके हाथ पकड़ लिए। उसके ऊपर सीधा हो गया और अपने शरीर का पूरा भार उसके ऊपर छोड़ दिया। मैंने उसके माथे पर अपना सिर रख दिया और अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा।
मेरे भार के नीचे दबी वह कुछ क्षणों तक कसमसाती रही। कसमसाने के दौरान उसकी योनि मेरे लिंग पर और सख्ती से कसकर बेहद नशीली रगड़ दे रही थी। ऐसा कुछ देर और चलता तो मैं शायद स्खलित ही हो जाता। लेकिन लाजो शांत पड़ गई। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निश्चय किया ताकि पहले न झड़ जाऊँ।
मैं लाजो के विरोध को अब जीत चुका था। उसने अपने अंदर मेरी मौजूदगी कबूल कर ली थी हालाँकि बीच बीच में विरोध करके हार से इनकार करने की कोशिश कर रही थी। अब यहाँ से मुझे उसको राजी करने तक की दूरी तक लाना था।
उसके अंदर धँसे लिंग पर से ध्यान हँटाते हुए मैंने उसके चेहरे को हाथों से पकड़कर सीधा किया और उसे देखने लगा। सुंदरता पर उत्तेजना और शर्म की लाली। जैसे फूलों के बगीचे पर सुबह के सूरज की लाली। हाय… मैंने उस लाल चेहरे को दबोचा और उसके मुँह पर अपना मुँह गाड़ दिया।
लाजो के मुँह का स्वाद ! आह, स्वर्ग था ! लार की हल्की सोंधी मिठास और मुँह के अंदर की हवा में फूल सी गंध। उसने साँस लेने के लिए मुँह उठाया तो मैंने शेर के जबड़ों की तरह उसके गले पर मुँह जमा दिया और उसके नमकीन सुगंधित पसीने को जोर जोर चूसने लगा। वह हिरनी-सी छटपटाने लगी। मैंने सिर उठाकर उसकी छटपटाहट देखी और खुश होकर पुन: उसके मुँह पर हमला कर दिया।उसके लार को अपने मुँह में खींचकर पुन: उसके मुँह में ठेल दिया। उसके चेहरे को जकड़े उसके मुँह पर मुँह जमाए रहा जब तक कि वह उसे पी नहीं गई।
मन में खयाल आ गया कि ऐसे ही मैं इसे अपने लिंग से पिलाउंगा। आवेग में भरकर मैंने उसे बार-बार चूमा। फिर से उसके लार को चूसा और उसे पिलाया। उसका विरोध घटने लगा और फिर कभी मैं, कभी वो एक दूसरे को पीने लगे।
कुछ देर में उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं और उसने अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए खुद को मुझमें चिपका लिया। क्या मजेदार बात थी। कहाँ तो नीचे अपनी योनि में मेरे लिंग को समाए थी और कहाँ ऊपर अपनी छाती दिखाने में भी शर्मा रही थी। उसने अपना चेहरा मेरे गले में घुसा लिया।
मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसने दोनों पैर मेरी जांघों के पीछे लपेट दिए।
धक्के लगाने की तीव्र इच्छा को मैं किसी तरह दबाए था पर जब उसने अपने पैर मेरी जांघों पर लपेट दिए तो मारे खुशी और उत्तेजना के मैंने खुद को रोकने की कोशिश छोड़ दी। मैं उसके बदन पर आगे पीछे नाव की तरह हिचकोले खाने लगा। लिंग उसकी मखमली तहों में फिसलने लगा। ऐसी कसावट भरी मादक रगड़ थी कि शादी के बाद के शुरुआती दिनों की याद आ गई।
मैं उसके बदन पर प्यार के हल्के हिचकोलों को क्रमशः सम्भोग के धक्कों में बदलने लगा। योनि में अंदर फिसलते लिंग के आगे-पीछे होने की लम्बाई बढ़ने लगी। लाजो का मेरी पीठ पर पहले प्यार से घूमता हाथ आवेग में भरकर नाखूनों के खरोंच छोड़ने लगा। खरोंच के दर्द को मैं धक्के मारकर भुलाने की कोशिश करता। लाजो कभी दर्द से, कभी आनंद से कराह उठती। रह-रहकर उसकी बाँहें और जांघें मेरे शरीर पर भिंचने लगी। मुझे लगा वह अब अपने रंग में आ रही है। सही औरत का एकदम गर्म उत्तेजित रूप, जिसे चरम सुख की पूर्ण अवस्था तक पहुँचाना किसी भी पुरुष का दायित्व होता है।
मैंने उस दायित्व को पूरा करने के लिए गति बढ़ा दी। नरम, नाजुक लाजो को अपनी हट्टी-कट्ठी बहन की तरह जोरदार धक्कों की जरूरत नहीं थी। वह आहें भर रही थी और चरम सुख के करीब थी। एक मन हुआ कि अभी लिंग निकालकर उसको इस अंतिम सुख के लिए तड़पाऊँ, पर वह बेचारी इतनी देर से उत्तेजना और अपमान की यंत्रणा भुगत रही थी। हमने उसपर बहुत अत्याचार किया था। अब उसको न्याय देना जरूरी था। मैंने उसकी जांघों को फैला दिया ताकि लाजो का योनिछिद्र और चौड़ा हो जाए और उसको धक्कों में दर्द कम हो। लाजो बहुत कसी हुई थी। शायद ज्यादा संभोग नहीं कर पाई थी। शुक्र था, उसका अपना गीलापन उसकी मदद कर रहा था।
रेशमा से अलग, एक नया शरीर, नया अनुभव।
पेड़ू से पेड़ू टकराने की पनीली फच फच आवाजें। कमरे में गूंजती आहें… ओ माँ… ओओओओह… आआआह… !
रेशमा को तो सुनाई पड़ ही रहा होगा ना ! शायद वो तो कमरे के दरवाजे पर कान लगाए खड़ी होगी !
अभूतपूर्व आनन्द !
‘फच’ ‘फच’ ‘चट’ ‘चट’ को लांघती एक लम्बी सिसकारी। मेरे कंठ से भागती हुई ‘हुम्म’ ‘हुम्म’… मैंने लाजो को लाल आँखों से देखा। उसकी गुर्राहटें और फिर खुले मुख से एक लम्बी आआआआह ! उसने मुझे एकदम से भींच लिया और कंधे में दाँत गड़ा दिए। रस्सी की तरह बदन मरोड़ने लगी। मैंने उसको अपनी जाँघों के बीच जकड़ा और पेड़ू से पेड़ू को खूब दबाकर मसलने लगा ताकि भगांकुर की कली कुचले। इसके साथ ही मुझे लिंग पर उसकी योनि की हिचकियाँ महसूस होने लगीं।
थोड़ी ही देर में उस पर एक रस की फुहार आई। चरम सुख की मथानी से मथकर निकला रस। लाजो बेसुध होने लगी।
मेरा भी अंत आ गया था। मैं जानता नहीं था उसने गर्भ निरोध का क्या उपाय किया था। उसे किसी परेशानी में नहीं डालना चाहता था। इसलिए मैंने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे हाथ से झटके देते हुए वहीं तौलिये पर वीरगति को प्राप्त हो गया।
कुछ क्षण उसके आनन्द में डूबे चेहरे को देखता रहा। उसके सुंदर स्तनों पर, जांघों के बीच अंतरंग बालों पर, पूरे शरीर पर नजर डाली, फिर उसकी बगल में लेट गया।
मैं बेहद खुश था। जिंदगी किसी सुंदर सपने में थी।
मुझे रेशमा का ख्याल आया, मैंने एक चादर खींचकर लाजो को ओढ़ाया और किवाड़ पर हल्की दस्तक दी, रेशमा ने पलक झपकते ही दरवाजा खोल दिया।
“हो गया ना?” उसने पूछा।
“हाँ।” मैंने बाहर निकलते हुए सुख से गदगद स्वर में कहा।
“पूरा… कर दिया न उसको?”
मैंने सिर हिलाया।
रेशमा अंदर घुसी।
“सोई है।” मैं पीछे से फुसफुसाया।
लाजो के चेहरे पर तृप्ति थी। रेशमा ने थोड़ा सा चादर उठाकर देखा, अंदर से उसके स्तन झाँक रहे थे।
लाजो की निद्रा टूट गई। बहन को देखते ही उसने चादर खींचकर मुँह ढक लिया, रेशमा ने चादर के ऊपर से ही उसको चूम लिया।
यह बात और महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है कि मैंने उसके साथ बड़ी जबर्दस्ती की, हालाँकि वास्तविक सेक्स की क्रिया तक पहुँचते पहुँचते वह राजी बल्कि सहयोगी हो चुकी थी, जो उसकी अब तक दबी शारीरिक इच्छाओं के एकाएक निकल पड़ने का रास्ता मिलने के कारण स्वाभाविक था। उस ‘उद्धार’ के बाद वह मुझसे निसंकोच हो गई और उसकी बेहद सुंदर, स्त्रियोचित, संवेदनशील, गरिमापूर्ण प्रकृति से मेरा साक्षात्कार हुआ।
मुझे खुशी है कि उसने अंतत उस ‘उद्धार’ के लिए मेरा आभार माना। मैंने टाइपिंग की सुविधा तथा उसकी इज्जत मर्यादा का खयाल करके इसमें केवल उसका नाम बदल दिया है। सुलक्षणा काफी लम्बा नाम है और कुछ पुराने फैशन का भी जिसे आज की आधुनिक पढ़ी-लिखी लड़की के साथ जोड़ना अनुकूल नहीं लगता। इसकी अपेक्षा ‘लाजो’ काफी छोटा, टाइपिंग में आसान और उसकी सलज्ज प्रकृति के अनुकूल लगा।
और मैं सबसे अधिक आभार प्रकट करता हूँ अपनी विलक्षण पत्नी का जिसके सहयोग बिना यह घटना घटी ही नहीं होती। वो तो इस ‘महाभारत’ की कृष्ण ही थी– सूत्रधार से लेकर कर्ता-धर्ता सब कुछ ! मैं तो उसकी इस इस महान ‘लीला’ में अर्जुन की भाँति निमित्त मात्र था !
अथ कथारम्भ:
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?” मेरी हट़टी-कट़टी पत्नी का यह बेलगाम जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। वह सिर्फ शरीर से नहीं मन से भी तगड़ी थी। और सच को बिल्कुल हथौड़ामार अंदाज में कहने की कायल थी।
मैं आश्चर्य करता था ऐसी तगड़ी हरियाणवी बीवी की ऐसी कोमल, छरहरी, बंगालन जैसी मुलायम बहन कैसे हो गई, रसगुल्ले-सी नरम। कस के पकड़ो तो डर लगे कि टूट न जाए। मन में ममता उमड़े, ऐसी खूबसूरती कि हिफाजत से कहीं छुपाकर रख लेने का दिल चाहे।छरहरी, लेकिन सही जगहों पर भरी हुई। यकीन नहीं होता दोनों एक ही पेट से जन्मी हैं। मेरी बीवी के विपरीत उसके तौर-तरीके महीन थे। वह शालीन, शर्मीली, बात को अप्रत्यक्ष बनाकर कहने वाली, मीठा बोलने वाली।
बीवी के साथ सेक्स में जहाँ जोड़ के दो पहलवानों की भिड़ंत का मजा आता था, वहीं उस कोमल, लुचपुच, सखुए की नई टहनी-सी लचकीली साली के साथ सेक्स की कल्पना मुँह में पानी भर देती। कैसी होगी उसकी चमड़ी की छुअन ! कैसी होंगी उसकी मुलायम पसलियों का अपनी छाती पर एहसास ! कैसे लगेंगे हथेलियों में उसके स्तन ! कैसी महसूस होगी लिंग पर कसी उसकी योनि की मक्खनी लिपटन !
बदकिस्मती से उसको पति भी उसके जैसा ही मुलायम और सिंगल चेसिस वाला मिला था। ठठाकर हँसने की जगह औरतों की तरह मुँह छिपाकर हँसता। आवाज भी थोड़ी पतली–औरत और मर्द के बीच की सी। आइआइटी इंजीनियर का लेबल देखकर शादी हो गई थी। था तो लम्बा लेकिन मुझे और मेरी बीवी दोनों को वह बीमार-सा लगता। बीवी की तो नजर में ही उसके लिए उपेक्षा दिखती- “मरियल साला, मेरी बहन तो बर्बाद हो गई।”
मैं समझाता, “तुम्हें ही तो लगता है वह बर्बाद हो गई। उसको देखो तो वह कितनी खुश है।”
“क्या खुश रहेगी? हुँह !” वह भुनभुनाती।
मैं मनाता काश उस गुलाब की कली का एक बार मेरे से जोड़ हो जाए। उसे एक बार पता चले कि असल मर्द का स्वाद कैसा होता है। फिर उस लल्लू इंजीनियर को हाथ भी न लगाने देगी। मुझे कभी-कभी लगता भी कि वह मुझे नजर बचाकर गौर से, एक अलग भाव से देखती है। लेकिन इसे वहम मानकर उड़ा देता !
हर मर्द को लगता है कोई भी सुंदर औरत उसे ही देख रही है। फिर मैं अपनी बीवी से बेहद संतुष्ट भी था। वह सुंदर थी और मेरे मनोनुकूल लम्बी, गोरी और दमदार। उसकी हर चीज बड़े साइज की थी- शरीर के अंग से लेकर बातें तक ! खुलकर देती ! खुलकर कहती ! कोई कम दमखम और आत्मविश्वास वाला पुरुष उसे सम्हाल भी नहीं पाता।
साली में अगर कमनीयता, कोमलता और संकोच का सौंदर्य था तो मेरी पत्नी में भव्यता, पुष्टि और आत्मविश्वास का। दोनों अपने अपने तरीके से सुंदर थीं।
रेशमा की अपनी बहन पर तरस बढ़ती जा रही थी। शायद साली भी अपने पति से खुश नहीं थी। उसके बारे में रेशमा बताती उसका पति अक्सर बाहर ही टूर पर भागता रहता है, लाजो से बचता सा है।
‘केवल सुख-सुविधाएँ जुटा देने से क्या होगा, औरत क्या केवल सुख सुविधाएँ ही चाहती है?’ रेशमा उसके बारे में कहते हुए कभी-कभी मुझे एक अलग नजर से देखती। शुरू में लगता कि वह मुझे देखकर बहन की अपेक्षा अपनी किस्मत पर खुश हो रही है। मैं गर्व से फूलता। पर धीरे-धीरे लग रहा था बात इतनी सी नहीं है। मगर आगे यह जिधर जाती थी उसकी कल्पना भी भयावह लगती थ। ऐसी दिलेर और निष्ठावान बीवी के रहते ऐसी बात सोची भी कैसे जा सकती थी।
मैं अपने साढू भाई की तरफ़दारी करता, “नौकरी में जरूरत है तो टूर करना ही पड़ेगा। वो क्या मना कर देगा कि नहीं जाएँगे? काम काम है। तुम लोगों की तरह घर नहीं बैठ सकता।”
पर पत्नी़ नहीं मानती, “वो असल में औरत से भागता है, मुझे तो लगता है वह बचने के लिए और ज्यादा टूर लगाने लगा है।”
मैं कहता, “ऐसा क्यों सोचती हो, उस पर जिम्मेदारियाँ बढ़ रही होंगी। आइआइटी का इंजीनियर है।”
पर पत्नी की निगाहों में ‘मुझे मत समझाओ, सब समझती हूँ’ का भाव मेरी बातों को व्यर्थ कर देता।
मैं तटस्थ दिखने और लाजो के प्रति अपने आकर्षण की झलक न लगने देने के लिए उस लल्लू इंजीनियर का पक्ष लेता रहता।
पर रेशमा पर मेरी तटस्थता का कोई असर नहीं था। उसकी झक बढ़ती जा रही थी। मेरे लिए तो अनुकूल स्थिति थी। फिर भी मैं कभी कभी चिढ़ाने के लिए उसे छेड़ देता, “क्या पता वो ‘लल्लू’ ठीक हो, लाजो में ही कुछ… मेरा मतलब कोई प्राब्लम वगैरह?”
रेशमा भड़क जाती, “उसके बारे में ऐसी बात भी नहीं कहना ! वो मेरी बहन है। उसका दुर्भाग्य है नहीं तो वो उसे असली रूप में देखकर कोई भी मर्द दाँतों तले उंगलियाँ दबाए रह जाता।”
मैं पूछता, “तुम्हें कैसे मालूम उसका ‘असली’ रूप? तुमने देखा है?”
वह और चिढ़ती, “मेरी बहन है ना, तुम्हारी होती तो उसका दर्द समझ में आता।”
वह कहती, “उसे खुशी पाने का पूरा हक है। किस्मत ने धोखा दिया तो क्या हुआ, किस्मत का रोना केवल कायर रोते हैं। दिल गुर्दे वाले तो खुशी हासिल करते हैं।”
“जरूर !” मैं कहता।
लाजो निस्संदेह सुंदर थी और उसे ‘खुशी’ देने में जीजा से अधिक किसकी रुचि हो सकती थी?
“पर क्या उसमें इसे हासिल करने की हिम्मत है?”
रेशमा उदासी में साँस छोड़ती, “यही तो मुश्किल है ! बड़ी डरपोक है, कुछ नहीं करेगी, संकोच में ही मरती रहेगी।”
लेकिन वह केवल खीझते रहने तक सीमित नहीं थी। एक बार उसने उसकी बातें करते हुए अचानक मुझसे पूछ डाला, “तुमको लाजो कैसी लगती है?”
मैं इतने दिनों से इस सवाल का इंतजार कर ही रहा था। मैं इस सवाल से बचना चाहता था।
“क्यों क्या बात है?”
“कुछ नहीं, पर बताओ ना।”
“अच्छी ! पर तुमसे अधिक नहीं, तुम उससे बहुत अच्छी हो।”
“ओह मैं अपनी बात नहीं कर रही।”
मैंने दिल कड़ा करके कह दिया- बहुत अच्छी, बेहद सुंदर !
वह कुछ बोलने को उद्यत हुई पर चुप रह गई। यह कहानी आप bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने बात में हँसी घोलने की कोशिश की, “पर क्या पता उसे मैं बेवकूफ लगता होऊँ। इतना वफादार मर्द जो हूँ।”
पर उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। अब मुझे लगा मुझे आगे बढ़कर लगाम थामनी चाहिए, “मैं कुछ-कुछ समझ रहा हूँ तुम क्या चाहती हो। पर क्या यह सही होगा?”
बोलते ही लगा कि इसमे तो मेरी स्वीकृति दिख जा रही है, तुरंत सुधारने की कोशिश की, “मेरा मतलब मैं तो ऐसा नहीं चाहता।”
मेरी पत्नी ने मुझे तरस खाने वाली निगाह से देखा, औरत से बच पाना बड़ा मुश्किल होता है।
“सही समझने का शुक्रिया !” मैं समझ नहीं पाया इसमें व्यंग्य है या तारीफ।
मैं सोच नहीं पाया कि क्या बोलूँ, मुँह से निकला, “लाजो पतिव्रता है, वह कभी नहीं मानेगी।”
मैं खुद सोचता रह गया कि इसका क्या मतलब हुआ, क्या मैं सचमुच यही बोलना चाहता था?
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यंग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यंग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
बाथरूम में फ्लश की आवाज के कुछ क्षणों बाद वह प्रकट हुई।
“बोलो !”
मैं सन्न था। पतंगे की तरह छिपने की कोशिश करती मेरी लाजो की कामना एकदम से उसकी सच्चाई के चिमटे की पकड़ में आकर छटपटा रही थी। फिर भी मैं मुस्कुरा पड़ा। मेरी हट्टी-कट्टी पत्नी का यह बेलौस जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। इस डायलॉग के साथ ही लाजो के साथ सोने की सम्भावना जैसे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई, जैसे हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लूँगा। मेरी बीवी चमत्कार करने में सक्षम थी। मुझे कोई फिक्र नहीं हुई कि लाजो कैसे मेरे पहलू में आएगी।
वह मेरे पास आई और मेरे सिर पर हाथ फेरा।
“मैं जानती हूँ तुम उसे चाहते हो !”
मैंने अपने सिर पर घूमते उसके हाथ को खींचकर चूम लिया।
वह हँस पड़ी, “यू आर सो क्यूट !” उसने कान पकड़कर मेरा सिर हिलाया, “मुझसे छिपना चाहते हो?”
मैंने उसे बाहों में घेर लिया।
लाजो ही अब मेरे हर पल हर साँस में होगी।
और तभी:
“तुम चाहती हो आज रात मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ?” लाजो ने अपनी बड़ी बहन से पूछा, “आज की रात मैं कोई किताब पढ़कर काटने के लिए सोच रही थी। तुम जानती हो अकेले नींद नहीं आती।”
रेशमा ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर रखा था। लाजो की आवाज से महसूस हुई उसकी नजदीकी ने दिल की धड़कन बढ़ा दी। वैसे तो जब रेशमा ने उसे आने का प्रस्ताव किया तभी से मेरा अंग उत्तेजित हो रहा था।
“यहाँ मैं तुम्हें तुम्हारे जीजाजी के पास सुला दूँगी।” रेशमा ने मुझे आँख मारी।
”धत्त, क्या बोलती हो?”
“तुमसे मिले कई दिन हो गए, आज दोनों बहनें मिलकर ढेर सारी बातें करेंगी।”
“और जीजाजी?”
“वे ऑफिस की एक पार्टी में जा रहे हैं, रात को देर से लौटेंगे। कल छुटटी ही है, इसलिए चिंता नहीं।”
“ठीक है, मैं जल्दी आऊँगी।”
“आधे घंटे में आ जाओ।”
“इतनी जल्दी? ठीक है आठ बजे तक आती हूँ।”
चुदने को आ रही औरत की उत्तेजक आवाज ! भोली को क्या मालूम हमने उसके लिए क्या योजना बनाई थी। घड़ी में सवा सात बज रहे थे। काले बालों के झुरमुट में छिपी गुलाबी वैतरणी पैंतालीस मिनट में प्रकट होने वाली थी। वैतरणी को पार कराने वाली मेरी नैया पैंट में जोर जोर हिचकोले खाने लगी।
“तैयार हो जाओ मैन, योर टाइम इज कमिंग।” रेशमा की आवाज गंभीर थी।
हमने घर व्यवस्थित किया, सोफे पर नया कवर डाल दिया। आज मेरी साली कोई सामान्य रूप से थोड़े ही आने वाली थी। आज तो उसका जश्न होगा। पलंग पर एक खूबसूरत नई चादर बिछाई, सिरहाने एक झक सफेद तौलिया रख लिया। उसके निकलने वाले प्रेमरसों की छाप लेने के लिए। अगर वो अनछुई, अक्षतयौवना होती तो उसकी सील टूटने के रक्त की छाप भी ले लेता।
मेरी आतुरता दिख जा रही थी और मैं यह सब पत्नी की योजना होने के बावजूद मन में शर्मिन्दा हो रहा था। मुझे रेशमा के चेहरे पर खेलती हँसी के पीछे एक व्यंग्य दिख रहा था लेकिन उसमें साथ में एक निश्चय की दृढ़ता भी थी।
सबकुछ तैयार करके हमने एक दूसरे को देखा। पंद्रह मिनट बच रहे थे, किसी भी क्षण आ सकती थी।
रेशमा ने लाजो को फोन लगाया, “कहाँ हो?”
वह रास्ते में थी और पाँच मिनट में पहुंचने वाली थी।
रेशमा ने मुझे देखा, “योर टाइम हैज कम। मुझे लगता है अब तुम शॉवर में चले जाओ और उसके लिए तैयार रहो।”
लाजो ने तीन बार घंटी बजाई पर दरवाजा नहीं खुला। उसने धक्का दिया। दरवाजा खुल गया। भीतर कोई नहीं था। उसने ‘दीदी ! दीदी !’ की आवाज लगाई, उत्तर नहीं आया, बेडरूम में झाँका, खाली था, अटैच्ड बाथरूम में शॉवर चलने की आवाज आ रही थी।
“दीदी नहा रही हैं।”
वह बिस्तर पर बैठ गई और उसके बाहर आने का इंतजार करने लगी। बेड पर एकदम नया चादर देखकर खुश हुर्इ, दीदी मुझे कितना मानती है। सिरहाने रखी पत्रिकाओं को उलटा-पलटा, दो तीन इंडिया टुडे और गृहशोभा के बीच में अंग्रेजी डेबोनेयर का एक ताजा अंक था।
हमारा अंदाजा था अकेले में वह जरूर उसे ही देखेगी।
उसके कवर पर एक कमर में छोटी तिकोनी गमछी लपेटे टॉपलेस मॉडल की तस्वीर थी।
‘दीदी-जीजाजी भी काफी रंगीनमिजाज हैं।’ पन्ने पलटती हुई वह बुदबुदाई।
मैंने अनुमान लगाया कि अब तक नहाने के लिए पर्याप्त समय बीत चुका है। मुझे दरवाजे की घंटी सुनाई पड़ चुकी थी, यानि लाजो आ चुकी थी। अब अगर वह बेडरूम में होगी तो बिस्तर पर ही बैठी होगी। अकेली लड़की के सामने नंगे जाना दुस्साहस था। पर यही योजना का पहला चरण था। मैंने मन को कड़ा किया और शॉवर बंद किया और स्टैंड से तौलिया खींच लिया…
बाथरूम खोलकर मैं सिर पर तौलिया डाले बालों को पोंछता बेडरूम में सीधा बिस्तर की दिशा में चला आया। बिस्तर पर उसकी आकृति नजर आई पर उसे मैं अनदेखा करता हुआ किनारे रखी मेज पर से अपना कपड़ा उठाने के लिए घूम गया…
लाजो डेबोनेयर देख रही थी। मॉडलों की सेक्सी तस्वीरें, पाठकों के सेक्स अनुभव, अमरीका में मिस न्यूड प्रतियोगिता, धारावाहिक सेक्स कहानी। यह सब उसे बेहद आकर्षित कर रहे थी। उसका पति ऐसी चीजें नहीं लाता था। शादी के पहले सहेलियों के साथ उसने कुछ मैग्जीन्स देखे थे, पर शादी के बाद ये चीजें मुहाल हो गईं।
शॉवर बंद होने की आवाज सुनकर उसने अनुमान लगाया अब दीदी निकलेंगी। सोचा जब तक दीदी तैयार होकर निकलेगी तब तक जल्दी से थोड़ा और देख लूँ। तभी उसने बाथरूम से बाहर आती तौलिए से सिर ढकी नंगी पुरुष आकृति देखी। उसके पेड़ू के नीचे अर्द्धउत्थित विशाल लिंग चलने से हिल रहा था।
उसने तुरंत नजर हटा ली, भय से वहीं पर गड़कर रह गई।
‘बाप रे !’ लाजो बाथरूम में लौटती उस पुरुष आकृति के कसे नितंबों को देखती बुदबुदाई। चलने से उसमें गड्ढे बन रहे थे। ऊँची काया, चौड़ी पीठ, मजबूत कमर, कसी जाँघें ! क्या शरीर था ! उसका झूलता हुआ हल्का उठा आश्चर्य जगाता ‘कितना बडा !’ लिंग तो जैसे दिमाग में छप गया।
अपने आप में आकर उसने नजर घुमाई। गोद में खुली डेबोनेयर में एक नंगी मॉडल उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। उसने झट से किताब बंद कर दी और दूसरी पत्रिकाओं के नीचे दबा दिया। उठकर ड्राइंग हॉल में चली आई और सोफे पर बैठकर धड़कनों को शांत करने और सांसों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लगी।
“तुम आ गई ! मैं दो मिनट के लिए बगल वाली के पास गई थी।” रेशमा अंदर घुसते हुए और दरवाजा बंद करती हुई बोली, “तुम्हें इंतजार न करना पड़े इसलिए दरवाजा खुला छोड़कर गई थी।”
और अवसरों पर स्वाभाविक यह होता कि लाजो उठकर बड़ी बहन के गले मिलती, पर आज वह बैठी रह गई। उसका उड़ा-उड़ा चेहरा साफ पकड़ में आ रहा था। रेशमा समझ गई चाल कामयाब हुई है, तीर निशाने पर लगा है।
“तुम ठीक तो हो न?”
“मैं… अँ.ऽ. अँ.ऽ. अँ.ऽ… ठीक हूँ। लगता है गर्मी है।” वह दुपट्टे से पंखा करने लगी।
“हाँ, गर्मी तो है, ठण्स पानी या कोकाकोला लाऊँ?”
“कोकाकोला…”
रेशमा कमरे में आई। मुझे देखकर मुस्कुराई।
“लगता है कुछ देख लिया है उसने !” वह फ्रिज का दरवाजा खोलकर बोतल निकालने लगी।
“कुछ नहीं, पूरा का पूरा देखा है !” मैं घमंड से बोला।
“तैयारी में दिख रहे हो, बल्ले बल्ले !” उसने मेरे पतले सिल्क पजामे को पकड़कर शरारत से नीचे खींचा। अंदर खड़े लिंग की पूरी रूपरेखा स्पष्ट नजर आ रही थी।
“मेरी बेचारी बहन के बचने की कोई संभावना नहीं।” उसने नकली हमदर्दी में मुँह बनाया।
“मुझे थोड़ा समय दो और फिर बाहर आ जाओ।” कोकाकोला की बोतल लिए वह चली गई।
हॉल में जाकर उसने लाजो को पकड़ाया। लाजो तुरंत ग्लास लेकर एक बड़ा घूँट गटक गई।
“तुम्हारे जीजाजी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं। उनसे भेंट हुई कि नहीं?”
“उँ..ऽऽ ..न.. न… नहीं तो !”
“सचमुच?” मैं भीतर आता हुआ बोला। मेरा प्रत्याशा में खड़ा लिंग झीने रेशमी पजामे के भीतर से पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। मैं आकर उन दोनों के सामने खड़ा हो गया।
लाजो झूठ पकड़ा जान कर लजा गई। मुझे देखते ही उसकी नजर सीधे पजामे की ओर गई और नीचे झुक गई। मुझे लगा उसकी नजर वहाँ एक बटा दस सेकंड के लिए ठहरी थी। रेशमा को भी ऐसा लगा, वह गौर कर रही थी।
“सुंदर है ना !”
लाजो ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई।
“पजामा !” रेशमा ने मेरी कमर की ओर इशारा किया। वह लाजो को मुझे देखने का मौका दे रही थी। क्रीम कलर के झीने कपड़े के अंदर मेरा उत्तेजित लिंग पजामे को भीतर से बाहर ठेले हुए था। उसकी मोटी गुलाबी थूथन भी उसे दिख रही होगी।
“कल ही खरीद कर लाई हूँ, अच्छा है ना?”
लाजो पसीने पसीने हो रही थी। दीदी उधर ही दिखा रही थी जिधर उसकी नजर भी नहीं उठ रही थी। जल्दी जल्दी से कुछ घूँट गटकी, “अच्छा है। मुझे बड़ी गर्मी लग रही है।”
“सुरेश, जाओ और भिगाकर फेस क्लॉथ ले आओ।
मैं वहाँ से चला आया।
“जरा शरीर में हवा लगने दो।” कहकर रेशमा ने उसके कंधे पर से साड़ी पिन खोलकर साड़ी का पल्लू पीठ के पीछे से खींचकर उसकी गोद में गिरा दिया। लाजो ने आँखें बंद कर ली और सोफे की पीठ पर लद गई।
मैं बर्फ के पानी से भिगोकर तौलिया ले आया। कंधे से साड़ी हटने के बाद लाजो के स्तनों से भरी ब्लाउज मादक लग रही थी।
“यह लो !” मैंने रेशमा को तौलिया पकड़ा दिया।
रेशमा पानी चूते तौलिये को देखकर मुसकुराई। लाजो मेरी आवाज सुनकर साड़ी से छाती ढकने का उपक्रम करने लगी।
रेशमा उसकी गर्दन पर तौलिया रखकर हल्के हलके दबाने लगी। उसने तौलिए के दोनों छोरों को सामने रखते हुए बीच का हिस्सा़ उसकी गर्दन में पहना दिया और दबा-दबाकर गर्दन, गले और नीचे की खुली जगह को पोंछने लगी।
“आऽऽऽह !” लाजो के मुँह से अच्छा लगने की आवाज निकली। उसकी आँखें बंद थीं। वह देख नहीं पाई कि तौलिए से चूता पानी उसके ब्लाउज और ब्रा को भिगा रहा है। पानी उसके कपड़ों के अंदर घुसकर पेट पर से चूता हुआ उसकी साड़ी के अंदर घुस रहा था।
जब उसको अपनी पैंटी के भीतर ठंडक महसूस हुई तो उसकी आँख खुली। पानी उसके भगप्रदेश के बालों से होता हुआ गर्म कटाव के अंदर उतर गया था और उसकी सुलगती योनि में सुरसुराहट पैदा कर रहा था।
“मैं भीग गई हूँ।”
“ओह, सॉरी !” कहकर रेशमा ने उस पर से तौलिया उठा लिया।
भीगने से ब्लाउज इतनी चिपक गया थ कि भीतर की ब्रा का उजलापन साफ नजर आ रहा था और सामने निप्पलों की काली छाया तक का पता चल रहा था। उन गोलाइयों को अनावृत देखने की इच्छा मन में उमड़ पड़ी। वह किसी कलाकार की रची तस्वीर सी लग रही थी, गोरेपन के कैनवस पर गुलाबी रंग से रंगी तस्वीर ! सिर्फ आधे कंधे और छातियों को ढकती गुलाबी कपड़े की परत, गुलाबी रंग के भीतर से प्रत्यक्ष होती उजली ब्रा की आभा ! मचलते स्तन ! ब्लाउज के नीचे सुतवें पेट की पतली तहें ! मैं मंत्रमुग्ध देख रहा था।
रेशमा ने उसकी गोद में पड़ी भीगी साड़ी के पल्लू के ढेर को उठाया और कहा, “इसे खोल दो, एकदम भीग गई है।”
लाजो हड़बड़ाई, “जीजाजी देख लेंगे।”
“मैं चला जाता हूँ।” मैं वहाँ से हट गया। बेडरूम के अंदर आकर दरवाजे की ओट से झाँकने लगा।
रेशमा उसको खड़ा करके साड़ी खींच रही थी। लाजो एक बार इधर सिर घुमा कर देखा कि मैं देख तो नहीं रहा हूँ।
साड़ी का ढेर नीचे पैरों के पास गिराकर रेशमा ने उसको एक बार भरपूर निगाह से देखा। जवानी की लहक भरपूर थी।
लाजो उसकी नजर से परेशान होती हुई बोली, “ऐसे क्या देख रही हो?”
“ब्लाउज से पानी चू रहा है। इसको भी उतार दो।”
“नहीं, जीजाजी…”
“जीजाजी कमरे में हैं, जल्दी कर लो।”
लाजो बदन ढकने के लिए भीगी साड़ी उठाने को झुकी। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
रेशमा बोली, “वैसे ही ठहरो, भीगा हुआ खोलने में तुमको परेशानी होगी। मैं खोल देती हूँ।” कहती हुई वह उसकी झुकी हुई पीठ पर से ब्लाउज के हुक खोलने लगी।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
लाजो के मुँह से ‘अर्र… अरे !’ की चीख निकली और वह एकदम हड़बड़ाकर साड़ी लपेटकर सोफे पर धम से बैठ गई। मेरे पहुँचते ही रेशमा ने भीगा ब्लाउज और ब्रा मेरी ओर बढ़ा दिया “प्लीज, जरा इसे बालकनी में सूखने के लिए फैला दोगे?”
“खुशी से।”
“थैंक्यू !”
क्या मजेदार विडम्बना थी। रेशमा लाजो पर जबर्दस्ती कर रही थी और मुझे थैंक्यू कह रही थी। थैंक्यू तो मुझे कहना चाहिए था। जिस चोली और ब्रा को उतारने के सपने मैं कब से देख रहा था वह वह अब मेरे हाथ में थी ! पानी में भीग कर गहरे गुलाबी रंग की हो गई चोली और सफेद ब्रा। दोनों भीगे होने के बावजूद उसके बदन से गर्म थे।
लाजो साड़ी लपेटे झुकी हुई थी। आधी से ज्यादा पीठ खुली थी। पीठ के बीच उभरी रीढ़ की हड्डी नीचे नितम्बों की शुरुआत के पास जाकर अंदर धँस रही थी जिसके गड्ढे के ऊपर साये की डोरी धनुष की प्रत्यंचा जैसी तनी थी। उसके अंदर छोटा सा अंधेरा। रहस्यमय ! अंदर दबे खजाने !
मैंने भीगे वक्षावरणों में मुँह घुसाकर सूंघा। लाजो के बदन की ताजा गंध ! पसीने और परफ्यूम की खुशबू मिली। मैं पजामे के अंदर इतना तन गया था कि चलना मुश्किल हो रहा था। अलगनी पर ब्रा को फैलाते समय मैंने फीते में कंपनी का फ्लैप देखा- 36 सी साइज। बिना बच्चे के ‘सी’ साइज ! लाजो उतनी पतली नहीं है !
मेरे जाने के बाद लाजो रेशमा पर बिगड़ी, “तुमने जीजाजी को क्यों बुलाया?”
“भीगी साड़ी ही लपेटे रहोगी?”
“मुझे कोई कपड़ा दो।”
“जीजाजी उधर हैं।”
“नहीं, पहले कपड़ा दो।”
“जानू !” रेशमा पुकारी, “एक कपड़ा लेते आओ।”
“नहीं…” लाजो चीख पड़ी।
“ठीक है।” रेशमा ने मुझे रोका, “अभी उधर ही रहो।”
“दे रही हो?” उसने लगभग हुक्म के अंदाज में पूछा।
लाजो हैरान उसे देखती रह गई, खुद उसकी बड़ी बहन उसके साथ क्या कर रही है ! उसे यकीन नहीं हो रहा था वह किधर ले जाई जा रही है। टॉपलेस तो हो ही चुकी थी ! आश्चर्य और उत्तेजना से लगभग लाल हो गई थी।
रेशमी पजामा… अंदर तम्बू के पोल की तरह तना लिंग, मोटी जांघें, रोशनी में चमकती भीगी चौड़ी पीठ, कठोर नितम्ब… एक एक छवि उसके दिमाग ताश के पत्तों की तरह फेर रही थी।
“छोड़ो !” रेशमा ने उसके कंधे से साड़ी खींची। छाती पर लाजो के हाथों का दबाव ढीला पड़ गया। रेशमा उसके स्तनों के सामने से कपड़े को खींचती हुई हँसी, “मुझसे कैसी शरम !”
रेशमा ने लाजो को खड़ी करके उसकी कमर के चारों तरफ से साड़ी खींचकर निकाल लिया। लाजो ने दुबारा प्रतिरोध की कोशिश की पर ‘जीजाजी को बुलाऊँ?’ की धमकी सुनकर शांत हो गई। साड़ी निकलने के बाद साए में उसकी पतली कमर और नीचे क्रमश: फैलते कूल्हों का घेरा पता चलने लगा। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
‘मेरी बहन सुंदर है !’ रेशमा बोली।
उत्तेजित होने के बावजूद शर्म से लाजो की आँखों में आँसू आ गए। उसने बाँहों से स्तन ढक लिए।
रेशमा ने साड़ी उठाई और चली गई। कमरे में आकर मेरे हाथ में देकर बोली, “यह लो ! एक और पुरस्कार !”
साड़ी के स्पर्श से मेरा ऐसे ही दुखने की हद तक टाइट हो रहा लिंग और तनकर जोर जोर धड़कने लगा। टॉपलेस लाजो कैसी लग रही होगी? मन हुआ दौड़कर उसके पास चला जाऊँ।
“यू आर ग्रेट। मैं तुम्हारा दीवाना हूँ।” मैं रेशमा का बेहद एहसानमंद हो गया।
“ऐसी बीवी तुम्हें नहीं मिलेगी।” वह घमण्ड से बोली। उसने पजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर थपकी दी और बोली, “अब तैयार रहो, तुम्हारी जरूरत पड़ेगी। मुझे नहीं लगता वह मुझे आसानी से पेटीकोट उतारने देगी।”
लिंग पर थपकी से मेरे बदन में करेंट की लहरें दौड़ गईं, मैंने आग्रह किया, “इस पर एक चुम्बन देती जाओ, प्लीज।”
उसके गुलगुले होठों से मेरे लिंग का सख्त मुँह टकराया और मेरी भूख और बढ़ गई। मैंने पजामें की इलास्टिक नीचे खिसकाई, “बस एक बार मुँह के अंदर लेके…”
पर वह उठ गई, “अब यह लाजो से ही करवाना !” कहकर चली गई।
मैं ठगा-सा रह गया। इतनी दूर तक स्वयं कहेगी मैंने सोचा नहीं था। मैंने फिर अपने-आपको उसका बेहद कृतज्ञ महसूस किया।
मैंने दरवाजा खोला और अर्द्धनग्न लाजो को देखने के लिए बाहर चला आया। हॉल के अंदर न जाकर रास्ते में ही खड़ा हो गया। रेशमा अब मुझे बुलाने वाली थी।
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लाजो सोच रही थी दीदी उसके लिए कपड़े लाने गई है। उसके दिमाग में उथल-पुथल मची थी। अपनी बाँह हटाकर देखी, चूचियाँ खड़ी थीं, घबराकर उसने उन्हें फिर से दबा लिया। नग्न पुरुष के अंगों का दृश्य उसके दिमाग में बार बार घूम रहा था। अपने पति का उसने देखा था मगर आज देखे पुरुष का तो… हर दृश्य उसकी योनि में ‘फुक’ का सा स्पंदन उठा रहा था। हर स्पंदन के साथ बदन में एक लहर-सी दौड़ जाती थी। वह उसे भूलने की कोशिश कर रही थी। अर्द्धनग्न अवस्था में बैठी समझ नहीं पा रही थी क्या करे।
जब दीदी खाली हाथ लौटी तो वह उलझन में पड़ गई।
“कपड़े?” उसने पूछा, उसका हाथ छाती पर दबा था।
“एक ही बार लेना।”
क्या मतलब? वह सवालिया निगाह से देखती रह गई।
“तुम्हारा पेटिकोट भी तो भीगा है।”
लाजो की नजर नीचे गई। सामने बड़ा सा धब्बा था, मानो पेशाब किया हो। साया भींगकर जाँघों और बीच में फूले उभार पर चिपक गया था। अंदर काला धब्बा-सा दिख रहा था। शायद बालों का।
लाजो उसे तुरंत हथेली से छिपा कर बोली, “नहीं…”
“अंदर पैंटी नहीं पहनी हो क्या?”
“तुम पागल हो गई हो !”
रेशमा सोफे पर बैठ गई, ” तुम्हारे जीजाजी कह रहे थे लाजो आए इतनी देर हो गई, उसने मुझसे बात नहीं की?”
“दीदी, प्ली…ऽ….ऽ….ऽ….ज!”
“तुम उनकी चहेती साली हो, वो तुमसे बात करना चाहते हैं ! बुलाऊँ उनको?”
लाजो को लग रहा था वह स्वप्न तो नहीं देख रही। उसके साथ क्या हो रहा है? ऊपर नंगी और नीचे केवल साए में एक विचित्र अवस्था में थी। शर्म से गली जा रही थी लेकिन निचले ओठों के अंदर छुपा भगांकुर बेलगाम धुकधुकाए जा रहा था। सारा शरीर सनसनी से और शर्म से लाल हो रहा था। उसका मन हुआ कि भागकर बाथरूम या रसोई में छिप जाए।
एक आवेग में उठी, पर मुड़ते ही देखा जीजाजी रास्ते में खड़े हैं, वापस पीछे मुड़ी। दीदी सीधे उसकी आँखों में देख रही थी। अब बैठने में उसे बेहद कायरता और शर्म महसूस हुई। वह जस की तस खड़ी रह गई।
“जानूँ, लाजो के लिए ‘कपड़ा’ ले आओ।” रेशमा ने ‘कपड़ा’ को थोड़ा विशेष रूप से उच्चरित किया।
“वो पीली वाली, नैन्सी किंग की।”
‘पीली वाली, नैन्सी किंग की’ नाइटी थी जो हमने हाल में ही खरीदी थी। शिफॉन और नायलॉन की बनी। पीले रंग की। इतनी झीनी थी कि इसके इनर और आउटर दोनों पहनने के बाद भी अंग साफ नजर आते थे। इनर कंधों से पतले स्ट्रैप्स से टंगता था और काफी नीचे उतर कर छातियों को आधे से अधिक खुला छोड़कर शुरू होता था। मैं इनर छोड़कर केवल आउटर ले गया। इसको पहनना तो कुछ न ही पहनने के बराबर था।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’। पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई। छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’ पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई ‘छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।’
मगर औरत ही समझती है कि कब, कैसी और कितनी शर्म उल्लंघन के लायक है। मैंने जब रेशमा को कपड़ा देकर जाना चाहा तो उसने मुझे रोक दिया, “ठहरो, साया लेकर जाना।”
वह उठ खड़ी हुई। लाजो के एक बार हारने के बाद उस पर उसका नियंत्रण और बढ़ गया था। आत्मशविश्वास से भरी उसके पास बढ़कर पहुंची और उसका दायाँ हाथ पकड़कर झटककर खींच लिया !
मेरे लिए तो जैसे सृष्टि ही उलट गई ! लाजो की दोनों छातियाँ भरी, गोल, गोरी, शिखर पर गाढ़े गुलाबी गोल धब्बे, मानों भगवान द्वारा लगाया गया quality checked की मुहर ! बीच में उठे किंचित लंबे, तने, रसीले चूचुक, चूसने के लिए पुकारते हुए से ! निर्णय करना मुश्किल था कि लाजो के चेहरे और चूचुकों में कौन ज्यादा लाल थे !!!
लाजो के दिमाग में जैसे अंधेरा छा गया था। दीदी उसका दायाँ हाथ मजबूती से पकड़े थी। उसका बायाँ हाथ पेड़ू पर से हटकर स्तनों पर आ गया।
पर अब साया असुरक्षित था ! दीदी यही तो उतारने के लिए उद्यत है, उसने आँखें मूंद लीं।
रेशमा अपनी बहन पर इतने अधिकार और नियंत्रण से उन्मत्त हो रही थी, उसकी योजना आशातीत रूप से सही काम कर रही थी। उसने उसका दायाँ हाथ पकड़े ही झुककर उसकी कमर में साये की डोरी का बंधन टटोला। लाजो दुविधा में पड़ गई कि स्तन ढके या वस्तिस्थल।
जब तक वह कुछ सोचती, रेशमा ने डोर का खुला सिरा खोजकर खींच दिया।
लाजो ने एक बार अंतिम सहायता के लिए सिर उठाकर मेरी ओर देखा– दुश्मन से ही दुश्मन के खिलाफ सहायता की भीख। मगर मेरी ओर घुमाते ही उसकी नजर मेरे पजामे की ओर झुक गई जहाँ एक विशाल क्रुद्ध सर्प खड़ा फुँफकार रहा था। पता नहीं क्यों, तभी उसी क्षण उसे लगा कि वह सर्प उसे काटे बिना छोड़ेगा नहीं, अब वह नहीं बचेगी ! उसे एहसास हुआ कि उस सर्प को देखकर खुद उसके अंदर भी कोई सर्प जाग गया है जो उससे मिलने के लिए अपनी स्वतंत्र मर्जी से चलेगा।
अपनी निरंतन धुक धुक कर रही भगनासा पर उसे क्रोध आया।
रेशमा कमर में उंगली घुसाकर खींच खींचकर डोर को ढीला कर रही थी। डोर कमर में धँसने का निशान छोड़ती अलग हो रही थी। लाजो ने नंगी होने से बचने के लिए छाती पर से हाथ हटाकर साया पकड़ लिया।
एक हाथ हवा में दीदी के हाथ में, दूसरी से साया पकड़ी, नंगी गोरी बाँहें, कंधे, सीना, दोनों चमकते चूचुकों के काले वृत्त लिए गोरे स्तन जो लाजो के शर्म बचाने की कोशिश में आगे झुकने से और अच्छे से झूल रहे थे ! लाजो अजब मादक, उत्तेजक, दयनीय और हास्यास्पद लग रही थी। मेरी इच्छा हुई उसे बाँहों में भरकर पुचकारकर प्यार करूँ।
लाजो के सामने साया पकड़ लेने पर रेशमा मुस्कुराई, वह अपना हाथ उसकी कमर के पीछे ले गई। रीढ़ के गड्ढे में हाथ घुसकार उसने साए को ढीला किया। लाजो कुछ नहीं कर सकती थी। पीछे सूखी होने के कारण डोर आसानी से खिंच गई और साया ढीला होकर नितम्बों पर सरक गया। काली पैंटी आधे से ज्यादा प्रकट हो गई। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
लाजो साये को पकड़कर रोकने की कोशिश करती गिड़गिड़ाई, “दीऽऽ दीऽऽ… जीजाजी देख रहे हैं।”
“सही कहती है।” वह मेरी ओर मुड़ी, “तुम इसको देख रहे हो और यह तुमको नहीं देख पा रही है। अपना पजामा उतार दो।” वह कठोरता से बोली।
लाजो ने ये शब्द़ सुने, वह अवाक मेरी ओर देखने लगी, उसके मुँह से बोल नहीं फूटे। मैं पसोपेश में पड़ गया। उसे बुरा तो नहीं लगेगा? पर अब हम वहाँ पहुँच गए थे जहाँ किसी के लिए भी दुविधा में पड़ना अच्छा नहीं था। लाजो के लिए भी नहीं।
जिस बिन्दु पर वह पहुँच चुकी थी वहाँ से उसे अनचुदे छोड़ देना उसके लिए सिर्फ अपमानजक होकर रह जाता। मेरी बीवी दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ रही थी। मुझे उसका साथ देना था।
मैंने अपनी कमर की इलास्टिक में अंगूठे फँसाए और नीचे खिसका दिया। मेरा लिंग उसकी तंग परिधि से स्प्रिंग की तरह छूटकर बाहर निकला और हिलकर सीधा लाजो की ओर इशारा करने लगा।
कोई कुछ नहीं बोला। समय जैसे ठहर गया। कुछ सेकंड ऐसे ही बीते। लाजो मेरी और मेरे लिंग की लाल क्रुद्ध आँखों की तपिश में झुलसती रही।
रेशमा शांत थी। उसने लाजो का हाथ छोड़ दिया, घुटनों के बल बैठ गई।
अब लाजो एक ही दिशा में जा सकती थी– संभोग।
फिर भी उसने डूबने से पहले हाथों से छिपाकर लाज बचाने की एक बेहद कमजोर कोशिश की।
लाजो ने हाथ ऊपर बढ़ाए। दोनों तरफ से साए का कपड़ा बटोरकर मुट्ठी में लिया। मुट्ठी कसी और…
लाजो की धड़कन रुक गई, अब गया… गया..
रेशमा एक क्षण ठहरी, उसकी तड़पन और यातना का मजा लिया, फिर उसके हाथों में हरकत हुई और…
साया एक झटके से दीवार की तरह नीचे आ गिरा। संगमरमरी जांघें, गोल पिंडलियाँ, नीचे गिरे साये के घेरे में छिपी एड़ियाँ… छोटी सी पैंटी, बेहद संक्षिप्त, अपर्याप्त ! वाक्य के बीच ‘कॉमा’ (अर्द्धविराम) सी…
लाजो ने गिरने से बचने के लिए बहन के ही कंधे का सहारा ले लिया। मेरी इच्छा हुई अब रेशमा को रोकूँ। पूर्ण नग्न करना शय्या पर उत्तप्त कामक्रिया के समय ही अच्छा लगेगा।
किंतु रेशमा बंदूक से छूटी गोली की तरह पूरे वेग में थी। उसने लाजो की पैंटी में उंगलियाँ फँसाई और नीचे खींची। पैंटी जरा सा नितम्बों पर अटकी, पर खिंचाव की ताकत से फिसलकर नीचे आ गई। घुटनों में आकर रुकी।
मैंने देखा– पैरों के बीच से गुजरती उसकी पतली पट्टी! पानी से और उसके प्रेमरसों से भीगी ! उसे एक बार मुँह से छूने का खयाल मन में तैर गया। रेशमा ने पैंटी नीचे खिसकाकर उसकी एक एड़ी उठाई। लाजो ने विरोध नहीं किया। बहन का सहारा लिए लाजो का दूसरा पाँव भी उठाकर रेशमा ने पैंटी को निकालकर अलग फेंक दिया।
मैंने देखा– उसके तने चूचुक, गर्व से भरे उभरे स्तनों के माथे पर मुकुट की तरह सजे। पेड़ू से नीचे काली घनी फसल… मानों स्वर्ग के द्वार पर काले बादलों का झुण्ड ! साफ, केले के तने जैसी जांघें… किसी अकल्पनीय लोक से उतरी रति की साक्षात् मूर्ति…!
रेशमा ने मेरी ओर देखा, मैं आगे बढ़ा, रति की देवी के समक्ष… और समीप… और निकट… जबतक कि मेरे लिंग का कठोर मुँह उसके कोमल पेट में कोंचने न लगा… मेरी छाती ने उसके साँवले गुलाबी चूचुकों का स्पर्श किया और…
उस देवी ने आँखें मूंद लीं।
मुलायम गोलाइयाँ मेरी छाती पर दबकर चपटी हो गईं। मैंने उसके झुके माथे पर देखा– सिंदूर का दाग… उसके चुदे, भोगे, पुरुष के नीचे मर्दित होने का प्रमाण… मुझे गुस्सा सा आया… रति की देवी के समक्ष वह नकारा नपुंसक इंजीनियर… स्साला…
मेरे होंठ नीचे झुके- उसकी कान को हल्के दाँतों से काटने के लिए, उसकी धड़कती गर्दन पर छोटे छोटे चुम्बन अंकित करने के लिए… उसके नमकीन पसीने को चखने के लिए ! मेरे हाथ उसके बदन को घेरते हुए उसके पीछे की ओर बढ़े और उसके गोल नितम्बों को ढकते हुए उनपर टिक गए। मैंने उसे कसकर अपने में दबा लिया और उसके होंठों को ढूँढने लगा। उसकी बेहद गोपनीय उर्वर फसल, जिसे अबतक सिर्फ उसके पति ने देखा था, मेरी जाँघों पर फिरती हुई गुदगुदी पैदा करने लगी…
लाजो की पलकें उठीं। एक क्षण के अंश भर के लिए मुझसे आँखें मिलीं और अपनी लाल झलक देकर रेशमा की ओर मुड़ गईं। रेशमा उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। लाजो निश्चित नहीं थी कि क्या हो रहा है लेकिन उसका शरीर अब उसकी कुछ सुनने को तैयार नहीं था। उसकी एक ही इच्छा थी- वह जवान मर्द शरीर जिसने उसे बाँहों में पकड़ रखा था उसे प्यार करे, नहीं, उसे चोदे, उसकी ज्वाला शांत करे।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
आगे बंद कमरे में लाजो के संग क्या हुआ:
दरवाजा बंद होने की आवाज उस शांत कमरे में आत्मा के अंदर तक गूंज गई। मैं खड़ा रह गया। पीछे लौटने का रास्ता सदा के लिए बंद हो गया था लाजो के लिए। रेशमा ने मुझे कितना बड़ा तोहफा दिया था– खुद अपनी बहन ! नंगी करके ! अब मैं उसे चो… सोचकर मेरे लिंग में फुरहुरी दौड़ गई ! कितनी बड़ी बात !!
लाजो मेरी चंगुल में थी। पंख नुची मुर्गी की तरह, चाकू खाने को तैयार। बिस्तर के बीच में बिछा सफेद तौलिया उसके खून का स्वाद चखने के लिए पुकार रहा था।
रेशमा को पूरा यकीन था कि लाजो की योनि अब भी खून बहाएगी? पता नहीं ! मुझे तो नहीं लगता था !
मैं आगे बढ़ा और उसे बिस्तर पर लिटाने के लिए हाथ आगे बढ़ाए पर उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं, अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए उसने खुद को मुझमें चिपका लिया। मैंने अपने दाहिने हाथ में उसके मुड़े घुटनों को उतारना चाहा तो वह दोनों पैरों को मेरी कमर के दोनों तरफ लपेटकर मुझमें छिपकिली की तरह चिपक गई। अपना चेहरा उसने मेरे गले में घुसा लिया।
मुझे उसकी इस अदा पर प्यार आया, मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसके दोनों पैर पीछे मेरी जांघों पर लिपटे थे।
मैंने उसके पीठ के पीछे झाँका– रीढ़ की सीधी हड्डी, पतली कमर और मेरे हाथ पर दबने से नितम्बों के उभरे मांस। नितम्बों के बीच शुरू होती दरार का आभास। औरत का जिन्दगी भर मोहित और उत्साहित किए रहने वाला शरीर। त्वचा से त्वचा का चिकना, मखमली, मुलायम स्पर्श। हाथों और पाँवों की आतुर जकड़। भगवान करे यह जकड़ कभी ढीली नहीं हो।
मैंने उसके कटाव के ऊपरी हिस्से में अंदर की गर्म गीली कोमलता में अपने लिंग की फिसलन महसूस की और पता नहीं कैसे उस वक्त मुझे लगा मैं उसे प्यार करने लगा हूँ। लगा कि इस एहसास से अलग कोई प्यार हो ही नहीं सकता, इस एहसास के बाद उससे प्यार होने से बचा नहीं जा सकता।
मेरे गले पर उसकी गर्म साँसों की टकराहट और मेरी छाती पर उसके उभरे मांसल वक्षों का दबाव, पेट पर उसके मुलायम रेशमी पेट का स्पर्श, कमर में उसकी जांघों का मांसल बंधन, मेरी धड़कन से टकराती उसकी धड़कन – सब इतने मग्न कर लेने वाले थे कि मैं उससे एकाकार होने के लिए आतुर हो उठा। दो कदम चलता बिस्तर के कोने तक आया और घूम कर उस पर थोड़ा सा चूतड़ टिकाकर बैठ गया। पीछे लिपटी उसकी एँड़ियों को उठाकर अपने पीछे बिस्तर पर रख लिया।
गोद में आकर उसकी ठुड्डी और कंठ मेरे मुँह के सामने आ गए। कंठ के अंदर गटकने की सरसराहट ने मेरे चूमते होंठों को गुदगुदाया। नर्म गले के नीचे कॉलर बोन की कठोर सतह, पसीने का नमकीन स्वाद। उसके शरीर की मादक गंध। मैंने और गरदन झुकाकर उसके स्तनों को चूसना चाहा पर वह मुझसे चिपटी थी और नीचे उसकी गीली फूल की पंखड़ियों में सरकते लिंग की असह्य उत्तेजना में इतना धैर्य मुश्किल था। मेरे कान में उसकी सिसकारियों और तेज गर्म साँसों ने मुझे उत्साहित किया और मैं उसकी योनि के रास्ते को अपने लिंग की सीध में लाने के लिए पीछे झुक गया।
वह अपने स्तनों के प्रकट हो जाने की लज्जा में अलग नहीं होना चाह रही थी, जबकि मैंने उन्हें उनकी पूरी भव्यता में उन पर चमकते साँवले घेरे के बीच उठे चूचुकों के साथ उसकी बहन के सामने देखा था। उसकी लाचार और लज्जित मुद्रा का सौंदर्य मेरे मन में पैठ गया था।
मैंने उसे चूमते हुए अपने बदन से लिपटी उसकी बाँहों को धीरे-धीरे ढीला किया और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर अलगाया। मुझे खुशी हुई कि उसने बाधा नहीं डाली। सामने प्रकट हुए स्तनों पर मैंने जानबूझ कर उन पर कोई हरकत नहीं की, नहीं तो वह फिर शर्म से लिपट जाती।
ढीला होकर अलग बैठते ही मेरे लिंग पर उसका भार पड़ा और लिंग उसके जांघों के बीच की दरार को लम्बाई में ढकता हुआ उसमें धँस गया। मैंने लाजो को बाँहों में कसकर दबा लिया। उसकी योनि और गुदा के बीच की नाजुक चमड़़ी लिंग की कठोर सतह पर खिंचकर फटने लगी और लाजो कराहकर मेरी गोद में और आगे खिसक गई।
मुझे उसके दर्द पर खुशी हुई। मेरे मन में उसके लिए कोमलता और क्रूरता दोनेां के भाव एक साथ आ रहे थे। आज असल मर्द का स्वाद ले रही हो, दर्द तो होगा ही। और कैसे कैसे दर्द सहने पड़ेंगे, देखना। अभी तो उस असली अंदर प्रवेश का, असल बलि चढ़ने का दर्द तो बाकी ही है। धीरे-धीरे रेतकर प्राण निकालूंगा। मर्द केवल मजे की चीज नहीं है। मगर पर इस दर्द को पाने के बाद इस दर्द को पाने के लिए रोओगी।
मैंने उसकी दोनों बगलों में हथेली डालकर उसे गोद से थोड़ा उठाया और एक बाँह से उसको थामकर दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे उसकी योनि का छेद ढूंढने लगा। मैं समझ सकता था कि वह मुझे बाथरूम से निकलते समय नंगा देखने के बाद पूरे कपड़ों के उतरने तक कितनी देर से उत्तेजित अवस्था में रही होगी। पूरी चूत डबडबा रही थी और लिंग उसमें फिसल रहा था। मेरी उंगलियां भीग गईं।
उस अनमोल रस को बाद में चखूँगा !
मैंने उसकी तहों के बीच छिपी योनि का द्वार ढूंढ निकाला और लिंग को उसमें निर्दिष्ट करने लगा। लाजो मेरी गर्दन पर भार डालकर लिंग से योनि को बचाने की कोशिश करने लगी। पर वह बेसहारा थी, आगे से हाथ निकाल नहीं सकती थी और पीछे उसके पाँव सीधे होकर बिस्तर पर रखे थे।
मैंने एक शैतानी की, हाथ बढ़ाकर सिरहाने से तकिया खींचा और अपनी पीठ पीछे उसकी एड़ियों के नीचे घुसा दिया। उसकी एड़ियाँ और उठ गईं और वह उन पर कोई भार लेने में असमर्थ हो गई। मेरे उत्सुक लिंग को प्रवेश द्वार मिल गया और मैंने उसे वहीं टिका दिया। अब उसे अपने से अलग करना जरूरी था, ताकि अंदर का रास्ता लिंग की सीध में आ सके। मैंने हाथ पीछे ले जाकर तकिये पर उसके पाँव जकड़े और बाएँ हाथ को ढीला छोड़ते हुए पीछे झुक गया। लाजो पाँव उठे रहने के कारण आगे झुक नहीं सकती थी। उसने मुझे छोड़ दिया और सीधी बैठ गई। योनि की लाइन लिंग की लाइन में मिल गई और लाजो अपने भार से ही उसपर धँसने लगी। तलवार म्यान में समाने लगी।
मैंने चाहा नहीं था उसमें इस तरह का प्रवेश। मैंने तो खूब रोमैंटिक मिलन का ख्वाब देखा था। उसे बिस्तर पर लिटा कर, स्वयं उसके कपड़े उतारते हुए, उसे खूब चूमकर चूसकर गर्म करने की कल्पना की थी। मगर लाजो की स्थिति को देखते हुए मुझे यही स्वाभाविक लगा। उसकी अपमानित और असहाय अवस्था में थोड़ा बल प्रयोग के साथ संभोग ही सही रहेगा।
और यह भी कम मीठा नहीं था। लाजो किसी कुँआरी कन्या जैसी कसी हुई लग रही थी। शायद उसका पति छोटा था और मेरा यूँ भी सामान्य से थोड़ा ओवरसाइज। लाजो ने मेरी जांघों पर हाथ टिकाकर उसपर भार डालकर बचने की कोशिश की थी पर मैंने पीछे झु्ककर पीठ से उसकी एड़ियों को दबा दिया। उसकी कलाइयों को कसकर पकड़ा और फूल-सा उठा दिया। उसने अपने सामने स्तनों को ढकने के लिए जोर लगाया पर मैं आराम से अपने सामने खुले उस मजेदार दृश्य का पान करता रहा। साथ में मैं कमर से हल्के हल्के झटके दे रहा था। वह अनायास मुझमें सरकती जा रही थी।
स्वर्ग में प्रवेश भी इससे आनंददायक होता होगा क्या?
पर यह अभी भी आधा ही था, और इसी में उसके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ उभर रही थीं। मैं फैलने के लिए उसे ज्यादा समय नहीं दे रहा था, बस प्रवेश की गति को नियंत्रित किए था। अब पूर्ण प्रवेश का आश्चर्य देने के लिए उसके पैरों को मोड़ना था। मैंने उसे खुद से चिपकाया और पीछे से उसके पैरों को निकालते हुए बिस्तर पर पीछे खिसका और घूमते हुए उसे झटके से अपनी दूसरी ओर गिरा लिया। इस काम में मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर निकलने को हो आया। मैंने उसे वापस अंदर भेजा और अंदर धँसाए धँसाए ही उसके नितम्बों को खींचकर तौलिये पर ले आया।
लेकिन इस उठापटक में वह सचेत हो गई और विरोध करने लगी। मैंने अपनी छाती पर उसके कुछ कोमल मुक्कों का मजा लिया फिर उसके हाथ पकड़ लिए। उसके ऊपर सीधा हो गया और अपने शरीर का पूरा भार उसके ऊपर छोड़ दिया। मैंने उसके माथे पर अपना सिर रख दिया और अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा।
मेरे भार के नीचे दबी वह कुछ क्षणों तक कसमसाती रही। कसमसाने के दौरान उसकी योनि मेरे लिंग पर और सख्ती से कसकर बेहद नशीली रगड़ दे रही थी। ऐसा कुछ देर और चलता तो मैं शायद स्खलित ही हो जाता। लेकिन लाजो शांत पड़ गई। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निश्चय किया ताकि पहले न झड़ जाऊँ।
मैं लाजो के विरोध को अब जीत चुका था। उसने अपने अंदर मेरी मौजूदगी कबूल कर ली थी हालाँकि बीच बीच में विरोध करके हार से इनकार करने की कोशिश कर रही थी। अब यहाँ से मुझे उसको राजी करने तक की दूरी तक लाना था।
उसके अंदर धँसे लिंग पर से ध्यान हँटाते हुए मैंने उसके चेहरे को हाथों से पकड़कर सीधा किया और उसे देखने लगा। सुंदरता पर उत्तेजना और शर्म की लाली। जैसे फूलों के बगीचे पर सुबह के सूरज की लाली। हाय… मैंने उस लाल चेहरे को दबोचा और उसके मुँह पर अपना मुँह गाड़ दिया।
लाजो के मुँह का स्वाद ! आह, स्वर्ग था ! लार की हल्की सोंधी मिठास और मुँह के अंदर की हवा में फूल सी गंध। उसने साँस लेने के लिए मुँह उठाया तो मैंने शेर के जबड़ों की तरह उसके गले पर मुँह जमा दिया और उसके नमकीन सुगंधित पसीने को जोर जोर चूसने लगा। वह हिरनी-सी छटपटाने लगी। मैंने सिर उठाकर उसकी छटपटाहट देखी और खुश होकर पुन: उसके मुँह पर हमला कर दिया।उसके लार को अपने मुँह में खींचकर पुन: उसके मुँह में ठेल दिया। उसके चेहरे को जकड़े उसके मुँह पर मुँह जमाए रहा जब तक कि वह उसे पी नहीं गई।
मन में खयाल आ गया कि ऐसे ही मैं इसे अपने लिंग से पिलाउंगा। आवेग में भरकर मैंने उसे बार-बार चूमा। फिर से उसके लार को चूसा और उसे पिलाया। उसका विरोध घटने लगा और फिर कभी मैं, कभी वो एक दूसरे को पीने लगे।
कुछ देर में उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं और उसने अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए खुद को मुझमें चिपका लिया। क्या मजेदार बात थी। कहाँ तो नीचे अपनी योनि में मेरे लिंग को समाए थी और कहाँ ऊपर अपनी छाती दिखाने में भी शर्मा रही थी। उसने अपना चेहरा मेरे गले में घुसा लिया।
मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसने दोनों पैर मेरी जांघों के पीछे लपेट दिए।
धक्के लगाने की तीव्र इच्छा को मैं किसी तरह दबाए था पर जब उसने अपने पैर मेरी जांघों पर लपेट दिए तो मारे खुशी और उत्तेजना के मैंने खुद को रोकने की कोशिश छोड़ दी। मैं उसके बदन पर आगे पीछे नाव की तरह हिचकोले खाने लगा। लिंग उसकी मखमली तहों में फिसलने लगा। ऐसी कसावट भरी मादक रगड़ थी कि शादी के बाद के शुरुआती दिनों की याद आ गई।
मैं उसके बदन पर प्यार के हल्के हिचकोलों को क्रमशः सम्भोग के धक्कों में बदलने लगा। योनि में अंदर फिसलते लिंग के आगे-पीछे होने की लम्बाई बढ़ने लगी। लाजो का मेरी पीठ पर पहले प्यार से घूमता हाथ आवेग में भरकर नाखूनों के खरोंच छोड़ने लगा। खरोंच के दर्द को मैं धक्के मारकर भुलाने की कोशिश करता। लाजो कभी दर्द से, कभी आनंद से कराह उठती। रह-रहकर उसकी बाँहें और जांघें मेरे शरीर पर भिंचने लगी। मुझे लगा वह अब अपने रंग में आ रही है। सही औरत का एकदम गर्म उत्तेजित रूप, जिसे चरम सुख की पूर्ण अवस्था तक पहुँचाना किसी भी पुरुष का दायित्व होता है।
मैंने उस दायित्व को पूरा करने के लिए गति बढ़ा दी। नरम, नाजुक लाजो को अपनी हट्टी-कट्ठी बहन की तरह जोरदार धक्कों की जरूरत नहीं थी। वह आहें भर रही थी और चरम सुख के करीब थी। एक मन हुआ कि अभी लिंग निकालकर उसको इस अंतिम सुख के लिए तड़पाऊँ, पर वह बेचारी इतनी देर से उत्तेजना और अपमान की यंत्रणा भुगत रही थी। हमने उसपर बहुत अत्याचार किया था। अब उसको न्याय देना जरूरी था। मैंने उसकी जांघों को फैला दिया ताकि लाजो का योनिछिद्र और चौड़ा हो जाए और उसको धक्कों में दर्द कम हो। लाजो बहुत कसी हुई थी। शायद ज्यादा संभोग नहीं कर पाई थी। शुक्र था, उसका अपना गीलापन उसकी मदद कर रहा था।
रेशमा से अलग, एक नया शरीर, नया अनुभव।
पेड़ू से पेड़ू टकराने की पनीली फच फच आवाजें। कमरे में गूंजती आहें… ओ माँ… ओओओओह… आआआह… !
रेशमा को तो सुनाई पड़ ही रहा होगा ना ! शायद वो तो कमरे के दरवाजे पर कान लगाए खड़ी होगी !
अभूतपूर्व आनन्द !
‘फच’ ‘फच’ ‘चट’ ‘चट’ को लांघती एक लम्बी सिसकारी। मेरे कंठ से भागती हुई ‘हुम्म’ ‘हुम्म’… मैंने लाजो को लाल आँखों से देखा। उसकी गुर्राहटें और फिर खुले मुख से एक लम्बी आआआआह ! उसने मुझे एकदम से भींच लिया और कंधे में दाँत गड़ा दिए। रस्सी की तरह बदन मरोड़ने लगी। मैंने उसको अपनी जाँघों के बीच जकड़ा और पेड़ू से पेड़ू को खूब दबाकर मसलने लगा ताकि भगांकुर की कली कुचले। इसके साथ ही मुझे लिंग पर उसकी योनि की हिचकियाँ महसूस होने लगीं।
थोड़ी ही देर में उस पर एक रस की फुहार आई। चरम सुख की मथानी से मथकर निकला रस। लाजो बेसुध होने लगी।
मेरा भी अंत आ गया था। मैं जानता नहीं था उसने गर्भ निरोध का क्या उपाय किया था। उसे किसी परेशानी में नहीं डालना चाहता था। इसलिए मैंने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे हाथ से झटके देते हुए वहीं तौलिये पर वीरगति को प्राप्त हो गया।
कुछ क्षण उसके आनन्द में डूबे चेहरे को देखता रहा। उसके सुंदर स्तनों पर, जांघों के बीच अंतरंग बालों पर, पूरे शरीर पर नजर डाली, फिर उसकी बगल में लेट गया।
मैं बेहद खुश था। जिंदगी किसी सुंदर सपने में थी।
मुझे रेशमा का ख्याल आया, मैंने एक चादर खींचकर लाजो को ओढ़ाया और किवाड़ पर हल्की दस्तक दी, रेशमा ने पलक झपकते ही दरवाजा खोल दिया।
“हो गया ना?” उसने पूछा।
“हाँ।” मैंने बाहर निकलते हुए सुख से गदगद स्वर में कहा।
“पूरा… कर दिया न उसको?”
मैंने सिर हिलाया।
रेशमा अंदर घुसी।
“सोई है।” मैं पीछे से फुसफुसाया।
लाजो के चेहरे पर तृप्ति थी। रेशमा ने थोड़ा सा चादर उठाकर देखा, अंदर से उसके स्तन झाँक रहे थे।
लाजो की निद्रा टूट गई। बहन को देखते ही उसने चादर खींचकर मुँह ढक लिया, रेशमा ने चादर के ऊपर से ही उसको चूम लिया।