सम्पादिका : सुनीता भाभी
प्रिय bhauja के लक्ष-लक्ष पाठको, कृपया मेरा यानि सोनाली का अभिनन्दन स्वीकार करें !
मैं अभी कुछ समय पहले ही bhauja साईट से जुड़ी हूँ और इस पर नई एवं पुरानी अनेकोंनेक कहानियाँ पढ़ी हैं। इस साईट पर प्रकाशित हुई कहानियों के अपार भण्डार की बहुत सी कहानियों को तो मैंने अभी छुआ तक ही नहीं!
अनेक लेखक एवं लेखिकाओं द्वारा लिखी गई उनकी सच्ची अथवा काल्पनिक कहानियाँ पढ़ने के बाद मेरी सोई हुई कामइवासना जागृत होने के साथ साथ उसमें वृद्धि भी हुई! उन्ही रचनाओं से प्रेरित ही कर मैं भी अपने इस छोटे से जीवनकाल में घटी एक घटना को कुछ अनुच्छेदों में लिख कर आप के साथ साझा करने की चेष्टा कर रही हूँ!
रचना लेखन की मेरी इस प्रथम चेष्टा में अन्तर्वासना की एक लेखिका श्रीमती शिप्रा जी के सहयोग से ही मैं इसे आप तक पहुँचाने में सफल हुई हूँ, मेरी द्वारा लिखी गई कहानी के व्याख्यान में सुधार, व्याकरण शुद्धि एवं सम्पादन करने के लिए मैं श्रीमती शिप्रा जी की बहुत ही आभारी हूँ!
अपनी बात की शुरुआत मैं अपने परिचय से देना चाहूँगी! मेरा पूरा नाम सोनाली शाह है और मैं राजस्थान के एक बहुत बड़े और प्रख्यात शहर में अपने परिवार के साथ रहती हूँ। मैंने अभी तक अपने जीवनकाल के सिर्फ उन्नीस शरद ऋतुएँ ही देखीं हैं, और जल्द इस वर्ष के अंत में बीसवीं शरद ऋतु भी देख लूंगी।
अभी मैं शहर के एक उच्च कॉलेज से सनातक के अंतिम वर्ष की शिक्षा ग्रहण कर रही हूँ।
मैं देखने में एक सामान्य लड़की ही हूँ और मेरा रंग हल्का गेहुआं है। मेरा कद पांच फुट एक इंच है और शरीर पतला है, मेरा चेहरा थोड़ा लम्बा है और नैन नक्श तीखे तथा बहुत ही आकर्षक हैं, शरीर पर मांस की थोड़ी कमी है लेकिन उसकी बनावट लोगों का दिल लुभाने के लिए काफी है। मेरे उरोज छोटे हैं लेकिन सख्त और उभरे हुए हैं और उनकी त्वचा रेशम जैसी चिकनी है, मैं अपनी कमर को कमरा कहती हूँ क्योंकि मेरे अनुसार वह सामान्य से कुछ बड़ी है और इस का अंदाज़ा आप मेरे शरीर के पैमाने 32-27-32 से लगा सकते हैं!
मैं जिस घटना का विवरण आपसे साझा करने जा रही हूँ उसकी शुरुआत एक वर्ष पहले हुई थी जब मेरे बड़े भाई की शादी थी।
हम सब बन-ठन कर बरात लेकर पास के ही एक छोटे शहर में लड़की वालों के यहाँ गए थे! वहाँ हमारी बहुत आव-भगत हुई जिसकी ज़िम्मेदारी लड़की का कोई दूर का सम्बन्धी रूपेश निभा रहा था।
उस पांच फुट चार इंच कद के नौजवान को इतनी फुर्ती से सब बरातियों की देखभाल करते देख कर उसकी ओर आकर्षित हो गई और दो बार तो उसे एक टूक देखते हुए पकड़ी भी गई।
रूपेश भी शायद मुझे प्रभावित करने के लिए कुछ ही समय के बाद मेरे पास आ कर मुझ से मेरी किसी भी आवश्यकता के बारे में पूछ लेता।
जब भी मैंने उसे किसी काम या वस्तु के बारे में कहा उसने तुरंत उसे पूरा करने का प्रयोजन कर दिया।
शादी के बाद हम दुल्हन यानि मेरी भाभी को ले कर वापिस घर आ गए तब मुझे ऐसा लगा कि मेरा कुछ वहाँ छूट गया था, मुझे आभास होने लगा कि मुझे रूपेश से लगाव हो गया था और मैं अपने आस पास उसी का अभाव महसूस कर रही थी।
अगले दो दिनों के बाद शादी के सभी रीति रिवाज़ तथा समारोह के समाप्त होने और सब मेहमानों के विदा होने के बाद मैं कॉलेज गई! वहाँ कैंटीन में अपनी सखियों को भाई की शादी की मिठाई खिला रही थी तब अकस्मात ही मुझे कुछ लड़कों के साथ रूपेश दिखाई दिया।
पहले तो मैंने उसे मेरा भ्रम समझा लेकिन जब कुछ ही क्षणों के बाद रूपेश ने दूर से अपना हाथ हिला कर मेरा अभिनन्दन किया तब मुझे यथार्थ पर विश्वास हुआ!
रूपेश को देखते ही मैंने महसूस किया कि मुझे कोई अमूल्य वस्तु मिल गई है और तब मैंने भी खड़ी होकर उसके अभिनन्दन का उत्तर अपना हाथ हिला कर दे दिया।
जब सखियों ने मुझ से उसके बारे में पूछा तब मैंने उनको शादी में उससे मिलने के बारे में बताया! क्योंकि मैं रूपेश से मिलना और बात करना चाहती थी इसलिए सखियों का बहाना बना कर उसे अपने पास बुलाया और उसका सब से परिचय भी कराया।
कुछ ही देर बाद मैं सखियों से विदाई लेकर रूपेश के साथ ही कॉलेज से बाहर बने कॉफ़ी हाउस में जा कर बैठ गई।
जब मैंने रूपेश से उसका मेरे कॉलेज में आने के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह भी उसी कॉलेज में पढ़ता है!
उसने यह भी बताया कि उसने मुझे पहले भी कई बार देखा था लेकिन कोई जान पहचान नहीं होने के नाते मुझसे कभी बात करने का प्रयास ही नहीं किया था! उसने यह भी बताया कि वह बीएससी अंतिम वर्ष का छात्र है इसलिए अभी तक हमारी मुलाकात नहीं हो पाई थी।
काफी देर तक आपस में बातें करने के बाद दोनों कॉलज वापिस अपनी कक्षा में चले गए! शाम को रूपेश मुझे अपनी बाइक से मेरे घर छोड़ने गया तब वह घर के सब सदस्यों से भी मिला। उसके बाद हर रोज़ जब भी हम दोनों का पीरियड खाली होता था हम उस कॉफ़ी हाउस में साथ ही समय व्यतीत करते थे।
हमें कॉफ़ी हाउस में तथा अन्य विभिन्न स्थानों में मुलाकातें करते हुए चार माह कैसे बीत गए हमें पता ही नहीं चला। जब गर्मी की छुट्टियाँ आई और रूपेश अपने शहर चला गया तथा हमारी मुलाकातें बंद हो गई तब मुझे फिर से उसकी कमी बहुत महसूस हुई। उन दिनों हम दिन के समय में तो फोन से बातें करते रहते थे और रात के समय वीडियो चैट कर के एक दूसरे को देख कर सब्र कर लेते थे!
एक रात को वीडियो चैट के मनमोहक पलों में ही हमने एक दूसरे से अपना प्रेम व्यक्त कर दिया और जीवन भर साथ जीने और मरने का प्रण भी ले लिया।
उस रात के तीन दिन बाद वह रात आई जिसे मैं कभी भी नहीं भूली क्योंकि वही पहली रात थी जब मैंने और रूपेश ने सेक्स चैट आरम्भ की थी।
इसके चार दिनों के बाद वीडियो चैट की वह रात भी आई जब हम दोनों के बीच शर्म के सभी परदे हट गए ! उस रात वीडियो चैट के दौरान हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर को बिना किसी आवरण के देखा।
पहले तो दोनों को कुछ शर्म आई लेकिन हमारे एक दूसरे के प्रति प्रेम ने उसे दूर भगा दिया! हम दोनों एक दूसरे के कहे अनुसार अपने गुप्तांगों के साथ खेल कर सारी रात एक दूसरे का मनोरंजन करते रहते थे! इस प्रेम भरी फोन और विडियो सेक्स चैट से हमारी छुट्टियाँ कैसे बीत गई हमें पता ही नहीं चला।
जब छुट्टियों के बाद हम मिले तो हमारा आपस में बात करने का अंदाज़ ही बदल गया था और हम हमेशा एकांत स्थान ढूँढते रहते थे।
भाग्यवश जब भी हमें एकान्त मिल जाता था तब हम एक दूसरे से चिपक कर चुम्बन लेते रहते और बीच बीच में कपड़ों के ऊपर से ही एक दूसरे के गुप्तांगों को भी मसल देते थे।
एक बार जब हम एक अंग्रेजी मूवी देखने गए तो रूपेश और मैं सिनेमा हाल के सब से पीछे वाली लाइन की दूर कोने वाली सीटों पर बैठे। हॉल में काफी कम लोग थे और जो थे वह अभी आगे वाली सीटों पर बैठे हुए थे।
जैसे ही हाल की लाइटें बंद हुई और मूवी में समुद्र के किनारे पर धूप सेंकतीं हुई अर्ध नग्न लड़कियों को देखा तो रूपेश पर उत्तेजना ने आक्रमण कर दिया।
कुछ देर बाद मैंने देखा कि रूपेश अपनी जीन्स के ऊपर से ही अपने लंड को सहला रहा था। लगता था कि वह शायद अपने को नियंत्रण रखने की कोशिश में असफल रहा था इसलिए ऐसा कर रहा था!
तब मैंने उससे पूछा– यह क्या कर रहे हो?
उसने उत्तर में कहा– जो काम तुम्हे करना चाहिए है वह मैं खुद कर रहा हूँ!
मैंने कहा- अगर तुम मुझे कह देते तो मैं कर देती!
तब रूपेश ने बिना कुछ बोले मेरा हाथ पकड़ कर अपनी जीन्स के उभरे हुए हिस्से के ऊपर ही रख दिया। मैंने अपने हाथ से पहले रूपेश के लंड को टटोला और फिर उस पर हाथ का दबाव डाल का सहलाना शुरू कर दिया।
मेरे द्वारा सहलाने से रूपेश का लंड बहुत ही कड़क हो गया और वह उत्तेजना वश आहें भरने लगा। जब वह अति उत्तेजित हो उठा तब उसने मेरे दोनों चूचियों को मसलना शुरू कर दिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर मेरा चुम्बन लेने लगा!
मैंने भी चुम्बन में उसका साथ देते हुए अपनी जीभ चूसने के लिए उसके मुँह में डाल दी और फिर उसकी जीभ अपने मुँह में लेकर चूसने लगी!
मूवी समाप्त होने के बाद हम दोनों ने अपने कपड़े और चेहरा आदि ठीक कर हाल से बाहर निकले और बाइक पर सवार हो कर घर की ओर चल दिए!
मैं रूपेश के पीछे उसके साथ चिपक कर बैठी हुई उससे बातें कर रही थी तब अचानक एक सुनसान जगह पर रूपेश ने बाइक रोक दी! जब मैंने रूपेश से रुकने का कारण पूछा तो उसने कहा कि उसे पेशाब करना है और वह दूर एक झाड़ी की ओर चल पड़ा!
क्योंकि मैंने रूपेश का लंड सिर्फ वीडियो चैट में ही देखा था इसलिए मेरा मन उसे आमने सामने देखने का लालच आ गया और मैं भी उसके पीछे चल पड़ी।
जैसे ही रूपेश ने अपना लंड जीन्स से बाहर निकल कर पेशाब करना शुरू किया तब मैंने आगे बढ़ कर उसे पकड़ लिया और उसे पेशाब कराने लगी!
क्योंकि पहली बार किसी भी मर्द का नंगा लंड हाथ में लिया था इसलिए बहुत असामान्य सा महसूस हो रहा था। हाथ में कोई गर्म और नर्म वस्तु का स्पर्श मुझे बहुत ही अजीब सा लगा लेकिन वह मेरे अपने रूपेश का लंड था इसलिए उसके मेरा प्रति प्यार उमड़ आया और जैसे ही रूपेश के पेशाब समाप्त किया मैंने झुक कर उसके लंड को चूम लिया।
मेरे होंठों का स्पर्श लगते ही रूपेश का लंड में चेतना जागृत हो गई और वह तन कर कड़क हो गया! शरीर का एक छोटा सा नर्म अंग यकायक मेरी आँख के सामने इतना बड़ा और सख्त हो जाएगा इसे देख कर मैं थोड़ा अचंभित हो गई।
जब मैंने रूपेश से नज़रें मिलाई तो देखा कि वह मुस्करा रहा था और उसने अपने शरीर को हिलाना शुरू कर दिया जिस कारण उसका लंड मेरे हाथ में ही आगे पीछे होने लगा।
मैंने जब उसे छोड़ना चाहा तो रूपेश ने मेरे हाथ को पकड़ कर लंड के ऊपर दबा दिया और उसे हिलाने लगा, कुछ देर तक मैं उसके कहे अनुसार हिलाती रही तभी उसने एक आह्ह्ह… भरी और थोड़ा एंठते हुए लंड में से रस की पिचकारी छोड़ दी।
उसकी पिचकारी में से निकली रस की कुछ बूंदें मेरे हाथ पर भी लग गई थी जिसे देख कर रूपेश ने वह हाथ मेरे होंठों पर लगा दिया और मुझे उस रस को चख कर उसका स्वाद बताने की लिए कहा।
मैं अपने जानू की बात को टाल नहीं सकी और झट से हाथ पर लगे रस को चाट लिया।
रूपेश का रस मुझे हल्का सा खट्टा तथा नमकीन लेकिन बहुत ही स्वादिष्ट लगा! मुझ से रहा नहीं गया और मैंने नीचे झुक कर उसके नर्म पड़े लंड को मुँह में डाल कर उसमें से बचा-खुचा सारा रस चूस लिया और चाट कर साफ़ कर दिया।
देर होते तथा अँधेरा बढ़ते हुए देख कर रूपेश ने झट से अपने लंड को जीन्स के अंदर किया और बाइक पर बैठ कर हम दोनों घर की ओर चल पड़े!
कहानी जारी रहेगी।