पोषक : सुनीता पृस्टी
अन्तर्वासना के सभी पाठकों और गुरुजी को मेरी तरफ से यानि कि पम्मी की तरफ से प्रणाम ! यह अन्तर्वासना पर मेरी तीसरी कहानी है। लोगों की चुदाई की कहानियाँ पढ़ पढ़ कर चूत गीली हो जाती है। पहली कहानी में जिस तरह मैंने बताया था कि मेरे पति एक फौजी हैं। और मेरे घर में काम करने वाले एक सीरी ने किस तरह दोपहर में मेरी प्यास बुझाई ! आज मैं वहीं से आगे शुरु करने जा रही हूँ।
मैंने बताया था कि जगह और मौका न मिलने से मैं और मेरा सीरी कितने परेशान और प्यासे थे, आने-बहाने हवेली में जाती थी लेकिन कम समय की वजह से चूमा-चाटी तक ही सीमित था, इससे ज्यादा कुछ सिर्फ इतना था कि मैंने दो बार उसका लंड खड़ा किया लेकिन मुँह में ही डालकर उसकी मुठ मारी और फिर कमरे में जा उसकी मुठ मारने वाले सीन को याद कर उंगली डालती और कभी मूली घुसा कर शांत होती।
तभी एक दिन उसने जुगाड़ लगाया और मुझे ट्यूबवेल पर दोपहर में बुलाया। बहुत गर्मी थी लेकिन चूत की प्यास ने मुझे खींच लिया। उस दिन जेठजी किसी काम से शहर गए हुए थे। उनके इलावा ससुर जी वहां जाते लेकिन उस दिन वो भी शहर से बाहर थे। सीरी अकेला था, मैं चली गई उसे मिलने और हम दोनों अकेले में मिलते ही पागल हो गए और एक दूसरे में समा गए। देखते ही देखते उसने मुझे वहीं निर्वस्त्र करके और खुद को निर्वस्त्र करके मुझ पर टूट पड़ा। कितने दिन के बाद दो प्यासे आशिक मिले, मैंने जी भर कर उसका लंड चूसा और उसने मेरे मम्मे दबा कर लाल कर दिए। दांतों के निशाँ साफ़ हवस की कहानी बता रहे थे। जैसे ही असली चीज़ घुसी मेरी आंखें खुद ही बंद होने लगी मेरी चूत में लंड डाल उसका भी वही हाल था।
हम चुदाई में इतने खोये हुए थे दीन-दुनिया से परे, यही सोचा कि इतनी गर्मी में वहाँ कौन आयेगा। चोदते चोदते उसने मुझे उठाया और ट्यूब वेल के आगे बने हुए चुबच्चे पर ले गया। (जिसको शहर में लोग बाथटब कहते हैं) नंगे जिस्म पर जब पानी डला तो साथ में एक मर्द की मजबूत बाँहों का साथ, उसने मुझे किनारे पर बिठा अपना लंड घुसा दिया और तूफ़ान आया जब दो प्यासे जिस्म शांत हुए तो मेरी नज़र जेठ जी पर पड़ी। मैंने पानी में छलांग लगा दी, पूरी नंगी थी मैं, करती भी क्या !
यह सब क्या हो रहा था? मादरचोद ! नमक हराम ! इतने सालों से तू यहाँ रह रहा है और अब यह सब कर रहा है?
इतने में मैं निकल कर ट्यूबवेल के कमरे में घुस गई, कपड़े पहने और वहाँ से निकल आई।
जेठ जी मुझे घूर रहे थे और उनकी इस घूर में हवस के साथ साथ प्यास थी। मैं थोड़ा डर गई लेकिन फिर ठीक सी हुई, उनकी आंखें पड़ने के बाद मुस्कुरा के वापस घर आई। घर पर लॉक लगा देख मैंने अपने पर्स से दूसरी चाभी निकाली और अदंर आई।
प्यास तो बुझ चुकी थी मगर मन बेचैन था, जेठ जी का वासना भरा चेहरा सामने आते ही शर्मा जाती। अब कुछ न कुछ तो होगा यह तो मुझे मालूम था।
तभी दरवाजे की घण्टी बजी, मैंने दरवाजा खोला- सामने जेठ जी को देख बिना और देखे अपने कमरे में चली आई।
वो माँ को आवाज़ दे रहे थे, मैंने अदंर से ही कह दिया- वो घर में नहीं हैं !
वो अपने कमरे में चले गए, मैं बिस्तर पर लेट गई और अपने कमरे का टी.वी ऑन कर बैठ गई। तभी जेठ जी मेरे कमरे में आये। मुझे हैरानी नहीं हुई, मैं कई बार अपने ही ख्यालों में उनसे चुदाई करवा चुकी थी। मैं सीधी होकर बैठ गई, चुन्नी का पल्लू करके !
तभी जेठ जी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया।
मैं चुप थी !
वहाँ क्या करवा रही थी? फिर बोले- तेरा भी क्या कसूर है रानी ! तुम हो ही आग !
वो अब बिस्तर पर चढ़ आये, मेरे पास बैठ मेरा चेहरा अपनी ओर घुमाया, मैं शरमा गई, अपने होंठ मेरे होंठों पर रखते हुए मेरी जांघों पर अपनी टांग चढ़ा ली, मेरे होंठ चूसने लगे और एक हाथ मेरी कमर में डाल अपने साथ चिपका लिया, पाँव के अंगूठे से मेरी सलवार को सरका मेरी गोरी टांगों का स्पर्श पाने लगे, हाथ से मेरी चुची दबा दी।
मैं भी आपा खोने लगी और खुद ही उनसे लिपट गई- क्या करती जेठ जी? आपका भाई तो फौजी है, इसमें मेरा क्या कसूर? मैं जवान हूँ ! भरी जवानी है, उसका कोई कसूर नहीं था, मैं खुद उसके पास गई थी।
बोले- मैं जानता हूँ रानी, मुझ से कह देती, मैं तुझे ठंडी कर देता !
उन्होंने मेरा कमीज़ उतार दिया फिर सलवार खोल दी। मैंने भी उनका कुरता उतार दिया और उनकी चौड़ी छाती के घने बालों पर हाथ फेरने लगी। पजामा उन्होंने खुद उतार दिया, खड़ा लंड उनका कच्छा फाड़ने को उछल रहा था। जेठ जी मेरी ब्रा की हुक खोल मेरे मम्मे मसलने लगे- क्या जवानी है तेरे पर ! बहुत देर से तुझे चोदना चाहता था, लेकिन कह नहीं पाता था !
मैं खुद आपकी दीवानी हूँ, मेरा भी आप जैसा हाल था !
जेठ जी मेरी कच्छी को उतारते ही बोले- लगता है आज ही सफाई की है ?
मैं शरमा सी गई, मैंने भी उनके कच्छे को उतार उनका लंड हाथ में पकड़ लिया- जेठ जी, इतना ज़बरदस्त लंड है आपका तो ?
मैंने लण्ड को जड़ तक सहलाया और मुँह में ले लिया।
वाह मेरी जान ! इस सुख से मैं वंचित रहा हूँ, आज जी भर कर चुसवाऊंगा अपना लंड !
फिकर मत करो, मैं खुद लंड चूसने की शौकीन हूँ ! मैंने कुतिया की तरह जुबान निकाल कर चाटा, वो आहें भर-भर मेरा मम्मा दबा रहे थे। उनहत्तर की हालत में लाते हुए मैं अपनी चूत उनके हाथों के पास ले आई वो मेरी चूत से खेल रहे थे दाने को मसल देते तो मैं सिकुड़ सी जाती।
तभी मेरी नज़र खिड़की पर गई, मेरा सीरी सब देख रहा था।
अब फाड़ दो मेरी ! जेठ जी ! रहा नहीं जा रहा अब !मैंने अपनी टाँगें खोल दी और उनको बीच में बिठा लिया और उनका तकड़ा लंड अपनी चूत के अदंर-बाहर करवाने लगी। एक एक रगड़ मेरी आंखें बंद कर देती। चुदवाते हुए मेरी नज़र फिर खिड़की पर गई। मैंने इशारा किया।
बोला- वाह चौधरी जी वाह ! मुझे कितने पाठ पढ़ा रहे थे ! और आते ही वही पाठ भूल कर चढ़ गए इस पर?
जेठ बोले- साले, कुछ तो कहना ही था ना ! तू साले ! हर माल एक साथ बांटते थे, इसको अकेला संभाल बैठा था? वो भी कयामत?
यह सुन मैं हंसने लगी और बोली- तू मुझे चुदवाने दे !
जेठ जी लगे झटके देने !
मैं भी आता हूँ !
मैं जेठ जी के साथ सब भूल मजा लेने लगी।
क्या स्टाइल था उनका चुदाई करने का ! मैं तो उनकी दीवानी होती जा रही थी, सीधा लेटते हुए मुझे अपने लंड पर बिठा उछालने लगे गेंद की तरह ! मैं उनके लंड पर ठप्पे खा रही थी मेरे हिलते मम्मो को देख वो भी जोश के साथ नीचे से मुझे उछालते।
इतने में वो भी खिड़की खोल घुस आया, तब जेठ जी मुझे घोड़ी बना कर चोद रहे थे, वो मेरे सामने आया और लंड निकाला, मुँह में दे दिया। वाह ! एक चूत में ! एक मुँह में ! दो-दो एक साथ !
जेठ जी तूफ़ान की तरह चोदने लगे। उतनी ही तेज़ मैं उसका लुल्ला चूस रही थी।
तभी जेठ जी ने कहा- गांड में डालने वाला हूँ !
मेरे ड्रेसिंग टेबल से कोल्ड क्रीम उठाई और अपने लंड पर लगाई और कुछ मेरी गांड पर !
जेठ जी सीधे लेट गए, मैंने उनके लण्ड पर अपनी ग़ाण्ड टिका कर बैठना शुरु किया। कुछ पल में मैं उनका पूरा लंड अंदर ले गई। वो भी मेरे मुँह में लगा हुआ था। फिर जेठ जी ने मुझे कहा- मेरी तरफ पीठ करके अदंर ले, ताकि यह भी तेरी चूत में घुसा दे !
मैंने कहा- फट जायेगी !
बोले- हम दोनों ने कई बार एक साथ दोनों छेदों में डाले हुए हैं ! कोई काम वाली हमसे नहीं बची !
तभी सीरी ने आगे से घुसा दिया और दोनों पागलों की तरह मुझे रौंदने लगे।
क्या अलग सा सुख था यह !
जैसे जेठ जी तेज़ हुए, सीरी ने निकाल लिया। जेठ जी औरत को अपने नीचे डाल कर झाड़ते थे, सारा माल मेरी चूत में भर दिया बाकी मुझ से चटवा कर साफ़ करवा लिया। सीरी ने अब मेरी गांड में घुसा दिया और दन-दना-दन चोदने लगा और जल्दी ही सारा माल मेरी कसी हुई गांड में उगल दिया। दोनों मेरे ऊपर लुढ़क गए। मैं नंगी दो मर्दों के सोये लंड पकड़ मजे ले रही थी।
तभी दरवाज़े की घण्टी बजी, हम तीनों की फट गई।
जल्दी से उठकर कपड़े पहने, सीरी किवाड़ से भाग गया, जेठ जी कपड़े उठा अपने कमरे में भाग गए।
मैंने दरवाज़ा खोला- माँ थीं !
सो रही थी क्या बहू?
हांजी, माँ जी ! आंख लग गई थी !
उस रात दोनों ने दारू पी मुझे आधी रात को हवेली में चोदा। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, तभी मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई और मुझे वहां जाना पड़ रहा था, दिल मेरा भी नहीं था, सासू माँ ने मुझे कहा- छोटी दुल्हन ! चली जा ! बहन की शादी है !
मायके में उनके लंड याद आ रहे थे। एक रोज़ जेठ जी का फ़ोन आया कि वो काम से शहर आये हुए हैं ! मेरे मायके घर के करीब ! बोले- यहाँ मेरे दोस्त का घर है, उसकी बीवी कुछ दिन के लिए मायके गई हुई है, दोपहर में मिलने आ जा !
उसका घर सच में पास था, मैंने कहा- दोपहर में मुश्किल है, रात को बना लो प्रोग्राम !
मैंने इधर माँ से कहा- मुझे एक दिन के लिए सासू माँ के पास जाना है ! उनकी तबियत ठीक नहीं !
माँ बोली- हाँ ! ज़रूर जा ! वो दोनों अकेले होंगे !
मेरे छोटे भाई ने मुझे बस स्टैंड छोड़ दिया और वहीं से जेठ जी के दोस्त अपनी कार पर मुझे अपने घर ले चला, बोला- बहुत सुंदर हो रानी ! उसने मेरी जांघें सहला दी।
वो बहुत हैण्डसम था उसने जानबूझ कर गाड़ी खाली कालोनी की तरफ लम्बे रास्ते डाल ली। जैसे ही उसका हाथ चूत तक गया, मैंने उसका लंड पकड़ लिया।
उसके बाद क्या हुआ, वो अगली बार लिखूंगी ! मैं बहुत चुदासी औरत हूँ, रंडी कह लो, सब चलेगा ! लेकिन मर्द के बिना मैं नहीं रह पाती ! वो भी पराये मर्दों के बिना !!!!!
जवाब लिखो !
अन्तर्वासना के सभी पाठकों और गुरुजी को मेरी तरफ से यानि कि पम्मी की तरफ से प्रणाम ! यह अन्तर्वासना पर मेरी तीसरी कहानी है। लोगों की चुदाई की कहानियाँ पढ़ पढ़ कर चूत गीली हो जाती है। पहली कहानी में जिस तरह मैंने बताया था कि मेरे पति एक फौजी हैं। और मेरे घर में काम करने वाले एक सीरी ने किस तरह दोपहर में मेरी प्यास बुझाई ! आज मैं वहीं से आगे शुरु करने जा रही हूँ।
मैंने बताया था कि जगह और मौका न मिलने से मैं और मेरा सीरी कितने परेशान और प्यासे थे, आने-बहाने हवेली में जाती थी लेकिन कम समय की वजह से चूमा-चाटी तक ही सीमित था, इससे ज्यादा कुछ सिर्फ इतना था कि मैंने दो बार उसका लंड खड़ा किया लेकिन मुँह में ही डालकर उसकी मुठ मारी और फिर कमरे में जा उसकी मुठ मारने वाले सीन को याद कर उंगली डालती और कभी मूली घुसा कर शांत होती।
तभी एक दिन उसने जुगाड़ लगाया और मुझे ट्यूबवेल पर दोपहर में बुलाया। बहुत गर्मी थी लेकिन चूत की प्यास ने मुझे खींच लिया। उस दिन जेठजी किसी काम से शहर गए हुए थे। उनके इलावा ससुर जी वहां जाते लेकिन उस दिन वो भी शहर से बाहर थे। सीरी अकेला था, मैं चली गई उसे मिलने और हम दोनों अकेले में मिलते ही पागल हो गए और एक दूसरे में समा गए। देखते ही देखते उसने मुझे वहीं निर्वस्त्र करके और खुद को निर्वस्त्र करके मुझ पर टूट पड़ा। कितने दिन के बाद दो प्यासे आशिक मिले, मैंने जी भर कर उसका लंड चूसा और उसने मेरे मम्मे दबा कर लाल कर दिए। दांतों के निशाँ साफ़ हवस की कहानी बता रहे थे। जैसे ही असली चीज़ घुसी मेरी आंखें खुद ही बंद होने लगी मेरी चूत में लंड डाल उसका भी वही हाल था।
हम चुदाई में इतने खोये हुए थे दीन-दुनिया से परे, यही सोचा कि इतनी गर्मी में वहाँ कौन आयेगा। चोदते चोदते उसने मुझे उठाया और ट्यूब वेल के आगे बने हुए चुबच्चे पर ले गया। (जिसको शहर में लोग बाथटब कहते हैं) नंगे जिस्म पर जब पानी डला तो साथ में एक मर्द की मजबूत बाँहों का साथ, उसने मुझे किनारे पर बिठा अपना लंड घुसा दिया और तूफ़ान आया जब दो प्यासे जिस्म शांत हुए तो मेरी नज़र जेठ जी पर पड़ी। मैंने पानी में छलांग लगा दी, पूरी नंगी थी मैं, करती भी क्या !
यह सब क्या हो रहा था? मादरचोद ! नमक हराम ! इतने सालों से तू यहाँ रह रहा है और अब यह सब कर रहा है?
इतने में मैं निकल कर ट्यूबवेल के कमरे में घुस गई, कपड़े पहने और वहाँ से निकल आई।
जेठ जी मुझे घूर रहे थे और उनकी इस घूर में हवस के साथ साथ प्यास थी। मैं थोड़ा डर गई लेकिन फिर ठीक सी हुई, उनकी आंखें पड़ने के बाद मुस्कुरा के वापस घर आई। घर पर लॉक लगा देख मैंने अपने पर्स से दूसरी चाभी निकाली और अदंर आई।
प्यास तो बुझ चुकी थी मगर मन बेचैन था, जेठ जी का वासना भरा चेहरा सामने आते ही शर्मा जाती। अब कुछ न कुछ तो होगा यह तो मुझे मालूम था।
तभी दरवाजे की घण्टी बजी, मैंने दरवाजा खोला- सामने जेठ जी को देख बिना और देखे अपने कमरे में चली आई।
वो माँ को आवाज़ दे रहे थे, मैंने अदंर से ही कह दिया- वो घर में नहीं हैं !
वो अपने कमरे में चले गए, मैं बिस्तर पर लेट गई और अपने कमरे का टी.वी ऑन कर बैठ गई। तभी जेठ जी मेरे कमरे में आये। मुझे हैरानी नहीं हुई, मैं कई बार अपने ही ख्यालों में उनसे चुदाई करवा चुकी थी। मैं सीधी होकर बैठ गई, चुन्नी का पल्लू करके !
तभी जेठ जी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया।
मैं चुप थी !
वहाँ क्या करवा रही थी? फिर बोले- तेरा भी क्या कसूर है रानी ! तुम हो ही आग !
वो अब बिस्तर पर चढ़ आये, मेरे पास बैठ मेरा चेहरा अपनी ओर घुमाया, मैं शरमा गई, अपने होंठ मेरे होंठों पर रखते हुए मेरी जांघों पर अपनी टांग चढ़ा ली, मेरे होंठ चूसने लगे और एक हाथ मेरी कमर में डाल अपने साथ चिपका लिया, पाँव के अंगूठे से मेरी सलवार को सरका मेरी गोरी टांगों का स्पर्श पाने लगे, हाथ से मेरी चुची दबा दी।
मैं भी आपा खोने लगी और खुद ही उनसे लिपट गई- क्या करती जेठ जी? आपका भाई तो फौजी है, इसमें मेरा क्या कसूर? मैं जवान हूँ ! भरी जवानी है, उसका कोई कसूर नहीं था, मैं खुद उसके पास गई थी।
बोले- मैं जानता हूँ रानी, मुझ से कह देती, मैं तुझे ठंडी कर देता !
उन्होंने मेरा कमीज़ उतार दिया फिर सलवार खोल दी। मैंने भी उनका कुरता उतार दिया और उनकी चौड़ी छाती के घने बालों पर हाथ फेरने लगी। पजामा उन्होंने खुद उतार दिया, खड़ा लंड उनका कच्छा फाड़ने को उछल रहा था। जेठ जी मेरी ब्रा की हुक खोल मेरे मम्मे मसलने लगे- क्या जवानी है तेरे पर ! बहुत देर से तुझे चोदना चाहता था, लेकिन कह नहीं पाता था !
मैं खुद आपकी दीवानी हूँ, मेरा भी आप जैसा हाल था !
जेठ जी मेरी कच्छी को उतारते ही बोले- लगता है आज ही सफाई की है ?
मैं शरमा सी गई, मैंने भी उनके कच्छे को उतार उनका लंड हाथ में पकड़ लिया- जेठ जी, इतना ज़बरदस्त लंड है आपका तो ?
मैंने लण्ड को जड़ तक सहलाया और मुँह में ले लिया।
वाह मेरी जान ! इस सुख से मैं वंचित रहा हूँ, आज जी भर कर चुसवाऊंगा अपना लंड !
फिकर मत करो, मैं खुद लंड चूसने की शौकीन हूँ ! मैंने कुतिया की तरह जुबान निकाल कर चाटा, वो आहें भर-भर मेरा मम्मा दबा रहे थे। उनहत्तर की हालत में लाते हुए मैं अपनी चूत उनके हाथों के पास ले आई वो मेरी चूत से खेल रहे थे दाने को मसल देते तो मैं सिकुड़ सी जाती।
तभी मेरी नज़र खिड़की पर गई, मेरा सीरी सब देख रहा था।
अब फाड़ दो मेरी ! जेठ जी ! रहा नहीं जा रहा अब !मैंने अपनी टाँगें खोल दी और उनको बीच में बिठा लिया और उनका तकड़ा लंड अपनी चूत के अदंर-बाहर करवाने लगी। एक एक रगड़ मेरी आंखें बंद कर देती। चुदवाते हुए मेरी नज़र फिर खिड़की पर गई। मैंने इशारा किया।
बोला- वाह चौधरी जी वाह ! मुझे कितने पाठ पढ़ा रहे थे ! और आते ही वही पाठ भूल कर चढ़ गए इस पर?
जेठ बोले- साले, कुछ तो कहना ही था ना ! तू साले ! हर माल एक साथ बांटते थे, इसको अकेला संभाल बैठा था? वो भी कयामत?
यह सुन मैं हंसने लगी और बोली- तू मुझे चुदवाने दे !
जेठ जी लगे झटके देने !
मैं भी आता हूँ !
मैं जेठ जी के साथ सब भूल मजा लेने लगी।
क्या स्टाइल था उनका चुदाई करने का ! मैं तो उनकी दीवानी होती जा रही थी, सीधा लेटते हुए मुझे अपने लंड पर बिठा उछालने लगे गेंद की तरह ! मैं उनके लंड पर ठप्पे खा रही थी मेरे हिलते मम्मो को देख वो भी जोश के साथ नीचे से मुझे उछालते।
इतने में वो भी खिड़की खोल घुस आया, तब जेठ जी मुझे घोड़ी बना कर चोद रहे थे, वो मेरे सामने आया और लंड निकाला, मुँह में दे दिया। वाह ! एक चूत में ! एक मुँह में ! दो-दो एक साथ !
जेठ जी तूफ़ान की तरह चोदने लगे। उतनी ही तेज़ मैं उसका लुल्ला चूस रही थी।
तभी जेठ जी ने कहा- गांड में डालने वाला हूँ !
मेरे ड्रेसिंग टेबल से कोल्ड क्रीम उठाई और अपने लंड पर लगाई और कुछ मेरी गांड पर !
जेठ जी सीधे लेट गए, मैंने उनके लण्ड पर अपनी ग़ाण्ड टिका कर बैठना शुरु किया। कुछ पल में मैं उनका पूरा लंड अंदर ले गई। वो भी मेरे मुँह में लगा हुआ था। फिर जेठ जी ने मुझे कहा- मेरी तरफ पीठ करके अदंर ले, ताकि यह भी तेरी चूत में घुसा दे !
मैंने कहा- फट जायेगी !
बोले- हम दोनों ने कई बार एक साथ दोनों छेदों में डाले हुए हैं ! कोई काम वाली हमसे नहीं बची !
तभी सीरी ने आगे से घुसा दिया और दोनों पागलों की तरह मुझे रौंदने लगे।
क्या अलग सा सुख था यह !
जैसे जेठ जी तेज़ हुए, सीरी ने निकाल लिया। जेठ जी औरत को अपने नीचे डाल कर झाड़ते थे, सारा माल मेरी चूत में भर दिया बाकी मुझ से चटवा कर साफ़ करवा लिया। सीरी ने अब मेरी गांड में घुसा दिया और दन-दना-दन चोदने लगा और जल्दी ही सारा माल मेरी कसी हुई गांड में उगल दिया। दोनों मेरे ऊपर लुढ़क गए। मैं नंगी दो मर्दों के सोये लंड पकड़ मजे ले रही थी।
तभी दरवाज़े की घण्टी बजी, हम तीनों की फट गई।
जल्दी से उठकर कपड़े पहने, सीरी किवाड़ से भाग गया, जेठ जी कपड़े उठा अपने कमरे में भाग गए।
मैंने दरवाज़ा खोला- माँ थीं !
सो रही थी क्या बहू?
हांजी, माँ जी ! आंख लग गई थी !
उस रात दोनों ने दारू पी मुझे आधी रात को हवेली में चोदा। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, तभी मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई और मुझे वहां जाना पड़ रहा था, दिल मेरा भी नहीं था, सासू माँ ने मुझे कहा- छोटी दुल्हन ! चली जा ! बहन की शादी है !
मायके में उनके लंड याद आ रहे थे। एक रोज़ जेठ जी का फ़ोन आया कि वो काम से शहर आये हुए हैं ! मेरे मायके घर के करीब ! बोले- यहाँ मेरे दोस्त का घर है, उसकी बीवी कुछ दिन के लिए मायके गई हुई है, दोपहर में मिलने आ जा !
उसका घर सच में पास था, मैंने कहा- दोपहर में मुश्किल है, रात को बना लो प्रोग्राम !
मैंने इधर माँ से कहा- मुझे एक दिन के लिए सासू माँ के पास जाना है ! उनकी तबियत ठीक नहीं !
माँ बोली- हाँ ! ज़रूर जा ! वो दोनों अकेले होंगे !
मेरे छोटे भाई ने मुझे बस स्टैंड छोड़ दिया और वहीं से जेठ जी के दोस्त अपनी कार पर मुझे अपने घर ले चला, बोला- बहुत सुंदर हो रानी ! उसने मेरी जांघें सहला दी।
वो बहुत हैण्डसम था उसने जानबूझ कर गाड़ी खाली कालोनी की तरफ लम्बे रास्ते डाल ली। जैसे ही उसका हाथ चूत तक गया, मैंने उसका लंड पकड़ लिया।
उसके बाद क्या हुआ, वो अगली बार लिखूंगी ! मैं बहुत चुदासी औरत हूँ, रंडी कह लो, सब चलेगा ! लेकिन मर्द के बिना मैं नहीं रह पाती ! वो भी पराये मर्दों के बिना !!!!!
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