अरविन्द कुमार
मेरे एक प्रशंसक ने यह कहानी मुझे भेजी थी, सम्पादन करके में उसे यंहा bhauja.com पर पेश कर रहा हूँ ! सुनीता भाभी से बिनती हे की उह्नोने इसे पब्लिश करे ।
मैं दिल्ली के मयूर विहार में एक अपार्टमेंट भवन में रहता हूँ। मेरे साथ मेरी पत्नी और दो बच्चे हैं।
मेरा ससुराल जयपुर में है। मेरे ससुराल में मेरी सास और मेरी साली है, मेरे ससुर का देहाँत दो साल पहले हो गया था, तब से मुझे अक्सर जयपुर जाना पड़ता है।
मेरी साली रुचिका की उम्र लगभग उन्नीस वर्ष होगी, देखने में वो बड़ी ही मस्त है।
पिछले महीने मुझे अपने परिवार के साथ जयपुर जाना था लेकिन जाने के ठीक एक दिन पहले मेरी पत्नी सुरुचि की तबियत कुछ खराब हो गई तो मैं जयपुर जाना रद्द करना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कहा कि काफ़ी जरूरी काम है, आप हो आईये, मैं यहाँ बच्चे के साथ रहती हूँ।
पत्नी के जिद के चलते मैं अकेला ही अपने ससुराल जयपुर चला आया।
दरअसल मेरे ससुराल में कुछ जरुरी अदालती काम था जिसका निपटारा करना अत्यंत ही आवश्यक था।
इसलिए मैं अगले दिन जयपुर की ट्रेन पकड़ ली और अपने ससुराल पहुँच गया।
वहाँ मेरी सास और साली रुचिका ने मेरी काफी आवभगत की। मेरी सास बिल्कुल ही एक सरल विचार वाली सीधी साधी महिला हैं और मेरी साली रुचिका भी सीधी और भोली लगती थी।
मैंने रात का खाना खाया और कमरे में जाकर सो गया।
अगले दिन मैं क़ानूनी काम से सरकारी दफ्तर गया। वहाँ मुझे बताया गया कि मुझे 3-4 दिन और रुकना पड़ेगा तभी काम होगा।
मैंने जब यह बात अपनी पत्नी को फोन करके बताया तो उसने कहा- आप काम कर के ही आईयेगा क्योंकि फिर छुट्टी मिलनी मुश्किल हो जाती है।
मुझे भी यही सही लगा। आखिर ससुराल का फायदा होगा तो मुझे ही फायदा होगा क्यों कि ससुराल में जो कुछ है वो मेरी पत्नी सुरुचि और उसकी छोटी बहन रुचिका का है। जो कुछ सुरुचि का है वो मेरा भी है।
तो इसी कार्य के लिए मैंने 4-5 दिन रुकने का फैसला कर लिया, यह जान कर मेरी सास और साली काफी खुश हुईं।
मैंने शाम को अपनी साली को कहा- चलो हम सब आज फिल्म देखने चल ते हैं।
रुचिका ने तो झट हाँ कर दी। लेकिन मेरी सास ने खुद जाने से मना कर दिया और कहा- मैं तो फिल्म देखने जाती ही नहीं, तुम दोनों ही चले जाओ।
फिर मैं और मेरी साली रुचिका फिल्म देखने चले गए। वहाँ एक ही थियेटर में 3 फिल्में लगी थी। जिनमें 2 हिंदी और एक में इंग्लिश फिल्म लगी थी। मैंने तय किया कि इंग्लिश मूवी ही देखी जाय। मैनें दो टिकट लिए और हम दोनों अन्दर चले गए। थोड़ी देर में मूवी शुरु हो गई। वो फिल्म एक बोल्ड फिल्म थी। उस फिल्म में नायिका ने एक वेश्या का रोल निभाया था जो समुद्रतट पर बिकिनी पहन कर अपने ग्राहकों को ढूंढती रहती थी।
कभी कभी उसके और उसके ग्राहक के बीच के सम्भोग के सीन को बड़े देर तक दिखा दिया जाता था,
वो दृश्य देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उत्तेजना में मेरा हाथ मेरी साली के हाथ पर पड़ गया लेकिन ना मैंने हाथ हटाया ना ही मेरी साली ने।
धीरे धीरे मैंने रुचिका का हाथ अपने हाथों में पकड़ा और दबाते हुए पूछा- कैसी लग रही है मूवी?
रुचिका- धत्त… कितने गंदे गंदे सीन हैं।
मैंने- अरे भाई, जवानी में ये सब नहीं देखोगी तो कब देखोगी?
रुचिका- जीजू आप भी ना बड़े शरारती हैं। आप को मज़ा आता है ये सब देखने में?
मैंने- हाँ, मुझे तो मज़ा आता है, तुझे मज़ा नहीं आता?
रुचिका ने कहा- नहीं, मुझे शर्म आती है।
मैंने- अरे इसमें शर्म की क्या बात है? क्या तेरा मन नहीं करता है ये सब करने को?
रुचिका- मन तो करता है लेकिन देखने में शर्म आती है।
मैं- जब मन करता है तो आराम से देख ना।
मैंने उसके हाथ को छू कर महसूस किया कि उसका हाथ गर्म सा हो गया है।
मैंने उसके हाथ को मसलना शुरू किया। वो शांत रही।
फिर मैं अपना हाथ उसकी जांघ पर ले गया और सहलाने लगा। वो फिर भी शांत थी मानो उसे अच्छा लग रहा था। मेरा लंड खड़ा हो गया था।
फिर मैंने अपना एक हाथ उसके पीछे से ले जाकर उसके छाती पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली। उसकी चूची एकदम सख्त थी। पूरी फिल्म के दौरान मैं उसकी चूची को सहलाता रहा।
फिल्म ख़त्म होने पर हम दोनों बाहर निकले। वो पूरी तरह सामान्य थी।
फिर मैं उसे लेकर एक रेस्तराँ गया जहाँ उसने अपने मन पसंद का खाना ऑर्डर किया, खाना खाकर हम दोनों घर आ गए।
इस दौरान वो मेरे काफी करीब आ चुकी थी, उसकी मेरे प्रति झिझक ख़तम हो गई थी।
शायद वो समझ गई थी कि मैं उसे पसंद करने लगा हूँ। स्त्री को जब भी यह अहसास हो जाता है कि कोई पुरुष उसके बदन के प्रति आकर्षित है तो वो उसके प्रति थोड़ी बोल्ड हो जाती है और काफी आराम से हुक्म चला कर बात करती है।
यही हाल मेरा भी हुआ।
घर पहुँचने पर मैंने देखा कि मेरी सास ने चिकन बनाया है लेकिन चूँकि हम दोनों तो रेस्तराँ में खा ही चुके थे इसलिए मैंने खाने से मना कर दिया।
लेकिन रुचिका ने मुझे आदेशात्मक स्वर में वो चिकन खाने को कहा क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी माँ की मेहनत बेकार जाए।
खैर मैंने रुचिका का आदेश मानते हुए चिकन और रोटी खा ही ली।
खाना-पीना करते करते रात बारह बज चुके थे, मेरी सास सोने चली गई।
मैंने रुचिका को कहा- यार बहुत खिला दिया तूने। मैं छत पर थोडा टहल लेता हूँ ताकि खाना पच जाए।
वो बोली- मैं भी आपके साथ चलूँगी, मुझे भी खाना पचाना है।
हम दोनों छत पर चले आये, छत पर घुप्प अँधेरा था, वहाँ मैं और रुचिका हाथों में हाथ डाल कर धीरे धीरे टहल रहे थे।
रुचिका- जीजू, आप थियेटर में क्या कर रहे थे?
मैं- फिल्म देख रहा था और क्या?
रुचिका- आपका हाथ कहाँ था?
मैं- ओह, वो तो जन्नत की सैर कर रहा था।
रुचिका- आपका हाथ तो बड़ा ही शैतान है, मेरी जन्नत को दबा रहा था।
मैंने- यह हाथ सचमुच काफी शैतान है। अभी भी वहीं घूमने की जिद कर रहा है।
रुचिका- तो घुमा दो न उन हाथों को, क्यों रोक रखा है?
मैंने- यार यहाँ छत पर कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
रुचिका- तो चलो न आपके कमरे में।
मैंने- लेकिन मम्मी जी ने कहीं देख लिया तो?
रुचिका- वो नहीं उठेंगी क्योंकि वो नींद की गोली लेती हैं।
उसके बाद वो मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई, उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और मेरे सामने बिस्तर पर लेट गई, उसकी मदमस्त अदाएँ मुझे न्योता दे रही थी।
मैंने उसके न्योते को स्वीकार करते हुए अपने बदन पर से सारे कपड़े उतार दिए और सिर्फ अंडरवियर रहने दिया।
उसके बाद मैंने अपनी साली की चूची को अपने हाथ में लिया और आराम से दबाने लगा।
वो मेरी तरफ बड़े ही प्यार से देख रही थी। मैंने उसके इशारे को समझा और उसके बदन पर से कपड़े हटाने लगा, वो मानो इसी का इंतज़ार कर रही थी, उसने बीस सेकेण्ड के अन्दर अपने सारे वस्त्र उतार दिए और पूरी तरह नंगी होकर मेरे सामने लेट गई।
मैंने उसके बदन के हर भाग को सहलाना शुरू किया और उसकी चूत तक को सहलाने लगा।
उसका हाथ मेरे लंड पर थे, मेरे लंड के अन्दर तूफ़ान मच चुका था, मैंने अपना अंडरवियर खोल कर अपना लंड उसके हाथ में थमा दिया।
वो मेरे साथ इंच के लंड को मसलने लगी।
मैं उसके बदन पर लेट गया।
उसने मुझे कहा- जीजू, मुझे चोदो ना, मुझे बहुत मन करता है चुदवाने का ! मेरी सारी सहेलियाँ अपने बॉयफ़्रेंड्स से चुदवाती हैं।
मैंने बिना देर किये अपने लंड को उसकी चूत में घुसा दिया। रुचिका की चूत की झिल्ली फट गई लेकिन वो सिर्फ घुटी घुटी सी चीख निकाल कर अपने चूत के दर्द को बर्दाश्त कर गई।
मैंने उसे चोदना चालू कर दिया। वो अपना दर्द सह कर मुझसे चुदवा रही थी।
थोड़ी देर में मेरे लंड ने माल उगल दिया। उसके बाद मैं उससे अलग हुआ तो रुचिका बोली- जीजू, पहली बार तो दर्द ही दर्द मिला पर अगली बार तो मजा दोगे ना?
मैंने कहा- हाँ… रुचिका, आज तुम आराम करो, कल फ़िर करेंगे तो तुम्हे खूब मजा आएगा।
अगली रात वो मेरे कमरे में सुबह के 4 बजे तक रही और 3 बार मैंने रुचिका को चोदा।
उसके बाद रुचिका हर रात अपनी माँ के सोने के बाद मेरे कमरे में आती और मैं उसे जी भर कर चोदता था।
मेरे एक प्रशंसक ने यह कहानी मुझे भेजी थी, सम्पादन करके में उसे यंहा bhauja.com पर पेश कर रहा हूँ ! सुनीता भाभी से बिनती हे की उह्नोने इसे पब्लिश करे ।
मैं दिल्ली के मयूर विहार में एक अपार्टमेंट भवन में रहता हूँ। मेरे साथ मेरी पत्नी और दो बच्चे हैं।
मेरा ससुराल जयपुर में है। मेरे ससुराल में मेरी सास और मेरी साली है, मेरे ससुर का देहाँत दो साल पहले हो गया था, तब से मुझे अक्सर जयपुर जाना पड़ता है।
मेरी साली रुचिका की उम्र लगभग उन्नीस वर्ष होगी, देखने में वो बड़ी ही मस्त है।
पिछले महीने मुझे अपने परिवार के साथ जयपुर जाना था लेकिन जाने के ठीक एक दिन पहले मेरी पत्नी सुरुचि की तबियत कुछ खराब हो गई तो मैं जयपुर जाना रद्द करना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कहा कि काफ़ी जरूरी काम है, आप हो आईये, मैं यहाँ बच्चे के साथ रहती हूँ।
पत्नी के जिद के चलते मैं अकेला ही अपने ससुराल जयपुर चला आया।
दरअसल मेरे ससुराल में कुछ जरुरी अदालती काम था जिसका निपटारा करना अत्यंत ही आवश्यक था।
इसलिए मैं अगले दिन जयपुर की ट्रेन पकड़ ली और अपने ससुराल पहुँच गया।
वहाँ मेरी सास और साली रुचिका ने मेरी काफी आवभगत की। मेरी सास बिल्कुल ही एक सरल विचार वाली सीधी साधी महिला हैं और मेरी साली रुचिका भी सीधी और भोली लगती थी।
मैंने रात का खाना खाया और कमरे में जाकर सो गया।
अगले दिन मैं क़ानूनी काम से सरकारी दफ्तर गया। वहाँ मुझे बताया गया कि मुझे 3-4 दिन और रुकना पड़ेगा तभी काम होगा।
मैंने जब यह बात अपनी पत्नी को फोन करके बताया तो उसने कहा- आप काम कर के ही आईयेगा क्योंकि फिर छुट्टी मिलनी मुश्किल हो जाती है।
मुझे भी यही सही लगा। आखिर ससुराल का फायदा होगा तो मुझे ही फायदा होगा क्यों कि ससुराल में जो कुछ है वो मेरी पत्नी सुरुचि और उसकी छोटी बहन रुचिका का है। जो कुछ सुरुचि का है वो मेरा भी है।
तो इसी कार्य के लिए मैंने 4-5 दिन रुकने का फैसला कर लिया, यह जान कर मेरी सास और साली काफी खुश हुईं।
मैंने शाम को अपनी साली को कहा- चलो हम सब आज फिल्म देखने चल ते हैं।
रुचिका ने तो झट हाँ कर दी। लेकिन मेरी सास ने खुद जाने से मना कर दिया और कहा- मैं तो फिल्म देखने जाती ही नहीं, तुम दोनों ही चले जाओ।
फिर मैं और मेरी साली रुचिका फिल्म देखने चले गए। वहाँ एक ही थियेटर में 3 फिल्में लगी थी। जिनमें 2 हिंदी और एक में इंग्लिश फिल्म लगी थी। मैंने तय किया कि इंग्लिश मूवी ही देखी जाय। मैनें दो टिकट लिए और हम दोनों अन्दर चले गए। थोड़ी देर में मूवी शुरु हो गई। वो फिल्म एक बोल्ड फिल्म थी। उस फिल्म में नायिका ने एक वेश्या का रोल निभाया था जो समुद्रतट पर बिकिनी पहन कर अपने ग्राहकों को ढूंढती रहती थी।
कभी कभी उसके और उसके ग्राहक के बीच के सम्भोग के सीन को बड़े देर तक दिखा दिया जाता था,
वो दृश्य देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उत्तेजना में मेरा हाथ मेरी साली के हाथ पर पड़ गया लेकिन ना मैंने हाथ हटाया ना ही मेरी साली ने।
धीरे धीरे मैंने रुचिका का हाथ अपने हाथों में पकड़ा और दबाते हुए पूछा- कैसी लग रही है मूवी?
रुचिका- धत्त… कितने गंदे गंदे सीन हैं।
मैंने- अरे भाई, जवानी में ये सब नहीं देखोगी तो कब देखोगी?
रुचिका- जीजू आप भी ना बड़े शरारती हैं। आप को मज़ा आता है ये सब देखने में?
मैंने- हाँ, मुझे तो मज़ा आता है, तुझे मज़ा नहीं आता?
रुचिका ने कहा- नहीं, मुझे शर्म आती है।
मैंने- अरे इसमें शर्म की क्या बात है? क्या तेरा मन नहीं करता है ये सब करने को?
रुचिका- मन तो करता है लेकिन देखने में शर्म आती है।
मैं- जब मन करता है तो आराम से देख ना।
मैंने उसके हाथ को छू कर महसूस किया कि उसका हाथ गर्म सा हो गया है।
मैंने उसके हाथ को मसलना शुरू किया। वो शांत रही।
फिर मैं अपना हाथ उसकी जांघ पर ले गया और सहलाने लगा। वो फिर भी शांत थी मानो उसे अच्छा लग रहा था। मेरा लंड खड़ा हो गया था।
फिर मैंने अपना एक हाथ उसके पीछे से ले जाकर उसके छाती पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली। उसकी चूची एकदम सख्त थी। पूरी फिल्म के दौरान मैं उसकी चूची को सहलाता रहा।
फिल्म ख़त्म होने पर हम दोनों बाहर निकले। वो पूरी तरह सामान्य थी।
फिर मैं उसे लेकर एक रेस्तराँ गया जहाँ उसने अपने मन पसंद का खाना ऑर्डर किया, खाना खाकर हम दोनों घर आ गए।
इस दौरान वो मेरे काफी करीब आ चुकी थी, उसकी मेरे प्रति झिझक ख़तम हो गई थी।
शायद वो समझ गई थी कि मैं उसे पसंद करने लगा हूँ। स्त्री को जब भी यह अहसास हो जाता है कि कोई पुरुष उसके बदन के प्रति आकर्षित है तो वो उसके प्रति थोड़ी बोल्ड हो जाती है और काफी आराम से हुक्म चला कर बात करती है।
यही हाल मेरा भी हुआ।
घर पहुँचने पर मैंने देखा कि मेरी सास ने चिकन बनाया है लेकिन चूँकि हम दोनों तो रेस्तराँ में खा ही चुके थे इसलिए मैंने खाने से मना कर दिया।
लेकिन रुचिका ने मुझे आदेशात्मक स्वर में वो चिकन खाने को कहा क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी माँ की मेहनत बेकार जाए।
खैर मैंने रुचिका का आदेश मानते हुए चिकन और रोटी खा ही ली।
खाना-पीना करते करते रात बारह बज चुके थे, मेरी सास सोने चली गई।
मैंने रुचिका को कहा- यार बहुत खिला दिया तूने। मैं छत पर थोडा टहल लेता हूँ ताकि खाना पच जाए।
वो बोली- मैं भी आपके साथ चलूँगी, मुझे भी खाना पचाना है।
हम दोनों छत पर चले आये, छत पर घुप्प अँधेरा था, वहाँ मैं और रुचिका हाथों में हाथ डाल कर धीरे धीरे टहल रहे थे।
रुचिका- जीजू, आप थियेटर में क्या कर रहे थे?
मैं- फिल्म देख रहा था और क्या?
रुचिका- आपका हाथ कहाँ था?
मैं- ओह, वो तो जन्नत की सैर कर रहा था।
रुचिका- आपका हाथ तो बड़ा ही शैतान है, मेरी जन्नत को दबा रहा था।
मैंने- यह हाथ सचमुच काफी शैतान है। अभी भी वहीं घूमने की जिद कर रहा है।
रुचिका- तो घुमा दो न उन हाथों को, क्यों रोक रखा है?
मैंने- यार यहाँ छत पर कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
रुचिका- तो चलो न आपके कमरे में।
मैंने- लेकिन मम्मी जी ने कहीं देख लिया तो?
रुचिका- वो नहीं उठेंगी क्योंकि वो नींद की गोली लेती हैं।
उसके बाद वो मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई, उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और मेरे सामने बिस्तर पर लेट गई, उसकी मदमस्त अदाएँ मुझे न्योता दे रही थी।
मैंने उसके न्योते को स्वीकार करते हुए अपने बदन पर से सारे कपड़े उतार दिए और सिर्फ अंडरवियर रहने दिया।
उसके बाद मैंने अपनी साली की चूची को अपने हाथ में लिया और आराम से दबाने लगा।
वो मेरी तरफ बड़े ही प्यार से देख रही थी। मैंने उसके इशारे को समझा और उसके बदन पर से कपड़े हटाने लगा, वो मानो इसी का इंतज़ार कर रही थी, उसने बीस सेकेण्ड के अन्दर अपने सारे वस्त्र उतार दिए और पूरी तरह नंगी होकर मेरे सामने लेट गई।
मैंने उसके बदन के हर भाग को सहलाना शुरू किया और उसकी चूत तक को सहलाने लगा।
उसका हाथ मेरे लंड पर थे, मेरे लंड के अन्दर तूफ़ान मच चुका था, मैंने अपना अंडरवियर खोल कर अपना लंड उसके हाथ में थमा दिया।
वो मेरे साथ इंच के लंड को मसलने लगी।
मैं उसके बदन पर लेट गया।
उसने मुझे कहा- जीजू, मुझे चोदो ना, मुझे बहुत मन करता है चुदवाने का ! मेरी सारी सहेलियाँ अपने बॉयफ़्रेंड्स से चुदवाती हैं।
मैंने बिना देर किये अपने लंड को उसकी चूत में घुसा दिया। रुचिका की चूत की झिल्ली फट गई लेकिन वो सिर्फ घुटी घुटी सी चीख निकाल कर अपने चूत के दर्द को बर्दाश्त कर गई।
मैंने उसे चोदना चालू कर दिया। वो अपना दर्द सह कर मुझसे चुदवा रही थी।
थोड़ी देर में मेरे लंड ने माल उगल दिया। उसके बाद मैं उससे अलग हुआ तो रुचिका बोली- जीजू, पहली बार तो दर्द ही दर्द मिला पर अगली बार तो मजा दोगे ना?
मैंने कहा- हाँ… रुचिका, आज तुम आराम करो, कल फ़िर करेंगे तो तुम्हे खूब मजा आएगा।
अगली रात वो मेरे कमरे में सुबह के 4 बजे तक रही और 3 बार मैंने रुचिका को चोदा।
उसके बाद रुचिका हर रात अपनी माँ के सोने के बाद मेरे कमरे में आती और मैं उसे जी भर कर चोदता था।