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Channel: ଭାଉଜ ଡଟ କମ - Odia Sex Story
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ऐसा प्यार फिर कहां- 1 (Yesa Pyar Fir Kanha -- 1)

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लेखिका :  सुनीता पृस्टी
bhauja .com के सारे पाठक कों मेरी प्यार भरी नमस्कार । में आप की प्यारी सी सुनीता  भाभी आप को ये नयी कहानी लेखाकर भेजती हूँ ।





घर में बस हम दो भाई थे। दिनेश मुझसे दस साल बड़ा था। वो एक फ़ेक्टरी में काम करता था। भाभी रीता भी मुझसे सात साल बड़ी थी। मम्मी पापा नौकरी करते थे। घर का सारा काम भाभी पर आ गया था। मुझे यह देख कर बहुत बुरा लगता था कि वो सुबह से काम पर लग जाती थी और दोपहर को ही फ़्री हो पाती थी। धीरे-धीरे मैंने भाभी के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। अब भाभी मुझसे बहुत खुश रहती थी। मैं उनके साथ प्याज, सब्जी आदि काट देता था। वाशिंग मशीन में कपड़े धो देता था, झाड़ू भी लगा देता था।
भाभी का काम करके मैं कॉलेज चला जाता था। मैं जवान हो चला था, कुछ सेक्स की बातों को मैं समझने भी लगा था। घर में मात्र भाभी ही थी जिसके शरीर के उभारों को देख कर मैं खुश रहता था। वो घर में अधिकतर पेटीकोट और एक तंग सा ब्लाऊज पहने रहती थी, जिसमें भाभी के सीने के उभार मुझे बहुत उत्तेजक लगते थे। भाभी भी काम करते करते थक जाती थी, फिर वो आराम करती थी। आज तो वो मेरे कमरे में आ गई थी और मुझसे कहने लगी- निर्मल, मेरी पीठ दबा दे, बहुत दर्द कर रही है। बहुत काम पड़ा है !
जल्दी क्या है भाभी? खाना तो दो बजे खाते हैं, थोड़ा आराम भी कर लिया करो !
अरे ये काम निपटे तो चैन आये ना … चल दबा दे !
वो बिस्तर पर उल्टी लेट गई और अपनी आंखें बन्द कर ली। मैं धीरे धीरे कमर दबाने लगा। उसे बहुत आराम मिल रहा था। मैं भाभी के पैर भी दबाने लगा था। उसे जाने कब नींद लग गई और वो सो गई। मुझे उसके खर्राटे की आवाज आने लगी। तभी मेरे मन का शैतान जाग उठा। मुझे लगा कि मैं उसकी नींद का फ़ायदा उठा सकता हूँ। बड़ी सतर्कता से मैंने भाभी का पेटीकोट उठाया और अन्दर झांक कर देखा। भाभी के दोनों मस्त चूतड़ बड़े ही उत्तेजक लग रहे थे। भाभी के चूतड़ थोड़े भारी भी थे। मैंने एक बार भाभी को देखा और पेटीकोट के अन्दर हाथ घुसा दिया। बहुत ही धीरे से मैंने भाभी के पृष्ट उभारों को हाथ से छू कर जायजा लिया। मेरा मन हुआ कि उसे काट खाऊं। फिर सावधानी से मैंने पेटीकोट को नीचे कर दिया। मेरा लण्ड खड़ा हो गया था।
तभी भाभी ने करवट ली और सीधी हो गई। मैं जल्दी से दूर हो गया, पर वो अभी भी सो ही रही थी। मुझे फिर एक मौका और मिला और मैंने एक बार से भाभी का पेटीकोट ऊपर करके उसकी चूत के दर्शन कर लिये। छोटे छोटे बाल थे और दोनों लब उभरे हुये थे। मैंने सावधानी से भाभी की ओर देखा और झुक कर उसकी चूत को चूम लिया। चूत सूखी थी … एक नारी शरीर की खुशबू सी आई। अभी तक तो सभी कुछ सही चल रहा था। मैंने भाभी के ब्लाऊज के बटन भी खोल दिये … उनके दोनों स्तन पर्वत से उठे हुये मेरे सामने आ गये थे। भाभी के जाग जाने का खतरा था सो मैंने अब बस करना ही उचित समझा। पर अब ब्लाऊज के बटन कैसे लगाऊं, ब्लाऊज तो तंग था। ब्लाऊज के बटन बंद करने से तो वो जाग जाती। मैंने कमरे से निकल जाना ही बेहतर समझा।
मैं नहाने के लिये स्नानघर में घुस गया। मेरे खड़े लण्ड को मैंने मुठ मारा और अपना वीर्य निकाल दिया। नहा धो कर मैं बाहर आ गया। तब तब भाभी जाग गई थी और आश्चर्य से अपना खुला हुआ ब्लाऊज देख रही थी। उसने मुझे देखा तो झेंप गई और हुक बंद करने लगी। समय देखा तो दस बज चुके थे। मैं फिर कॉलेज चला गया था।
दूसरे दिन भी भाभी ने मुझे फिर से पीठ दबाने को कहा और उल्टी लेट गई। आज मैं भाभी की पीठ दबा कम रहा था बल्कि उसे सहला रहा था। बीच बीच में उसके चूतड़ों को भी छू लेता था। मैंने देखा कि भाभी आज भी सो गई थी। मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा था। मैंने हौले से भाभी के चूतड़ों को ऊपर से ही सहलाया। फिर उसके स्तनों को सहलाने लगा। अचानक भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
यह क्या कर हो तुम… क्या कल भी तुमने मेरे साथ ऐसे किया था? भाभी ने मुझे एक थप्पड़ मार दिया।
मेरी सारी आशिकी धरी रह गई। मैं बुरी तरह से घबरा उठा था।
भाभी, सॉरी… माफ़ कर देना … मैं बहक गया था…
भूल गये कि मैं तुम्हारी भाभी हूँ …
मेरी निगाहें शरम से झुक गई। मैं धीरे से उठा और कमरे से निकल गया। मेरा मन ग्लानि से भर गया था। मैं उस घड़ी को कोस रहा था जब मैंने यह हरकत की थी। दो तीन दिन तक तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई रीता भाभी से आंख मिलाने की। फिर एक दिन मैंने धीरे से किचन में बर्तन धोते हुये भाभी से माफ़ी मांग ली।
भाभी ने मुझे मुस्करा कर कहा- किस बात की माफ़ी … तुम उस दिन से नाराज हो गये थे, तो मुझे ही अच्छा नहीं लग रहा था, सच बताऊँ तो माफ़ी मुझे मांगनी चाहिये थी !
मेरा मन हल्का हो गया, और भाभी ने भी मुझे गालों पर चूम लिया था। काम समाप्त होते होते साढ़े नौ बज गये थे। भाभी मेरे कमरे में आई और धम्म से बिस्तर पर उल्टी लेट गई।
चल दबा दे मेरी पीठ … शरमा मत …
मैंने चुपचाप उसकी पीठ मसल दी। उसे थोड़ा अजीब सा लगा। वो उठ कर बैठ गई- अच्छा चल तू लेट जा, मैं तेरे पैर दबा देती हूँ…
अरे नहीं भाभी, बस ठीक है…
अरे चल ना … लेट जा …
भाभी के फिर से वही अपनापन देख कर मैं खुश हो गया। मैं बिस्तर पर सीधा लेट गया। भाभी मेरे पजामे के ऊपर से ही मेरे दोनों पांव दबाने लगी। धीरे-धीरे वो मेरी जांघो तक आ गई। मेरे शरीर में विचित्र सी गुदगुदी होने लगी।
मेरा लण्ड जाने कब खड़ा हो गया और पजामे में से उभर कर बाहर अपनी छवि दिखाने लगा। भाभी बड़े चाव से मेरे खड़े लण्ड को निहार रही थी। उसकी आंखों में गुलाबी डोरे तैरने लगे थे। उसके चेहरे पर वासना का भूत नजर आने लगा था। मेरी जांघे सहलाने और दबाने से मेरे शरीर में सिरहन सी होने लगी थी। लण्ड कड़क होने लगा था। बिना चड्डी के लण्ड पजामे के भीतर लहराने लगा था।
भाभी के हाथ की मुठ्ठियाँ बार बार लण्ड के पास भिंचने लगी थी, मानो वो लण्ड को पकड़ कर मसल देना चाहती हों।
भाभी के हाथ मेरी जांघों के ऊपर तक और लण्ड पास तक जोर जोर से दबा रहे थे।
नशे में मेरी आँखें बंद सी होने लगी थी। लण्ड में बहुत मिठास सी भरती जा रही थी। तभी शायद भाभी का मन बहक उठा और अपनी सारी मर्यादायें तोड़ कर उन्होंने मेरा लण्ड पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने लगी।
मैं तड़प उठा… पर उसका हाथ मजबूती से लण्ड पर जमा था। मैंने उत्तेजना से भर कर करवट लेनी चाही पर उसने मेरा लण्ड नही छोड़ा। भाभी के मुख से सिसकारियाँ निकल रही थी। उसका दूसरा हाथ अपनी चूत को मल रहा था। भाभी मुठ भर कर ऊपर नीचे हाथ चला कर मेरे लण्ड को मसलने लगी।
भाभी, हाय रे … बस करो … आह्ह्ह्ह ! तभी लण्ड से मेरा वीर्य निकल पड़ा। मेरा पजामा ऊपर तक भीग गया और ढेर सारे माल ने मेरा लण्ड और नीचे की गोलियां तक गीली कर दी। मैंने उठ कर भाभी के स्तन दबा दिये, पर भाभी अपने आप को छुड़ा कर भाग गई। मुझे कुछ समझ में नहीं आया … । मैं जल्दी से स्नानघर में जाकर नहा कर आ गया।
मैं भाभी के कमरे में गया तो उसने अपने आपको बाथरूम में बंद कर लिया।
तुम जाओ यहां से …
पर बात तो सुनो … !
नहीं… बस जाओ, मुझे बहुत लाज आ रही है !
मैं कॉलेज चला गया। मेरा मन भटक गया था। क्लास में भी मन नही लगा।
लंच पर डेढ़-दो बजे :
मम्मी स्कूल से आ चुकी थी, पापा भी आ गये थे। भाभी की बड़ी-बड़ी आंखे नीची झुकी हुई, सभी को भोजन परोस रही थी। भोजन के बाद भाभी के कमरे में गया तो मुझे देख कर उसने अपना चेहरा छुपा लिया।
कोई देख लेगा, तुम जाओ ना …
मुझे इस शर्म का मतलब समझ में नहीं आया। दूसरे दिन मैं भाभी के साथ काम करता रहा पर वो अपना मुख मुझसे छिपाती रही। मैं बेचैन हो उठा। काम समाप्त होने पर मैंने भाभी को उसके कमरे में घेर ही लिया।
भाभी, प्लीज मुझसे बात करो ना !!
भैया, सॉरी … गलती हो गई कल …
कैसी बाते करती हो … भाभी सच बताऊँ तो आप बहुत अच्छी हैं !
नीरू, पर मैंने तुम्हे तो मारा भी था ना ? !!
चलो बात बराबर हो गई, पहले मैंने गलती की थी, कल आपने फ़ाऊल किया था, बस ?
भाभी धीरे से आकर मेरे गले लग गई।

आगे पढ़िए  "ऐसा प्यार फिर कहां- २

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