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Channel: ଭାଉଜ ଡଟ କମ - Odia Sex Story
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Antarvasna बच्चे की खातिर (Bacche Ki Khatir)

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मेरा नाम सुमन सक्सेना है, मैं 29 वर्ष की खूबसूरत स्त्री हूँ, मैंने बी० टेक० किया है, मैं कानपुर की रहने वाली हूँ। bhauja.com का बहत पेह्ले के पाठक हूँ। 
मैंने अपनी पहली नौकरी दिल्ली में प्राप्त की और मैं वहीं दिल्ली में होस्टल में रह कर अपनी नौकरी के मजे ले रही थी कि मेरी जिन्दगी में एक लड़का रवि आया।
मैं और वो एक ही कम्पनी में काम करते थे।
पहले तो हमारी कोई मुलाकात नहीं

 होती थी पर एक बार काम के सिलसिले में मुझे उससे मदद मांगनी पड़ी।
उसने मेरी मदद की।
फिर हम रोज ही किसी न किसी बहाने मिलने लगे।
वो मुझे बहुत अच्छा लगता था, अगर एक दिन उसे न देखूँ तो मन पागल होने लगता था।
आखिरकार हमने शादी का फैसला ले लिया।
पहले तो हमारे घर वाले नाराज हुए पर बाद में सब मान गये, हमारी शादी हो गई और मैं हॉस्टल छोड़ कर अपने पति रवि के घर चली आई।
मेरे पति रवि को काम के सिलसिले में कई बार घर से बाहर रहना पड़ता था।
मेरी शादी को पांच वर्ष हो गये थे पर हमें सन्तान की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी।
मेरे सास-ससुर और पति देव सभी बेताबी से अपनी अगली पीढ़ी का इन्तज़ार कर रहे थे।
आये दिन मेरे सास ससुर मुझसे पूछते कि ‘बहू पोते का मुखड़ा कब दिखाओगी?’
तो मैं मायूस हो जाती, मैं बहुत दुखी रहने लगी, मुझे अब अपने ही शादी के फैसले से दुःख होने लगा।
मैंने उनकी इच्छा का आदर करते हुए खुद को डॉक्टर को दिखाना उचित समझा और एक दिन अकेली बिना किसी को बताये डॉक्टर को दिखाने चली गई।
डॉक्टर ने कुछ टैस्ट लिख दिए और चार दिन बाद दोबारा आने के लिये कहा।
मैं चार दिन बाद फिर से बिना किसी को बताए काम का बहाना कर घर से निकली और डॉक्टर की क्लिनिक पहुंची।
वहाँ डॉक्टर ने बताया कि मेरी जांच-रिपोर्ट बिल्कुल ठीक हैं, उनमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं नज़र आई।
जब मैंने उनसे बच्चा न होने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया- आपके पति के भी कुछ टैस्ट करने होंगे।
मेरे पति उन दिनों घर से बाहर थे और कुछ दिन बाद आने वाले थे।
उनके आने पर मैंने उनसे इस बारे में बात की और वे भी टैस्ट कराने के लिए राजी हो गये।
मैं अगले दिन उन्हें भी अपने साथ लेकर डॉक्टर के पास पहुँची और डॉक्टर ने उनके टैस्ट करने के बाद चार दिन बाद आने के लिए कहा।
मेरे पति सिर्फ तीन ही दिन के लिए घर आये थे तो उन्होंने बोला- सुमन, तुम ही रिपोर्ट्स ले आना।
चार दिन बाद जब मैं अपने पति क़ी रिपोर्ट लेने पहुँची तो यह सुन कर मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई क़ि मेरे पति मुझे सन्तान-सुख दे पाने में असमर्थ हैं।
मैं इतनी बेचैन अपनी जिंदगी में कभी नहीं हुई थी और न जाने मेरा दिमाग उस समय क्या क्या सोचने लगा, मैंने अपना और उनका बहुत इलाज कराया किन्तु मैं बच्चे की माँ न बन सकी।
मेरे मायके में एक शादी के सिलसिले में मुझे अपने घर कानपुर जाना पड़ा।
वहाँ मुझे अपने बचपन की सहेली मिली, मैंने अपना सारा दुःख उसे बताया तो उसने कहा- परेशान मत हो, तुम एक अटैची रख लो।
मैं उसकी इस बात को समझी नहीं तो उसने बताया कि महाभारत में राजा शांतनु की मृत्यु के उपरान्त उनकी बड़ी रानी अम्बिका ने अपनी सास सत्यवती के कहने पर महर्षि वेद व्यास से सम्बन्ध बना कर धृतराष्ट्र को एवं छोटी रानी ने पाण्डु को और नौकरानी ने विदुर को जन्म दिया था। उसी प्रकार तुम अपने किसी नजदीक के रिश्ते से शारीरिक सम्बन्ध बना कर बच्चा प्राप्त कर लो।
पहले तो मुझे ख़राब लगा पर बहुत सोचने के बाद मुझे सहेली की सलाह ठीक लगी।
मुझे पता था क़ि यह समाज इस विषय में हमेशा औरत को ही दुत्कारता है। मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूँ क्यूँकि वे बेहद अच्छे स्वाभाव के इंसान हैं और मुझे किसी बात पर नहीं रोकते।
यह ही सब सोचते सोचते उसी आप-धापी में मैंने एक ऐसा कदम उठा लिया।
संतान सुख क़ी चाहत और अपने पति को दोषी न बता पाने की कोशिश में मैंने एक ऐसा तरीका सोचा क़ि जिस पर मैं खुद को हालात के आगे मजबूर पाती हूँ।
मेरे ननदोई पंकज जो कानपुर में ही रहते थे, वे काफी आकर्षक शख्सियत के मालिक थे और मेरी शादी वाले दिन भी बारात में सबसे ज्यादा सुन्दर और मोहक वो ही लग रहे थे।
शादी के बाद कई एक बार उनका हमारे घर पर आना जाना हुआ था परन्तु वे कभी भी मेरे पति के पीछे से नहीं आये और उनकी नियत में मुझे कभी भी खोट नज़र नहीं आया।
हालाँकि एक नारी होने के नाते मेरा दिल कई बार उनके बारे में सोचता रहता था पर मैंने कभी भी अपनी हसरतों को पूरा करने का प्रयत्न नहीं किया।
परन्तु न जाने आज क्या सोचते हुए मैंने उनके पास फ़ोन मिला दिया और बोली- रवि कुछ दिनों के लिए टूर पर हैं, मैं एक शादी के सिलसिले में अकेली कानपुर आई हूँ और अचानक रात में तबियत तबीयत बिगड़ गई है क्या आप सुबह यहाँ गोविन्दपुरी आ सकते हैं?
उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी और अपनी कार से सुबह ठीक सात बजे गोविन्दपुरी पहुँच कर मुझे फोन किया।
मैंने उन्हें शादीस्थल का पता बता दिया, वे पाँच मिनट में ही मेरे पास पहुँच गये।
मुझे लेकर वे अपने घर चले आये।
घर पहुँच कर मैंने पाया कि मेरी ननद जो पेशे से टीचर है, अपने स्कूल को जा चुकी थी, घर पर मैं और ननदोई अकेले ही थे।
घर पहुँचकर उन्होंने डाक्टर के पास चलने को कहा तो मैंने बहाना बनाते हुए कहा- कल ही रात को डाक्टर को दिखा कर आई हूँ, अभी मेरी तबियत कुछ ठीक लग रही है तो शाम को दोबारा डाक्टर के पास चलेंगे।
उनका स्वाभाव थोड़ा सा शर्मीला होने के कारण वे एक बार तो हिचके पर मेरी बात मान गये।
मैं उनके लिए चाय बनाने को उठने लगी तो वो बोले- तुम लेट कर आराम करो, मैं चाय बना लाता हूँ।
वो जब चाय ले कर आये तो मैंने कांपते हाथों से चाय खुद पर गिरा ली और बाथरूम में जाने लगी।
बाथरूम में पहुँच कर मैंने अपनी साड़ी उतार दी और केवल ब्रा और अंडरवीयर में रहकर साड़ी पर वहाँ साबुन लगाने लगी जहाँ चाय गिरी थी।
परन्तु मेरे दिमाग में तो कुछ और ही दौड़ रहा था, मैं बेहोशी का बहाना बनाते हुए चीखी और धड़ाम से बाथरूम के फर्श पर गिर गई।
पंकज दौड़ते हुये आये और मुझे इस हालत में देख कर एक बार तो शरमा गये पर जल्दी ही उसने किसी खतरे का अंदेशा होने पर मुझे अपनी बाहों में उठाया और पलंग पर लिटा दिया।
उसने मेरे गालों को थपथपाते हुए मेरा नाम लेकर मुझे पुकारा जैसे क़ि होश में लाने क़ी कोशिश कर रहे हों।
मैंने भी थोड़ा सा होश में आने का नाटक करते हुए उनसे बोला- अब मैं ठीक हूँ, मुझे थोड़े आराम क़ी जरूरत है।
मैंने कहा- मेरे लिए डॉक्टर को बुलाने की जरूरत नहीं है।
यह कह कर मैं सोने का नाटक करने लगी।
जैसा क़ि मुझे अंदाजा था, पंकज मुझे इस रूप में देख कर उत्तेजित हो गये थे, हों भी क्यों न, मेरे वक्ष के उभार मेरी पारदर्शी ब्रा में से साफ़ दिख रहे थे और मेरे शरीर क़ी बनावट तो जो सितम ढा सकती है, उसका तो मुझे पता ही था।
वो बाथरूम में गये और हस्तमैथुन करने लगे।
मैं भी उनके पीछे से बाथरूम में आ गई।
उसने दरवाजा खुला छोड़ रखा था क्यूंकि उन्हें लग रहा था कि मैं तो नींद में हूँ।
मैंने बाथरूम में घुसते ही एक नज़र उनके लिंग पर डाली।
उसका सुडौल लिंग देख कर मैं उतेज्जना से भर गई पर जल्द ही खुद को सँभालते हुए पंकज से बोली- पंकज, मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं माँगा पर आज आप को मेरी की ख़ुशी के लिए कुछ देना होगा।
पंकज जो बेहद घबरा गये था, बोले – सुमन, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं?
तो मैंने उसे रिपोर्ट्स के बारे में सब बता दिया और उसे विश्वास दिलाया क़ि अगर हम सम्भोग करते हैं तो इसमें बुरा कुछ नहीं होगा क्यूंकि हम यह काम मेरे पति की भलाई के लिए करेंगे।
मैंने उनसे शपथ ली की वह इस बात को किसी को नही बतायेंगे।
जल्दी ही उत्तेजना से भरे पंकज जी सहमत हो गये और बोले- सुमन, जो कुछ भी करना है तुम ही कर लो, मैं तुम्हारा साथ दूँगा पर खुद कोई पहल नही करूँगा।
उसकी स्वीकृति पाते ही मैं उल्लास से भर गई परन्तु उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया।
मैं उसे हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले आई और धीरे धीरे अंडरवीयर को छोड़ कर उनके सारे वस्त्र उतार दिए।
फिर मैंने अपनी ब्रा खोल दी और अपने उरोजों को कैद से मुक्त कर दिया।
मेरे वक्ष क़ी पूरी झलक पाकर पंकज की आँखें फटी क़ी फटी रह गई और उसकी उत्तेजना के बढ़े हुए स्तर को मैंने उनके अंडरवीयर में से झांकते कड़े लिंग को देख कर महसूस किया।
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मैंने हौले से उनके हाथों को पकड़ कर अपने उरोजों पर रख दिया और उसने एक लम्बी गहरी सिसकारी ली जैसे क़ि उसका हाथ किसी गरम तवे से छू गया हो।
मैंने उसे बेबस पाते हुए अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए और खुद को उनके ऊपर गिरा दिया।
मेरे वक्ष उनके सीने में गड़े जा रहे थे और मैं उसकी बढ़ी हुई धड़कनों को महसूस कर सकती थी।
जल्दी ही उसे न जाने क्या हुआ और उसने अचानक से मुझे नीचे गिराते हुए पूरी उत्तेजना में मुझे चूमना शुरू कर दिया और अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को मसलने लगे।
मुझे भी ऐसा आनन्द पहली बार मिला था और मैं भी उनके होंठों को अपने होंठों से और जोर से कसने लगी।
मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर अपनी कच्छी में डाल दिया जो पहले ही मेरी उत्तेजना के कारण गीली हो गई थी।
कुछ देर तक मेरे होंठों और कबूतरों को चूमने के बाद पंकज ने अपना मुँह मेरी पैंटी पर बाहर से लगा दिया।
मेरे योनि रस की खुशबू ने आग में घी का काम किया और उसने दोनों हाथों से मेरी अंडरवीयर को फाड़ दिया और बुरे तरीके से मेरी योनि को चाटने लगे।
उनकी तेज सांसें मेरी योनि से टकरा रही थी और मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा रही थी।
मैंने किसी तरह उसकी पकड़ से खुद को आजाद करते हुए उनहे दूर धकेला और उनके कच्छे को उतार दिया।
मैं उनका लिंग हाथों से जोर जोर से हिलाने लगी।
मैंने उनके लिंग को कुछ ही बार हिलाया था क़ि जैसे एक भूचाल सा आ गया हो, वो आपे से बाहर सा हो गया और उसी के साथ उनके लिंग ने मुझ पर जैसे वीर्य की बारिश सी कर दी।
मेरा पूरा बदन उनके वीर्य से नहा गया था।
स्खलित होने के बाद वो कुछ निढाल से हो गये परन्तु मैंने उनसे कहा- अब मुझे साफ़ तो कर दो।
मैं उन्हें अपने साथ बाथरूम में ले गई और उसे खुद को साबुन से साफ़ करने के लिए कहा।
उसने साबुन उठाया और मेरे बदन पर मलने लगे।
पूरे शरीर पर साबुन लगाने के बाद वो मेरे पीछे खड़े हो गये और अपने दोनों हाथों से मेरे उरोजों और योनि को मसलने लगा।
वो मुझ से सट कर खड़े था और साबुन मसल रहे थे।
कुछ ही मिनट में मैंने अपने नितम्बों पर उनके फिर से कड़े हो चुके लिंग क़ी दबिश महसूस क़ी।
मैं उसकी तरफ मुड़ी और उनके लिंग को देख कर मुस्कुरा कर बोली- चलो, काम पूरा करते हैं।
हम दोनों ने एक दूसरे को तौलिये से पौंछा और फिर से बेडरूम में चले गए।
इस बार मैंने उसे नीचे लिटा दिया और उनके लिंग पर बैठने लगी पर उसका मोटा लिंग जैसे अंदर जाने को तैयार ही नहीं था।
काफी देर हो जाने पर लण्ड पर बैठने की कोशिश करते करते काम बन तो गया पर फिर भी उनका लम्बा लिंग पूरी तरह से अंदर नहीं जा पा रहा था और मेरी चूत में उनके लम्बे लिंग की वजह से मीठा मीठा दर्द भी हो रहा था।
फिर भी मैंने उत्तेजना के कारण कोशिश क़ी और थोड़ी सी कोशिश के बाद उनका पूरा लिंग मेरी योनि में समा गया।
मैं उनके लिंग पर बैठ कर कूदने लगी और कुछ ही देर में उत्तेजना के कारन स्खलित हो गई परन्तु उ्नका लिंग तो इस बार जैसे हार मानने के लिए तैयार ही नहीं था।
मेरे स्खालित होते ही उन्होंने मुझे बाहों में उठा लिया और अपने लिंग को मेरे उरोजों के बीच में रख कर मसलने लगे।
मैंने भी इस काम में उनका साथ दिया और अपने वक्षों से उनके लिंग को सहलाने लगी।
कुछ ही मिनट बाद मैं फिर से तैयार हो गई और बेड के सिरहाने झुक गई।
उन्होंने पीछे से आकर मेरी योनि में अपना लिंग डाला और हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर जोर जोर से झटके मारने लगे।
उनके मोटे लिंग की रगड़ से मेरी योनि में हल्के दर्द के साथ मजा बढ़ता जा रहा था और में कुलमुला रही थी।
करीब 5 मिनट तक झटके मारने के बाद वो भी स्खलित हो गये और मेरी योनि उनके गरम वीर्य से भर गई।
मैं बहुत खुश थी क्यूंकि एक तो मुझे संतान सुख की प्राप्ति हो सकेगी और दूसरा इतना मजा मुझे शायद ही कभी आया हो।
पंकज भी स्खलित होने के बाद निढाल से गिर गये।
हम दोनों उसी तरह एक साथ लेटे रहे।
फ़िर मैं उठी और बाथरूम में जाकर अपनी साड़ी पहनी और वापस जाने के लिए तैयारी करने लगी।
थोड़ी देर बाद वे मुझे वापिस पहुँचा आए।
सौभाग्य से मुझे एक ही सम्भोग में गएभ ठहर गया, ठीक नौ माह बाद मैं एक बेटे की माँ बनी।
मेरे पति मेरी सास ससुर मेरी नन्द सभी खुश थे, मेरा माँ बनने का सपना पूरा हो गया था।
अब कोई भी मुझे बाँझ नहीं कह सकता था।

Editor: Sunita Bhabhi
Publisher: Bhauja.com

साली की चूत में लंड लगा दिया

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दिनराज बंसल
दोस्तो, मेरा नाम दिनराज है, मैं जयपुर से हूँ।
मेरी उम्र 29 साल की है, मैं विवाहित हूँ। मैंने Bhauja.com  की काफ़ी कहानियाँ पढ़ी हैं। इसका मैं नियमित पाठक हूँ और मुझे इसमें प्रकाशित होने वाली कहानियों को पढ़ने में बहुत ही मज़ा आता है।
मेरी भी एक कहानी है, लेकिन मैंने उसे कभी लिखा नहीं, पर आज आप सबके लिए लिख रहा हूँ।
मेरी एक साली है 19 साल की, अभी एक साल पहले तक तो मैंने उसे इस तरह की नज़र से नहीं देखा था लेकिन उसकी तरफ से बढ़ावा मिलने पर कुछ उसके लिए मैं उत्तेजित हो गया हूँ।
 

लेकिन अब पहल कौन करे.. मैं जयपुर में था और वो जयपुर के पास एक कस्बे में थी तो बस फोन पर ही बातें होती थीं।
मैं फोन पर उसे इस बात के लिए राजी करता कि मैं क्या चाहता हूँ। लेकिन लड़कियों की आदत होती है ना कि सब चाहते हुए भी जल्दी से ‘हाँ’ नहीं करती हैं।
इसलिए वो भी मना करती थी- किसी को पता चल जाएगा तो क्या होगा जीजू।
लेकिन मैंने उससे कहा- किसी को पता नहीं चलेगा.. मैं मौका देखकर ही काम करूँगा।
वो मुझ पर पूरा भरोसा करती है और मुझे पसंद भी बहुत करती है। उसे मेरी नाराज़गी का ख़याल भी है।
एक बार मैं वहाँ गया, मेरी ससुराल में सास-ससुर के साथ एक साला और दो सालियाँ और साले के पत्नी भी हैं।
मेरे पास कार है, मैं कार लेकर ही जाता हूँ।
मैं जब भी ससुराल जाता हूँ तो वहाँ रुकता जरूर हूँ और इस दौरान सब लोग मेरी गाड़ी में बैठ कर आस-पास कहीं भी घूमने भी जाते हैं, पर वहाँ पर वो मौका लगते ही मेरे पास आ जाती है और बातें करती है।
सच बताऊँ तो मैंने तब तक उससे छुआ भी नहीं था क्योंकि मैंने उससे कह दिया था कि जब तक वो नहीं चाहेगी.. मैं उससे स्पर्श भी नहीं करूँगा।
इसलिए मैं उससे सिर्फ बातें ही करता हूँ और ज़ोर देता कि वो मान जाए लेकिन वो चाहती थी कि मैं सही मौके के इंतज़ार में रहूँ।
यह कहा तो नहीं उसने.. पर मुझे ऐसा लगा।
पिछली बार जब मैं वहाँ गया था तब तक मैंने उससे छुआ भी नहीं था, पर मैं उसे और वो मुझे ऐसी बातों से उत्तेजित कर देते थे कि बस लगता था कि कुछ कर लें, लेकिन कुछ डर था।
इस बार मैं गया तो हम लोग एक जगह पर घूमने गए, जो वहाँ से डेढ़ घंटे की दूरी पर थी।
कार में कितनी सी जगह होती है अधिकतम 3 आगे और 4 पीछे बैठ सकते हैं। सो मेरे ससुर को छोड़ कर बाकी सब घूमने गए थे और वो हमेशा की तरह मेरे बाजू में आगे बैठ गई।
मतलब आगे मैं ड्राइवर सीट पर और मेरे बगल में मेरी साली और उसके बगल में मेरा साला यानि वो बीच में थी।
बीच में जहाँ पर गाड़ी के गियर होते हैं उसके दोनों तरफ उसके पैर थे।
एक पैर तो मेरे पैर से सटा हुआ था और एक पैर मेरे साले से लगा था।
उसके दोनों पैरों के बीच में गाड़ी का गियर था।
मैं तो पहले से ही उत्तेजित था और वो मुझे बड़ी ही नशीली आँखों से देख रही थी।
मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था तो गियर लगाते हुए मैंने पहल कर दी और उसकी जाँघों को सहला देता था। वो सलवार सूट में थी जिसका पजामा ढीला-ढाला होता है उसमें से में उसे स्पर्श करता और मैंने अपना हाथ गियर पर ही रखे रखा।
जब हम जा रहे थे तो दिन का वक्त था, सो मैंने ज़्यादा खतरा लेना ठीक नहीं समझा और सिर्फ़ हल्के-हल्के मौका देख कर उंगली ही करता रहा था।
जब गियर लगाता तो उसकी जाँघों को सहला देता था और वो कसमसा कर रह जाती थी, वो मेरी तरफ झुकी हुई नज़रों से देखती थी।
गियर लगाते वक्त मेरी कोहनी उसके मम्मों पर थी, तो वो भी अपने मम्मों को मेरी कोहनी पर रगड़ देती थी।
यह सिलसिला करीब डेढ़ घंटे तक पूरे रास्ते चला और हम वहाँ पहुँच गए।
वो मुझसे वहाँ पर नज़रें मिलाती और मुस्करा देती थी।
मैं भी उत्तेजित होकर मुस्करा कर जबाव दे देता, लेकिन कहते कुछ भी नहीं थे।
अब वापस आते वक्त शाम हो चुकी थी और अंधेरा हो चुका था।
उसे अंधेरे में उसकी तरफ से निमंत्रण समझ कर मैंने अपने हाथ को गियर लगाने के बाद उसकी जाँघों पर फेरा और उसकी तरफ से कोई आपत्ति न पाकर मैं उसको कस कर दबाता रहा।
अब मेरे हाथ को उसकी चूत पर भी जाने लगा तो वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित होने लगी और मेरी कोहनी से मम्मों को रग़ड़ रही थी।
इससे मेरा लंड तो काफ़ी कड़क हो चुका था, फिर मैंने थोड़ी देर बाद उसकी चूत में पजामे के ऊपर से ही अपनी उंगली करने लगा और उंगली लगाने से कुछ देर बाद मैंने अंधेरे में महसूस किया कि उसकी चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और वो मस्त हो गई थी।
ना मैं उससे कुछ बोल रहा था और न ही वो मुझसे कुछ कह रही थी।
सब लोग गाड़ी में बातें कर रहे थे और हमारी इस मस्ती का किसी को कुछ पता नहीं था।
जब घर पर पहुँचे तो वो मुझसे कुछ नहीं बोली पर मैंने उसे मुस्करा कर एक आँख से इशारा किया और वो मुस्करा कर गुसलखाने में चली गई।
फिर जिस कमरे में मुझे सोना था वो वहीं मेरे पास आ गई। जब भी में जाता हूँ तो वो मेरे पास बैठ जाती है और बातें करती है, इसलिए उस दिन भी वो यही बहाना बना कर मेरे पास आ गई।
मैं बिस्तर पर लेटा था और उससे कोई बात नहीं कर रहा था, पर मैं उसकी बेचैनी को समझ सकता था।
उसने आँखों ही आँखों में मुझसे बहुत कुछ बोल दिया था।
मैंने मौका देखकर उसका हाथ पकड़ लिया और दबाने लगा तो वो कुछ भी नहीं बोली, फिर मैंने उसके हाथ को सहलाते हुए मेरे हाथ को उसकी कंधों पर ले गया और सहलाने लगा।
मैंने थोड़ा और आगे बढ़ते हुए उसके मम्मों को दबा दिया और सहलाने लगा।
तभी वो बोली- जीजू कोई देख लेगा।
मैंने कहा- सब सो गए हैं कोई नहीं देखेगा।
तो वो नहीं मानी तो मैंने उससे कहा- मैं ऊपर वाले बाथरूम में जा रहा हूँ, तुम भी आ जाना।
गर्मी के दिन थे मैं ऊपर चला गया।
वो कुछ देर बाद आ गई, मैंने उसे वहाँ पर पकड़ लिया और उसके जिस्म के सभी कामुक अंगों को चूमने और सहलाने लगा।
वो नाइटी में थी और ब्रा नहीं पहने थी।
उसके मम्मों पर मसकने से मुझे तो जैसे जन्नत ही मिल गई थी, पर मैं उससे वहाँ पर चोदूँ कैसे.. यह समझ नहीं आ रहा था क्योंकि कोई भी वहाँ आ गया तो मेरी तो वॉट लग जाती और वो भी डरी हुई थी।
मैं मौका भी जाने नहीं दे सकता था तो मैंने अपना हाथ उसकी नाइटी में डालकर उसके मम्मों को दबाने लगा और नाइटी को ऊपर करके चूसने लगा और इस दौरान मैं उसकी पैन्टी में एक हाथ डाल कर उसकी बुर को रगड़ने लगा, जो पहले ही बहुत रसीली थी और मस्त हो गई थी।
उसने कहा- जीजू, अब रहा नहीं जा रहा है।
तो मैंने उसे गोद में दोनों तरफ टाँगें करके बैठा लिया।
मैंने मेरा लंड बाहर निकाल कर उसकी बुर पर लगा दिया और धीरे-धीरे अन्दर करने लगा लेकिन मेरा 8′ का लंड उसकी बुर में घुस ही नहीं रहा था और उससे दर्द भी हो रहा था।
उस रात वो दो घंटे तक मुझसे मज़े लेती रही और मैं भी उसके साथ मज़े लेता रहा, लेकिन उस रात में मैं उसके साथ पूरा मज़ा नहीं ले पाया और दूसरे दिन दोपहर के वक्त मुझे वापस जाना था, सो मैंने सबसे विदा ली और हम दोनों ने भी आंखों ही आँखों में अपना प्रेम जताया।
अब मैं जल्दी ही वहाँ पर फिर जाने की तैयारी में हूँ, अबकी बार यह तय है कि मैं उसकी सील तोड़ कर ही आऊँगा, तब मैं आगे की कहानी लिखूँगा।
दोस्तो, कैसी लगी मेरी कहानी? यह मेरी सच्ची कहानी है।
इसके लिए आप मुझे प्रोत्साहित करने के साथ ही कोई ऐसा उपाय भी बतावें ताकि मैं उसकी चूत में अपना लंड पिरो सकूँ।

चाँदनी रात में चूत विहार

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मेरे एक दोस्त की कहानी उसी की जुबानी:
यह कहानी मेरे ससुराल की है, जहाँ एक रात मैंने उस गाँव देहात में छत पर चाँदनी रात में रसीली चटपटी चूत का आनन्द लिया।

मेरा नाम प्रशान्त है और मैं आप लोगों को यह अनुभव अपने शब्दों में पात्रों के नामों में कुछ फेर बदल के साथ सुना रहा हूँ जिससे  किसी की गोपनीयता भंग न हो और आपकी छुपी Bhauja.com जाग उठे।
मैं ससुराल अक्सर आता जाता रहता हूँ क्योंकि मेरे साले रितेश की बीवी अत्यंत खूबसूरत और दिल-चोर हसीना है।
ऊपर वाले ने उसे फुर्सत से दिलों का कत्ल करने के लिए बनाया है, उसके आकर्षक, गठीले पर मुलायम छत्तीस इंच के चूतड़ों का प्लेटफार्म जिन्हें मटकते देख कर लंड से पानी अपने आप निकलने लगता है, उसकी छ्त्तीस की ही चूचियाँ, जिनको हिलते देख कर कच्छे की पूरी कायनात हिल जाती है और जिसकी अठ्ठाइस की कंटीली कमर देख दीवाने हो जाते हैं हर उम्र के लोग।
ऐसी सलहज मीनाक्षी को चोदने के लिए कौन नहीं दीवाना हो जाएगा।
तो उस दिन मैं शाम को फिर से इस शादीशुदा पर हुस्न की मलिका, चूत की रानी को चोदने की आस में ससुराल गया।
सच तो यह है कि उसका पति रितेश भी करियाने की दुकान पर दिन भर नून-तेल बेचता, एकदम कछुए जैसा मोटा और भोंदू हो गया है, शादी के तीन साल बाद तक उसे कोई बच्चा नहीं हुआ और होता भी कैसे, दुकान से आकर वो जवानी का ताला खोलता ही नहीं, थक कर सो जाता है और खर्राटे लेने लगता है।
उस रात पूर्णिमा की चाँदनी थी और मेरा बिस्तर छत पर ही लगाया था मीनाक्षी ने।
दोनों पति पत्नी भी छत पर ही बने एक कमरे में सो गये थे।
मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं बस उपर वाले से सही मौके पर चूत देने की दुआ कर रहा था कि मीनाक्षी मुझे पेटीकोट और ब्लाउज में कमरे से बाहर निकल के पेशाब करने के लिए आती दिखाई दी।
मैंने अपनी आँखें मूंद लीं, रात को वो बेधड़क पेटीकोट उठा कर मूतने जा रही थी, उसकी चिकनी कदलीतरु सरीखी जंघाएँ व संकीर्ण कटि प्रदेश देख कर मेरा लौड़ा एकदम उन्नत हो रहा था कि उसने पेटीकोट पूरा उपर उठा दिया।
उफ्फ !! बिना बालों वाली हसीन चूत देख कर मेरा जी ललचा गया, वो मेरे जगने से बेखबर मेरी तरफ अपने खूबसूरत विशाल कूल्हे करके मूत रही थी।
मूतने से ‘शर्र शर्र’ सीटी की आवाज सी मेरे कानों में टकरा रही थी और लंड को चौकन्ना कर रही थी।
यह कहानी आप Bhauja.com  डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
यह सब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो रहा था, मैं दबे पांव उठा और जाकर उसे मूतते हुए ही दबोच लिया। वो आधा ही मूत पाई थी कि मैंने उसे पीछे से पकड़ कर बैठे हुए मुद्रा में ही गोद में उठा लिया और वो अपना पेशाब ना रोक पाई, मेरे ऊपर मूतती मुझे भिगोती चली गई।
इससे पहले कि वो चिल्लाती मैंने अपने होंठ उसके होंटों में सटा के चुम्बन करना शुरू कर दिया।
वो आश्चर्यचकित भयभीत और आनन्दमयी हो गयी थी, ऐसी कल्पना शायद उसने की नहीं थी।
मैंने उसे अपनी खाट पर लाकर लिटा दिया, उसका पेटीकोट उलट गया था और भीगी चूत मेरे सामने थी।
मैंने पेशाब लगा होने की परवाह न की और उसके जांघों के बीच घुस गया, अपनी जीभ से उसके जांघों के बीच चूत के होटों में मुँह लगाकर जीभ ऊपर नीचे करते हुए मैंने उसके दोनों चूचे पकड़ लिए।
‘वह आह्ह्ह ! जीजा जी ! प्लीज ऐसा ना करिये !’ कह कर अपनी गर्दन आनन्द के मारे दायें बाएं कर रही थी और बदन ऐंठ रही थी। मैंने अपनी मुखमैथुन क्रिया जारी रखी।
उसका गुप्तांग मारे पानी पानी के लबालब किसी प्याले की तरह भर चुका था और मैं प्याले का रस किसी आदी शराबी की तरह पी रहा था।
हम दोनों ही वासना के नशे में बह रहे थे और वो पांच मिनट के गहन मुखमैथुन क्रिया के बाद मेरे मुख में स्खलित होकर निढाल पड़ गई।
इतना सुखद अनुभव उसकी काम जीवन में शायद ही कभी हुआ हो।
उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और थोड़ी देर के लिए शिथिल पड़ गई पर मुझे चैन कहाँ था, मैंने अपना लंड जो कि फूल कर लौकी की तरह हो चुका था, उसके मुख में दे दिया।
वो आराम से किसी लाइमचूस की तरह चूसती रही और मैं उसकी चूत में उंगली करता रहा।
अब मैंने दो उंगलियाँ निकाल कर बड़ी वाली उसकी गाण्ड में और तर्जनी उंगली उसकी चूत में करनी शुरु कर दी।
सच तो यह है कि इस तरह से चूत से निकले कामरस से गाण्ड में भी चिकनाई आ गई थी।
मैंने मीनाक्षी की गाण्ड की सेवा पहले लेने की सोची, चूंकि कुँवारी इंडियन गाण्ड भी काम जीवन को परम सुख देती है।
मैंने उसकी टांगें पकड़ कर खटिया के किनारे खींच लिया, अब उसकी गांड खटिया के सहारे थी और दोनों पैर मेरे कंधे पर !
मैंने कठोर मोटे लंड का सुपारा उसकी गाण्ड के नन्हे संकीर्ण छेद पर रख कर उसकी दोनों चूचियाँ मसलनी शुरु कीं, जैसे ही मैंने उसकी चूचियों को जोर से मसला, वो छटपटाई और कराही, उसी दौरान एक तेज धक्के ने लंड के मोटे सुपाड़े को गाण्ड की गहराई में पहुँचा दिया।
मैंने अपने होंटों से उसके होटों को बंद कर दिया था।
चुम्बन करते हुए और स्तन मर्दन करते हुए मैंने उसकी गाण्ड की गहराई में उतरना जारी रखा और फिर पूरे जोश से गाण्ड को पंद्रह मिनट तक चोदा।
जब मुझे लगा कि मैं अब उसकी गांड में ही स्खलित हो जाऊँगा तो मैंने लंड को बाहर खींच थोड़ी देर के लिए उसके मुह में दे दिया। उसने फिर उसे किसी लॉलीपॉप की तरह चूषण करने में जरा भी हिचक ना दिखाई।
अब मैं उसकी योनि की थाह लेने को तैयार था, उसे इतना मोटा लंड कभी नसीब न हुआ था और वो आनन्द की पूर्वानुभूति में अपनी आँखें बंद करके अपने को समर्पित कर चुकी थी।
मैंने उसकी गाण्ड तले तकिया रख चूत को पोजिशन में लिया और ऊपर आकर मिशनरी स्टाइल में उसके जांघों के बीचोंबीच लण्ड को रास्ता दिखाया।
चमकती चाँदनी में चाँद सा हुस्न और जवान हसीना को चोदने के अनुभूति में मेरा बदन का रोम रोम खड़ा था।
मैंने हल्के हल्के उसकी चूत में लंड को उतारना शुरु किया और वो कराहते हुए अपने गर्दन को ऐंठने लगी, मानो कोई उसे चीर रहा हो बीचो बीच।
बीस मिनट तक मैं उसे चोदता रहा इस तरीके से और वो कराहती रही पर धीरे धीरे उसकी सहभागिता बढ़ती चली गई और उसने अपने नितम्ब ऊपर नीचे करके ताल-लय में चुदाई करवानी शुरु कर दी।
मैंने उसे अपने ऊपर ले लिया और उसके चूचे पकड़ कर मसलते हुए नीचे से पचाक पचाक पचाक धचाक उसकी चूत में झटके मारने शुरु किये, वह खुद ही कमर लचका लचका कर मुझे चोद रही थी।
उसने मुझे गहरे चुम्बन देते हुए चोदा और आखिर मैं स्खलित हो ही गया क्योंकि उसने अपनी स्पीड लगातार बेतहाशा बढ़ा दी थी। उसने अपनी वीर्य से भरी लबालब चूत से जिसमें कि उसका खुद का भी कामरस मिला हुआ था, मेरा लण्ड निकाल कर मेरे मुँह पर रख दी।
मैं उसे पी गया और फिर एक नई ताजगी प्राप्त की।
उस पूरी रात सुबह तक मैंने कइ बार चाँदनी रात में चूत विहार किया।

साली की चूत चाटी (Sali Ki Chut Chati)

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प्यारे दोस्तों, लीजिए पेश है आपके लिए एक सच्ची कहानी यंहा bhauja.com पर । यह वाक़या सच में मेरे साथ हुआ था सिर्फ़ 6 महीने पहले, उम्मीद है आपको पसंद आएगा। गोपनीयता के लिये पात्रों के नाम और स्थान बदल दिए गए हैं।

मेरा नाम आलोक है, 42 वर्षीय, शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी हूँ, शादी को 17 साल हो चुके हैं, एक बहुत ही शानदार पत्नी और दो बच्चे हैं।
मेरी एक  साली है, नाम है परमजीत उर्फ पम्मी। मेरी पत्नी से 5 साल और मुझ से 2 साल बड़ी है, पर 44 साल की उम्र में भी बहुत ही शानदार व्यक्तित्व की मालकिन है और अपने पति से रंग-रूप में उसका ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ है।
बस यूँ समझिए हूर के पहलू मे लॅंगूर वाली बात है!
जो भी उसको देखता है मुझे पक्का यकीन है कि कभी ना कभी उसके नाम की मुट्ठ ज़रूर मारता होगा। मतलब इतनी खूबसूरत और ज़बरदस्त कद-काठी की स्वामिनी है। मैंने खुद उसके नाम से अपने ठुल्लू को कई बार पीटा है।
तो किस्सा यूँ शुरू हुआ कि हम एक शादी में दिल्ली में इकट्ठे हुए। उधर लड़की की शादी थी तो पूरा बैन्क्वेट हॉल बुक था।
लड़की की शादी थी और वो भी रात की शादी। यह बात नवम्बर की है, मौसम बड़ा सुहावना, हल्की ठंड थी। सब अपने-अपने बेस्ट ड्रेस में सज-संवर कर शादी के मंडप में पहुँच चुके थे।
मैं भी परिवार सहित पहुँच चुका था। जाते ही रिश्तेदारों के साथ मेल-मिलाप के बाद सब अपने-अपने ग्रुप्स में बँट गए। हम पीने वाले अलग, लेडीज अलग, बच्चे अलग।
शादी रात को देर से होनी थी, 2-3 पैग लगा कर हल्का सा सुरूर बन गया था।
पीने के बाद मेरी आँखें पम्मी को ढूँढ़ रही थीं कि साली साहिबा नहीं दिखीं। जब दिमाग़ में दारू चढ़ी हो तो दूसरी औरत वैसे ही अच्छी लगने लगती है, चाहे आपकी अपनी बीवी कितनी भी शानदार क्यों ना हो।
खैर मैं भी अपने साढू साहब के साथ पंडाल में चला गया, पैग मेरे हाथ में ही था।
आगे गए तो साढू भाई को कोई मिल गया और मैं आगे बढ़ गया। आगे से आ गई पम्मी…
उफ्फ तौबा… क्रीम और डार्क ब्राउन को कॉंबिनेशन लांचे में तो वो ग़ज़ब की लग रही थी!
मेरे पास आकर बोली- अरे लोकी, कैसे हो?
‘ओ हैलो.. स्वीट-हर्ट, आई एम फाइन… पर तुम तो आज ग़ज़ब लग रही हो..!’
‘अच्छा.. थैंक्स..!’
‘बिल्कुल… मेरी फॅवरेट, चॉक्लेट आइस्क्रीम की तरह…!’ ये कह कर मैं घूम कर उसके पीछे जा खड़ा हुआ, अपने दोनों हाथ उसके कंधो पर रख कर उसके
कान में धीरे से बोला- जी करता है कि आज तो तुम्हें सर से लेकर पाँव तक चाट जाऊँ..!
कहने को तो मैंने कह दिया, पर मेरा दिल बड़े ज़ोर से धड़क रहा था।
वो बोली- अरे रहने दो.. सब बातें हैं तुम्हारी..!
अब क्योंकि बात तो चल रही थी आइसक्रीम की, पर बात के अन्दर की बात यह थी कि मैंने उसकी चूत चाटने की बात कर रहा था, समझ वो भी गई थी कि  मैं क्या कह रहा हूँ।
मैंने कहा- सच में.. अगर आप इजाज़त दो तो..!
‘किस बात की इजाज़त..!’ उसने ज़रा नखरे से, ज़रा इतरा कर कहा।
‘चाटने की..!’ मैंने भी बेशर्मी से कहा, बिना अपने रिश्ते की मर्यादा का ख़याल रखे।
‘जूते पड़ेंगे जूते… और ये सारी चाट-चटाई भूल जाओगे..!’
‘अरे जानेमन एक बार चटवा कर तो देखो.. बाद में तुम्हारे जूते खाने भी मंज़ूर हैं…!’ मैंने भी कह ही दिया।
वो मुड़ी और मेरी आँखों में गहराई से देखा, जैसे कुछ ढूँढ रही हो।
‘क्या सच में चाट सकते हो तुम?’ उसके सवाल ने जैसे मेरे पाँव के नीचे से ज़मीन ही खिसका दी। मतलब वो चटवाने को तैयार थी।
मैंने भी जोश में आ कर कह दिया- ओह यस.. मैं अभी चाटने को तैयार हूँ.. अगर तुम चटवाने को तैयार हो तो..!
पहले तो पम्मी मुस्कुराई और बोली- अगर मौक़े से भाग गए तो?
‘तो तुम्हारी जूती और मेरा सर..!’
‘रहने दो, तुम से नहीं होगा..!’
‘अरे क्यों नहीं.. मैं तो हमेशा करता हूँ, चाहो तो अपनी बहन से पूछ लो..!’
अब तो यह बिल्कुल साफ़ था कि चूत-चटाई की बात हो रही थी।
उसने फिर मुझे गौर से देखा- भागोगे तो नहीं?
‘क्यों क्या इतनी गंदी है कि मैं देख कर डर कर भाग जाऊँगा..!’
‘शट-अप.. मैं अपनी सफाई का बहुत ख्याल रखती हूँ..!’
‘ओके तो फिर चलो, देखते हैं कैसा टेस्ट है?’
‘अभी..? पर कहाँ?’
‘अरे ऊपर, बैन्क़इट हॉल के ऊपर के सब कमरे में मेहमानों के लिए बुक, किसी में भी घुस जाएँगे, कोई ना कोई तो खाली मिल ही जाएगा..!’
मैंने कहा और उसकी कलाई पकड़ कर चल पड़ा और वो भी मेरे पीछे-पीछे चलने लगी। ऊपर पहुँचे तो 2-3 कमरे देखने के बाद एक कमरा खुला मिला, उसमें किसी का सामान नहीं था, मतलब कोई भी आने वाला नहीं था।
हम छुप कर अन्दर घुसे और मैंने दरवाज़ा लॉक कर दिया।
पम्मी बेड के पास जा कर खड़ी हो गई, मैं उसके पास गया, और उसे बेड पर बिठाया।
‘पम्मी, क्या तुम सच में इसके लिए तैयार हो?’
आज मैंने पहली बार उसे नाम लेकर बुलाया था।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस औरत पर सारी रिश्तेदारी के मर्द मरते हैं, वो मुझसे चूत चटवाने को कैसे तैयार हो गई और क्यों हो गई..!
खैर मैंने ये सब सोचना छोड़ कर उसके पाँव के पास से उसका लांचा ऊपर उठाया और घुटनों के ऊपर लाकर रख दिया, दो खूबसूरत सफेद संगमरमर सी तराशी हुई टाँगें मेरे सामने नंगी हो गईं।
मैंने उसके दोनों घुटनों को चूमा और उसको बेड पर लिटा दिया। उसने एक पिलो उठाया और अपने सर के नीचे रख लिया।
मैंने बड़े प्यार से सहलाते हुए उसका लांचा उसकी जाँघों तक उठाया, बहुत ही खूबसूरत, मखमली नर्म जांघें, मैंने उसकी जांघों को चूमा, चाटा, सहलाया…!
मैं महसूस कर रहा था कि मेरा स्पर्श उसको उत्तेजित कर रहा था। फिर मैंने उसका पूरा लांचा उठा कर उसके ऊपर रख दिया।
मेरी साली साहिबा ने कच्छी पहन ही नहीं रखी थी, उसकी गोरी-गोरी छोटी सी चूत और चूत में से बाहर झाँकती उसकी भगनासा मुझे दिखाई दी।
एक शानदार चूत जिसे मैं जी भर के चाट सकता था, क्योंकि मैंने तो इससे भी गंदी-गंदी चूतें चाटी थीं।
पम्मी की चूत थोड़ी ऊपर को उभरी हुई थी, बड़ी सफाई से शेव की हुई, कोई बाल नहीं, खुशबूदार पाउडर लगा हुआ।
मैंने पहले आस-पास से शुरू किया, उसकी जांघों, पेडू और चूत के ऊपर से चुम्बन किया, पम्मी को भी मज़ा आ रहा था, उसके अंगों का फड़कना, कूल्हों का उचकना बता रहा था कि मेरे हाथों और होंठों से उसे करेंट लगा था।
फिर मैंने अपना मुँह खोला और पम्मी की पूरी चूत को अपने मुँह में ले लिया और मुँह के अन्दर ही अपनी जीभ से उसकी चूत के ऊपर से चाटा।
पम्मी ने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और अपनी टाँगें पूरी तरह से फैला दीं।
गोरी टाँगों पर रेड सैंडिल बहुत जँच रहे थे।
फिर मैंने अपनी पूरी जीभ पम्मी की चूत में घुमाई, वो तड़प उठी, उसकी चूत गीली हो चुकी थी।
मैं बड़े जोश से उसकी चूत चाट रहा था, उसके मुँह से अजीब ओ ग़रीब आवाज़ें आ रही थीं और बीच-बीच में वो मुझे गालियाँ भी निकाल रही थी- साले कुत्ते.. और ज़ोर से चाट.. बहनचोद.. खा जा इसे.. हरामी..!’
मुझे उसकी गालियों की कोई परवाह नहीं थी। जब मैंने यह महसूस किया कि अब वो पूरी तरह से गर्म हो चुकी है तो मैंने नया पैंतरा आज़माया।
मैं उठ कर खड़ा हुआ और बोला- पम्मी चल उठ और बेड के बिल्कुल सेंटर में लेट..!
‘क्यों.. क्या.. करोगे.. भी अब मेरे साथ?’
‘नहीं थोड़ा आराम से चाटूँगा, पर अगर तू बोलेगी तो तुझे चोद भी दूँगा, पर अभी तो सिर्फ़ तेरी चूत का पानी पीना है… और वो भी आराम से मज़े ले-ले कर..!’
पम्मी खिसक कर पीछे हुई और बिस्तर के बीच में चली गई। मैंने अपने जूते उतारे और बेड पर पम्मी से उलट डायरेक्शन में लेट गया यानी कि मेरा सर उसकी टाँगों में था और उसका सर मेरी टाँगों के पास था।
इसी पोज़ मैंने उसे अपने ऊपर लेटा लिया और उसकी चूत मेरे मुँह के ऊपर आ गई और उसने अपना सर मेरे लंड पर टिका लिया जो मेरी पैन्ट में क़ैद हुआ फुँफकार रहा था।
खैर.. जब मैंने दोबारा पम्मी की चूत चाटनी शुरू की, तो उसकी चूत से जो भी पानी टपकता वो सीधा मेरे मुँह में आ रहा था।
थोड़ी देर बाद बिना मेरे कहे पम्मी ने मेरी पैन्ट खोली और चड्डी समेत नीचे सरका दी और मेरा तना हुआ लंड आज़ाद हो गया।
पम्मी ने उसे हाथ में पकड़ा और अपने खूबसूरत मरून रंग से रंगे हुए होंठों में पकड़ लिया।
अब मैं उसकी चूत चाट रहा था और वो ज़ोर-ज़ोर से मेरा लंड चूस रही थी। ज़ोर-ज़ोर से सर हिलने से उसके सारे बाल बिखर गए।
वो तो इतनी जोश में आ गई कि मेरा पूरा लंड मुँह में लेकर आगे-पीछे कर रही थी और मुझे लेटे-लेटे उसका मुँह चोदने का मज़ा मिल रहा था।
यह दौर चलता रहा। जब उसने अपने मुँह में साथ अपनी कमर भी ज़ोर-ज़ोर से हिलानी शुरू कर दी।
मैं समझ गया कि अब साली अपने चरम पर आ गई है और वो ही हुआ।
उसने तड़प कर अपनी दोनों जांघों को कस लिया और मेरा मुँह अपनी चूत के साथ भींच लिया।
मेरा सारा लंड उसके मुँह में उसके गले तक उतर चुका था।
मैं भी इस जोश को बर्दाश्त ना कर सका और उसके मुँह में ही झड़ गया। मेरा माल सीधा उसके गले से उसके पेट में उतर गया।
दो मिनट पूरी शान्ति से हम वैसे ही लेटे रहे। फिर वो उठी, मेरा लंड अपने मुँह से निकाला।
मेरा मुँह अपनी जाँघों से आज़ाद किया और अपने कपड़े ठीक किए, फिर बाथरूम में चली गई।
फ्रेश को कर वो सीधी नीचे ब्यूटीशियन के पास चली गई।
मेरा सारा नशा उतर चुका था। मैं भी ठीक-ठाक हो कर नीचे चला गया और शादी में मसरूफ़ हो गया।
उसके बाद मैं और पम्मी एक-दूसरे के सामने नहीं आए।
शादी संपन्न हो गई और हम सब अपने-अपने घर आ गए। उसके बाद मैंने फिर से पम्मी से बात करने की कोशिश की कि चलो दोबारा कुछ करते हैं, पर उसने कोई मौक़ा नहीं दिया।
आज 6 महीने गुज़र चुके हैं और वो अपने घर में खुश है और मैं अपने घर में उसकी याद में कभी-कभी मुट्ठ मार लेता हूँ कि कभी तो पम्मी मेरे नीचे आएगी।

पहली बार तो दर्द ही दर्द मिला (Pahli Bar To Hi Dard Mila)

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अरविन्द कुमार
मेरे एक प्रशंसक ने यह कहानी मुझे भेजी थी, सम्पादन करके में उसे यंहा bhauja.com पर पेश कर रहा हूँ ! सुनीता भाभी से बिनती हे की उह्नोने इसे पब्लिश करे ।
मैं दिल्ली के मयूर विहार में एक अपार्टमेंट भवन में रहता हूँ। मेरे साथ मेरी पत्नी और दो बच्चे हैं।
मेरा ससुराल जयपुर में है। मेरे ससुराल में मेरी सास और मेरी साली है, मेरे ससुर का देहाँत दो साल पहले हो गया था, तब से मुझे अक्सर जयपुर जाना पड़ता है।

मेरी साली रुचिका की उम्र लगभग उन्नीस वर्ष होगी, देखने में वो बड़ी ही मस्त है।
पिछले महीने मुझे अपने परिवार के साथ जयपुर जाना था लेकिन जाने के ठीक एक दिन पहले मेरी पत्नी सुरुचि की तबियत कुछ खराब हो गई तो मैं जयपुर जाना रद्द करना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे कहा कि काफ़ी जरूरी काम है, आप हो आईये, मैं यहाँ बच्चे के साथ रहती हूँ।
पत्नी के जिद के चलते मैं अकेला ही अपने ससुराल जयपुर चला आया।
दरअसल मेरे ससुराल में कुछ जरुरी अदालती काम था जिसका निपटारा करना अत्यंत ही आवश्यक था।
इसलिए मैं अगले दिन जयपुर की ट्रेन पकड़ ली और अपने ससुराल पहुँच गया।
वहाँ मेरी सास और साली रुचिका ने मेरी काफी आवभगत की। मेरी सास बिल्कुल ही एक सरल विचार वाली सीधी साधी महिला हैं और मेरी साली रुचिका भी सीधी और भोली लगती थी।
मैंने रात का खाना खाया और कमरे में जाकर सो गया।
अगले दिन मैं क़ानूनी काम से सरकारी दफ्तर गया। वहाँ मुझे बताया गया कि मुझे 3-4 दिन और रुकना पड़ेगा तभी काम होगा।
मैंने जब यह बात अपनी पत्नी को फोन करके बताया तो उसने कहा- आप काम कर के ही आईयेगा क्योंकि फिर छुट्टी मिलनी मुश्किल हो जाती है।
मुझे भी यही सही लगा। आखिर ससुराल का फायदा होगा तो मुझे ही फायदा होगा क्यों कि ससुराल में जो कुछ है वो मेरी पत्नी सुरुचि और उसकी छोटी बहन रुचिका का है। जो कुछ सुरुचि का है वो मेरा भी है।
तो इसी कार्य के लिए मैंने 4-5 दिन रुकने का फैसला कर लिया, यह जान कर मेरी सास और साली काफी खुश हुईं।
मैंने शाम को अपनी साली को कहा- चलो हम सब आज फिल्म देखने चल ते हैं।
रुचिका ने तो झट हाँ कर दी। लेकिन मेरी सास ने खुद जाने से मना कर दिया और कहा- मैं तो फिल्म देखने जाती ही नहीं, तुम दोनों ही चले जाओ।
फिर मैं और मेरी साली रुचिका फिल्म देखने चले गए। वहाँ एक ही थियेटर में 3 फिल्में लगी थी। जिनमें 2 हिंदी और एक में इंग्लिश फिल्म लगी थी। मैंने तय किया कि इंग्लिश मूवी ही देखी जाय। मैनें दो टिकट लिए और हम दोनों अन्दर चले गए। थोड़ी देर में मूवी शुरु हो गई। वो फिल्म एक बोल्ड फिल्म थी। उस फिल्म में नायिका ने एक वेश्या का रोल निभाया था जो समुद्रतट पर बिकिनी पहन कर अपने ग्राहकों को ढूंढती रहती थी।
कभी कभी उसके और उसके ग्राहक के बीच के सम्भोग के सीन को बड़े देर तक दिखा दिया जाता था,
वो दृश्य देख कर मैं उत्तेजित हो रहा था, उत्तेजना में मेरा हाथ मेरी साली के हाथ पर पड़ गया लेकिन ना मैंने हाथ हटाया ना ही मेरी साली ने।
धीरे धीरे मैंने रुचिका का हाथ अपने हाथों में पकड़ा और दबाते हुए पूछा- कैसी लग रही है मूवी?
रुचिका- धत्त… कितने गंदे गंदे सीन हैं।
मैंने- अरे भाई, जवानी में ये सब नहीं देखोगी तो कब देखोगी?
रुचिका- जीजू आप भी ना बड़े शरारती हैं। आप को मज़ा आता है ये सब देखने में?
मैंने- हाँ, मुझे तो मज़ा आता है, तुझे मज़ा नहीं आता?
रुचिका ने कहा- नहीं, मुझे शर्म आती है।
मैंने- अरे इसमें शर्म की क्या बात है? क्या तेरा मन नहीं करता है ये सब करने को?
रुचिका- मन तो करता है लेकिन देखने में शर्म आती है।
मैं- जब मन करता है तो आराम से देख ना।
मैंने उसके हाथ को छू कर महसूस किया कि उसका हाथ गर्म सा हो गया है।
मैंने उसके हाथ को मसलना शुरू किया। वो शांत रही।
फिर मैं अपना हाथ उसकी जांघ पर ले गया और सहलाने लगा। वो फिर भी शांत थी मानो उसे अच्छा लग रहा था। मेरा लंड खड़ा हो गया था।
फिर मैंने अपना एक हाथ उसके पीछे से ले जाकर उसके छाती पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली। उसकी चूची एकदम सख्त थी। पूरी फिल्म के दौरान मैं उसकी चूची को सहलाता रहा।
फिल्म ख़त्म होने पर हम दोनों बाहर निकले। वो पूरी तरह सामान्य थी।
फिर मैं उसे लेकर एक रेस्तराँ गया जहाँ उसने अपने मन पसंद का खाना ऑर्डर किया, खाना खाकर हम दोनों घर आ गए।
इस दौरान वो मेरे काफी करीब आ चुकी थी, उसकी मेरे प्रति झिझक ख़तम हो गई थी।
शायद वो समझ गई थी कि मैं उसे पसंद करने लगा हूँ। स्त्री को जब भी यह अहसास हो जाता है कि कोई पुरुष उसके बदन के प्रति आकर्षित है तो वो उसके प्रति थोड़ी बोल्ड हो जाती है और काफी आराम से हुक्म चला कर बात करती है।
यही हाल मेरा भी हुआ।
घर पहुँचने पर मैंने देखा कि मेरी सास ने चिकन बनाया है लेकिन चूँकि हम दोनों तो रेस्तराँ में खा ही चुके थे इसलिए मैंने खाने से मना कर दिया।
लेकिन रुचिका ने मुझे आदेशात्मक स्वर में वो चिकन खाने को कहा क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी माँ की मेहनत बेकार जाए।
खैर मैंने रुचिका का आदेश मानते हुए चिकन और रोटी खा ही ली।
खाना-पीना करते करते रात बारह बज चुके थे, मेरी सास सोने चली गई।
मैंने रुचिका को कहा- यार बहुत खिला दिया तूने। मैं छत पर थोडा टहल लेता हूँ ताकि खाना पच जाए।
वो बोली- मैं भी आपके साथ चलूँगी, मुझे भी खाना पचाना है।
हम दोनों छत पर चले आये, छत पर घुप्प अँधेरा था, वहाँ मैं और रुचिका हाथों में हाथ डाल कर धीरे धीरे टहल रहे थे।
रुचिका- जीजू, आप थियेटर में क्या कर रहे थे?
मैं- फिल्म देख रहा था और क्या?
रुचिका- आपका हाथ कहाँ था?
मैं- ओह, वो तो जन्नत की सैर कर रहा था।
रुचिका- आपका हाथ तो बड़ा ही शैतान है, मेरी जन्नत को दबा रहा था।
मैंने- यह हाथ सचमुच काफी शैतान है। अभी भी वहीं घूमने की जिद कर रहा है।
रुचिका- तो घुमा दो न उन हाथों को, क्यों रोक रखा है?
मैंने- यार यहाँ छत पर कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
रुचिका- तो चलो न आपके कमरे में।
मैंने- लेकिन मम्मी जी ने कहीं देख लिया तो?
रुचिका- वो नहीं उठेंगी क्योंकि वो नींद की गोली लेती हैं।
उसके बाद वो मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई, उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और मेरे सामने बिस्तर पर लेट गई, उसकी मदमस्त अदाएँ मुझे न्योता दे रही थी।
मैंने उसके न्योते को स्वीकार करते हुए अपने बदन पर से सारे कपड़े उतार दिए और सिर्फ अंडरवियर रहने दिया।
उसके बाद मैंने अपनी साली की चूची को अपने हाथ में लिया और आराम से दबाने लगा।
वो मेरी तरफ बड़े ही प्यार से देख रही थी। मैंने उसके इशारे को समझा और उसके बदन पर से कपड़े हटाने लगा, वो मानो इसी का इंतज़ार कर रही थी, उसने बीस सेकेण्ड के अन्दर अपने सारे वस्त्र उतार दिए और पूरी तरह नंगी होकर मेरे सामने लेट गई।
मैंने उसके बदन के हर भाग को सहलाना शुरू किया और उसकी चूत तक को सहलाने लगा।
उसका हाथ मेरे लंड पर थे, मेरे लंड के अन्दर तूफ़ान मच चुका था, मैंने अपना अंडरवियर खोल कर अपना लंड उसके हाथ में थमा दिया।
वो मेरे साथ इंच के लंड को मसलने लगी।
मैं उसके बदन पर लेट गया।
उसने मुझे कहा- जीजू, मुझे चोदो ना, मुझे बहुत मन करता है चुदवाने का ! मेरी सारी सहेलियाँ अपने बॉयफ़्रेंड्स से चुदवाती हैं।
मैंने बिना देर किये अपने लंड को उसकी चूत में घुसा दिया। रुचिका की चूत की झिल्ली फट गई लेकिन वो सिर्फ घुटी घुटी सी चीख निकाल कर अपने चूत के दर्द को बर्दाश्त कर गई।
मैंने उसे चोदना चालू कर दिया। वो अपना दर्द सह कर मुझसे चुदवा रही थी।
थोड़ी देर में मेरे लंड ने माल उगल दिया। उसके बाद मैं उससे अलग हुआ तो रुचिका बोली- जीजू, पहली बार तो दर्द ही दर्द मिला पर अगली बार तो मजा दोगे ना?
मैंने कहा- हाँ… रुचिका, आज तुम आराम करो, कल फ़िर करेंगे तो तुम्हे खूब मजा आएगा।
अगली रात वो मेरे कमरे में सुबह के 4 बजे तक रही और 3 बार मैंने रुचिका को चोदा।
उसके बाद रुचिका हर रात अपनी माँ के सोने के बाद मेरे कमरे में आती और मैं उसे जी भर कर चोदता था।

ମୋ ସାଂଗର ଭଉଣୀ ପ୍ରତିମା କୁ ଗେହିଲି (Mo Sanga Bhauni Pratima ku Gehinli...)

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ଭାଉଜ ଡଟ୍ କମ୍ ର ସବୁ ପାଠକ ମାନନ୍କ ପାଈଁ ସୁନିତା ଭାଉଜ ନ୍କ ତରଫରୁ ଏହି କାହାଣି ।

Ye mora 9th exama para summer vacation ra katha. Mu pila belu sex upare interest thila. School re  b sanga mananka saha semiti katha barta heu. Mu 1st 8th class ru muthi mariba start karili. Film magazine re heroin mananka naked photo dekhile ki tv re kichi kiss scean dekhile mo chota banda ti thia hoi jae. Dine khara bele mo banda ti thia hoi jibaru mu taku di hatare dhari manthili. maza lagila aau jor jor re manthili. Kichi samaya pare mate bahuta maza lagila( jemiti birjya baharile lage) kintu mora kichi baharilani. Emiti kichi dina kala pare dine athalia patala birjya baharila. Pare mo sanga Raju ku pacharibaru se kahila emiti bahariba. Ta pare mora muthi mariba abhyasa hoi gala.


Hmm Raju mora gote khas sanga. Ta bhauni Pratima o mo bhauni Simi, 2 jana b sanga. Se duhen ***th class re padhanti. Pratima dekhibaku gori helthy aau khub sundara. Kandhei te pari dekha jauthila. Se te bela ku tara dudha gudika lembu pari hoi thila. Se di jana b ***th exam sari ***th ku aasi thile.

Khara chuti re dina jaka khela bula mu Raju sange kare o mo bhauni Simi o Raju ra bhauni Pratima aama ghare praya khara bele upara sidi ghare khelanti bahu bahuka.

Raju kichi dina pai ta Aja ghara ku gala buliba pai. Se nathiba ru mu pura bore hoi gali aau aama upara ghare praya khara bele ruhe. Semane khelila bele dekhe aau gapa bahi padhe, bele bele kehi nathile muthi mare.

Dine semane khelu thile, aau mate b dakile kheli ba pai. Mu kintu mana kali.

Simi kahila: Bhai khelena pls, tu ta khali re achu ...

Mu kahili : nai ma tama saha ki khela ... Mu mo room re gapa bahi padhuchi..

Ta pare pratima kahila, bhai aame doctor doctor kheluchu , aau tu doctor hoi ja...

Tu to room re basi tha aame aasile treatment karibu..

Mu aau mana karilini , dekhili e bahana re b time pass hoi jiba aau yes kari deli ..

Kich samaya pare mo bhauni Simi aasila. Kahila , Dr. mo deha kharap hoichi , jara hoi chi aau munda batha uchi.

Mu kahili thik achi , to temp. dekhiba aau medicen o injection daba. Ta pare jems choklet ku teblet boli deli aau gote needle nathiba syringe re injection ta dena ku dei deli.

Se gala pare kichi samaya pare Pratima aasila, Kahila .. Dr . mo peta katuchi.

Mu kahili hau aase to peta test kariba.. taku test karibaku khata upare soi deili aau ta peta upare hata bulaili. Se aakhi band kari soi thae.

Sete bele se gote Frock pindhi thila , aau khata upare soi la bela ku ta Frok jangha paryanta padi thila. Mu ta peta ku andalu andalu ta janghare hata deli ta se jhat kari anthu bhangi dela aau kahila... Dr. sethi nai, mate kutu kutu laguchi.

Sete bele mo mundare kharap chinta pasi jai thae aau mo half pant bhitare mo chota banda ti pura tengei ki thae. Underware pindhi nathibaru pura padaku tengei hoi dekha jau thae.

Mu kahili .. Pratima Peta katuchi jadi to peta dekhibaku padiba, tenu frock uparaku uthai to peta dekha.

Se kahila, na na frock kimti uthaibi ?? Mu kahili Dr. aagare emiti hela chaliba...kahi ta frok ku teki deli peta paryanta.

Se gote Blue color ra panty pindhi thila..Ohhh ki drusya se... mo banda aabasta pura kharap . mu ta pakhare thia hoi dekhila bele mo Banda ti ta dena re baju thila. aau ta gora peta upare mu hata bulau thae ... ki mazaa se aakhi band kari dei thae..

Ta pare mu aau control kari pari lini aau ta lahi re gote kiss dei deli...Se kichi kahilani .

Mu aau tike petare hata bulai frock bhita re hata mari ta chota chota dudha 2 taku aaunsi deli .. ta muhara ahhhh boli sitkara bahari padila aau sange sange uthi padila . Kahila ye kana karucha.. Simi achi dekhile kana bhabiba.. ???

Mu sete bele kamandha hoi jai thili , mate aau kichi dekha jau nathila... MO pati atha atha hoi gala ...taku aau kichi kahi parilini...

Chup kina thia hoi gali. ta pare se khata ru uthila aau mate hatat bhidi dharila aau kahila pache .........


Ohhhhhh mu khusire pagala hoi gali , mo chati khali dhad dhad heuthae.....

Etiki kahi se chali gala baharaku ..


Mu aau control kari parilini .. sange sange bath room ku jai muthi marili.


MUthi mariba samayare puni mo bhauni Simi aasila bhitaraku ...

Bhai ... Bhai... kana karuchu.. kahi bath room pakhaku aaasigala aau mo kabata adha khola thila..

Mu je bhitare pant ku aanthu jae khasai muthi maru thili ...


Se mate pacha patu dekhi dei.. kahila ye kana karuchu bhai.. ye bhitare chatara kama karuchu.. Raha mu jai bou ku kahuchi ...

se sange sange buli chali gala.. mu kana karibi aau kichi bhabi parilini... mo banda ti sankudi Lanka maricha pari hoi gala ...

Mu sat kari pant ku pindhi bahara ku daudi aasili aau ta hata dhari deli ... kahili Simi pls kichi kahana bouku...

Eti ki bele Pratima bhitaraku aasila aau katha ku sambhali nela...

Sange sange Simi ku kahila , Chii emiti katha kana bouku kuha jae... tu b bujhunu


MO bhai b emti bele bele karuchi... mu kete thara dekhichi...

Etiki kahi Simi ki bujhai nehi gala aau khela seti kire band...

Mu khata upare basi tike aaram se niswasa marili aau kete bele soi padili janini..


Sete bele sandhya 5 pm heba. Mu soichi khata upare ..

Pratima gharaku aasila aau mo othare gote kiss dei dela , mo nida sange sange bhangi gala..

Mu kichi bujhi paru nathae... se mo pakhe base muruki muruki hasi pacharila... kana karu thila sete bele..

Taku mo pakhare basibara dekhi mo pati ru aau katha baharu nathae...
mu pacharili Simi kainn ???

Se kahila se b soi padichi..

Aau Mausi (mane mo bou ) dandare basi katha hauchanti.


Mu dhad kina uthi padili aaau kichi na kahi taku bhidi dharili .
se kichi kahilani... mo banda puni tengeila..

Se b mata bhidi dharila aau mate kiss dela ..

Mu ta frok upare ta chota dudha di taku chipi bare lagili . Jibanare 1st time chipu thili.. Oh ki maza . se hatat Ahhhhhhhh ete jor re kana chipucha je , katuchi..

kahi uthi gala aau kabata pakha ku jai kabat band kari dela ...

mu b thia hoi gali aau ta ku bhidi dharili...

aau ta Frok bhitare hata mari ta panty upare ta Bia ku aaunsili ..

Se aakhi band kari dei thae......

Aau ta hata ku aani mo banda ku dharaili ..

Se mo pant upare mo Banda ku dharila aau dhire dhire manthila...

Ta pare ta Frok ra pacha pata chain ku tala jae tani kholi deli aau frok ku kandha patu khasai dei ta chota chota dudha dita sangare kheli baku lagili


ohhhh ki maja se dudha .. aaji b mane paduchi.. pura tana tana , chota lembu pari thila,.. chota chote di ta mundi .

taku pati re purai chuchumili ... se mo munda ku bhidi dharila ta chati upare ....

Ohhh Pratima........


Mu khali chapu thae ta dudha 2 taku . majhi re majhi re chobai dau thae...



ta pare taku khata upare soi deli aau ta panty ku tani kadhi deli aau frok ku anta jae teki deli......
Ohhhhhhhhhhh ki sundar se BIA.... pura gora ,,chikkana , fuluka  hoi thae,.. tike b bala nai...

Ta goda ku meli ta BIA ku aaunsili .. bia fata re aanguti marili. Kintu bhitaraku aanguthi pasilani.. Sete bele BIA upare ete knlodge nathila..

BIA fata re anguthi ghasili... se aakhi band kari maza nau thae...

BIA uapre gote kiss deli. .. BIA ti tike abhadra basana sanga ku ta muta basna hauthae...

ta pare ta upara ku uthi jai mu mo BANDA ku ta BIA re lagai deli. aau puss kari bare lagili.

BIA re ta bata fiti nathae aau BIA re kouthe BANDA laga jae ete mu jani nathila kintu se BIA upare BANDA ku ragadi bare lagili aau kichi samaya pare mo BANDA ru pich pich kari mo birya bahari gala aau mu ta upare soi padhili nisteja hoi ...

Se sange sange mate theli dela ... chiiiiiiiiiiii... ye kana kalu ... mu upare muti delu na kana ...ye sabu kana atha atha hoi lagichi...

Mu taku bujhai deli ye sabu mo BANDA ru baharichi...

ta pare mo gamucha aani ta BIA aau janga pochi deli ...

Eti ki bele mo bhagya kharap .. puni mo bhauni aasi gala o aauja hoi thiba kabata kholi sidha rooom bhitaraku aasigala. Sete bele Pratima ra mu BIA pochu thili aau mo banda ta pant padare jhulu thila.

Se sidha pakhaku aasi thia hoi gala aau sabu dekhi dela...

Pratima dhad kari uthi padila aau panty ta pindhi dela aau Frock thik kala....

Simi kintu kichi na kahi ragiki taku chahun thila . mu gote kana re chup kari munda poti chida hoi thila...

Pratima Frok pindhila pare Simi hi ta pacha chain ti dei dela aau di jana jaka bahara ku chali gale...

Kintu Pratima , mo bhauni Simi ku bujhai dela aau se kaha ku kahilani...

pare bahuta thara mu Pratima saha aama chata upare , mo room re karichi sei khara chutire..

Simi thai madhya.. bhitaraku aasini..

Pare Pratima tharu jani baku paili je Simi, Pratimara bhai Raju saha sex karuchi...

Kintu Raju e paryanta janini je mu ta bhauni Pratima saha sex karuchi...

Emiti aama ra sex 2yr paryanta chalila. Ta pare aame BBSR aasi galu...
3 dina pare tanaka jeje bapa nka shradha ku aame samaste galu , Ghara ku jau jau Bou jai

Rosei re khudi nku sahajya kale aau bapa shardha haba jagare kakanka saha basi le. mu chup

kina jai Rina ku mo plane bisayare kahi deli.

Kichi samaya pare Rina khudi nku kahila - Bou mu jai tike sanga mananku daki dei aasuchi

shradha bhoji khai ba pai. kahi se gote top aau scot pindhi gharu bahari gala.

Mu b bou ku kahili. ethi bore laguchi aau mu ghara ku jauch Shradha sarile mate phone kari

debu je mu aasi jibi khai ba pai.

Ta pare mu b gharu bahari gali aau 2 janna jaka aama ghara ku chali galu.

Ghare chabi kholi bhitare pasi kabata banda kari deli aau Rina ku kundhe dhari kiss kari

baku lagili.

Rina kahila - Bhai ethi nai mate laja laguchi, to room ku jiba chale.

Mu sange sange Rina ku 2 hata re teki dhari mo room ku chalili. dhari la bele mo hata ti ta

scot bhitare pasi ta langala jangha re baju thae. Rina je laja re aakhi banda kari thae.
Taku sidaha nei mo khata upare basai deli aau mu tale ta janghare hata dei basi taku

dekhili. se lajare muha talaku kari thae , kintu mana re kamna basana re jalu thae.

Mu taku pacharili , aarambharu sabu kichi kariba na sedina joutha re chadi thile seithu

aarambha kariba.

se kichi na kahi hasi dela.

Mu dekhili, e khela re e pura nua. Tenu taku garama nakari kale hebani.

Tenu mu thhia hoi taku bhidi dharili aau ta otha ku kiss karibaku lagili. Aaji ghare kehi

nahanti , tenu dara aadau nai . Se b mate bhala bhabe kiss kala.

Ta pare mu khata upare basi taku mo goda upare basai deli aau ta top teki bhitare hata mari

ta DUDHA 2 taku di hata re dharili. se sihari uthila , aau majhi re majhi re ta chota chota

mundi di taku manthi deu thae se sihari uthu thae o mu ta gala ku kiss kari deu thae.

Ta pare taku mo pata ku bulai basai deli. se mo janga upare ta di goda ku mo anta re gudai ,

hata ku mo bekare gudai basila. Mo ta golapi otha di taku chumil , ta gala ku chumili. ta

pare ta top ta ku upara ku tani bahara kari deli . se bhita re gote banyan type material ra

semiz pindhi thila . Lajare ta di hata ku nei ta DUDHA di ta ku ghodai baku chesta karila.

mu ta semiz ku upara ku deki ta dudha di ta ku khaibaku lagili. Gote khaila bele anya kuku

chipu thae aau mundi ku manthu thae.

se uttejana re mate bhidi dhari thai aau dire dire kahu thae.....


Bhai aau karena , sahi hauni plssssssssssssssssssssssssssss.... bhai ohhhhhhh kana karuchu

rahi hauni bhaiiiiiiiiiiii...ohhhhhhhhhh

Tara epari katha suni mo uttejana di guana badhi gala aau mo banda pant bhita re fann fann

hau thae..


Taku mo jangha upare basi la bele ta di goda fadi hoi mo anta re gudai rakhi thila aau ta

scot ta jangha upara ku teki hoi thila.

Mu taku left hand re bhidi dhari li aau right hand ta di jangha majhire mari ta BIA ku panty

upare aandalili. Ta BIA ru pani bhari ta panty oda hoi jai thae. Mu hata maru maru se pura

sihari uthi mate bhidi dharila. Mu bujhi gali ebe Rina pura garam hoi galani.

Aau deri nakari taku khata upare soi deli aau ta scot ku tani bahara kari deli se ebe white

semiz aau black panty re thila aau aakhi band kari chiti hoi soi thila.

Ta semiz ku tani bahara kari deli aau ta padathu jangha ku kiss kari bare lagili , ta oda

panty upare ta bia ku kiss kali . aau ta BIA ghandha ku mana bhari sunghili.. ohh ki abhadra

gandha aau ki mazza se gandhare .

ta pare ta panty ku tani bahara kari deli aau ta BIA upare hate dei ta BIA ku dhire dhire

aaunsili . narama narama bala mote pagala kari deu thae. Gora gore jangha sandire golapi

BIA. Ta BIA ku meli dei anguthi marili. Se jangha di taku jaki dela aau mo chuti dhari ta

BIA pakhaku tani dela. Mo chumbana re sihari uthu thae se..

Aau deri na kari mo T-shirt aau pant kadhi deli, BANDA Ku kadhi taku dharai deli. mu tale

thia hoi taku BANDA dharaili, se aakhi band kari mo banda ku dharila. ta pare taku halai

baku kahibaru dhire dhire halaila, se halaiba time re mu ta DUDHA KU chipu thae. ta pare

BANDA ku ta pati pakhaku neli kintu se muha aadei dela, kiss dabaku kahibaru han nai kari

gote kiss dela. Nua nua tenu mu taku badhya kalinai BANDA khaibaku.

Mane mane bhabili thare BANDA pela khaile tapare bale bale mo BANDA KU khaiba.

Ta pare ta di jangha ku meli dei mu mo position neigale aau mo BANDA KU ta BIA re lagai dei

ta upare jhunki padili.

se pura sihari hoi kahuthae...

Bhaaaaaaaaaaaaaai....... e kana karuchuuuuuuuuuu.. ohhhhhhhhhh. pls bhai ........ chaadi

deeeeeeeeeeeeee.....

Bhai aau sahi hauni.............. ohhhhhhhhhh kichi kare bhai ........... deha kana hoi

jauchi....... ohhhhhhhhhhhhhhhhhh...


mu ta pare mo BANDA KU aaste press kali . tike bhitaraku jaichi ki nai se hatat pati kala .

.. AAAAAAAAAAAAAAAa bhai katuchi................ ohhhhhhhhhhhh kadhi deeee........


mu ataki gali . ta kapalaku kiss kali bala ku aaunsili . Kahili - tike kasta haba pls tike

sahi ja ta pare jo maza lagiba tu aape aape janibu... ta dudha ku puni khaile aau mundi ku

manthili. kintu BANDA ti semiti ta BIA re lagi ki thae...

Ta pare hatat gote dhakka deli aau BANDA ti pura adha pasi gala aau se ta anta uthai jorr re

chitkar kala ... mu rahi gale aau puuni gela karibaku lagili.

Ta aakhiru luha bhari padila... kintu kichi time gala pare .. mu dhire dhire anta ku halaili

.ta ku b maza aasila aau se b anta halai mo BANDA ku respond dela.

Mu pacharili ... Rina ...

Rina - ummm...

Mu -  kimiti laguchi.... aau katuchi..????

Rina - Na bhai maza laguchi... ohh , kare bhai , aau tike jorr re kare... ohhhhhhhh

Mu ta pare dana dan mada dei chalili se goda di ta ku mo anta chari pakhe gudai dei maza

neuthae... mu peli chali thaee.

E bhita re tara BIA pani chadi dela aau se niste ja hoi gala.

ta pare mu jor jor dhakka dei chali li aau mo baharibara time aasila...

sange sange mu mo BANDA Ku padaku bahara kari ta peta upare sabu Birjya bahara kari deli .

Ete jora re pichkari mari baharila je kichi ta muha re aau DUDHA re aau baku sabu ta peta

uapre padigala aau mu ta side re gadi padili.


First time se Birjya dekhi baru tike asuku hela. Kahila , Bhai... e kana kalu mu muha mo

deha upare kana atha aatha sabu pakai delu ... chiiiiiiiiiii

Mu ta pare taku sabu bujhai deli aau mo gamucha re pochi deli. aau taku jabudi dhari soi

padili..

Di jana jaka pura halia hoi soi padilu. sete bele bou ra ph. aasila.. Shradha sari galani

jaldi aase .. aau Rina kouthe aaschi aasila belaku daki aane. mu sange sange Rina ku uthai bath room nei safa kari deli ta pare pant shirt pindhi bahari padilu suna pila pari... Ta pare je be subidha hue mu taku karu thili aau se e bhitare BANDA Khaiba b sikhi dela. Jebe karibaku subidha natha e se mo BANDA chapi mate khusi kari dau thae
  Mo final exam sari mu gharku jai thili. se the bele se 10 th padhu thila aaur tara exam b sari jaithila. Aau nua nua jaubana ta dehare kheli uthu thila. Bahuta sundara dekha jauthila. Tennis Ball pari dudha 2ta hoi jai thila. Pila bela ra figure thu bahuta change jana padu thila. Mu ta bahare rahu thili, tenu ta dehare choto choto change bhala bhabe parakhi paru thili. Jete bele b se mo pakhaku aasu thila , sabu bela pari mate lagi basu thila aaur semiti baluri nka pari katha hauthila. Se mo pake base katha hela bele mate ta dehara sparsha bahuta maza lagu thila aau bele bele mo ta kandhare hata pakai basu thli aau se katha heba samayare mu tara jaubana ra maza neu thili. Mane mane sujog khoju thili kebe ye toki ko langala kari gehinbi.

Dine Kaka khudi nka saha se aama gharaku aasi thile tanka ghare Tanaka bapa(mo kaka nka Bapa je ki mo jeje bapa nka bhai) shradha pai dakibaku. Rina ghara ku aasu aasu mo saha pilanka pari lagila, tara gote pila belu abhyasa thila je mo thia hoi thiba samayare mo pacha patu dhire aasi mate kutu kutu kari daudi jiba. Mate b kehi kutu kutu kale mu chamaki pade sahi pareni. Sedina b simiti mu thia hoichi se pacha patu aasi kutu kutu kari daudi gala. Mu b ta pachare daudi li taku kutu kutu kari baku . Se daudi jai bed room bhitare pasi gala. Mu b
daudi jai taku pacha patu bhidi dharili aau tana tani re mu khata upare basi padili aau se mo goda upare thik mo BANDA upare basi padila.

MO BANDA ti thik ta 2 picha sandhi re genji hoi rahila.
Tike samaya pare jete bele ta dhyana aasile se uthibaku chesta kala. kintu mu taku ta peta upare dahana hatare bhidi dhari thili aau mo BANDA ti pura tengei ki thila. Se chat pata heba samayare mmo BANDA ti ta GANDI re ghasi hauthila.

Mu aau control kari parilini aau pacha patu ta kandha upare beka pakhare kiss te dei deli.

Ta deha sitei gala, mu dhire dhire ta peta ku jabudi dhari mo aada ku tanu thili aau ta GANDI ta dhire dhire mo BANDA re ghasi hau thila. se b aau halchal nahoi dhire basila aau mu ta baka ku aau 2 ta kiss dei deli. se samayare se muha bulai dabaru ta galati mo otha pakha ku aasila aau ta galare b gote kiss dei deli. Ta pare taku chadi deli, karana samasete hall re thai katha hau thile. Rina kanare dhire kahili upare mo room ku aasi baku aau mu mo room ku chali gali. Kichi samaya pare Rina mo room ku aasi mo aagare munda poti chida hela. Mu ta hataku tani mo goda upare basai deli. Aau setebela pari taku kissl kali aau mo tengai hoi thiba BANDA ku ta gandi re ghasili.

Se time re se achank se kahila , bhai ye thik nai, emiti karani.

Mu ta kandha upare hata rakhili aau kahili , bhul haba jebe kaha ku aama katha jana padiba aau tu ki mu kehi b ye bisaya kahaku kahibani. Tu jama darena kichi habani, aau maza ne.

Eti ki kahiba samayare mu mo BANDA ku ta gandi re ghasu thili aau ta petare hata bulau thili.
Se gote top aau kapri pindhi thila. ta top ku tike upara ku teki ta petare hata bulau thili.
aau se aakhi band kari dei thila.
Tike samaya pare taku kahili- Aau tike adhika maza neba ?
Se kichi kahilani.
Mu kahil - Rinu, mo aagare laja kana karuchu, kaha aau kichi adhika maza karibaki ?
Rinu kahila - Na Bhai , kehi aasi jiba.
Mu kahili - tu chinta karani , mu emiti kichi karibini , jo thire ki dhara padiba. Tu bas mu jaha kahuchi semiti kare.
Ta pare taku mo samna re thia kari deli aau ta pant ku talaku tani khasai deli. Se Black color ra Panty pindhi thila.
Mu b thia hoi padili aau mo pant aau chadi ku aanthu jae khasai deli. Mo BANDA ku nei ta panty upare di janga sandhi re purai BIA upare ragadili. se mate jor re bhidi dharila, aau mo chati re muha gunji dela. Mu ta di gala ku dhari ta otha ku kiss karili. se b mate support kala. kintu ete bhala kiss kari paru nathila. Ta pare taku bulai ta pacha patu bhidi dhari li. mo BANDA ti ta gandi re pasi rahila. aau mu ta top ku dhire deki deli se bhitare semiz pindhi thila ta ku b teki deli aau tara tennis ball pari dudha di taku aaste kina dharili.

Ohhhhhhh ki maza . pura tana tana dudha dita , taku tala patu dhari dihire dhire chipili aau ta muga dana bhali mundi di ta ku aangu thire aaunsi li . Se pura thari gala aau ta dahana hataku pacha pata bulai mo beka ku bhidi dharila.

Mu ta dahana hata ku tani nehi mo BANDA upare thoi deli. 1st ta laja kala dhari lani. kintu jabardasti nei rakhi baru dharila. Ohhhhhh ki maza. mo BANDA fati gala pari lagu thila.

Ta pare mu ta panty ku hatat pacha patu tala ku tani deli . Se bhabi parilani kana hela , aau mu mo hata ti ta BIA upare rakhi deli. se chamaki padila aau ta dehare siharana kheli gala. BIA re tara chota chota narama bala uthi thila aau se bala ku aaunsu aausu mu ta bia re aangu thi marili. Se laja re aakhi banda kari maza neu thla , ta BIA pura lalei ki thila aau se pura masti aau uttejana re ohh aahhha karu thila.

Mu pacha patu ta GANDI re mo banda aau left hand re ta DUDHA aau right hand re ta BIA ku dhari thili . Ohh ki mazaa aausu thila aau kuhani. Mu aau besi aaga ku badhi baku chahni lini. MO BANDA ku ta GANDI re jor jor re ghasili aau ta BIA ku aangu thi re .. tA BIA ru bahuta pani baharila aau se mata jorr re bhidi dhari ta left hand re mo BIA bhitare thiba dahana hata ku jor re bhidi dharila aau nidhala hoi mate aauji gala. Mu janili ta ra discharge hoi gala, se khusira charama sima re pahanchi gala.

Mu aau aagaku badhilini, karana ghare samaste achanti , taneu mu taku chadi deli aau se ta pant pindhila aau mate bhidi dhari gode kiss dei tala ku chali gala. Gala bele mu pacharili , kimiti lagila ? se hasi dei chali gala.

Tapare mu bath room jai mo BANDA ku halai bahara kari deli . Ohhhhh bahuta santi lagila aau dhua dhoi hoi talaku aasi gali.

Ebe next kebe taku pura Gehinbi , se aapekhya re rahili....

गलती की सज़ा में मज़ा (Galti Ki Saja Me Maza)

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मेरा नाम पूजा है।
कुछ दिनों पहले ही मैंने Bhauja डॉट कॉम के बारे में सुना और कुछ कहानियाँ पढ़ी भी !
मैं भी आपके साथ मेरा साथ कई सालों पहले घटी एक घटना के बारे में बताना चाहती हूँ।
यह एक सच्ची घटना है जिसमें मेरी एक गलती के कारण मेरी जिंदगी ही बदल गई।
उस दिन मुझे पता चला कि अनचाहा सेक्स क्या होता है, कैसे आपके अपने रिश्तेदार आपके जिस्म से खेलते हैं।
उस दिन मुझे मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार से यह गहरा लेकिन यादगार आनन्ददायक जख्म मिला।
मैं अब आपको इस बारे में पूरी बात बताती हूँ।

मैं राजस्थान के एक जिले की रहने वाली हूँ। मैं एक पतिव्रता औरत हूँ, मेरा कभी किसी और मर्द के साथ कोई चक्कर या सम्बन्ध नहीं रहा।
घर वालों ने 18 साल की उम्र में ही मेरी शादी करवा दी थी।
मेरे घर में पति, सास-ससुर, देवर और दो बच्चे हैं।
मेरी ननद की शादी हो चुकी है और उसे भी एक बच्चा है। ननद भी हमारे ही शहर में रहती है। ननदोई जी खुद का काम करते हैं।
एक बार मैंने अपनी बहन को खुद के जेवरों में से कुछ जेवर दे दिए थे और उनका नाम अपनी सास पर लगा दिया कि मैंने उनको दिए थे और उन्होंने खो दिए होंगे।
हमारे घर में इस बात का काफी बवाल रहा था पर समय के साथ बात आई गई हो गई थी।
पर पता नहीं कहाँ से, कैसे एक दिन ननदोई जी को यह बात पता लग गई कि मैंने वो जेवर अपनी बहन को दे दिए थे।
ननदोई जी ने यह बात मुझे बताई तो मैं डर गई क्योंकि अगर यह बात मेरे पति को या घर वालों की पता चल जाती तो वो तो मुझे घर से बाहर ही निकल देते।
मैंने उनसे गुहार लगाई कि वो यह बात किसी को न बतायें।
उन्होंने कहा- इस बात को छुपाने में मेरा क्या फायदा हो सकता है। मैंने कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है मगर मैं बाद में आपको जो चाहिए वो दे दूँगी।
इस पर वो मान गए और किसी को नहीं बताया।
इन बातों को कुछ महीने बीत गए और ननदोई जी ने किसी को नहीं बताया तो मैं थोड़ी निश्चिंत हो गई पर मन में डर तो लगा ही रहा।
इन्हीं दिनों हमारे रिश्तेदारी में एक शादी होनी थी और उसमें हम सभी को और ननद और ननदोई जी को भी जाना था।
शादी की खरीददारी के लिए सबने तय किया कि बाजार एक साथ चलेंगे।
रविवार का दिन जाने के लिए तय हुआ।
रविवार सुबह ननद का फोन आया कि ननदोई जी मार्किट नहीं जा सकेंगे, वो आराम करना चाहते हैं।
तो मेरे ससुर ने कहा- जंवाई जी यही यहाँ आकर आराम करें, तुम्हे छोड़ भी देंगे और घर और बच्चों की देखभाल भी हो जाएगी।
दोपहर 12 बजे के करीब वो आ गये और हम सब जाने को तैयार होने लगे।
इतने में ननदोई जी मेरे पास आए और कहा- आज तुम मार्किट नहीं जाओगी, बहाने से मना कर दो वरना मैं जेवर वाली बात सब को शाम को बता दूँगा।
मैं डर गई और सिरदर्द का बहाना बना कर घर पर ही रुक गई।
बच्चों को छोड़ कर सब दोपहर दो बजे तक मार्किट चले गए।
तीनों बच्चे हॉल में खेल रहे थे। मैं और ननदोई जी हॉल में सोफे पर बैठे थे।
ननदोई जी मेरे पास आकर बोले- तुम बगल वाले कमरे में जाकर मेरा इंतजार करो।
मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, मैं बगल वाले कमरे में जाकर उनका इंतजार करने लगी।
करीब दस मिनट बाद वो आये और कहने लगे- भाभी, आपने कहा था कि मुझे जो चाहिए वो आप मुझे देंगी।
मैंने कहा- हाँ कहा तो था, पर आपको क्या चाहिए?
मैंने डरते हुए पूछा और कहा- मेरे पास अभी तो कुछ नहीं है।
ननदोई जी- आपके पास तो देने के लिए बहुत कुछ है।
मैं- मेरे पास क्या है? मैं समझी नहीं !
हालाँकि मैं समझ गई थी कि वो क्या चाहते हैं पर मैंने टालने के लिए ऐसा कह दिया।
ननदोई जी- मुझे आप चाहिएँ !
मैं- क्या मतलब?
ननदोई जी- मतलब यह कि इस बेड पर मैं आपके साथ सोना चाहता हूँ।
मैं बुरी तरह से डर गई और रोते हुए उनसे कहा- ऐसा मत करो, किसी को पता चला तो मेरा क्या होगा !
ननदोई जी- किसी को पता नहीं चलेगा। जब जेवर वाली बात किसी को पता नहीं चली तो यह कैसे पता चलेगी?
पर मैं मानने को तैयार ही नहीं थी।
काफी देर तक मनाने के बाद भी जब मैं उनके साथ सेक्स के लिए राजी नहीं हुई तो उन्होंने मुझे बेड पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
ननदोई जी- अगर चिल्लाने की कोशिश की तो अब सबको पता लग जायेगा और सारी बात खुल जाएगी।
मेरे बच्चे बगल में हॉल में खेल रहे थे, इस कारण मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी, बस चुपचाप उनका निर्जीव सा विरोध कर रही थी क्योंकि मैं जानतैइ थी कि मेरी करनी मेरे सामने आ रही है, आज तो मुझे ननदोई जी के नीचे आना ही है।
मैं अपने हाथ पैर चला कर उन्हें मुझ से दूर करने की कोशिश करने लगी।
मैं जानती थी कि ये सब बेकार ही जायेगा क्योंकि ननदोई जी एक ताकतवर मर्द हैं, मेरी ननद रानी पहले ही उनकी ताकत के किस्से मुझे सुना चुकी थी।
मुझे सोच कर रोमांच भी हो रहा था कि पता नहीं इतना बांका मर्द मुझे कित्ना मज़ा देगा चोद कर ! मानसिक रूप से मैं चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी पर विरोध तो जारी था।
ननदोई जी एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को ऊपर कर दिया।
साड़ी को ऊपर करके उन्होंने मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया। पैंटी को नीचे सरकते ही उन्होंने अपना एक पांव उस पैंटी पर रख कर उसे नीचे करने लगे। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरे पैर मारने से उनका यह काम आसान हो गया और मेरी पैंटी नीचे हो गई और मेरे एक पैर से निकल गई।
अब मेरे दोनों पैर आजाद हो गए और ननदोई जी का काम मेरी गलती से आसान हो गया।
मैं अब भी खुद को बचने की पूरी कोशिश कर रही थी।
मैं अब थक चुकी थी पर कोशिश कर रही थी।
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड…
पैंटी के उतरते ही बिना समय गंवाए ननदोई जी मेरे ऊपर आकर मेरी टाँगों के बीच में लेट गए।
ननदोई जी फिर एक हाथ से मेरे दोनों हाथ पकड़े और दूसरे हाथ से अपनी पैंट और अंडरवियर उतारने लगे।
मैं डर गई और उनसे रोते हुए उनसे छोड़ने के लिए कहने लगी पर वो कहाँ मनाने वाले थे।
ननदोई जी- इस काम के लिए इतने दिन इंतजार किया और तुम कहती हो को छोड़ दूँ?
अब तक उनकी पैंट और अंडरवियर उतर चुकी थी। वो थोड़ा ऊपर उठ कर मेरी चूत पर अपने लौड़े से निशाना लगाना चाहते थे।
और निशाना लगा भी दिया।
उनका लंड मेरी चूत में थोड़ा सा घुस गया और मेरे मुख से एक हल्की से आह निकल गई।
ननदोई जी ने फिर दोनों हाथों से मेरे हाथ काबू में किये और मेरे सर को सीधा कर अपने होंठ मेरे होठों से लगा दिए और एक जोरदार प्रहार के साथ पूरा का पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।
मैं एक इंच ऊपर की ओर खिसक गई थी। दर्द से उभरी मेरी चीख मेरे मुख के अंदर ही दब गई।
मैं अब तक बुरी तरह से थक गई थी और मेरे में जरा भी शक्ति नहीं बची थी। मैं दर्द के मारे रो रही थी और ननदोई जी अपनी मनमानी कर रहे थे, वो मुझे लगातार चोदे जा रहे थे।
अब मैंने थकान के कारण विरोध करना बंद कर दिया और चुपचाप उनको मनमानी करने देने लगी क्योंकि अब कोई फायदा ही नहीं था मैं तो चुद गई थी।
ननदोई जी लगातार ऊपर नीचे हो रहे थे और विरोध न होता देख उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर मेरे उरोज निकाल लिए और उनको चूसने लगे।
मैं एक और सर कर उन्हें ये सब करने दे रही थी।
अब तो मुझे भी मजा आने लगा था। आखिर थी तो मैं भी एक औरत ही।
करीब दस मिनट बाद मुझे मेरी मंजिल मिलने लगी तो मैं खुद ननदोई जी से चिपकने लगी मेरे मुँह से आहें निकलने लगी और आखिर झड़ने से पहले मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं खुद ब खुद ननदोई जी से चिपक गई और उनमें समाने की कोशिश करने लगी।
मैं झड़ चुकी थी और मेरे अंदर बिल्कुल भी शक्ति नहीं बची थी।
ननदोई जी ने मुझे उल्टा कर घोड़ी बना दिया।
मैं चुपचाप घोड़ी बन गई। और उन्होंने वापस अपना लंड मेरी चूत में डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मैं बुरी तरह से थक और टूट चुकी थी पर ननदोई जी थे कि चोदे जा रहे थे।
कुछ देर बाद फिर मुझे सीधा कर लेटाया और चूत में लंड डाल कर सवार हो गए।
अब उनके झटके जोर से लग रहे थे।
मैं लगातार ऊपर नीचे हो रही थी, कमरे में फच फच की आवाजें गूंज रही थी।
मेरे चूचे बुरी तरह से हिल रहे थे और न चाहते हुए भी मेरे मुख से आनन्द पूरित सिसकारियाँ निकल रही थी।
ये सिसकारियाँ और आवाजें उन्हें जोश दे रही थी।
करीब 5 मिनट के बाद उनका वीर्य मेरी चूत में जाता हुआ महसूस हुआ और वो मेरे पर ही हांफ़ते हुए लेट गए।
वो और मैं पसीने से लथपथ थे।
दस मिनट बाद वो चुपचाप उठे और कपड़े पहने और कहा- देखो, चुदाई तो हुई ही, अगर तुम मेरी बात मान लेती तो तुम्हें जो मजा बाद में आया, वो शुरू से आता।
और इतना कह कर कमरे के बाहर चले गए।
मैंने कुछ नहीं कहा, अपने कपड़े ठीक किये और थकान होने पर वहीं लेट गई और सोचने लगी- ननदोई जी सही कह रहे हैं कि मजा आता।
पता नहीं कब ही मुझे नींद आ गई।
नींद में ही मुझे मेरे पावों पर कुछ महसूस हुआ पर थकान में मुझे आराम दे रहा था। मैं लेटी ही रही पर थोड़ी देर में चूत में किसी की अंगुली महसूस हुई तो मैं जग गई।
देखा कि ननदोई जी मेरे बगल में पूरे नंगे होकर लेटे है और यह सब कर रहे हैं।
मेरे जागते ही मेरे होंटों को चूसने लगे और मेरे वक्ष के उभारों को दबाने लगे।
मुझे इसमें अब मजा आने लगा था।
मैंने कहा- बच्चे आ जायेंगे !
ननदोई जी ने कहा- वो तो सो गए हैं दूसरे कमरे में ! हम आराम से चुदाई के मजे लेंगे।
अब तो मैं भी उन्हें सहयोग कर रही थी। मेरे होंठ चूसते चूसते उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया और यही मेरी ब्रा के साथ भी किया।
मेरे स्तन अब नंगे होकर उनके सामने आ गए थे।
ननदोई जी- इनको मैं कबसे चूसना चाहता था। अब मौका लगा है।
मैं- जितना चाहे, उतना चूसो, ये अब तुम्हारे भी हैं।
ननदोई जी- और किसके हैं?
मैं- आपके भैया भी तो चूसते हैं।
ननदोई जी हंसने लगे और चुचूक को मुँह में लेकर चूसने लगे।
अब उन्होंने मेरे साड़ी और पेटीकोट को भी उतार दिया। पैंटी तो मैंने पहने ही नहीं थी सो मेरी चूत पूरी तरह से उनके सामने आ गई। मेरी चूत देखते ही वो पागल हो गए और चूत को चाटने लगे।
इससे में बुरी तरह से झन्ना गई, मेरे पति ने ऐसे कभी नहीं किया था।
मैं तो पागलों की तरह उनके सर को अपनी चूत पर दबा रही थी।
मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी।
थोड़ी देर बाद वो खुद मेरे ऊपर लेट मेरे जिस्म से खेलने लगे।
मुझे इसमें मजा आ रहा था और पता नहीं कब उन्होंने मेरी चूत में लंड डाल कर चुदाई चालू कर दी।
मेरी तो हालत ही पतली हो गई।
कुछ देर बाद वो उठे और बेड पर लेट गए मुझे लंड पर बैठने को कहा।
मैं चूत का निशाना लगा कर लंड पर बैठ गई। ऐसा लगा कि उनका लंड मेरी चूत में काफी अंदर चल गया।
ननदोई जी मुझे आगे पीछे कर रहे थे इसमें मुझे मजे आने लगे और मैं खुद ही ऐसा करने लगी।
दो मिनट में ही मेरी नसें अकड़ने लगी और मैं ननदोई जी पर पस्त हो कर लेट गई, मैं झड़ गई थी और ऐसे ही लेटी रही।
अब ननदोई जी ने मुझे बेड पर लेटाया और मेरी चूत में अपना लंड पेलते हुए मेरी चुदाई चालू कर दी।
वो जबरदस्त झटके मार रहे थे, मैं लगातार ऊपर नीचे खिसक रही थी।
मेरे बूब्स तो बुरी तरह से झूल रहे थे।
ननदोई जी की नज़रें भी मेरी चूचियों पर थी और उनको देख उनकी स्पीड और तेज हो जाती।
मेरी आँखें बंद हो गई मेरे मुख से आहें और सिसकारियाँ निकल कर कमरे में गूंज रही थी।
मेरे हाथ उनकी कमर पर फिर रहे थे और मैंने अपनी दोनों टांगें उनके कूल्हों पर लगा दी थी।
ननदोई जी मुझे चूमते, कभी मेरे दुग्ध-कलशों पर काटते पर मुझे इसमें बड़ा मजा आ रहा था।
कुछ देर बाद ननदोई जी ने मुझे घोड़ी बना दिया।
मैंने सोचा कि ऐसे ही चूत चोदेंगे पर उनके इरादे कुछ और थे, उन्होंने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख दिया।
मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले की उन्होंने लंड पर दबाव बना दिया, दर्द के मारे मैं तो आगे की ओर हुई पर ननदोई जी ने मेरी कमर को कस कर पकड़ रखा था।
दूसरी बार उन्होंने पूरा का पूरा लंड गांड के छेद में घुसा दिया। मेरे मुख से तो चीख ही निकल गई और दर्द के मारे मैं तो रोने लगी।
मैं- प्लीज मुझे चोदो ! पर ऐसे मत करो, मेरी तो गांड ही फट गई। मैं मर जाऊँगी !
ननदोई जी- कोई नहीं मरता गांड मरवाने से !
मैं- आप ऐसे ही आगे से चोद लो न।
मैंने रोते हुए कहा। यह कहानी आप Bhauja डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
ननदोई जी- थोड़ी देर में मजा आएगा, देखना !
और धक्के मारना चालू कर दिया।
वाकयी में थोड़ी देर बाद मेरा दर्द कम होने लगा और मुझे मजा आने लगा।
अब तो मैं भी गांड हिला हिला कर गांड मरवाने लगी।
5 मिनट में ही ननदोई जी ने मुझे बेड पर ऐसे ही लेटा दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरी गांड मारने लगे।
कुछ देर बाद ही ननदोई जी ने मेरी गांड में अपना वीर्य छोड़ कर उसे पूरा भर दिया।
ननदोई जी हाँफते हुए मेरे ऊपर ऐसे ही पसर गए और थकान के मारे हम सो गए।
करीब एक घंटे बाद मेरी आँख खुली तो पाया कि हम दोनों बिना कपड़ों के ऐसे ही पड़े हैं।
मैंने पहले अपने कपड़े पहने और ननदोई जी को जगाया कि कपड़े पहन लें !
पर वो तो न जाने किस मिट्टी के बने थे, वापस मुझे बेड पर खींच लिया और मेरे कपड़े उतारने लगे।
मैंने उन्हें इसके लिए मना किया और कहा- बच्चे उठ कर कभी भी आ सकते हैं, ऐसे में कपड़े कब पहनूँगी।
आखिरकार वो कपड़े पहने पहने ही सेक्स करने को राजी हो गए।
ननदोई जी ने तो फिर सीधे ही मेरी चूत में लंड डाल दिया और चालू हो गए और एक बार फिर मेरी जबरदस्त चुदाई की।
चुदाई के बाद जब बाथरूम देखा तो पाया कि मेरी चूत तो सूज कर लाल हो गई है और फूल गई है।
पर मुझे इसमें बड़ा मजा आया।

एक चोदोगे तो दो फ्री में मिलेंगी (Ek Chodoge To Do Free Me Milengi)

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संजना
हैलो दोस्तो, मैं आपकी दोस्त संजना, लुधियाना से एक बार फिर आपके लिए एक और कहानी लेकर आई हूँ। यह कहानी बिल्कुल सच है, पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं और थोड़ा बहुत मसाला डाला है, पर कहानी एकदम सच है, किसी ने मुझे बताई और मैं आपको अपने अंदाज़ में बता रही हूँ। तो मजा लीजिए….!

मेरा नाम शशि प्रकाश है, 28 साल का हैंडसम नौजवान हूँ, शादीशुदा हूँ, सुन्दर बीवी है,एक बच्चा है, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर हार्डवेयर का अपना काम है, मतलब किसी चीज़ की कमी नहीं।
मेरी लाइफ बहुत ऑर्गनाइज़्ड है, सुबह उठ कर जिम जाना, टाइम से हर काम करना, पूरे अनुशासन में रहना, अच्छी बॉडी है, मर्दानगी में कोई कमी नहीं, इसी लिए मेरी बहुत से लड़कियों से दोस्ती थी। बहुत सारी मुझसे शादी भी करना चाहती थीं, पर मैंने पसंद किया चाँदनी को।
वो मेरे घर के पास ही रहती थी, बिल्कुल मेरे टाइप की, खूबसूरत, गोरी-चिट्टी, भरी-पूरी। उससे पहले आँखों-आँखों में बात हुई, फिर मुलाकात, फिर प्रेम और फिर शादी।
हमारी शादी थी तो लव-मैरिज पर मेरे और उसके घर वालों ने अरेंज कर दी थी। लुधियाना में मैं अकेला रहता था। माँ-पिताजी सब गाँव में थे। चाँदनी के घर में सिर्फ़ उसकी छोटी बहन और एक विधवा माँ थे बस।
शादी से पहले मैंने चाँदनी के साथ कभी कोई ग़लत हरकत नहीं की क्योंकि मैंने सोच लिया था कि शादी इसी से करूँगा, हाँ चोदा-चादी के लिए और बहुत सी लड़कियाँ थी। चाँदनी को भी पता था कि मेरी इमेज ‘लवर-बॉय’ की है और बहुत सी लड़कियों के साथ मेरे संबंध थे, पर शादी से पहले ही मैंने सब खत्म कर दिए थे।
शादी धूमधाम से हो गई, अब ससुराल पड़ोस में ही थी, तो अक्सर वक़्त बे वक़्त आना-जाना लगा रहता था। कभी वो हमारे यहाँ तो कभी हम उनके वहाँ।
साली से खूब खुल्लम खुल्ला हँसी-मज़ाक़ होता था। धीरे-धीरे जब मैंने देखा कि वो बुरा नहीं मानती, तो बीवी से चोरी-छिपे उससे चुम्मा-चाटी शुरू हो गई, जो बढ़कर उसके मम्मे दबाने और चूतड़ सहलाने तक पहुँच गई। मैं चाहता तो था कि उसको भी चोद दूँ, पर जानबूझ कर पंगा नहीं ले रहा था। हाँ उसकी तरफ से मुझे पता था कि कोई इन्कार नहीं था। बातों बातों में मैंने उससे पूछ लिया था और उसने भी इशारे में समझा दिया कि अगर मैं आगे बढ़ूँ तो वो भी पीछे नहीं हटेगी, पर मैं आगे नहीं बढ़ा।
इसी तरह प्यार मोहब्बत में दो साल निकल गए। पंगा तब शुरू हुआ जब मेरी सास के भाई की मृत्यु हुई, तब मैं ही सब को लेकर जालंधर गया। सारे क्रियाकर्म के बाद वापिस आए तो मेरी सास का तो रो-रो कर बुरा हाल था। दोनों भाई-बहन में बहुत प्यार था।
वापिस आकर हम कुछ दिन अपनी सास के साथ ही रहे। एक दिन शाम को जब मैं अपने काम से वापिस लौटा तो कुछ देर के लिए अपनी सास के पास बैठ गया। उसने सफेद साड़ी पहन रखी थी, 44 साल की उम्र में आधे सफेद बालों के साथ भी वो ‘हॉट’ लग रही थीं। वो चुपचाप बेड पर बैठी थीं, मैं पास जा कर बैठ गया। चाँदनी बाजार गई थी और रोशनी (मेरी साली) किचन में मेरे लिए चाय बना रही थी। मैं पास जा कर बैठा तो सासू जी फिर से रोने लगीं।
मैंने उन्हें सहारा दे कर उनका सर अपने कंधे से लगाया और एक बाजू उनके गिर्द घुमा कर अपने आगोश में ले लिया। वो मेरे सीने से लग कर रोने लगीं और जब मैंने नीचे ध्यान दिया तो देखा कि उनकी साड़ी का पल्लू उनके सीने से हट गया था और उनके सफ़ेद ब्लाउज से उनका बड़ा सा क्लीवेज आगे दिख रहा था।
एक शानदार क्लीवेज जो दो खूबसूरत नर्म, गुदाज़,गोरे-गोरे मम्मों के मिलने से बना, मेरी तो आँखें वही गड़ी की गड़ी रह गईं।
मैंने खुद को थोड़ा सा एडजस्ट किया, अब सासू जी का बायाँ मम्मा मेरे सीने से लग रहा था। भगवान कसम मेरा मन कर रहा था कि पकड़ कर दबा दूँ पर क्या करता सास थीं !
मैं उन्हें चुप कराने के लिए उनके सर पर हाथ फेरता रहा, पर वो चुप ही नहीं हो रही थीं। मुझे भी लगा कि बुढ़िया कुछ ज़्यादा ही ड्रामा कर रही है क्योंकि उसके बदन की गर्मी अब मुझे चढ़ने लगी थी।
मैं चाहता था कि या तो ये बुढ़िया मुझसे अलग हो जाए, नहीं तो फिर मेरा कोई पता नहीं, कहीं मैं इसके साथ कोई कमीनी हरकत ना कर दूँ।
जब यह ड्रामा लंबा हो गया, तो मैंने टेस्ट करने की सोची और अपनी सास को सांत्वना देते हुए, उसके गाल को चूम लिया और ऐसे एक्ट किया कि जैसे मुझे उसके रोने की बड़ी चिंता है, पर असल में मैं तो टेस्ट कर रहा था कि बुढ़िया मुझे कितना बर्दाश्त करती है।
जब एक चुम्बन का उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मैंने उसका चेहरा ऊपर उठाया और प्यार जताते हुए एक और चुम्बन किया। यह चुम्बन गाल और होंठों के बीच में था। वो फिर भी रोती रही और मुझसे वैसे ही चिपकी रही।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरा लंड करवटें लेने लगा, फिर तो मैंने सब रिश्ते-नाते भूल कर सासू जी का मुँह ऊपर किया और उसके होंठों पर चुम्बन कर दिया। गाण्ड तो मेरी फटी पड़ी थी कि शशि बेटा अगर दाँव उल्टा पड़ गया तो बहुत महंगी पड़ेगी, पर सासू जी ने कोई विरोध नहीं किया। यह तो मेरे लिए हरी बती थी।
मैंने आव देखा ना ताव, दोबारा सासू जी का नीचे वाला होंठ अपने होंठों में ले लिया और चूसना शुरू कर दिया। उनका रोना बंद हो गया, पर वो वैसे ही निढाल सी हो कर मेरे सीने पर गिरी रहीं। मैंने उनके दोनों होंठ बारी-बारी से चूसे, उनके होंठों को अपनी जीभ से चाटा और अपनी जीभ उनके मुँह में डाल कर घुमाई।
उसकी तरफ से कोई विरोध ना देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने उसके होंठ चूसते-चूसते उसके मम्मे भी दबाने शुरू कर दिए। मेरी हैरानी की कोई सीमा ना रही, जब उसने भी अपनी जीभ से मेरी जीभ के साथ खेलना शुरू कर दिया। यह तो मेरे लिए दोहरा ग्रीन सिग्नल था। मैंने तो जल्दी-जल्दी उसके सारे बदन पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, कि क्या पता कल को बुढ़िया मुकर जाए, इसलिए आज ही सारी मलाई खा लो।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखा तो उसने मेरा लंड पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया। अब तो साफ़ था कि मैं अब अपनी बीवी की माँ भी चोद सकता हूँ।
इतने में किचन से रोशनी की आवाज़ आई- जीजाजी, चाय के साथ क्या खाओगे?
हम दोनों बिजली के झटके से अलग हुए, हम तो भूल ही गये थे कि रोशनी घर पर है। मैंने भी ज़ोर से कहा- कुछ भी ले आओ।
अब मेरी सास मुझसे नज़रें नहीं मिला रही थीं, पर मैं महसूस कर रहा था कि उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उसके बाद तो जैसे मुझे खुली छुट्टी ही मिल गई थी।
घर में बीवी चाँदनी, ससुराल में सास रजनी और साली रोशनी मेरे तो पौ बारह थे। जब भी जिस पर भी मौक़ा मिलता, मैं हाथ साफ़ कर लेता था, पर अभी तक कोई भी ऐसा मौक़ा नहीं मिला था कि मैं अपनी सास या साली को चोद पाता।
अब क्योंकि बात खुल चुकी थी सो अपनी सास और साली के मम्मे दबाना, उनकी गाण्ड पे लंड घिसना, उनके मम्मे चूसना और यहाँ तक कि दोनों को अपना लंड भी चुसवा चुका था, पर चोदने का मौक़ा नहीं मिल रहा था।
हालात ये थे कि हम तीनों तड़प रहे थे कि कब मौक़ा मिले और अपने दिल की आग बुझायें, पर घर पर सास, साली और बीवी तीनों एक-दूसरे के सामने तो ये सब नहीं कर सकते थे, सो समय यूं ही बीतता गया।
फिर मौक़ा ऐसा बना कि मेरी बीवी प्रेग्नेंट हो गई तो वो अपनी माँ के घर चली गई। मैं भी वहीं रहने लगा, बस कभी-कभार कोई सामान लेने या घर की साफ़-सफाई करने के लिए ही अपने घर जाता था।
एक दिन रविवार को मैंने अपनी बीवी से कहा- 3-4 दिन हो गए अपने घर की सफाई नहीं हुई है, मैं घर जाकर सफाई कर आता हूँ।
मेरी बात सुन कर मेरी सास बोली, “लो, अब तुम झाडू पोंछा करोगे ! मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ, तुम्हारी मदद कर दूँगी।”
भला मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता था, मैं तो इसे एक मौक़े की तरह देख रहा था। रोशनी अपने फ्रेंड्स के साथ पिक्चर देखने गई थी। चाँदनी को समझा कर हम दोनों मेरे घर आ गए।
घर में घुसते ही मैंने अपनी सास को पकड़ लिया !!
प्रेषिका : संजना
एक दिन रविवार को मैंने अपनी बीवी से कहा- 3-4 दिन हो गए अपने घर की सफाई नहीं हुई है, मैं घर जाकर सफाई कर आता हूँ।
मेरी बात सुन कर मेरी सास बोली, “लो, अब तुम झाडू पोंछा करोगे ! मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ, तुम्हारी मदद कर दूँगी।”
भला मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता था, मैं तो इसे एक मौक़े की तरह देख रहा था। रोशनी अपने फ्रेंड्स के साथ पिक्चर देखने गई थी। चाँदनी को समझा कर हम दोनों मेरे घर आ गए।
घर में घुसते ही मैंने अपनी सास को पकड़ लिया, “ओह रजनी, माई लव कब से तुम्हें पाने की चाहत थी, आई लव यू जान।”
“अरे, शशि, सब्र करो, पहले सफाई तो कर लें।”
“सफाई की माँ चुदाने, पहले अपनी सफाई कर लें, बाद में घर की देखेंगे !” कह कर मैंने अपनी सास को बेड पर पटक दिया और खुद उसके ऊपर जा गिरा।
उसने भी बिना देर किए मेरा चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और मेरे होंठ अपने होंठों में भींच लिए।
“मैं तो खुद कब से मरी जा रही थी, सिर्फ़ चूसने से दिल नहीं भरता, मुझे तुम अपने अंदर चाहिए… मुझे ज़्यादा मत तड़पाना प्लीज़…।”
मैंने भी बिना कोई वक़्त गंवाए, अपनी सास की साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा सब उतार कर उसे बिल्कुल नंगी कर दिया और खुद भी एकदम नंगा हो गया। उसने भी अपनी चूत शेव कर रखी थी, गोरी-चिट्टी चूत देख कर मैं रुक ना सका और उसकी चूत पर टूट पड़ा। उसकी चूत के दोनों होंठ मुँह में ले लिए और चूसने लगा और फिर चूत की फाँकें खोल कर उसके अंदर जीभ से चाटने लगा।
सासू जी तड़प उठीं और उसने भी मेरा लंड मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। अभी सिर्फ़ 2 मिनट ही हुए होंगे कि सासू जी ने तेज़-तेज़ कमर उचकानी शुरू कर दी और मेरे लंड को तो लगभग चबा ही डाला। जब वो एकदम से अकड़ गईं, तो मैं समझ गया कि इसका काम तो हो गया।
वो हाँफ रही थी, मैं सीधा हो कर उसके ऊपर लेट गया और अपनी जीभ से उसके होंठ चात कर बोला, “अब अपने ख़सम को अंदर ले ले।”
उसने मेरी जीभ को अपने दांतो से पकड़ लिए और मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पे रखा और बोली, “आ जाओ, मुझ में समा जाओ।”
मैंने ज़रा सा धक्का लगाया तो लंड उसकी चूत में ‘घुप्प’ से घुस गया। उसके बाद मैंने पूरी जान लगा दी। मैं ज़ोर-ज़ोर से ऊपर से पेल रहा था और वो नीचे से अपना योगदान कर रही थी। करीब 2-3 मिनट बाद ही उसने मेरे होंठों को अपने होंठों मे कस के पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी बांहों में भींच लिया। वो झड़ चुकी थी।
मैंने पूछा, “इतनी जल्दी ! अभी तो शुरू ही हुआ है?”
वो बोली, “5 साल बाद लंड देखने को मिला है, लेना तो दूर की बात है, जब से रोशनी के पापा का देहांत हुआ है, मैं तो तरसी पड़ी थी, तब से आज जाकर प्यास बुझी है।”
मैंने खुशी की मारे और ताक़त लगा कर उसे चोदना चालू रखा।
वो बोली, “शशि, मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे मुँह में आओ, ताकि तुम्हारा रस पी कर मैं अपनी प्यास बुझा सकूँ।”
“ओके !” मैंने कहा।
जब मुझे लगा कि मेरा भी होने वाला है, मैंने लंड उसकी चूत से निकाल कर उसके मुँह में दे दिया। उसकी चूत के पानी से मेरा लंड भीगा पड़ा था, पर उसने झट से लंड मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया और एक मिनट में ही मैं उसके मुँह में स्खलित हो गया।
ढेर सारा माल छूटा, उसका मुँह भर गया, पर वो सारा गटक गई और उसके बाद भी जो एक-दो बूँद टपकी, उसे भी चाट चाट कर खा गई।
सेक्स के बाद काफ़ी देर हम नंगे ही लेटे रहे। मैंने पूछा, “रजनी मेरे साथ सेक्स करने को तुमने कब सोचा?”
वो बोली, “जानते हो जब तुम आते-जाते मुझे नमस्ते बुलाते थे, मैं तब ही तुम्हें पसंद करती थी। तुम्हारी मसकुलर बॉडी मुझे बहुत सेक्सी लगती है, मैं तो हमेशा से ही तुम से सेक्स करना चाहती थी, पर तुम ने चाँदनी को पसंद किया, तब भी मेरे दिल में ये ख्याल था, कि एक दिन मैं तुम्हें ज़रूर अपना बनाऊँगी।”
“अरे वाह, तुम तो छुपी रुस्तम निकलीं !” मैंने कहा।
“हाँ बड़ी लंबी स्कीम लगा के बैठी थी, आई लव सेक्स, मैं भी अपनी ज़िंदगी को एन्जॉय करना चाहती हूँ, अब तुम मिल गये हो तो, अब तो मज़े ही मज़े हैं।”
उसके बाद हमने घर की सफाई की और बाद में नहा-धो कर वापिस अपने ससुराल वाले घर में आ गए। अब क्योंकि सास से बात खुल चुकी थी, बीवी की डिलीवरी होनी थी, तो सासूजी ने मेरी खूब गर्मी निकाली। जब भी इच्छा होती, दोनों आते और एक-दूसरे से जी भर के प्यार करते।
एक दिन वैसे ही मेरे दिल मे ख्याल आया कि इस घर तीन में से दो चूतें तो मैं चोद चुका हूँ, अगर तीसरी भी मिल जाए तो मज़ा आ जाए। यह सोच कर मैंने स्कीम लड़ानी शुरू की कि कैसे रोशनी की चुदाई कर सकूँ। उसके साथ खुल्ला मज़ाक़ तो कर लेता था, पर कभी सेक्स तक बात नहीं पहुँची थी।
सो मैंने जानबूझ कर उसके साथ बदतमीज़ियां बढ़ा दीं। कई बार तो ज़बरदस्ती उसकी कमीज़ में हाथ डाल कर उसके मम्मे दबा देने, उसके सामने नंगा हो कर दिखाना और उससे सेक्स करने की खुली इच्छा ज़ाहिर करना।
मेरी बातें उस अच्छी तो नहीं लगती थीं, पर उसने कभी मेरी इन बातों का सख़्त विरोध भी नहीं किया, जिससे मेरी हिम्मत बढ़ती गई।
जब मेरी बीवी की बड़े ऑपरेशन से डिलीवरी हो गई, तो वो तो 3 महीने के लिए बेड-रेस्ट पर थी। उसने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया, सो उसकी सारी देखभाल मेरी सास और साली ने की। भाग-दौड़ में मेरे भी 15-20 दिन निकल गए। बिना सेक्स के और रिश्तेदारों की वजह से मैं अपने घर जा कर सो जाता था।
एक दिन रविवार को मैं सुबह जिम से वापिस आया, तो बेड पर लेट कर मुझे सुस्ती सी आ गई और मैं फिर से सो गया। करीब साढ़े सात बजे रोशनी मंदिर से वापिस आई तो मेरे घर आ गई कि जीजू को चाय बना कर दे दूँ। जब वो आई तो मैं सो रहा था, उसने दरवाज़ा खटखटाया, मैं चड्डी में ही उठा और दरवाज़ा खोल कर फिर से बेड पर लेट गया।
मेरा लंड उस वक़्त पूरा तना हुआ था। मैं लेटा रहा तो रोशनी किचन में चली गई और चाय बना कर ले आई। जब उसने मुझे दोबारा जगाया तो मैंने आखें खोल कर देखा। वो बला की खूबसूरत लग रही थी, वो मेरे पास ही बेड पर बैठी थी। मैं उठ कर बैठा और उसके हाथ से चाय की प्याली लेकर साइड में रख दी और उसको बांहों से पकड़ कर उसे अपने पास खींचा और बोला, “रोशनी तुम बहुत सुन्दर लग रही हो, जी करता है तुम्हें कच्चा चबा जाऊँ।”
“हटो जीजू, सुबह-सुबह भगवान का नाम लेते हैं।”
तुम ही मेरी देवी हो, क्यों न आज तुम्हारी ही पूजा कर लूँ !”
“रहने दो, मम्मी ज़ी लोग जा रहे हैं, तैयार हो कर आ जाओ।”
वो उठ कर जाने लगी तो मैंने एकदम से उठ कर उसको पकड़ लिया और धक्का दे कर बेड पर गिरा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया।
“जीजू, ये क्या कर रहे हो आप?”
“जानेमन, अब और सब्र नहीं होता, 6 महीने हो गए सेक्स किए ! तेरी बहन तो पेट खुलवा कर पड़ी है, मैं कहाँ जाऊँ, मैं तो अब अपनी प्यास तुझसे ही बुझाऊँगा,” मैंने कहा।
“तो मैं क्या करूँ, मुझे छोड़ो।”
“अब तुम ही मेरी आग बुझा सकती हो, रोशनी।” ये कह कर मैंने उसके होंठ अपने होंठों मे ले लिए।
वो मेरा विरोध तो कर रही थी पर ये विरोध सिर्फ़ एक स्त्री-सुलभ दिखावा भर था। मैंने उसकी चुनरी उतार फेंकी, उसकी कुर्ती और ब्रा ऊपर उठा कर उसके मम्मे बाहर निकाल लिए। बिना उसे बोलने का कुछ मौक़ा दिए, मैंने उसके मम्मे चूसने शुरू कर दिए।
उसके दोनों हाथ मेरे सर पर थे। मम्मे चूसते-चूसते मैं नीचे उसके पेट, कमर और नाभि तक आ गया। वो मेरे नीचे लेटी तड़प रही थी। मैंने बिना कोई समय गंवाए, उसकी स्लेक्स उतार दी।
वाह ! एक कुँवारी, अच्छे से शेव की हुई चूत, मेरे सामने थी। यह कहानी आप भाउज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने झट से उसे मुँह में भर लिया और जीभ अंदर डाल कर चाटना शुरू कर दिया। उसके मुँह से मज़े की आवाज़ें निकल रही थीं। चूत चाटते-चाटते मैंने उसकी स्लेक्स और कपड़े उतार कर उसे बिल्कुल नंगी कर दिया। मैंने अपना अंडरवियर उतारा और उसके पेट पर आ बैठा।
“रोशनी, चूस अपने यार को !” मैंने कहा।
“नहीं, मैंने ऐसे कभी नहीं किया।”
“तो ट्राई तो कर !”
मेरे कहने पर उसने थोड़ा सा चूसा, पर पहली बार होने के कारण उसे कुछ खास मज़ा नहीं आया। मैंने बिना कोई देर किए, उसे अपने नीचे सैट किया और अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया। उसने भी अपनी टाँगें ऊपर उठा कर सहमति जताई।
मैंने जब अपना लंड घुसेड़ना चाहा तो उसे तक़लीफ़ हुई, पर ये तो मेरे मज़े की बात थी सो बिना उसकी तक़लीफ़ की परवाह किए मैंने लंड ठेल दिया और मेरा सुपारा उसकी चूत में घुस गया, मगर उसका दर्द से बुरा हाल था।
“जीजू, निकाल लो… प्लीज़ बड़ा दर्द हो रहा, बहुत बड़ा है ये तो !”
“डोन्ट-वरी, जान जब ये एक बार घुसना शुरू करता है तो फिर बाहर नहीं आता, घुसता ही जाता है।”
मैं ठेलता रहा, वो दर्द से तड़पती रही और मैंने अपना पूरा लंड उसकी चूत में घुसा दिया। मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं थी, एक तो कच्ची चूत फाड़ दी थी, दूसरी एक घर की सारी चूतें आज मैंने चोद दी थीं। उसके दर्द का कोई छोर नहीं था, एक तो पहली बार की चुदाई, ऊपर से मैं बॉडी बिल्डर।
खैर… वो दर्द से बिलबिलाती रही और मैं उसे चोदता रहा। 15-20 मिनट की चुदाई में उसकी “हाय-हाय” खत्म नहीं हुई और मैं मज़े से “आहा आहा” करता रहा। उसका हुआ कि नहीं मुझे पता नहीं, पर जब मैं उसके पेट पे झड़ा तो उसका पेट, छातियाँ और मुँह तक माल की पिचकारियाँ मार कर भर दिया।
मैं उसे चोदने के बाद नंगा ही लेट गया, वो उठ कर बाथरूम में चली गई। दोबारा फ्रेश हो कर वो बाहर आई और मेरा मुँह चूम कर वो बोली, “गंदे जीजू !”
और अपनी पूजा की थाली उठा कर वो घर को चली गई। मैं कितनी देर लेटा अपनी किस्मत पे इतराता रहा कि एक घर में तीन औरतें और तीनों मेरे लंड की दीवानी, तीनों को मैंने जी भर के चोदा।
अब अगली स्कीम क्या हो, क्या तीनों माँ बेटियाँ एक साथ…!!


रिश्तों की मर्यादा खण्डित हुई

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प्रेषक : आशीष सिंह राजपूत
अंतर वासना डॉट कॉम के सभी पाठकों को इलाहाबाद के आशीष का राम राम ! वैसे तो मैं व्यस्त रहता हूँ मगर जब कभी समय मिलता है तो अंतरवासना की कहानियाँ ज़रूर पढ़ता हूँ. अपने बारे में बता दूँ, मैं एक अच्छी पर्सनॅलिटी का बॉडी बिल्डर लुक वाला 38 साल का युवक हूँ, मुझे ऊपर वाले ने बचपन से ही औरतों की ब्लाउज़ और ब्रा का नाप लेने की अपार शक्ति दी है, किसी भी औरत से बात करता हूँ तो चोर नज़र से उसके ब्लाउज़ और ब्रा की नाप ज़रूर ले लेता हूँ।

मेरी बीवी मेरे से 4 साल छोटी है उम्र में और वो अपने भाई बहनों में सबसे छोटी है, उसकी सबसे बड़ी बहन साधना (बदला हुआ नाम) है, वो उम्र में मेरी बीवी से 12 साल बड़ी है, एक गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज की प्रिंसीपल है। साधना दीदी अपने उम्र के हिसाब से काफ़ी बनी संवरी लेडी है, करीब 5’6″ कद, गोरी रंगत वाली महिला है।
जबसे मेरी शादी हुई है, मैं जब भी उनके घर जाता था, आँखों आँखों से हमेशा उनके ब्लाउज़ और ब्रा का साइज़ लिया करता था, सच में अगर मैं दर्जी होता हो ना जाने मैं उनके कितने ब्लाउज़ सिल चुका होता ! इसका हिसाब लगाना मुश्किल है।
उनकी दैनिक दिनचर्या, सुबह जल्दी तैयार होकर कॉलेज जाने की आदत ने उनके इस 46 साल की उम्र में भी उन्हें बहुत ही आकर्षक और सेक्सी लुक प्रदान कर रखा है। मैं जब भी उनसे मिलता, वो बड़े ही स्नेह और प्यार से मुझे देखती थी मगर मैं ठीक इसका उल्टा उनको और उनके कपड़े के अंदर की औरत को देखता था।
एक दिन मैं किसी काम से उनके घर पहुँचा, वो बस थोड़ी देर पहले कॉलेज से आकर आराम कर रही थी, मैंने घण्टी बजाई तो घर में कोई ना होने की वजह से दरवाजा उन्होंने खुद खोला। मुझे देखते ही थकान भरे चेहरे पर मुस्कान लाकर मेरा स्वागत किया। वे मुझे ड्रॉईंग रूम में ले गई, वहाँ बैठ कर हम लोग बात करने लगे और समय समय पर मैं अपना ब्लाउज़ और ब्रा नापने वाला काम भी करने लगा।
मैंने पूछा- दीदी, आज कुछ थकी हुई लग रही हैं?
तो बोली- आज कॉलेज में बहुत भागम-भाग थी, सिर में हल्का दर्द हो रहा है।
तो मैंने कहा- अगर आप कहें तो मैं आपके सिर में थोड़ा तेल लगा दूँ?
उन्होंने थोड़ा संकोच किया मगर मेरे दोबारा कहने पर वो अंदर से नारीयल तेल का डिब्बा ले आई, मैं धीरे धीरे उनके सिर में तेल लगाने लगा। तेल लगते समय मेरे नाक में औरतों के जिस्म से आने गन्ध आने लगी जो मुझे थोड़ा बेचैन करने लगी।
मैंने बातों बातों में कहा- दीदी थोड़ा झुकिए, नहीं तो तेल से कपड़े खराब हो जाएँगे।
मेरे कहने पर वो थोड़ा झुक गई, मैं धीरे धीरे सिर से हाथ नीचे ले जाने लगा और गरदन तक मालिश करने लगा, उनकी आँख बंद करने का अंदाज़ बता रहा था उन्हें आराम मिल रहा था।
मैंने अपने अंदर के मर्द पूरी ज़बरदस्ती के साथ रोक रखा था क्यूँकि सोचने और कुछ करने में बहुत अंतर होता है। मैं बहुत कठिन समय से गुजर रहा था क्यूँकि मेरे अंडरवीयर के अंदर सख्ती महसूस हो रही थी। आख़िर मर्द होने का फ़र्ज़ अदा करना ही था, मैंने पीछे से उनके बदन से अपना बदन छुआ दिया ताकि मेरे अंग की सख्ती को वो महसूस कर सकें और साथ ही मालिश के दौरान मैं अपना हाथ उनके वक्ष तक ले जाने लगा और वो आँखें बंद करके मालिश का मज़ा ले रही थी।
मैंने बड़ी हिम्मत करके कहा- दीदी, अगर आप लेट जाएँ तो मैं आपके बदन को थोड़ा दबा दूँ, आपको काफ़ी आराम मिलेगा।
वो कुछ बोली नहीं मगर उठ कर बेडरूम की तरफ चल दी, मैं भी उनके पीछे पीछे बेडरूम में चल दिया। बेडरूम में आकर वो उल्टी लेट गई। मैं धीरे धीरे उनके बदन को दबाता रहा और झुक कर उनके जिस्म से उठने वाली गन्ध का आनन्द लेता रहा।
मैंने धीरे धीरे अपना हाथ उनकी पीठ से उरोजों की तरफ बढ़ाना शुरू किया उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा, मैंने अपना शर्ट यह कह कर उतार दिया कि गंदी हो जाएगी।
मेरे शर्ट उतरते ही उनकी नज़र मेरे बदन पर पड़ी जिसे देख उनके आँखों पर एक अजीब सी चमक आई और वो आँख फिर से बंद कर लेट गई। मैं धीरे से उनके बगल में कोहनी के बल लेट गया और धीरे धीरे अपने उंगलियों को उनके चेहरे पर और लबों पर फिराने लगा, वो आँख बंद करके सेक्स के अहसास का मजा ले रही थी।
मैंने धीरे से अपना घुटना उनकी जांघ पर रख दिया और साथ ही अपने और उनके बीच की दूरी को भी कम कर दिया, उनकी तरफ से आपत्ति नहीं होने से मेरे अंदर का मर्द बाहर आता जा रहा था, मैं अपना हाथ अब उनके बूब्स पर गोल गोल घुमा रहा था और मैंने बगल में लेटे हुए अपनी बेल्ट खोल कर जीन्स उतार ली मैं अब सिर्फ़ अंडरवीयर और बनियान में था। मैंने अपना 8 इंच लंबा और मोटा लण्ड बाहर निकाल कर धीरे से उनके हाथ में पकड़ा दिया।
लंड के आकार का एहसास होते ही उनके जिस्म में एक करेंट से लगा जिसका एहसास मुझे भी हुआ। मैंने धीरे धीरे करके उनके जिस्म से हर कपड़ा उतार दिया और अपनी दो उंगलियाँ उनकी योनि पर रगड़ने लगा। योनि के गीलेपान का एहसास बता रहा था कि वो पहले एक बार झड़ चुकी थी।
मैंने धीरे से उन्हें अपने सीने से लगाकर दोनों पैर के बीच में अपना पैर डाल के उनके पीठ और चूतड़ सहलाने लगा, वो चुप रह कर बिना बोले अब साथ दे रही थी, उन्होंने अपने औरत होने की ड्यूटी अदा किया और मेरी बनियान और अंडरवीयर को उतार दिया। मैं अपना लब उनके लबों से लगा कर अपनी जीभ को उनके मुँह में डाल कर घुमाने लगा।
थोड़ी देर में वो वैसे ही मेरे मुँह में अपनी जीभ से करने लगी। मुझे उस समय वो 46 साल की जगह 23 साल की लग रही थी। साधना दीदी की चूचियाँ जो अभी तक मेरी निगाहों के निशाने पर होती थी, वो आज मेरे सीने से दब कर जिंदगी का आनन्द दे रही थी।
मैंने दीदी से पूछा- दीदी, अगर आप कहें तो मैं आपके सरीर की मालिश कर दूँ?
दीदी जो इस समय स्वर्ग आनन्द ले रही थी, सिर हिला कर अनुमति दे दी, मैं रसोई में जाकर थोड़ा सा सरसों का तेल कटोरी में ले आया और उनके कंधे से मालिश करना शुरू किया और वक्ष पर आकर गोल गोल हाथ घुमाने लगा। दीदी अपने बूब्स की मालिश का आनन्द ले रही थी।
फिर मैंने दीदी के दोनों पैर अपने कंधे पर रख कर दोनों हाथों से उनकी जाँघ पर मालिश करने लगा।
दोस्तो, दीदी का गोरा जिस्म मुझे इस समय ताजमहल से भी सुंदर लग रहा था। मैंने दीदी से पूछा- दीदी, आपकी उम्र क्या है?
तो वो बोली- साली की कोई भी उम्र नहीं होती, वो तो बस साली होती है।
उनका यह जवाब सुनकर मुझे बहुत आनन्द मिला..
अंतर वासना डॉट कॉम के सभी पाठकों को मैं बताना चाहूँगा कि ‘औरत गर्मी में मटके में रखे पानी के समान होती है।’ बाहर जितनी गर्मी होती है अंदर उतनी ही शीतलता होती है जो मैं उनकी जवानी की गर्मी और प्यार की शीतलता को बखूबी महसूस कर रहा था। मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर पा रहा था इसलिए मैंने दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम दोनों औरत और मर्द के रिश्ते वाली क्रीड़ा को खेलना जारी रखें !
दीदी जो कब से इस पल का इंतज़ार कर रही थी, उन्होंने स्वीकृति दे दी, मैंने उनके दोनों पैर को अपने कंधे से हटा कर फ़ैला दिया और उनकी गीली चूत को अपने 8 इंच के लंड का स्पर्श कराया और उनकी चूत के दरवाजे पर धीरे से रग़ड़ दिया। मेरे लंड के चूत पर स्पर्श होते ही दीदी के जिस्म में एक नई सी उर्जा आ गई।
मैंने बिना समय गंवाए अपना आधा लंड उनके चूत में उतार दिया। लंड के चूत में प्रवेश करते ही दीदी ने चीख पड़ी।
मैंने उनके चेहरे पर दर्द के भाव देखे, मैं एकदम से अचंभे में आ गया क्यूँकि 46 साल की उमर में किसी औरत की चूत में इतना कसाव मेरे लिए ताज्जुब की बात थी, उनकी चूत के कसेपन ने यह बात जाहिर कर दी कि दीदी ने कई साल से सेक्स नहीं किया था।
उनकी चूत के कसाव ने मुझे पागल कर दिया, मैंने पास ही रखी कटोरी से थोड़ा तेल लेकर के दीदी की चूत पर लगा दिया। तेल ने उनकी चूत में आग लगा दी जिसकी वजह से दीदी की चूत में जलन और खुजली होने लगी, दीदी अपनी चूत को मेरे घुटने पर घिसने लगी, मैंने बिना समय गंवाए अपना आधा लंड फिर से दीदी की चूत में डाल दिया और अंदर बाहर करने लगा।
दीदी एक बार फिर से चूत और लंड के मिलन का आनन्द लेने लगी मगर मैं बेचैन था पूरा लंड अंदर डालने के लिए, दीदी अपनी चूत मेरे लंड से चुदवा रही थी, मैंने अचानक एक झटका देकर अपना पूरा का पूरा 8 इंच लण्ड दीदी की चूत में उतार दिया, दीदी दर्द के मारे छटपटा रही थी, मैं अपना लंड डाले हुए उनके जिस्म पर अपना जिस्म डाल कर लेट गया और उनके लब और जीभ को चूसने लगा। साथ ही उनके निप्पल को भी चूसता जा रहा था। थोड़ी देर में ही दीदी नॉर्मल हो गई।
तब मैंने धीरे धीरे उनकी चूत की असली चुदाई शुरु की। मैंने उन्हें काम कला की हर मुद्रा में पेला और दीदी ने जितना आनन्द मेरे से लिया उसका दुगुना आनन्द मुझे दिया, आख़िर वो समय आ ही गया जब एक मर्द औरत के आगोश में खो जाने को बेताब होता है, मैंने पूरी ताक़त लगा कर पूरी स्पीड में दीदी को पेलना शुरू किया, पूरा कमरा दीदी की आनन्द भरी सिसकारी और कराह से भरा भर गया। मैंने एक आख़िरी झटका चूत में मारा और फिर से उनके जिस्म पर ढेर हो गया। मेरे लंड के पानी से दीदी की चूत लबालब भर चुकी थी, हम दोनों पसीने से लथपथ होकर एक दूसरे से चिपके पड़े रहे, लंड का पानी दीदी के जाँघ से बह कर बेड शीट पर गिर रहा था।
हम दोनों काफ़ी देर तक उसी मुद्रा में पड़े रहे, दीदी मुझे बुरी तरह से चूम रही थी।
दोस्तो, मैंने अपनी पूरी जिन्दगी में इतना सुकून भरा सेक्स कभी नहीं किया था और जो शारीरिक सुख मुझे उस 46 साल की औरत ने दिया, वो सुख मेरी 34 साल की पत्नी ने नहीं दिया।
बातों बातों में मैंने दीदी से उनके चूत के कसाव की तारीफ की, तब उन्होंने बताया कि विगत 6 साल से उनके और उनके पति के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने है क्यूँकि उनके पति अपनी सेक्स की ताक़त खो चुके हैं और कहा- आशीष, तुमने मुझे आज वो दिया है जो मुझे अपनी जिन्दगी में आज तक नहीं मिला !
और उन्होंने स्वीकारा कि मेरे 8 इंच के लंड ने उनकी अंदर की औरत को झिंझोड़ कर रख दिया।
मैंने दीदी से पूछा- दीदी, आपने कभी मुँह में लंड लेकर चूसा है?
तो वो बोलीं- मुँह में तो कभी नहीं लिया मगर तुम्हारा लंड मुँह में ज़रूर लूँगी क्यूँकि मेरी कई सालों की प्यास को तुमने जिंदा कर के मेरी सेक्स की जरूरत को और प्रज्ज्वलित कर दिया है।
मैं उनके जिस्म पर से उठ कर बेड शीट से अपने लंड को पौंछने लगा तो दीदी ने मुझे रोक दिया और ‘अब इस लंड को साफ करने की ज़िम्मेदारी मेरी है !’ कह कर उठ कर मेरे दोनों पैरों के बीच बैठ गई और लंड को हाथ में लेकर आइस क्रीम की तरह चाटने लगी उनके होंठ और जीभ की गर्मी मेरे लंड पर पड़ते ही मेरा लंड एक बार फिर से बेचैनी के दौर से गुजरने लगा और अपनी आकृति में परिवर्तन लाने लगा।
जैसे जैसे मेरे लंड के आकर में परिवर्तन आता जा रहा था दीदी का जोश बढ़ता जा रहा था, थोड़ी देर पहले जिस लंड के चूत में जाने से चिल्ला उठी थी, अब वही 8 इंच का पूरा लंड अपने हलक तक पूरा उतार कर जिंदगी का आनन्द रही थी।
मेरे अंदर का मर्द फिर से जाग उठा, मैं उनके बालों को पकड़ कर उनके मुँह में पेलने लगा, दीदी बड़े आराम से अपने मुँह की चुदाई का मज़ा ले रही थी, इस समय वो एक सच्चे सेक्स साथी की तरह से अपने साथी की हर ज़रूरत को पूरा करने में कोई कोशिश नहीं छोड़ रही थी। लगभग दस मिनट तक मैं दीदी के मुँह में अपना लंड डाल कर उन्हें जन्नत की सैर करा रहा था, आख़िर में वो लम्हा आ ही गया जिसका इंतज़ार दीदी दस मिनट से कर रही थी, मैंने दीदी के मुँह में अपने लंड का रस निकाल दिया, दीदी बड़े स्वाद से मेरे लंड के जूस को गटक गई और फिर अपने बड़े और टाइट बूब्स मेरे सीने से लगा कर मेरे आगोश में आ गई।
हम दोनों थोड़ी देर तक एक दूसरे की बाहों में लिपट कर एक दूसरे को चूमते रहे फिर बेडरूम से अटॅच बाथरूम में एक दूसरे से लिपट के शावर में नहाते रहे, हम दोनों ने एक दूसरे को बॉडी शैम्पू से नहलाया फिर फ्रेश होकर ड्रॉईंग रूम में आ गए।
दीदी रसोई में जाकर दो कप कॉफी बना लाई और हम दोनों ने चुपचाप कॉफी पी, फिर मैंने दीदी से कहा- मैं अब चलूँगा !
दीदी ने मुस्करा कर मुझे जाने की अनुमति दे दी।
मैं जैसे ही दरवाजे के पास पहुँचा, दीदी ने मुझे आवाज़ दी- आशीष, रूको !
मैंने कहा- जी दीदी बोलिए?
दीदी ने कहा- आशीष, आज के बाद अकेले मिलने पर मुझे कभी दीदी ना कहना !
मैंने पूछा- तब मैं आप को क्या कहूँ?
दीदी ने कहा- मुझे सिर्फ़ साधना बोलना और मैं जब भी तुम्हें मिस करूँगी, तुम्हें कॉल करूँगी ! बिकॉज़ नाऊ आई लव यू आशीष !
मैंने कहा- साधना, आई विल रेस्पेक्ट यूअर फीलिंग्स एंड ऑल्वेज़ ट्राइ टू अंडरस्टॅंड यूअर फीलिंग्स एंड नीड !
मैंने साधना एक बार फिर से गले लगाया और उसके लबों पर किस करके बाहर आ गया और मुस्कराते हुए अपनी बुलेट को किक मार दी।

ସରୁ କହି ମୋଟା ବିଆ (saru kahi mota bia)

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Ama ghar pakha jane streeloka tankar age 38 bhali heba kali au moti bi se chheli palibaku bhari bhala paanti tanka chheli se sakalu sandhya jaee charanti gan pakha padia re mote jebe dekhanti se mo shaita bahut katha gapa maranti au mo thu se bahut jinisa neichanti mane pariba kebe au kebe tala au kebe tanku mu paisa bi deichi kintu tanku mu sabubele bhabuthae ei kali moti keebe hele gehi mor paisa asul karibi dinakar katha se chheli charathanti gan thu dura nichatia padiare mu hathat jhada jaithe se bheta hoigale au kahile kuade kharabele setebele baisakha masa jor khara se au mu nichata jaga mu kahili kichi nahi jhada asili ta se kahile heu sei gacha mula ku chal mo cheli ta ethi charchu mu khaili heu tume tike basa mu latin kari asijae tapare mu asili au tanka pakhe basili au tanka pakhe basili se kahile sun gote katha mor rakhibu jadi tahele mu tote bahut sahajya karibi mu khaili kan se kahile mote 100 tanka udhar debu mu kahili han tapare mu kahili gote sartare se kahila kan sarta mu kahili tuma bia tike mote chatibaku deba jadi tahele 100 tanka debi au ferasta nebini se kunthu munthu hele au kahile mu baha hoichi mor pilamane achhanti eha kan sambhab mu kahili bhala hoichi tuma bahahoicha suna kichi risk hele bi kichi dosa rahiba nahi tapare tumar ebe kan mens heuchi je tume darucha se kahile han kintu tike dara laguchi mu kahilie medicine deidebi byasta kahinki se raji hele au kahile ethi sabu dekhidebe mu kahili tebe ama firm house gharaku jiba chala au tanku dhari mu asili ama farma house gharaku ama farm house ghra gaon tu adhe km. dura heba nichatia jaga sethi pahanchila pare mu tanka cheli bi neiasithili sangare sethi badhidelu au dala patra pakaidelu se khaila au mu tanku farm house ghara bhitarku neigali setebelaku mu khusire bilkul atmahara hoijaithe tapare se kintu lajare talaku muha kari chida hoithanti mu tanku mo pakhaku tani nei kahili mo moti gihali ete laja kan aa aji to bia re mo banda ra bharta karibi se hasile kahile sun jaldi kar kiya asijiba mu khaili tala lagichi byasta nai tapare mu tanka saree kholili ete bada moti au kali maikina fapula balua bia dekhi mu khusire pagal hoigali gehi bi boli tanku chida kari tanka bia ku mu kukura pari chaku chaku kari adhaghanta jae chatili au gandi kana ku bi chatili se kahile tu bhari chatara ta jaldi chal gharaku mote bhoka lagilani mu kahili heu tume tike sua se soile jemti mo banda ku tanka patire bharti kali se prathame raji heunathila tapare se rajihele mu tanka patire purai purai mo banda rasa sabu tanka patire kadhideli se kahile chi mote aji tu pura asana karidelu mu ebe kan karibi banti laguchi mote mu kahili suna muha dhoidiba pani botal nei se pani botal nei muha dhoili kintu langala hoithanti ghara bhitare se kahile mu jauchi mu kahili suna mu ta gehiba arambha karini tume ete byasta au suna paisa debinahi se kahile heu ebe tor kan au uthiba mu kahili han tpare tanka bia ku jor jor chatibare lagili puni banda thia hoigala gote musal badi bhali tanku tale gadei dei mu mo banda ku tanka bia fadi bhus kina thelideli mo banda tanka pola falua bia re pura hajigala se kahilie to bhali duita toka mo biara garam bhangiparibeni tuta chara mu tapre ghante jae pach pach kari gehichalili kintu mo rasa baharu nathae tanku chida kari gehili se kahile sun toar au bahariba nahi mu jauchi mu kahile au tike ruha taprae mu soili se mo banda upare basi basi gehile pagili bhali pray kichi samaya pare mo banda rasa tanka bia bhitarku chaligal se kahile jauchi mo dhana mote chad mu chadideli se gale taprae bahut thare paisa dei gehich sei moti kali bia ku

रेखा भाभी की मायके में चुदाई

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रोनी सलूजा
मैं ऑफिस में बिल्कुल निठल्ला बैठा था, सामने मेरी असिस्टेंड लीना अपने रिकार्ड दुरुस्त कर रही थी, मैं उसके यौवन के अग्र उभारों का नजारा कर रहा था मेरा जानवर अंगड़ाई लेकर जागने लगा था !
अब तो लीना मेरे से बिल्कुल खुल गई थी यानि मैं भी उसका सब कुछ खोल चुका था, सोच रहा था कि कोई काम अभी है नहीं, बहुत दिनों से इसका मजा भी नहीं लिया, मैंने ऑफिस का बाहरी शीशे वाला दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया फिर उसे ऑफिस के अन्दर के दूसरे कमरे में ले जाकर उसकी जवानी का रस पीने के लिए उसे बुलाता, तभी साले का फोन आया !

‘जीजाजी नमस्ते, कैसे हो?’
मैं- ठीक हूँ, कैसे याद किया, रेखा भाभी कैसी हैं?
साला- जीजाजी, सब ठीक है, आपको एक कष्ट दे रहा हूँ, एक हफ्ते पहले मेरे साले विनोद की शादी में चलना था तो आप तो व्यस्तता के कारण हमारे साथ गए नहीं, फिर मैं रेखा और बेटे को लेकर चला गया था ! फिर बेटे की परीक्षा के कारण मैं आ गया था लेकिन रेखा को ससुराल वालों एवं आये हुए रिश्तेदारों के आग्रह पर वहीं छोड़ना पड़ा, अब मैं उसे लेने नहीं जा पा रहा हूँ ! अगर आप फ्री हों तो रेखा को लेने आप चले जाओ, तो मेरे साले विनोद और उसकी पत्नी को शादी की बधाई भी दे आना, वे आपको सभी बहुत याद कर रहे थे !
मैंने कहा- ठीक है, कल या परसों जैसे ही समय मिलेगा, मैं जाकर ले आऊँगा रेखा भाभी को !
अब मेरे दिल में रेखा से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी। लीना की चुदाई का ख्याल छोड़ दिया यह सोचकर कि घर की मुर्गी दाल बराबर, कौन सा भागी जा रही है।
लीना के बारे में अगली कहानी में जरुर लिखूँगा ! रेखा मेरी सलहज के बारे में वो सभी पाठक जानते होंगे जिन्होंने मेरी पूर्व प्रकाशित कहानी ‘नया मेहमान’ पढ़ी होगी, कहानी में कैसे मैंने उसे पटाया था, कैसे उसकी चुदाई की थी, फिर अचानक उसे जाना पड़ा और मेरी सारी रात चुदाई की तमन्ना अधूरी रह गई थी- नया मेहमान’ अगर नहीं पढ़ी तो जरुर पढ़ लें !
मुझे विश्वास तो नहीं पर उम्मीद जरूर थी कि शायद कोई मौका मिल जाये रेखा को चोदने का ! क्योंकि शादी वाला घर मेहमानों का
डेरा होता है फिर उसकी चुदाई के लिए अचूक सी योजना बनाने लगा !
बार बार सलहज के बारे में सोच कर उत्तेजित हो रहा था, उसकी चुदाई के बाद तो मुझे देख वो कुछ ज्यादा ही लजाने सी लगी थी उसकी चंचल हिरणी सी आँखें जैसे हरदम कुछ कहना चाहती थी, लेकिन अब कोई मौका नहीं मिल रहा था, मैं कोई रिस्क लेना नहीं चाहता था ! क्या मस्त माल है, कितनी गजब कशिश है उसमें, खास बात जो थी वो उसकी अदाएँ, जो मुझे उसका दीवाना बनाये हुए थी, उसका गेहुंआ रंग निखर कर खिल सा गया है, उसका जिस्म जैसे सांचे में ढला हो, चेहरा गोल, उस पर बड़ी बड़ी कजरारी आँखें, बेदाग गाल, जब हँसती तो गाल में गड्डे पढ़ जाते, संतरे की कलि से होंट रस से भरे, नाक में गोल नथ बड़ी सी, ऊपरी होंट पर काला तिल ! उस पर काली घनेरी जुल्फें अगर खोल ले तो जैसे घटा छा गई हो ऐसा लगे, जब चोटी बनाकर चलती तो मटकते नितम्बों पर बारी बारी से टकराती ! कद 5 फुट 3 इंच, फिगर 34-30-36 होगा, एक बच्चा होने के बाद भी उसके स्तन भरे हुए ठोस प्रतीत होते थे भरे और कसे हुए कठोर मौसंबी की तरह, लगता है हमारा साला इनका इस्तेमाल ही न करता हो ! पेट सपाट, कूल्हे चौड़े, उन पर पुष्ट मांसल गठे हुए नितंब, जो चलते समय ऐसे मटकते कि देखने वाला अपनी सुधबुध ही खो दे !
अगले दिन शाम को मैंने साले की ससुराल जाने का प्रोग्राम बनाया, साले के साले विनोद के लिए कुछ गिफ्ट और मिठाई पैक करवाए और अपनी छोटी क्लासिक जीप से निकल पड़ा। गाँव पहुँचने से पहले ही मैंने अपने अपने साले को बता दिया कि मैं रेखा को लेने निकल चुका हूँ, कुछ समय में पहुँच जाऊँगा, आप रेखा और उसके भाई विनोद को इत्तला दे दो ताकि वो लोग घर पर मिल जाएँ ! कुल सत्तर किलोमीटर की दूरी तय करके सूर्यास्त से पहले ही उनके गाँव पहुँच गया, गांव के बाहर ही सड़क से लगे विनोद के खेत थे जैसे ही वहाँ तक पहुँचा, दो महिलायें चारे का गट्ठा सिर पर रखे खेत से बाहर आ रही थी !
करीब गया तो रेखा और उसकी माँ को देख मैंने जीप रोक ली। रेखा ने शर्म से चारे का गट्ठा जमीन पर फेंक दिया। रेखा को गांव के लिबास में पहली बार देखा, पैरों में महावर लगा था, मोटी मोटी पायल, साड़ी घुटनों से थोड़ा नीचे, पिण्डलियों तक साड़ी का पल्ला फेंटा देकर कमर में कसा हुआ था, बिल्कुल नवयौवना सी, एकदम गांव की गोरी लग रही थी, बिल्कुल अल्हड़ बिंदास जैसे उसका बचपन लौट आया हो !
‘विनोद और नई बहू कहाँ हैं? मैंने पूछा।
तो रेखा मुस्कुराकर आँख मारते हुए बोली- वो घर पर हैं।
मैं समझ गया कि रेखा विनोद को अपनी पत्नी के साथ अकेले रहने के लिए पूरा मौका दे रही है क्योंकि रेखा के पिताजी का स्वर्गवास हो चुका है, उनके घर में रेखा के अलावा उसकी माँ और भाई ही हैं, मैंने उनके चारे के गट्ठे जीप में रख कर उन्हें बिठा कर उनके घर पहुँच गया !
विनोद और उसकी पत्नी सभी ने मेरी आवभगत की, मैंने उन्हें गिफ्ट और मिठाई का डिब्बा देते हुए शादी की बधाई देते हुए कहा कि रेखा को लिवाने आया हूँ, आप उसे मेरे साथ भेज दीजिए।
तो उन्होंने कहा- रात होने वाली है, आज तो आपको जाने नहीं देंगे, आप कल सुबह चले जाना !
सोच तो मेरी भी यही थी, तभी तो मैं शाम को आया था कि रात रुकने का मौका तो मिलेगा !
चाय नाश्ता देते हुए रेखा बोली- जीजाजी, रात में लाईट नहीं रहती, गाँव के मच्छर आज आपके मजे लेंगे !
वो बहुत उत्साहित थी, मैंने कहा- मैं भी तो तुम्हारे मजे लूँगा ! तुम याद रखना, रात में मेरे पास आना है।
बोली- मुझे तुम्हारे साथ जो आनन्द पिछली बार आया था, उसे मैं जिन्दगी भर भूल नहीं सकती। मेरी बातों से शायद वो उत्तेजित भी हो रही थी ! मेरा बहुत ध्यान रख रही थी तो जैसे मेरी हर जरूरत के लिए तत्पर थी ! गांव के बड़े से मकान में कुछ कर गुजरने के बहुत मौके थे, मैं निश्चिन्त हो गया, बहुत से लोग मिलने आये, बड़ा मजा आ रहा था !
खाना खाकर दस बजे तक गप्पे लड़ाते रहे, तभी लाईट चली गई जो सुबह पांच बजे आती है !
विनोद ने एक हालनुमा कमरे जिसमें बाथरूम भी था, में मेरा बिस्तर लगा दिया, बोला- मैं सोने जा रहा हूँ !
फिर वो ऊपर अपने शयनकक्ष में बहू के साथ चला गया। रेखा की मम्मी अन्दर के कमरे में जाते हुए रेखा से बोली- बेटी, जमाई को पानी रखकर तू भी आकर मेरे कमरे में सो जाना !
फिर रेखा ने मेरे लिए पानी लाकर रख दिया और लालटेन को अपने साथ कमरे में लेकर सोने चली गई !
मैं अँधेरे में करवटें बदलता रहा, फिर मेरी झपकी सी लग गई। अचानक मेरे गाल पर रेखा के होंठों ने दस्तक दी, वो मुझे चूमते हुए अपने एक हाथ को मेरे लोअर में घुसाकर मेरे लौड़े को सहलाने लगी !
मैंने पूछा- माँ सो गई क्या?
तो बोली- हाँ, अगर वो उठ भी जाएगी तो मैं बाथरूम गई थी, का बहाना बना लूँगी !
अब मैं निश्चिन्त हो गया, मैं अँधेरे में बड़ी मुश्किल से देख पाया कि रेखा ने मैक्सी पहनी है ! रेखा को मैंने अपने ऊपर खींच लिया फिर उसके जिस्म को सहलाना, मसलना शुरू कर दिया। उसने मेक्सी के नीचे पेंटी और ब्रा कुछ नहीं पहना था यानि पूरी तैयारी से आई थी !
मैंने उसकी ढीली ढाली मेक्सी गले से निकाल दी वो पूरी नंगी मेरे बदन से लिपट गई उसने मेरा लोअर, चड्डी-बनियान अपने हाथों से उतार दिया ! हम दोनों के नंगे जिस्म एक दूसरे में सामने के लिए बेकाबू हो रहे थे। रेखा के कड़क स्तन मेरी छाती में धंसे जा रहे थे उसके स्तन को पकड़कर दबाते हुए मैं निप्पल को अपने होंठों से दबाकर चूसने लगा, उसकी सांसें तेज हो गई, स्स्स्स करते हुए उसने मेरे सिर को अपने सीने में भींच लिया।
मेरा लंड पूरे उत्थान पर आ गया था जो अभी भी रेखा के हाथ में मसला जा रहा था। मैंने रेखा को 69 की पोजीशन में किया और
उसकी चिकनी उजली जांघों को सहलाने लगा जो अँधेरे मे भी चमक रही थी। आह्ह्ह… ओ… ह्ह्ह.. के स्वर मेरा उत्साहवर्धन कर रहे थे, उन्हें चूमते हुए उसकी पिंडलियों तक जीभ से भिगो दिया, फिर पिंडलियों से चूमते हुए गोल-गोल पुष्ट नितंबों तक आ गया। गांड के उभार कितने मस्त थे एकदम चौड़े चौड़े !
फिर उसकी टांगों को फैलाकर उसकी गीली हो चुकी योनि पर अपने होंठों को रख दिया, साबुन की महक से लगा कि उसने अभी योनि को धोया था। मैंने अपनी जीभ से उसकी फलकों को छेड़ दिया और अंगुली से उसके दाने को सहलाते हुए अंगुली उसकी चिकनी गीली बुर में घुसा दी।
उसकी किलकारी सी निकल गई- आईईइ… स्स्स स्स्स्स… जीजू… ओओह… अब मत तड़पाओ… डाल दो ना…
उसकी बुर से पानी निकलना शुरू हो गया था !
मैं उसे एक बार स्खलित करना चाहता था इसलिए अपने एक हाथ से उसकी गांड को सहलाते हुए बुर को चाटते चूमते उसके दाने को सहलाने लगा।
उसकी आवाजें ‘ओहूऊ… आऊऊ… स्स्स्स’ तेज होती जा रही थी, वो मेरे लंड को सहलाते हुए अपने होंठों में दबाकर चूसने लगी। मेरी अनुभूति को मैं बता नहीं सकता कितना आनन्द आ रहा था !
मैं भी तन्मयता से अपनी अंगुली से उसकी योनि की मस्त रगड़ाई करता रहा। तभी रेखा चरमोत्कर्ष प्राप्त कर गई, उसने अपनी टांगों को भींच लिया, तेज तेज सांसों को नियंत्रित करते हुए कह रही थी- आह्ह्ह्ह… हाँ… ओ… स्स्स्स.. बस… हो… गया बस… रुको… आह्ह मेरे लंड से बड़ी तेजी से अपना मुखचोदन करने लगी। जरा सी देर और हो जाती तो मेरा वीर्य से उसका मुँह भर जाता !
मैंने अपने लंड को उसके मुँह से निकाल लिया और उसके बराबर आकर लेट गया, वो मुझसे लिपट गई, बोली- जीजू, तुम्हारे साथ मिला यह आनन्द तुम्हारे साले साहब मुझे कभी नहीं देते, कुछ उन्हें भी सिखा दो !
मैंने कहा- उन्हें सिखा दूंगा तो तुम मुझे तो भूल ही जाओगी !
इसी लिपटाझपटी में मेरे लौड़े ने अपनी मंजिल को ढूंढ कर चूत के मुहाने पर दस्तक देना शुरू कर दिया। रेखा ने मेरे होंठों को अपने होंठों में दबाकर चूसते हुए एक हाथ से मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत में फंसा लिया फिर अपनी गांड को उचका उचका कर लंड को अन्दर और अन्दर करने लगी ! मैंने उसके दुग्ध कलश को सहलाते हुए उनका अमृतपान करते हुए लंड को पेलना शुरू कर दिया। लंड पूरा अन्दर तक बैठाकर जब बाहर निकालकर अन्दर पेलता तो उसकी चिकनी बुर की चिकनी दीवारों की रगड़ से मेरे सुपारा तो और भी फूल सा गया। हर झटके के साथ रेखा की मस्त आहें मेरे को भी मजा दे रही थी, वो तो बस हाँ… जीजू, …और जोरर्रर्र… से करो न
आह… फाड़ दो आज तो, कितने दिनों से मेरी बुर आँसू बहा रही है पर तुम्हारे साले साहब तो मुझे छोड़कर चले गए ! ओह्ह्ह… स्स्स्स…
पांच सात मिनट की धकापेल में हम दोनों सब कुछ भूलकर सम्भोग का अभूतपूर्व आनन्द उठाते रहे, दोनों पसीने से सराबोर हो गए ! रेखा तो नीचे से गांड को ऐसे उठाकर लंड पेलवा रही थी जैसे वो मेरे अंडकोष भी अपने अन्दर करवाना चाहती हो !
रोनी आह्ह्ह ! मेरी चूत को जन्नत का मजा दे दिया आपने ! आ आःह्ह… ओह्ह स्स्स्स !
इसी के साथ उसका बदन अकड़ने लगा, उसकी योनि से रसधारा निकल पड़ी ! योनि के संकुचन ने मेरे लंड को भी स्खलन की ओर अग्रसर कर दिया, मेरा वीर्य तेज धार के साथ उसकी बुर में भर गया, दोनों एक दूसरे को अपने आलिंगन में लेकर अपनी तूफानी सांसों को नियंत्रण करने की चेष्टा करने लगे !
पांच सात मिनट की धकापेल में हम दोनों सब कुछ भूलकर सम्भोग का अभूतपूर्व आनन्द उठाते रहे, दोनों पसीने से सराबोर हो गए ! रेखा तो नीचे से गांड को ऐसे उठाकर लंड पेलवा रही थी जैसे वो मेरे अंडकोष भी अपने अन्दर करवाना चाहती हो !
रोनी आह्ह्ह ! मेरी चूत को जन्नत का मजा दे दिया आपने ! आ आःह्ह… ओह्ह स्स्स्स !
इसी के साथ उसका बदन अकड़ने लगा, उसकी योनि से रसधारा निकल पड़ी ! योनि के संकुचन ने मेरे लंड को भी स्खलन की ओर अग्रसर कर दिया, मेरा वीर्य तेज धार के साथ उसकी बुर में भर गया, दोनों एक दूसरे को अपने आलिंगन में लेकर अपनी तूफानी सांसों को नियंत्रण करने की चेष्टा करने लगे !
फिर दोनों ने अपने को साफ किया और पलंग पर लेट गए उसके बाद फिर चूमा चाटी शुरू हो गई।
आधे घंटे बाद रेखा ने मेरे को लिटाकर मेरे लंड की बेहतरीन चुसाई की फिर मेरे कमर पर सवार होकर अपनी चूत में मेरे लंड को घुसाकर अपनों गांड को उठा उठाकर गपागप चुदवाई करने लगी।
मैंने भी उसके लटकते मचलते स्तनों का मर्दन करते हुए चूस चूस कर लाल कर दिए फिर दोनों के स्खलन के बाद पूर्ण संतुष्ट होकर रेखा अपने कमरे में जा कर सो गई !
रेखा ने सुबह आठ बजे मेरे को जगाया वो नहा धोकर तरोताजा हो चुकी थी, साड़ी ने तो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे।
मैंने कहा- चलने की तैयारी कर लो।
तभी वहाँ विनोद ने आकर कहा- खाना बन रहा है, खाने के बाद ही आप लोग जाना।
फिर वो गौशाला में जाकर गाय भैंस की सेवा में लग गया। गांव देहात में सब काम अपनी गति से चलते हैं। मेरे को मालूम था कि एक दो बजे से पहले निकलना नहीं हो पायेगा !
रेखा की माँ ने मुझे बोला- जमाई जी, आप नहा लो, फिर नाश्ता कर लेना।
तो मैंने कहा- मैं नाश्ता नहीं करूँगा, सीधा खाना ही खाऊँगा, तब तक आपके खेत पर बने कुएँ पर जाकर नहाकर आता हूँ। विनोद को साथ ले जाता हूँ, आप खाना तैयार कर लेना !
तो माँ बोली- विनोद को तो दो घंटा लग जायेगा जानवरों के चारा पानी करने में, आप रेखा को ले जाओ खेत पर ! खाना मैं और बहू मिलकर बना लेंगे !
मेरी योजना के मुताबिक मैं रेखा को लेकर खेत चला गया !
खेत पर कोई नहीं रहता था, कुआँ के पास ही वहाँ मकान के नाम पर एक कच्चा कमरा और उसके बाहर दहलन बनी हुई थी। रेखा ने
कमरे के दरवाजा का ताला खोला, वहाँ पर खेतीबाड़ी का सामान और एक के ऊपर एक दो बोरे अनाज के भरे हुए रखे थे, शायद बोवनी के लिए बीज रखा होगा।
कुएँ के पास जाकर मैंने कच्छे के अलावा सारे कपड़े निकाल दिए, रेखा ने अन्दर से रस्सा बाल्टी निकाली, बोली- चलो, मैं कुएँ से पानी निकाल देती हूँ, आप नहा लेना।
तो मैंने तुरंत कहा- रेखा भाभी, आप अपने कुएँ से पानी निकालो, मुझे भी तो अपने हैंडपंप से पानी निकलना है ! दोनों अपना पानी निकाल लेंगे, फिर हम नहा लेंगे !
रेखा मेरी बात को सुनकर मुस्कुराते हुए बोली- जीजू आप बहुत बदमाश हो ! कुएँ पर नहाना तो एक बहाना है, मैं तो तभी समझ गई थी !
रेखा बोली- कोई आ जायेगा तो?
मैंने उसे मकान का एक चक्कर चारों तरफ का लगवाया, सभी तरफ खेत ही खेत थे एक एक किलोमीटर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था, अब ‘अगर कोई आएगा भी तो उसे यहाँ तक आने में आठ दस मिनट तो लगेंगे ही !’
कहकर मैंने उसे कमरे के अन्दर खींच लिया और किवाड़ की सांकल लगा दी।
उसे सीधा अनाज के बोरे पर लिटा दिया बोरे पर लिटाने से उसके दोनों टांगें जमीन पर टिकी हुई थी, पोजीशन बड़ी गजब बन गई थी, मैंने उसकी साड़ी को उतारना उचित नहीं समझा इसलिए कमर तक ऊपर उठा दिया तो उसकी नंगी चूत की झलक दिखाई देने लगी।
वो इस बात को पहले ही समझ गई थी, शायद इसीलिए उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
मैंने दोनों टांगों को दायें बाएं फैलाया तो चूत की फांकें खुल गई, चूत पूरी तरह से गीली थी, दिन के उजाले में उसकी गुलाबी चूत को देख कर पलक झपकते ही मेरा लंड को खड़े होकर कठोर हो गया, समय की कमी के कारण मैंने चूत पर एक पप्पी लेकर कच्छा उतारा और अपने लंड को उसके छेद पर सेट करके धीरे से धक्का लगा दिया तो रेखा की आवाज निकली- आह्ह्ह… धीरे करो जीजू !
फिर पूरे लंड को अन्दर तक घुसा कर उसके चूचों को ब्लाउज के ऊपर से चूमते हुए मसलने, सहलाने लगा, उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसते हुए ठाप लगाना शुरू कर दिया, दिल में यह भी डर था कि कोई आ न जाये, इसलिए अपनी स्पीड बढ़ा दी, दोनों की कराहों से कमरे की शांति भंग होती रही।
फिर रेखा ने जोर से सिसकारियाँ लेते हुए अपना रजस्खलन किया तो चूत से आने वाली फच फच की आवाजों से मेरी उत्तेजना को बल मिला और मैंने भी अपने स्खलन के साथ मैंने अपनी मंजिल पा ली।
कुछ क्षणों बाद हम दोनों पृथक हो गए, मैंने दरवाजा खोलकर रस्सा बाल्टी उठाई और कुएँ पर पहुँच गया, फिर पानी निकालने का उपक्रम करते हुए आसपास का मुआयना करने लगा, सब ठीक था, मैंने रेखा को बाहर आ जाने को कहा।
फिर रेखा बाहर आई और बोली- मैं अपनी वो धोकर आती हूँ !
लोटे में पानी लेकर कुएँ की ओट में अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक करके बैठ कर अपना योनि-प्रक्षालन करने लगी।
मैं नहाया फिर हम दोनों रेखा के घर पहुँचकर अपनी अपनी तैयारी में लग गए।
रेखा की माँ ने बहुत सा सामान पथोनी के रूप में रख दिया। अच्छा हुआ जो मैं जीप लेकर गया, सारा सामान जीप में रख दोपहर का खाना खाकर हम रेखा को लेकर रास्ते में मस्ती करते हुए मेरे साले के घर पहुँच गए।
मेरा साला बहुत खुश हुआ, बोला- जीजाजी आपने मेरी बहुत मदद की जो रेखा को लेने चले गए !
मैंने कहा- साले साहब, आपने पहली बार कहा था इसलिए चला गया, आगे से ध्यान रखना मेरे को अपने ही बहुत से काम होते हैं !

लाजो का उद्धार

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मैं आभार प्रकट करता हूँ अपनी खूबसूरत साली का जिसने मुझे इस घटना को आपके सामने लाने की इजाजत दी। औरत की इज्जत और उसकी संवेदनशीलता को देखते हुए मैंने इसे उसकी स्वीकृति पाने के बाद ही लिखा। उसने न केवल इस ‘आपबीती’ को ध्यान से पढ़ा बल्कि उसके मनोभावों और अनुभवों को इतनी सूक्ष्मता से समझने के लिए मेरी प्रशंसा की और अपनी ओर से कुछ संशोधन करके इसे और अपने अनुभवों के नजदीक ला दिया।

यह बात और महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है कि मैंने उसके साथ बड़ी जबर्दस्ती की, हालाँकि वास्तविक सेक्स की क्रिया तक पहुँचते पहुँचते वह राजी बल्कि सहयोगी हो चुकी थी, जो उसकी अब तक दबी शारीरिक इच्छाओं के एकाएक निकल पड़ने का रास्ता मिलने के कारण स्वाभाविक था। उस ‘उद्धार’ के बाद वह मुझसे निसंकोच हो गई और उसकी बेहद सुंदर, स्त्रियोचित, संवेदनशील, गरिमापूर्ण प्रकृति से मेरा साक्षात्कार हुआ।
मुझे खुशी है कि उसने अंतत उस ‘उद्धार’ के लिए मेरा आभार माना। मैंने टाइपिंग की सुविधा तथा उसकी इज्जत मर्यादा का खयाल करके इसमें केवल उसका नाम बदल दिया है। सुलक्षणा काफी लम्बा नाम है और कुछ पुराने फैशन का भी जिसे आज की आधुनिक पढ़ी-लिखी लड़की के साथ जोड़ना अनुकूल नहीं लगता। इसकी अपेक्षा ‘लाजो’ काफी छोटा, टाइपिंग में आसान और उसकी सलज्ज प्रकृति के अनुकूल लगा।
और मैं सबसे अधिक आभार प्रकट करता हूँ अपनी विलक्षण पत्नी का जिसके सहयोग बिना यह घटना घटी ही नहीं होती। वो तो इस ‘महाभारत’ की कृष्ण ही थी– सूत्रधार से लेकर कर्ता-धर्ता सब कुछ ! मैं तो उसकी इस इस महान ‘लीला’ में अर्जुन की भाँति निमित्त मात्र था !
अथ कथारम्भ:
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?” मेरी हट़टी-कट़टी पत्नी का यह बेलगाम जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। वह सिर्फ शरीर से नहीं मन से भी तगड़ी थी। और सच को बिल्कुल हथौड़ामार अंदाज में कहने की कायल थी।
मैं आश्चर्य करता था ऐसी तगड़ी हरियाणवी बीवी की ऐसी कोमल, छरहरी, बंगालन जैसी मुलायम बहन कैसे हो गई, रसगुल्ले‍-सी नरम। कस के पकड़ो तो डर लगे कि टूट न जाए। मन में ममता उमड़े, ऐसी खूबसूरती कि हिफाजत से कहीं छुपाकर रख लेने का दिल चाहे।छरहरी, लेकिन सही जगहों पर भरी हुई। यकीन नहीं होता दोनों एक ही पेट से जन्मी हैं। मेरी बीवी के विपरीत उसके तौर-तरीके महीन थे। वह शालीन, शर्मीली, बात को अप्रत्यक्ष बनाकर कहने वाली, मीठा बोलने वाली।
बीवी के साथ सेक्स में जहाँ जोड़ के दो पहलवानों की भिड़ंत का मजा आता था, वहीं उस कोमल, लुचपुच, सखुए की नई टहनी-सी लचकीली साली के साथ सेक्स की कल्पना मुँह में पानी भर देती। कैसी होगी उसकी चमड़ी की छुअन ! कैसी होंगी उसकी मुलायम पसलियों का अपनी छाती पर एहसास ! कैसे लगेंगे हथेलियों में उसके स्तन ! कैसी महसूस होगी लिंग पर कसी उसकी योनि की मक्खनी लिपटन !
बदकिस्मती से उसको पति भी उसके जैसा ही मुलायम और सिंगल चेसिस वाला मिला था। ठठाकर हँसने की जगह औरतों की तरह मुँह छिपाकर हँसता। आवाज भी थोड़ी पतली–औरत और मर्द के बीच की सी। आइआइटी इंजीनियर का लेबल देखकर शादी हो गई थी। था तो लम्बा लेकिन मुझे और मेरी बीवी दोनों को वह बीमार-सा लगता। बीवी की तो नजर में ही उसके लिए उपेक्षा दिखती- “मरियल साला, मेरी बहन तो बर्बाद हो गई।”
मैं समझाता, “तुम्हें ही तो लगता है वह बर्बाद हो गई। उसको देखो तो वह कितनी खुश है।”
“क्या खुश रहेगी? हुँह !” वह भुनभुनाती।
मैं मनाता काश उस गुलाब की कली का एक बार मेरे से जोड़ हो जाए। उसे एक बार पता चले कि असल मर्द का स्वाद कैसा होता है। फिर उस लल्लू इंजीनियर को हाथ भी न लगाने देगी। मुझे कभी-कभी लगता भी कि वह मुझे नजर बचाकर गौर से, एक अलग भाव से देखती है। लेकिन इसे वहम मानकर उड़ा देता !
हर मर्द को लगता है कोई भी सुंदर औरत उसे ही देख रही है। फिर मैं अपनी बीवी से बेहद संतुष्ट भी था। वह सुंदर थी और मेरे मनोनुकूल लम्बी, गोरी और दमदार। उसकी हर चीज बड़े साइज की थी- शरीर के अंग से लेकर बातें तक ! खुलकर देती ! खुलकर कहती ! कोई कम दमखम और आत्मविश्वास वाला पुरुष उसे सम्हाल भी नहीं पाता।
साली में अगर कमनीयता, कोमलता और संकोच का सौंदर्य था तो मेरी पत्नी में भव्यता, पुष्टि और आत्मविश्वास का। दोनों अपने अपने तरीके से सुंदर थीं।
रेशमा की अपनी बहन पर तरस बढ़ती जा रही थी। शायद साली भी अपने पति से खुश नहीं थी। उसके बारे में रेशमा बताती उसका पति अक्सर बाहर ही टूर पर भागता रहता है, लाजो से बचता सा है।
‘केवल सुख-सुविधाएँ जुटा देने से क्या होगा, औरत क्या केवल सुख सुविधाएँ ही चाहती है?’ रेशमा उसके बारे में कहते हुए कभी-कभी मुझे एक अलग नजर से देखती। शुरू में लगता कि वह मुझे देखकर बहन की अपेक्षा अपनी किस्मत पर खुश हो रही है। मैं गर्व से फूलता। पर धीरे-धीरे लग रहा था बात इतनी सी नहीं है। मगर आगे यह जिधर जाती थी उसकी कल्पना भी भयावह लगती थ। ऐसी दिलेर और निष्ठावान बीवी के रहते ऐसी बात सोची भी कैसे जा सकती थी।
मैं अपने साढू भाई की तरफ़दारी करता, “नौकरी में जरूरत है तो टूर करना ही पड़ेगा। वो क्या मना कर देगा कि नहीं जाएँगे? काम काम है। तुम लोगों की तरह घर नहीं बैठ सकता।”
पर पत्नी़ नहीं मानती, “वो असल में औरत से भागता है, मुझे तो लगता है वह बचने के लिए और ज्यादा टूर लगाने लगा है।”
मैं कहता, “ऐसा क्यों सोचती हो, उस पर जिम्मेदारियाँ बढ़ रही होंगी। आइआइटी का इंजीनियर है।”
पर पत्नी की निगाहों में ‘मुझे मत समझाओ, सब समझती हूँ’ का भाव मेरी बातों को व्यर्थ कर देता।
मैं तटस्थ दिखने और लाजो के प्रति अपने आकर्षण की झलक न लगने देने के लिए उस लल्लू इंजीनियर का पक्ष लेता रहता।
पर रेशमा पर मेरी तटस्थता का कोई असर नहीं था। उसकी झक बढ़ती जा रही थी। मेरे लिए तो अनुकूल स्थिति थी। फिर भी मैं कभी कभी चिढ़ाने के लिए उसे छेड़ देता, “क्या पता वो ‘लल्लू’ ठीक हो, लाजो में ही कुछ… मेरा मतलब कोई प्राब्लम वगैरह?”
रेशमा भड़क जाती, “उसके बारे में ऐसी बात भी नहीं कहना ! वो मेरी बहन है। उसका दुर्भाग्य है नहीं तो वो उसे असली रूप में देखकर कोई भी मर्द दाँतों तले उंगलियाँ दबाए रह जाता।”
मैं पूछता, “तुम्हें कैसे मालूम उसका ‘असली’ रूप? तुमने देखा है?”
वह और चिढ़ती, “मेरी बहन है ना, तुम्हारी होती तो उसका दर्द समझ में आता।”
वह कहती, “उसे खुशी पाने का पूरा हक है। किस्मत ने धोखा दिया तो क्या हुआ, किस्मत का रोना केवल कायर रोते हैं। दिल गुर्दे वाले तो खुशी हासिल करते हैं।”
“जरूर !” मैं कहता।
लाजो निस्संदेह सुंदर थी और उसे ‘खुशी’ देने में जीजा से अधिक किसकी रुचि हो सकती थी?
“पर क्या उसमें इसे हासिल करने की हिम्मत है?”
रेशमा उदासी में साँस छोड़ती, “यही तो मुश्किल है ! बड़ी डरपोक है, कुछ नहीं करेगी, संकोच में ही मरती रहेगी।”
लेकिन वह केवल खीझते रहने तक सीमित नहीं थी। एक बार उसने उसकी बातें करते हुए अचानक मुझसे पूछ डाला, “तुमको लाजो कैसी लगती है?”
मैं इतने दिनों से इस सवाल का इंतजार कर ही रहा था। मैं इस सवाल से बचना चाहता था।
“क्यों क्या बात है?”
“कुछ नहीं, पर बताओ ना।”
“अच्छी ! पर तुमसे अधिक नहीं, तुम उससे बहुत अच्छी हो।”
“ओह मैं अपनी बात नहीं कर रही।”
मैंने दिल कड़ा करके कह दिया- बहुत अच्छी, बेहद सुंदर !
वह कुछ बोलने को उद्यत हुई पर चुप रह गई। यह कहानी आप bhauja  डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने बात में हँसी घोलने की कोशिश की, “पर क्या पता उसे मैं बेवकूफ लगता होऊँ। इतना वफादार मर्द जो हूँ।”
पर उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। अब मुझे लगा मुझे आगे बढ़कर लगाम थामनी चाहिए, “मैं कुछ-कुछ समझ रहा हूँ तुम क्या चाहती हो। पर क्या यह सही होगा?”
बोलते ही लगा कि इसमे तो मेरी स्वीकृति दिख जा रही है, तुरंत सुधारने की कोशिश की, “मेरा मतलब मैं तो ऐसा नहीं चाहता।”
मेरी पत्नी ने मुझे तरस खाने वाली निगाह से देखा, औरत से बच पाना बड़ा मुश्किल होता है।
“सही समझने का शुक्रिया !” मैं समझ नहीं पाया इसमें व्यंग्य है या तारीफ।
मैं सोच नहीं पाया कि क्या बोलूँ, मुँह से निकला, “लाजो पतिव्रता है, वह कभी नहीं मानेगी।”
मैं खुद सोचता रह गया कि इसका क्या मतलब हुआ, क्या मैं सचमुच यही बोलना चाहता था?
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यं‍ग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
रेशमा ठठाकर हँस पड़ी, “पतिव्रता !” और चुटकी ली, “और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…”
फिर गंभीर होकर बोली, “मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।”
“उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?”
“सब कुछ कहा नहीं जाता।”
“तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।”
“मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।”
मैंने उसका हाथ पकड़ा, “जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।”
वह अजब हँसी हँसी। वह व्यं‍ग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा, “जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।” और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर …
वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।
“अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?”
वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।
बाथरूम में फ्लश की आवाज के कुछ क्षणों बाद वह प्रकट हुई।
“बोलो !”
मैं सन्न था। पतंगे की तरह छिपने की कोशिश करती मेरी लाजो की कामना एकदम से उसकी सच्चाई के चिमटे की पकड़ में आकर छटपटा रही थी। फिर भी मैं मुस्कुरा पड़ा। मेरी हट्टी-कट्टी पत्नी का यह बेलौस जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। इस डायलॉग के साथ ही लाजो के साथ सोने की सम्भावना जैसे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई, जैसे हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लूँगा। मेरी बीवी चमत्कार करने में सक्षम थी। मुझे कोई फिक्र नहीं हुई कि लाजो कैसे मेरे पहलू में आएगी।
वह मेरे पास आई और मेरे सिर पर हाथ फेरा।
“मैं जानती हूँ तुम उसे चाहते हो !”
मैंने अपने सिर पर घूमते उसके हाथ को खींचकर चूम लिया।
वह हँस पड़ी, “यू आर सो क्यूट !” उसने कान पकड़कर मेरा सिर हिलाया, “मुझसे छिपना चाहते हो?”
मैंने उसे बाहों में घेर लिया।
लाजो ही अब मेरे हर पल हर साँस में होगी।
और तभी:
“तुम चाहती हो आज रात मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ?” लाजो ने अपनी बड़ी बहन से पूछा, “आज की रात मैं कोई किताब पढ़कर काटने के लिए सोच रही थी। तुम जानती हो अकेले नींद नहीं आती।”
रेशमा ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर रखा था। लाजो की आवाज से महसूस हुई उसकी नजदीकी ने दिल की धड़कन बढ़ा दी। वैसे तो जब रेशमा ने उसे आने का प्रस्ताव किया तभी से मेरा अंग उत्तेजित हो रहा था।
“यहाँ मैं तुम्हें तुम्हारे जीजाजी के पास सुला दूँगी।” रेशमा ने मुझे आँख मारी।
”धत्त, क्या बोलती हो?”
“तुमसे मिले कई दिन हो गए, आज दोनों बहनें मिलकर ढेर सारी बातें करेंगी।”
“और जीजाजी?”
“वे ऑफिस की एक पार्टी में जा रहे हैं, रात को देर से लौटेंगे। कल छुटटी ही है, इसलिए चिंता नहीं।”
“ठीक है, मैं जल्दी आऊँगी।”
“आधे घंटे में आ जाओ।”
“इतनी जल्दी? ठीक है आठ बजे तक आती हूँ।”
चुदने को आ रही औरत की उत्तेजक आवाज ! भोली को क्या मालूम हमने उसके लिए क्या योजना बनाई थी। घड़ी में सवा सात बज रहे थे। काले बालों के झुरमुट में छिपी गुलाबी वैतरणी पैंतालीस मिनट में प्रकट होने वाली थी। वैतरणी को पार कराने वाली मेरी नैया पैंट में जोर जोर हिचकोले खाने लगी।
“तैयार हो जाओ मैन, योर टाइम इज कमिंग।” रेशमा की आवाज गंभीर थी।
हमने घर व्यवस्थित किया, सोफे पर नया कवर डाल दिया। आज मेरी साली कोई सामान्य रूप से थोड़े ही आने वाली थी। आज तो उसका जश्न होगा। पलंग पर एक खूबसूरत नई चादर बिछाई, सिरहाने एक झक सफेद तौलिया रख लिया। उसके निकलने वाले प्रेमरसों की छाप लेने के लिए। अगर वो अनछुई, अक्षतयौवना होती तो उसकी सील टूटने के रक्त की छाप भी ले लेता।
मेरी आतुरता दिख जा रही थी और मैं यह सब पत्नी की योजना होने के बावजूद मन में शर्मिन्दा हो रहा था। मुझे रेशमा के चेहरे पर खेलती हँसी के पीछे एक व्यंग्य दिख रहा था लेकिन उसमें साथ में एक निश्चय की दृढ़ता भी थी।
सबकुछ तैयार करके हमने एक दूसरे को देखा। पंद्रह मिनट बच रहे थे, किसी भी क्षण आ सकती थी।
रेशमा ने लाजो को फोन लगाया, “कहाँ हो?”
वह रास्ते में थी और पाँच मिनट में पहुंचने वाली थी।
रेशमा ने मुझे देखा, “योर टाइम हैज कम। मुझे लगता है अब तुम शॉवर में चले जाओ और उसके लिए तैयार रहो।”
लाजो ने तीन बार घंटी बजाई पर दरवाजा नहीं खुला। उसने धक्का दिया। दरवाजा खुल गया। भीतर कोई नहीं था। उसने ‘दीदी ! दीदी !’ की आवाज लगाई, उत्तर नहीं आया, बेडरूम में झाँका, खाली था, अटैच्ड बाथरूम में शॉवर चलने की आवाज आ रही थी।
“दीदी नहा रही हैं।”
वह बिस्तर पर बैठ गई और उसके बाहर आने का इंतजार करने लगी। बेड पर एकदम नया चादर देखकर खुश हुर्इ, दीदी मुझे कितना मानती है। सिरहाने रखी पत्रिकाओं को उलटा-पलटा, दो तीन इंडिया टुडे और गृहशोभा के बीच में अंग्रेजी डेबोनेयर का एक ताजा अंक था।
हमारा अंदाजा था अकेले में वह जरूर उसे ही देखेगी।
उसके कवर पर एक कमर में छोटी तिकोनी गमछी लपेटे टॉपलेस मॉडल की तस्वीर थी।
‘दीदी-जीजाजी भी काफी रंगीनमिजाज हैं।’ पन्ने पलटती हुई वह बुदबुदाई।
मैंने अनुमान लगाया कि अब तक नहाने के लिए पर्याप्त समय बीत चुका है। मुझे दरवाजे की घंटी सुनाई पड़ चुकी थी, यानि लाजो आ चुकी थी। अब अगर वह बेडरूम में होगी तो बिस्तर पर ही बैठी होगी। अकेली लड़की के सामने नंगे जाना दुस्साहस था। पर यही योजना का पहला चरण था। मैंने मन को कड़ा किया और शॉवर बंद किया और स्टैंड से तौलिया खींच लिया…
बाथरूम खोलकर मैं सिर पर तौलिया डाले बालों को पोंछता बेडरूम में सीधा बिस्तर की दिशा में चला आया। बिस्तर पर उसकी आकृति नजर आई पर उसे मैं अनदेखा करता हुआ किनारे रखी मेज पर से अपना कपड़ा उठाने के लिए घूम गया…
लाजो डेबोनेयर देख रही थी। मॉडलों की सेक्सी तस्वीरें, पाठकों के सेक्स अनुभव, अमरीका में मिस न्यूड प्रतियोगिता, धारावाहिक सेक्स कहानी। यह सब उसे बेहद आकर्षित कर रहे थी। उसका पति ऐसी चीजें नहीं लाता था। शादी के पहले सहेलियों के साथ उसने कुछ मैग्जीन्स देखे थे, पर शादी के बाद ये चीजें मुहाल हो गईं।
शॉवर बंद होने की आवाज सुनकर उसने अनुमान लगाया अब दीदी निकलेंगी। सोचा जब तक दीदी तैयार होकर निकलेगी तब तक जल्दी से थोड़ा और देख लूँ। तभी उसने बाथरूम से बाहर आती तौलिए से सिर ढकी नंगी पुरुष आकृति देखी। उसके पेड़ू के नीचे अर्द्धउत्थित विशाल लिंग चलने से हिल रहा था।
उसने तुरंत नजर हटा ली, भय से वहीं पर गड़कर रह गई।
‘बाप रे !’ लाजो बाथरूम में लौटती उस पुरुष आकृति के कसे नितंबों को देखती बुदबुदाई। चलने से उसमें गड्ढे बन रहे थे। ऊँची काया, चौड़ी पीठ, मजबूत कमर, कसी जाँघें ! क्या शरीर था ! उसका झूलता हुआ हल्का उठा आश्चर्य जगाता ‘कितना बडा !’ लिंग तो जैसे दिमाग में छप गया।
अपने आप में आकर उसने नजर घुमाई। गोद में खुली डेबोनेयर में एक नंगी मॉडल उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। उसने झट से किताब बंद कर दी और दूसरी पत्रिकाओं के नीचे दबा दिया। उठकर ड्राइंग हॉल में चली आई और सोफे पर बैठकर धड़कनों को शांत करने और सांसों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लगी।
“तुम आ गई ! मैं दो मिनट के लिए बगल वाली के पास गई थी।” रेशमा अंदर घुसते हुए और दरवाजा बंद करती हुई बोली, “तुम्हें इंतजार न करना पड़े इसलिए दरवाजा खुला छोड़कर गई थी।”
और अवसरों पर स्वा‍भाविक यह होता कि लाजो उठकर बड़ी बहन के गले मिलती, पर आज वह बैठी रह गई। उसका उड़ा-उड़ा चेहरा साफ पकड़ में आ रहा था। रेशमा समझ गई चाल कामयाब हुई है, तीर निशाने पर लगा है।
“तुम ठीक तो हो न?”
“मैं… अँ.ऽ. अँ.ऽ. अँ.ऽ… ठीक हूँ। लगता है गर्मी है।” वह दुपट्टे से पंखा करने लगी।
“हाँ, गर्मी तो है, ठण्स पानी या कोकाकोला लाऊँ?”
“कोकाकोला…”
रेशमा कमरे में आई। मुझे देखकर मुस्कुराई।
“लगता है कुछ देख लिया है उसने !” वह फ्रिज का दरवाजा खोलकर बोतल निकालने लगी।
“कुछ नहीं, पूरा का पूरा देखा है !” मैं घमंड से बोला।
“तैयारी में दिख रहे हो, बल्ले बल्ले !” उसने मेरे पतले सिल्क पजामे को पकड़कर शरारत से नीचे खींचा। अंदर खड़े लिंग की पूरी रूपरेखा स्पष्ट नजर आ रही थी।
“मेरी बेचारी बहन के बचने की कोई संभावना नहीं।” उसने नकली हमदर्दी में मुँह बनाया।
“मुझे थोड़ा समय दो और फिर बाहर आ जाओ।” कोकाकोला की बोतल लिए वह चली गई।
हॉल में जाकर उसने लाजो को पकड़ाया। लाजो तुरंत ग्लास लेकर एक बड़ा घूँट गटक गई।
“तुम्हारे जीजाजी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं। उनसे भेंट हुई कि नहीं?”
“उँ..ऽऽ ..न.. न… नहीं तो !”
“सचमुच?” मैं भीतर आता हुआ बोला। मेरा प्रत्याशा में खड़ा लिंग झीने रेशमी पजामे के भीतर से पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। मैं आकर उन दोनों के सामने खड़ा हो गया।
लाजो झूठ पकड़ा जान कर लजा गई। मुझे देखते ही उसकी नजर सीधे पजामे की ओर गई और नीचे झुक गई। मुझे लगा उसकी नजर वहाँ एक बटा दस सेकंड के लिए ठहरी थी। रेशमा को भी ऐसा लगा, वह गौर कर रही थी।
“सुंदर है ना !”
लाजो ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई।
“पजामा !” रेशमा ने मेरी कमर की ओर इशारा किया। वह लाजो को मुझे देखने का मौका दे रही थी। क्रीम कलर के झीने कपड़े के अंदर मेरा उत्तेजित लिंग पजामे को भीतर से बाहर ठेले हुए था। उसकी मोटी गुलाबी थूथन भी उसे दिख रही होगी।
“कल ही खरीद कर लाई हूँ, अच्छा है ना?”
लाजो पसीने पसीने हो रही थी। दीदी उधर ही दिखा रही थी जिधर उसकी नजर भी नहीं उठ रही थी। जल्दी जल्दी से कुछ घूँट गटकी, “अच्छा है। मुझे बड़ी गर्मी लग रही है।”
“सुरेश, जाओ और भिगाकर फेस क्लॉथ ले आओ।
मैं वहाँ से चला आया।
“जरा शरीर में हवा लगने दो।” कहकर रेशमा ने उसके कंधे पर से साड़ी पिन खोलकर साड़ी का पल्लू पीठ के पीछे से खींचकर उसकी गोद में गिरा दिया। लाजो ने आँखें बंद कर ली और सोफे की पीठ पर लद गई।
मैं बर्फ के पानी से भिगोकर तौलिया ले आया। कंधे से साड़ी हटने के बाद लाजो के स्तनों से भरी ब्ला‍उज मादक लग रही थी।
“यह लो !” मैंने रेशमा को तौलिया पकड़ा दिया।
रेशमा पानी चूते तौलिये को देखकर मुसकुराई। लाजो मेरी आवाज सुनकर साड़ी से छाती ढकने का उपक्रम करने लगी।
रेशमा उसकी गर्दन पर तौलिया रखकर हल्के हलके दबाने लगी। उसने तौलिए के दोनों छोरों को सामने रखते हुए बीच का हिस्सा़ उसकी गर्दन में पहना दिया और दबा-दबाकर गर्दन, गले और नीचे की खुली जगह को पोंछने लगी।
“आऽऽऽह !” लाजो के मुँह से अच्छा लगने की आवाज निकली। उसकी आँखें बंद थीं। वह देख नहीं पाई कि तौलिए से चूता पानी उसके ब्लाउज और ब्रा को भिगा रहा है। पानी उसके कपड़ों के अंदर घुसकर पेट पर से चूता हुआ उसकी साड़ी के अंदर घुस रहा था।
जब उसको अपनी पैंटी के भीतर ठंडक महसूस हुई तो उसकी आँख खुली। पानी उसके भगप्रदेश के बालों से होता हुआ गर्म कटाव के अंदर उतर गया था और उसकी सुलगती योनि में सुरसुराहट पैदा कर रहा था।
“मैं भीग गई हूँ।”
“ओह, सॉरी !” कहकर रेशमा ने उस पर से तौलिया उठा लिया।
भीगने से ब्लाउज इतनी चिपक गया थ कि भीतर की ब्रा का उजलापन साफ नजर आ रहा था और सामने निप्पलों की काली छाया तक का पता चल रहा था। उन गोलाइयों को अनावृत देखने की इच्छा मन में उमड़ पड़ी। वह किसी कलाकार की रची तस्वीर सी लग रही थी, गोरेपन के कैनवस पर गुलाबी रंग से रंगी तस्वीर ! सिर्फ आधे कंधे और छातियों को ढकती गुलाबी कपड़े की परत, गुलाबी रंग के भीतर से प्रत्यक्ष होती उजली ब्रा की आभा ! मचलते स्तन ! ब्लाउज के नीचे सुतवें पेट की पतली तहें ! मैं मंत्रमुग्ध देख रहा था।
रेशमा ने उसकी गोद में पड़ी भीगी साड़ी के पल्लू के ढेर को उठाया और कहा, “इसे खोल दो, एकदम भीग गई है।”
लाजो हड़बड़ाई, “जीजाजी देख लेंगे।”
“मैं चला जाता हूँ।” मैं वहाँ से हट गया। बेडरूम के अंदर आकर दरवाजे की ओट से झाँकने लगा।
रेशमा उसको खड़ा करके साड़ी खींच रही थी। लाजो एक बार इधर सिर घुमा कर देखा कि मैं देख तो नहीं रहा हूँ।
साड़ी का ढेर नीचे पैरों के पास गिराकर रेशमा ने उसको एक बार भरपूर निगाह से देखा। जवानी की लहक भरपूर थी।
लाजो उसकी नजर से परेशान होती हुई बोली, “ऐसे क्या देख रही हो?”
“ब्लाउज से पानी चू रहा है। इसको भी उतार दो।”
“नहीं, जीजाजी…”
“जीजाजी कमरे में हैं, जल्दी कर लो।”
लाजो बदन ढकने के लिए भीगी साड़ी उठाने को झुकी। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
रेशमा बोली, “वैसे ही ठहरो, भीगा हुआ खोलने में तुमको परेशानी होगी। मैं खोल देती हूँ।” कहती हुई वह उसकी झुकी हुई पीठ पर से ब्लाउज के हुक खोलने लगी।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया। गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे। रेशमा ब्रा के फीते में उंगली फँसाकर खींची, “बाप रे, कितना टाइट पहनती हो !” कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।
“अरे दीदी…” लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।
लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली, “निकालकर दे दो।”
लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था। लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।
“जानू !” रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।
लाजो के मुँह से ‘अर्र… अरे !’ की चीख निकली और वह एकदम हड़बड़ाकर साड़ी लपेटकर सोफे पर धम से बैठ गई। मेरे पहुँचते ही रेशमा ने भीगा ब्लाउज और ब्रा मेरी ओर बढ़ा दिया “प्लीज, जरा इसे बालकनी में सूखने के लिए फैला दोगे?”
“खुशी से।”
“थैंक्यू !”
क्या मजेदार विडम्बना थी। रेशमा लाजो पर जबर्दस्ती कर रही थी और मुझे थैंक्यू कह रही थी। थैंक्यू तो मुझे कहना चाहिए था। जिस चोली और ब्रा को उतारने के सपने मैं कब से देख रहा था वह वह अब मेरे हाथ में थी ! पानी में भीग कर गहरे गुलाबी रंग की हो गई चोली और सफेद ब्रा। दोनों भीगे होने के बावजूद उसके बदन से गर्म थे।
लाजो साड़ी लपेटे झुकी हुई थी। आधी से ज्यादा पीठ खुली थी। पीठ के बीच उभरी रीढ़ की हड्डी नीचे नितम्बों की शुरुआत के पास जाकर अंदर धँस रही थी जिसके गड्ढे के ऊपर साये की डोरी धनुष की प्रत्यंचा जैसी तनी थी। उसके अंदर छोटा सा अंधेरा। रहस्यमय ! अंदर दबे खजाने !
मैंने भीगे वक्षावरणों में मुँह घुसाकर सूंघा। लाजो के बदन की ताजा गंध ! पसीने और परफ्यूम की खुशबू मिली। मैं पजामे के अंदर इतना तन गया था कि चलना मुश्किल हो रहा था। अलगनी पर ब्रा को फैलाते समय मैंने फीते में कंपनी का फ्लैप देखा- 36 सी साइज। बिना बच्चे के ‘सी’ साइज ! लाजो उतनी पतली नहीं है !
मेरे जाने के बाद लाजो रेशमा पर बिगड़ी, “तुमने जीजाजी को क्यों बुलाया?”
“भीगी साड़ी ही लपेटे रहोगी?”
“मुझे कोई कपड़ा दो।”
“जीजाजी उधर हैं।”
“नहीं, पहले कपड़ा दो।”
“जानू !” रेशमा पुकारी, “एक कपड़ा लेते आओ।”
“नहीं…” लाजो चीख पड़ी।
“ठीक है।” रेशमा ने मुझे रोका, “अभी उधर ही रहो।”
“दे रही हो?” उसने लगभग हुक्म के अंदाज में पूछा।
लाजो हैरान उसे देखती रह गई, खुद उसकी बड़ी बहन उसके साथ क्या कर रही है ! उसे यकीन नहीं हो रहा था वह किधर ले जाई जा रही है। टॉपलेस तो हो ही चुकी थी ! आश्चर्य और उत्तेजना से लगभग लाल हो गई थी।
रेशमी पजामा… अंदर तम्बू के पोल की तरह तना लिंग, मोटी जांघें, रोशनी में चमकती भीगी चौड़ी पीठ, कठोर नितम्ब… एक एक छवि उसके दिमाग ताश के पत्तों की तरह फेर रही थी।
“छोड़ो !” रेशमा ने उसके कंधे से साड़ी खींची। छाती पर लाजो के हाथों का दबाव ढीला पड़ गया। रेशमा उसके स्तनों के सामने से कपड़े को खींचती हुई हँसी, “मुझसे कैसी शरम !”
रेशमा ने लाजो को खड़ी करके उसकी कमर के चारों तरफ से साड़ी खींचकर निकाल लिया। लाजो ने दुबारा प्रतिरोध की कोशिश की पर ‘जीजाजी को बुलाऊँ?’ की धमकी सुनकर शांत हो गई। साड़ी निकलने के बाद साए में उसकी पतली कमर और नीचे क्रमश: फैलते कूल्हों का घेरा पता चलने लगा। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
‘मेरी बहन सुंदर है !’ रेशमा बोली।
उत्तेजित होने के बावजूद शर्म से लाजो की आँखों में आँसू आ गए। उसने बाँहों से स्तन ढक लिए।
रेशमा ने साड़ी उठाई और चली गई। कमरे में आकर मेरे हाथ में देकर बोली, “यह लो ! एक और पुरस्कार !”
साड़ी के स्पर्श से मेरा ऐसे ही दुखने की हद तक टाइट हो रहा लिंग और तनकर जोर जोर धड़कने लगा। टॉपलेस लाजो कैसी लग रही होगी? मन हुआ दौड़कर उसके पास चला जाऊँ।
“यू आर ग्रेट। मैं तुम्हारा दीवाना हूँ।” मैं रेशमा का बेहद एहसानमंद हो गया।
“ऐसी बीवी तुम्हें नहीं मिलेगी।” वह घमण्ड से बोली। उसने पजामे के ऊपर से मेरे लिंग पर थपकी दी और बोली, “अब तैयार रहो, तुम्हारी जरूरत पड़ेगी। मुझे नहीं लगता वह मुझे आसानी से पेटीकोट उतारने देगी।”
लिंग पर थपकी से मेरे बदन में करेंट की लहरें दौड़ गईं, मैंने आग्रह किया, “इस पर एक चुम्बन देती जाओ, प्लीज।”
उसके गुलगुले होठों से मेरे लिंग का सख्त मुँह टकराया और मेरी भूख और बढ़ गई। मैंने पजामें की इलास्टिक नीचे खिसकाई, “बस एक बार मुँह के अंदर लेके…”
पर वह उठ गई, “अब यह लाजो से ही करवाना !” कहकर चली गई।
मैं ठगा-सा रह गया। इतनी दूर तक स्वयं कहेगी मैंने सोचा नहीं था। मैंने फिर अपने-आपको उसका बेहद कृतज्ञ महसूस किया।
मैंने दरवाजा खोला और अर्द्धनग्न लाजो को देखने के लिए बाहर चला आया। हॉल के अंदर न जाकर रास्ते में ही खड़ा हो गया। रेशमा अब मुझे बुलाने वाली थी।
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लाजो सोच रही थी दीदी उसके लिए कपड़े लाने गई है। उसके दिमाग में उथल-पुथल मची थी। अपनी बाँह हटाकर देखी, चूचियाँ खड़ी थीं, घबराकर उसने उन्हें फिर से दबा लिया। नग्न पुरुष के अंगों का दृश्य उसके दिमाग में बार बार घूम रहा था। अपने पति का उसने देखा था मगर आज देखे पुरुष का तो… हर दृश्य उसकी योनि में ‘फुक’ का सा स्पंदन उठा रहा था। हर स्पंदन के साथ बदन में एक लहर-सी दौड़ जाती थी। वह उसे भूलने की कोशिश कर रही थी। अर्द्धनग्न अवस्था में बैठी समझ नहीं पा रही थी क्या करे।
जब दीदी खाली हाथ लौटी तो वह उलझन में पड़ गई।
“कपड़े?” उसने पूछा, उसका हाथ छाती पर दबा था।
“एक ही बार लेना।”
क्या मतलब? वह सवालिया निगाह से देखती रह गई।
“तुम्हारा पेटिकोट भी तो भीगा है।”
लाजो की नजर नीचे गई। सामने बड़ा सा धब्बा था, मानो पेशाब किया हो। साया भींगकर जाँघों और बीच में फूले उभार पर चिपक गया था। अंदर काला धब्बा-सा दिख रहा था। शायद बालों का।
लाजो उसे तुरंत हथेली से छिपा कर बोली, “नहीं…”
“अंदर पैंटी नहीं पहनी हो क्या?”
“तुम पागल हो गई हो !”
रेशमा सोफे पर बैठ गई, ” तुम्हारे जीजाजी कह रहे थे लाजो आए इतनी देर हो गई, उसने मुझसे बात नहीं की?”
“दीदी, प्ली…ऽ….ऽ….ऽ….ज!”
“तुम उनकी चहेती साली हो, वो तुमसे बात करना चाहते हैं ! बुलाऊँ उनको?”
लाजो को लग रहा था वह स्वप्न तो नहीं देख रही। उसके साथ क्या हो रहा है? ऊपर नंगी और नीचे केवल साए में एक विचित्र अवस्था में थी। शर्म से गली जा रही थी लेकिन निचले ओठों के अंदर छुपा भगांकुर बेलगाम धुकधुकाए जा रहा था। सारा शरीर सनसनी से और शर्म से लाल हो रहा था। उसका मन हुआ कि भागकर बाथरूम या रसोई में छिप जाए।
एक आवेग में उठी, पर मुड़ते ही देखा जीजाजी रास्ते में खड़े हैं, वापस पीछे मुड़ी। दीदी सीधे उसकी आँखों में देख रही थी। अब बैठने में उसे बेहद कायरता और शर्म महसूस हुई। वह जस की तस खड़ी रह गई।
“जानूँ, लाजो के लिए ‘कपड़ा’ ले आओ।” रेशमा ने ‘कपड़ा’ को थोड़ा विशेष रूप से उच्चरित किया।
“वो पीली वाली, नैन्सी किंग की।”
‘पीली वाली, नैन्सी किंग की’ नाइटी थी जो हमने हाल में ही खरीदी थी। शिफॉन और नायलॉन की बनी। पीले रंग की। इतनी झीनी थी कि इसके इनर और आउटर दोनों पहनने के बाद भी अंग साफ नजर आते थे। इनर कंधों से पतले स्ट्रैप्स से टंगता था और काफी नीचे उतर कर छातियों को आधे से अधिक खुला छोड़कर शुरू होता था। मैं इनर छोड़कर केवल आउटर ले गया। इसको पहनना तो कुछ न ही पहनने के बराबर था।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’। पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई। छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।
मैं जब पहुँचा लाजो वैसे ही खड़ी थी। नंगी पीठ पर लम्बे बाल फैले थे और…
हाथ सामने छातियों पर थे।
मुझे आया देखकर रेशमा लाजो से बोली, “लो आ गया तुम्हारा ‘कपड़ा’ पहन लो।”
लाजो के दोनों हाथ छातियों और पेड़ू पर दबे थे। कपड़ा लेने के लिए एक हाथ तो उठाना ही पड़ता। वह सिर झुकाए मूर्तिवत खड़ी रही।
इतना उत्तेजित होने और उसे नंगी देखने के लिए अधीर होने के बावजूद मुझे असहजता महसूस हुई। वह असहाय खड़ी थी। मुझे दया सी आई ‘छोड़ दो अगर नहीं चाहती है।’
मगर औरत ही समझती है कि कब, कैसी और कितनी शर्म उल्लंघन के लायक है। मैंने जब रेशमा को कपड़ा देकर जाना चाहा तो उसने मुझे रोक दिया, “ठहरो, साया लेकर जाना।”
वह उठ खड़ी हुई। लाजो के एक बार हारने के बाद उस पर उसका नियंत्रण और बढ़ गया था। आत्मशविश्वास से भरी उसके पास बढ़कर पहुंची और उसका दायाँ हाथ पकड़कर झटककर खींच लिया !
मेरे लिए तो जैसे सृष्टि ही उलट गई ! लाजो की दोनों छातियाँ भरी, गोल, गोरी, शिखर पर गाढ़े गुलाबी गोल धब्बे, मानों भगवान द्वारा लगाया गया quality checked की मुहर ! बीच में उठे किंचित लंबे, तने, रसीले चूचुक, चूसने के लिए पुकारते हुए से ! निर्णय करना मुश्किल था कि लाजो के चेहरे और चूचुकों में कौन ज्यादा लाल थे !!!
लाजो के दिमाग में जैसे अंधेरा छा गया था। दीदी उसका दायाँ हाथ मजबूती से पकड़े थी। उसका बायाँ हाथ पेड़ू पर से हटकर स्तनों पर आ गया।
पर अब साया असुरक्षित था ! दीदी यही तो उतारने के लिए उद्यत है, उसने आँखें मूंद लीं।
रेशमा अपनी बहन पर इतने अधिकार और नियंत्रण से उन्मत्त हो रही थी, उसकी योजना आशातीत रूप से सही काम कर रही थी। उसने उसका दायाँ हाथ पकड़े ही झुककर उसकी कमर में साये की डोरी का बंधन टटोला। लाजो दुविधा में पड़ गई कि स्तन ढके या वस्तिस्थल।
जब तक वह कुछ सोचती, रेशमा ने डोर का खुला सिरा खोजकर खींच दिया।
लाजो ने एक बार अंतिम सहायता के लिए सिर उठाकर मेरी ओर देखा– दुश्मन से ही दुश्मन के खिलाफ सहायता की भीख। मगर मेरी ओर घुमाते ही उसकी नजर मेरे पजामे की ओर झुक गई जहाँ एक विशाल क्रुद्ध सर्प खड़ा फुँफकार रहा था। पता नहीं क्यों, तभी उसी क्षण उसे लगा कि वह सर्प उसे काटे बिना छोड़ेगा नहीं, अब वह नहीं बचेगी ! उसे एहसास हुआ कि उस सर्प को देखकर खुद उसके अंदर भी कोई सर्प जाग गया है जो उससे मिलने के लिए अपनी स्वतंत्र मर्जी से चलेगा।
अपनी निरंतन धुक धुक कर रही भगनासा पर उसे क्रोध आया।
रेशमा कमर में उंगली घुसाकर खींच खींचकर डोर को ढीला कर रही थी। डोर कमर में धँसने का निशान छोड़ती अलग हो रही थी। लाजो ने नंगी होने से बचने के लिए छाती पर से हाथ हटाकर साया पकड़ लिया।
एक हाथ हवा में दीदी के हाथ में, दूसरी से साया पकड़ी, नंगी गोरी बाँहें, कंधे, सीना, दोनों चमकते चूचुकों के काले वृत्त लिए गोरे स्तन जो लाजो के शर्म बचाने की कोशिश में आगे झुकने से और अच्छे से झूल रहे थे ! लाजो अजब मादक, उत्तेजक, दयनीय और हास्यास्पद लग रही थी। मेरी इच्छा हुई उसे बाँहों में भरकर पुचकारकर प्यार करूँ।
लाजो के सामने साया पकड़ लेने पर रेशमा मुस्कुराई, वह अपना हाथ उसकी कमर के पीछे ले गई। रीढ़ के गड्ढे में हाथ घुसकार उसने साए को ढीला किया। लाजो कुछ नहीं कर सकती थी। पीछे सूखी होने के कारण डोर आसानी से खिंच गई और साया ढीला होकर नितम्बों पर सरक गया। काली पैंटी आधे से ज्यादा प्रकट हो गई। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
लाजो साये को पकड़कर रोकने की कोशिश करती गिड़गिड़ाई, “दीऽऽ दीऽऽ… जीजाजी देख रहे हैं।”
“सही कहती है।” वह मेरी ओर मुड़ी, “तुम इसको देख रहे हो और यह तुमको नहीं देख पा रही है। अपना पजामा उतार दो।” वह कठोरता से बोली।
लाजो ने ये शब्द़ सुने, वह अवाक मेरी ओर देखने लगी, उसके मुँह से बोल नहीं फूटे। मैं पसोपेश में पड़ गया। उसे बुरा तो नहीं लगेगा? पर अब हम वहाँ पहुँच गए थे जहाँ किसी के लिए भी दुविधा में पड़ना अच्छा नहीं था। लाजो के लिए भी नहीं।
जिस बिन्दु पर वह पहुँच चुकी थी वहाँ से उसे अनचुदे छोड़ देना उसके लिए सिर्फ अपमानजक होकर रह जाता। मेरी बीवी दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ रही थी। मुझे उसका साथ देना था।
मैंने अपनी कमर की इलास्टिक में अंगूठे फँसाए और नीचे खिसका दिया। मेरा लिंग उसकी तंग परिधि से स्प्रिंग की तरह छूटकर बाहर निकला और हिलकर सीधा लाजो की ओर इशारा करने लगा।
कोई कुछ नहीं बोला। समय जैसे ठहर गया। कुछ सेकंड ऐसे ही बीते। लाजो मेरी और मेरे लिंग की लाल क्रुद्ध आँखों की तपिश में झुलसती रही।
रेशमा शांत थी। उसने लाजो का हाथ छोड़ दिया, घुटनों के बल बैठ गई।
अब लाजो एक ही दिशा में जा सकती थी– संभोग।
फिर भी उसने डूबने से पहले हाथों से छिपाकर लाज बचाने की एक बेहद कमजोर कोशिश की।
लाजो ने हाथ ऊपर बढ़ाए। दोनों तरफ से साए का कपड़ा बटोरकर मुट्ठी में लिया। मुट्ठी कसी और…
लाजो की धड़कन रुक गई, अब गया… गया..
रेशमा एक क्षण ठहरी, उसकी तड़पन और यातना का मजा लिया, फिर उसके हाथों में हरकत हुई और…
साया एक झटके से दीवार की तरह नीचे आ गिरा। संगमरमरी जांघें, गोल पिंडलियाँ, नीचे गिरे साये के घेरे में छिपी एड़ियाँ… छोटी सी पैंटी, बेहद संक्षिप्त, अपर्याप्त ! वाक्य के बीच ‘कॉमा’ (अर्द्धविराम) सी…
लाजो ने गिरने से बचने के लिए बहन के ही कंधे का सहारा ले लिया। मेरी इच्छा हुई अब रेशमा को रोकूँ। पूर्ण नग्न करना शय्या पर उत्तप्त कामक्रिया के समय ही अच्छा लगेगा।
किंतु रेशमा बंदूक से छूटी गोली की तरह पूरे वेग में थी। उसने लाजो की पैंटी में उंगलियाँ फँसाई और नीचे खींची। पैंटी जरा सा नितम्बों पर अटकी, पर खिंचाव की ताकत से फिसलकर नीचे आ गई। घुटनों में आकर रुकी।
मैंने देखा– पैरों के बीच से गुजरती उसकी पतली पट्टी! पानी से और उसके प्रेमरसों से भीगी ! उसे एक बार मुँह से छूने का खयाल मन में तैर गया। रेशमा ने पैंटी नीचे खिसकाकर उसकी एक एड़ी उठाई। लाजो ने विरोध नहीं किया। बहन का सहारा लिए लाजो का दूसरा पाँव भी उठाकर रेशमा ने पैंटी को निकालकर अलग फेंक दिया।
मैंने देखा– उसके तने चूचुक, गर्व से भरे उभरे स्तनों के माथे पर मुकुट की तरह सजे। पेड़ू से नीचे काली घनी फसल… मानों स्वर्ग के द्वार पर काले बादलों का झुण्ड ! साफ, केले के तने जैसी जांघें… किसी अकल्पनीय लोक से उतरी रति की साक्षात् मूर्ति…!
रेशमा ने मेरी ओर देखा, मैं आगे बढ़ा, रति की देवी के समक्ष… और समीप… और निकट… जबतक कि मेरे लिंग का कठोर मुँह उसके कोमल पेट में कोंचने न लगा… मेरी छाती ने उसके साँवले गुलाबी चूचुकों का स्पर्श किया और…
उस देवी ने आँखें मूंद लीं।
मुलायम गोलाइयाँ मेरी छाती पर दबकर चपटी हो गईं। मैंने उसके झुके माथे पर देखा– सिंदूर का दाग… उसके चुदे, भोगे, पुरुष के नीचे मर्दित होने का प्रमाण… मुझे गुस्सा सा आया… रति की देवी के समक्ष वह नकारा नपुंसक इंजीनियर… स्साला…
मेरे होंठ नीचे झुके- उसकी कान को हल्के दाँतों से काटने के लिए, उसकी धड़कती गर्दन पर छोटे छोटे चुम्बन अंकित करने के लिए… उसके नमकीन पसीने को चखने के लिए ! मेरे हाथ उसके बदन को घेरते हुए उसके पीछे की ओर बढ़े और उसके गोल नितम्बों को ढकते हुए उनपर टिक गए। मैंने उसे कसकर अपने में दबा लिया और उसके होंठों को ढूँढने लगा। उसकी बेहद गोपनीय उर्वर फसल, जिसे अबतक सिर्फ उसके पति ने देखा था, मेरी जाँघों पर फिरती हुई गुदगुदी पैदा करने लगी…
लाजो की पलकें उठीं। एक क्षण के अंश भर के लिए मुझसे आँखें मिलीं और अपनी लाल झलक देकर रेशमा की ओर मुड़ गईं। रेशमा उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। लाजो निश्चित नहीं थी कि क्या हो रहा है लेकिन उसका शरीर अब उसकी कुछ सुनने को तैयार नहीं था। उसकी एक ही इच्छा थी- वह जवान मर्द शरीर जिसने उसे बाँहों में पकड़ रखा था उसे प्यार करे, नहीं, उसे चोदे, उसकी ज्वाला शांत करे।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्‍टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
“इसको बिस्तर पर ले जाओ !” रेशमा ने आदेश दिया। वह अपने आपको गजब ताकतवर महसूस कर रही थी।
मैंने लाजो को तनिक घुमाया, अपना बायाँ हाथ उसकी पीठ के पीछे डाला और झुककर दायाँ हाथ पैरों के पीछे डाल उसको उठा लिया। घुटनों के मुड़ते ही उसने गिरने से बचने के लिए अपनी गोरी बाँहें मेरी गर्दन में डाल दी।
फूल सी हल्की नहीं थी वो ! थी तो रेशमा की बहन ही। मुझे खुशी हुई कि वह संभोग के धक्कों को सह लेगी।
रेशमा दो नंगों के पीछे चलती बेडरूम तक आई।
“डू फुल जस्‍टिस टु हर (उसके साथ पूरा इंसाफ करो)।” कहकर उसने हमारे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।
आगे बंद कमरे में लाजो के संग क्या हुआ:
दरवाजा बंद होने की आवाज उस शांत कमरे में आत्मा के अंदर तक गूंज गई। मैं खड़ा रह गया। पीछे लौटने का रास्ता सदा के लिए बंद हो गया था लाजो के लिए। रेशमा ने मुझे कितना बड़ा तोहफा दिया था– खुद अपनी बहन ! नंगी करके ! अब मैं उसे चो… सोचकर मेरे लिंग में फुरहुरी दौड़ गई ! कितनी बड़ी बात !!
लाजो मेरी चंगुल में थी। पंख नुची मुर्गी की तरह, चाकू खाने को तैयार। बिस्तर के बीच में बिछा सफेद तौलिया उसके खून का स्वाद चखने के लिए पुकार रहा था।
रेशमा को पूरा यकीन था कि लाजो की योनि अब भी खून बहाएगी? पता नहीं ! मुझे तो नहीं लगता था !
मैं आगे बढ़ा और उसे बिस्तर पर लिटाने के लिए हाथ आगे बढ़ाए पर उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं, अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए उसने खुद को मुझमें चिपका लिया। मैंने अपने दाहिने हाथ में उसके मुड़े घुटनों को उतारना चाहा तो वह दोनों पैरों को मेरी कमर के दोनों तरफ लपेटकर मुझमें छिपकिली की तरह चिपक गई। अपना चेहरा उसने मेरे गले में घुसा लिया।
मुझे उसकी इस अदा पर प्यार आया, मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसके दोनों पैर पीछे मेरी जांघों पर लिपटे थे।
मैंने उसके पीठ के पीछे झाँका– रीढ़ की सीधी हड्डी, पतली कमर और मेरे हाथ पर दबने से नितम्बों के उभरे मांस। नितम्बों के बीच शुरू होती दरार का आभास। औरत का जिन्दगी भर मोहित और उत्साहित किए रहने वाला शरीर। त्वचा से त्वचा का चिकना, मखमली, मुलायम स्पर्श। हाथों और पाँवों की आतुर जकड़। भगवान करे यह जकड़ कभी ढीली नहीं हो।
मैंने उसके कटाव के ऊपरी हिस्से में अंदर की गर्म गीली कोमलता में अपने लिंग की फिसलन महसूस की और पता नहीं कैसे उस वक्त मुझे लगा मैं उसे प्यार करने लगा हूँ। लगा कि इस एहसास से अलग कोई प्यार हो ही नहीं सकता, इस एहसास के बाद उससे प्यार होने से बचा नहीं जा सकता।
मेरे गले पर उसकी गर्म साँसों की टकराहट और मेरी छाती पर उसके उभरे मांसल वक्षों का दबाव, पेट पर उसके मुलायम रेशमी पेट का स्पर्श, कमर में उसकी जांघों का मांसल बंधन, मेरी धड़कन से टकराती उसकी धड़कन – सब इतने मग्न कर लेने वाले थे कि मैं उससे एकाकार होने के लिए आतुर हो उठा। दो कदम चलता बिस्तर के कोने तक आया और घूम कर उस पर थोड़ा सा चूतड़ टिकाकर बैठ गया। पीछे लिपटी उसकी एँड़ियों को उठाकर अपने पीछे बिस्तर पर रख लिया।
गोद में आकर उसकी ठुड्डी और कंठ मेरे मुँह के सामने आ गए। कंठ के अंदर गटकने की सरसराहट ने मेरे चूमते होंठों को गुदगुदाया। नर्म गले के नीचे कॉलर बोन की कठोर सतह, पसीने का नमकीन स्वाद। उसके शरीर की मादक गंध। मैंने और गरदन झुकाकर उसके स्तनों को चूसना चाहा पर वह मुझसे चिपटी थी और नीचे उसकी गीली फूल की पंखड़ियों में सरकते लिंग की असह्य उत्तेजना में इतना धैर्य मुश्किल था। मेरे कान में उसकी सिसकारियों और तेज गर्म साँसों ने मुझे उत्साहित किया और मैं उसकी योनि के रास्ते को अपने लिंग की सीध में लाने के लिए पीछे झुक गया।
वह अपने स्तनों के प्रकट हो जाने की लज्जा में अलग नहीं होना चाह रही थी, जबकि मैंने उन्हें उनकी पूरी भव्यता में उन पर चमकते साँवले घेरे के बीच उठे चूचुकों के साथ उसकी बहन के सामने देखा था। उसकी लाचार और लज्जित मुद्रा का सौंदर्य मेरे मन में पैठ गया था।
मैंने उसे चूमते हुए अपने बदन से लिपटी उसकी बाँहों को धीरे-धीरे ढीला किया और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर अलगाया। मुझे खुशी हुई कि उसने बाधा नहीं डाली। सामने प्रकट हुए स्तनों पर मैंने जानबूझ कर उन पर कोई हरकत नहीं की, नहीं तो वह फिर शर्म से लिपट जाती।
ढीला होकर अलग बैठते ही मेरे लिंग पर उसका भार पड़ा और लिंग उसके जांघों के बीच की दरार को लम्बाई में ढकता हुआ उसमें धँस गया। मैंने लाजो को बाँहों में कसकर दबा लिया। उसकी योनि और गुदा के बीच की नाजुक चमड़़ी लिंग की कठोर सतह पर खिंचकर फटने लगी और लाजो कराहकर मेरी गोद में और आगे खिसक गई।
मुझे उसके दर्द पर खुशी हुई। मेरे मन में उसके लिए कोमलता और क्रूरता दोनेां के भाव एक साथ आ रहे थे। आज असल मर्द का स्वाद ले रही हो, दर्द तो होगा ही। और कैसे कैसे दर्द सहने पड़ेंगे, देखना। अभी तो उस असली अंदर प्रवेश का, असल बलि चढ़ने का दर्द तो बाकी ही है। धीरे-धीरे रेतकर प्राण निकालूंगा। मर्द केवल मजे की चीज नहीं है। मगर पर इस दर्द को पाने के बाद इस दर्द को पाने के लिए रोओगी।
मैंने उसकी दोनों बगलों में हथेली डालकर उसे गोद से थोड़ा उठाया और एक बाँह से उसको थामकर दूसरे हाथ से उसके नितम्बों के नीचे उसकी योनि का छेद ढूंढने लगा। मैं समझ सकता था कि वह मुझे बाथरूम से निकलते समय नंगा देखने के बाद पूरे कपड़ों के उतरने तक कितनी देर से उत्तेजित अवस्था में रही होगी। पूरी चूत डबडबा रही थी और लिंग उसमें फिसल रहा था। मेरी उंगलियां भीग गईं।
उस अनमोल रस को बाद में चखूँगा !
मैंने उसकी तहों के बीच छिपी योनि का द्वार ढूंढ निकाला और लिंग को उसमें निर्दिष्ट करने लगा। लाजो मेरी गर्दन पर भार डालकर लिंग से योनि को बचाने की कोशिश करने लगी। पर वह बेसहारा थी, आगे से हाथ निकाल नहीं सकती थी और पीछे उसके पाँव सीधे होकर बिस्तर पर रखे थे।
मैंने एक शैतानी की, हाथ बढ़ाकर सिरहाने से तकिया खींचा और अपनी पीठ पीछे उसकी एड़ियों के नीचे घुसा दिया। उसकी एड़ियाँ और उठ गईं और वह उन पर कोई भार लेने में असमर्थ हो गई। मेरे उत्सुक लिंग को प्रवेश द्वार मिल गया और मैंने उसे वहीं टिका दिया। अब उसे अपने से अलग करना जरूरी था, ताकि अंदर का रास्ता लिंग की सीध में आ सके। मैंने हाथ पीछे ले जाकर तकिये पर उसके पाँव जकड़े और बाएँ हाथ को ढीला छोड़ते हुए पीछे झुक गया। लाजो पाँव उठे रहने के कारण आगे झुक नहीं सकती थी। उसने मुझे छोड़ दिया और सीधी बैठ गई। योनि की लाइन लिंग की लाइन में मिल गई और लाजो अपने भार से ही उसपर धँसने लगी। तलवार म्यान में समाने लगी।
मैंने चाहा नहीं था उसमें इस तरह का प्रवेश। मैंने तो खूब रोमैंटिक मिलन का ख्वाब देखा था। उसे बिस्तर पर लिटा कर, स्वयं उसके कपड़े उतारते हुए, उसे खूब चूमकर चूसकर गर्म करने की कल्पना की थी। मगर लाजो की स्थिति को देखते हुए मुझे यही स्वाभाविक लगा। उसकी अपमानित और असहाय अवस्था में थोड़ा बल प्रयोग के साथ संभोग ही सही रहेगा।
और यह भी कम मीठा नहीं था। लाजो किसी कुँआरी कन्या जैसी कसी हुई लग रही थी। शायद उसका पति छोटा था और मेरा यूँ भी सामान्य से थोड़ा ओवरसाइज। लाजो ने मेरी जांघों पर हाथ टिकाकर उसपर भार डालकर बचने की कोशिश की थी पर मैंने पीछे झु्ककर पीठ से उसकी एड़ियों को दबा दिया। उसकी कलाइयों को कसकर पकड़ा और फूल-सा उठा दिया। उसने अपने सामने स्तनों को ढकने के लिए जोर लगाया पर मैं आराम से अपने सामने खुले उस मजेदार दृश्य का पान करता रहा। साथ में मैं कमर से हल्के हल्के झटके दे रहा था। वह अनायास मुझमें सरकती जा रही थी।
स्वर्ग में प्रवेश भी इससे आनंददायक होता होगा क्या?
पर यह अभी भी आधा ही था, और इसी में उसके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ उभर रही थीं। मैं फैलने के लिए उसे ज्यादा समय नहीं दे रहा था, बस प्रवेश की गति को नियंत्रित किए था। अब पूर्ण प्रवेश का आश्चर्य देने के लिए उसके पैरों को मोड़ना था। मैंने उसे खुद से चिपकाया और पीछे से उसके पैरों को निकालते हुए बिस्तर पर पीछे खिसका और घूमते हुए उसे झटके से अपनी दूसरी ओर गिरा लिया। इस काम में मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर निकलने को हो आया। मैंने उसे वापस अंदर भेजा और अंदर धँसाए धँसाए ही उसके नितम्बों को खींचकर तौलिये पर ले आया।
लेकिन इस उठापटक में वह सचेत हो गई और विरोध करने लगी। मैंने अपनी छाती पर उसके कुछ कोमल मुक्कों का मजा लिया फिर उसके हाथ पकड़ लिए। उसके ऊपर सीधा हो गया और अपने शरीर का पूरा भार उसके ऊपर छोड़ दिया। मैंने उसके माथे पर अपना सिर रख दिया और अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा।
मेरे भार के नीचे दबी वह कुछ क्षणों तक कसमसाती रही। कसमसाने के दौरान उसकी योनि मेरे लिंग पर और सख्ती से कसकर बेहद नशीली रगड़ दे रही थी। ऐसा कुछ देर और चलता तो मैं शायद स्खलित ही हो जाता। लेकिन लाजो शांत पड़ गई। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निश्चय किया ताकि पहले न झड़ जाऊँ।
मैं लाजो के विरोध को अब जीत चुका था। उसने अपने अंदर मेरी मौजूदगी कबूल कर ली थी हालाँकि बीच बीच में विरोध करके हार से इनकार करने की कोशिश कर रही थी। अब यहाँ से मुझे उसको राजी करने तक की दूरी तक लाना था।
उसके अंदर धँसे लिंग पर से ध्यान हँटाते हुए मैंने उसके चेहरे को हाथों से पकड़कर सीधा किया और उसे देखने लगा। सुंदरता पर उत्तेजना और शर्म की लाली। जैसे फूलों के बगीचे पर सुबह के सूरज की लाली। हाय… मैंने उस लाल चेहरे को दबोचा और उसके मुँह पर अपना मुँह गाड़ दिया।
लाजो के मुँह का स्वाद ! आह, स्वर्ग था ! लार की हल्की सोंधी मिठास और मुँह के अंदर की हवा में फूल सी गंध। उसने साँस लेने के लिए मुँह उठाया तो मैंने शेर के जबड़ों की तरह उसके गले पर मुँह जमा दिया और उसके नमकीन सुगंधित पसीने को जोर जोर चूसने लगा। वह हिरनी-सी छटपटाने लगी। मैंने सिर उठाकर उसकी छटपटाहट देखी और खुश होकर पुन: उसके मुँह पर हमला कर दिया।उसके लार को अपने मुँह में खींचकर पुन: उसके मुँह में ठेल दिया। उसके चेहरे को जकड़े उसके मुँह पर मुँह जमाए रहा जब तक कि वह उसे पी नहीं गई।
मन में खयाल आ गया कि ऐसे ही मैं इसे अपने लिंग से पिलाउंगा। आवेग में भरकर मैंने उसे बार-बार चूमा। फिर से उसके लार को चूसा और उसे पिलाया। उसका विरोध घटने लगा और फिर कभी मैं, कभी वो एक दूसरे को पीने लगे।
कुछ देर में उसकी बाँहें मेरी गर्दन में कस गईं और उसने अपने सामने के हिस्सों को मेरी नजरों से बचाने के लिए खुद को मुझमें चिपका लिया। क्या मजेदार बात थी। कहाँ तो नीचे अपनी योनि में मेरे लिंग को समाए थी और कहाँ ऊपर अपनी छाती दिखाने में भी शर्मा रही थी। उसने अपना चेहरा मेरे गले में घुसा लिया।
मैंने हँसकर उसके बालों को चूमा और उसके नितम्बों के नीचे हाथ डालकर उसे सम्हाल लिया। उसने दोनों पैर मेरी जांघों के पीछे लपेट दिए।
धक्के लगाने की तीव्र इच्छा को मैं किसी तरह दबाए था पर जब उसने अपने पैर मेरी जांघों पर लपेट दिए तो मारे खुशी और उत्तेजना के मैंने खुद को रोकने की कोशिश छोड़ दी। मैं उसके बदन पर आगे पीछे नाव की तरह हिचकोले खाने लगा। लिंग उसकी मखमली तहों में फिसलने लगा। ऐसी कसावट भरी मादक रगड़ थी कि शादी के बाद के शुरुआती दिनों की याद आ गई।
मैं उसके बदन पर प्यार के हल्के हिचकोलों को क्रमशः सम्भोग के धक्कों में बदलने लगा। योनि में अंदर फिसलते लिंग के आगे-पीछे होने की लम्बाई बढ़ने लगी। लाजो का मेरी पीठ पर पहले प्यार से घूमता हाथ आवेग में भरकर नाखूनों के खरोंच छोड़ने लगा। खरोंच के दर्द को मैं धक्के मारकर भुलाने की कोशिश करता। लाजो कभी दर्द से, कभी आनंद से कराह उठती। रह-रहकर उसकी बाँहें और जांघें मेरे शरीर पर भिंचने लगी। मुझे लगा वह अब अपने रंग में आ रही है। सही औरत का एकदम गर्म उत्तेजित रूप, जिसे चरम सुख की पूर्ण अवस्था तक पहुँचाना किसी भी पुरुष का दायित्व होता है।
मैंने उस दायित्व को पूरा करने के लिए गति बढ़ा दी। नरम, नाजुक लाजो को अपनी हट्टी-कट्ठी बहन की तरह जोरदार धक्कों की जरूरत नहीं थी। वह आहें भर रही थी और चरम सुख के करीब थी। एक मन हुआ कि अभी लिंग निकालकर उसको इस अंतिम सुख के लिए तड़पाऊँ, पर वह बेचारी इतनी देर से उत्तेजना और अपमान की यंत्रणा भुगत रही थी। हमने उसपर बहुत अत्याचार किया था। अब उसको न्याय देना जरूरी था। मैंने उसकी जांघों को फैला दिया ताकि लाजो का योनिछिद्र और चौड़ा हो जाए और उसको धक्कों में दर्द कम हो। लाजो बहुत कसी हुई थी। शायद ज्यादा संभोग नहीं कर पाई थी। शुक्र था, उसका अपना गीलापन उसकी मदद कर रहा था।
रेशमा से अलग, एक नया शरीर, नया अनुभव।
पेड़ू से पेड़ू टकराने की पनीली फच फच आवाजें। कमरे में गूंजती आहें… ओ माँ… ओओओओह… आआआह… !
रेशमा को तो सुनाई पड़ ही रहा होगा ना ! शायद वो तो कमरे के दरवाजे पर कान लगाए खड़ी होगी !
अभूतपूर्व आनन्द !
‘फच’ ‘फच’ ‘चट’ ‘चट’ को लांघती एक लम्बी सिसकारी। मेरे कंठ से भागती हुई ‘हुम्म’ ‘हुम्म’… मैंने लाजो को लाल आँखों से देखा। उसकी गुर्राहटें और फिर खुले मुख से एक लम्बी आआआआह ! उसने मुझे एकदम से भींच लिया और कंधे में दाँत गड़ा दिए। रस्सी की तरह बदन मरोड़ने लगी। मैंने उसको अपनी जाँघों के बीच जकड़ा और पेड़ू से पेड़ू को खूब दबाकर मसलने लगा ताकि भगांकुर की कली कुचले। इसके साथ ही मुझे लिंग पर उसकी योनि की हिचकियाँ महसूस होने लगीं।
थोड़ी ही देर में उस पर एक रस की फुहार आई। चरम सुख की मथानी से मथकर निकला रस। लाजो बेसुध होने लगी।
मेरा भी अंत आ गया था। मैं जानता नहीं था उसने गर्भ निरोध का क्या उपाय किया था। उसे किसी परेशानी में नहीं डालना चाहता था। इसलिए मैंने लिंग को बाहर निकाल लिया और उसे हाथ से झटके देते हुए वहीं तौलिये पर वीरगति को प्राप्त हो गया।
कुछ क्षण उसके आनन्द में डूबे चेहरे को देखता रहा। उसके सुंदर स्तनों पर, जांघों के बीच अंतरंग बालों पर, पूरे शरीर पर नजर डाली, फिर उसकी बगल में लेट गया।
मैं बेहद खुश था। जिंदगी किसी सुंदर सपने में थी।
मुझे रेशमा का ख्याल आया, मैंने एक चादर खींचकर लाजो को ओढ़ाया और किवाड़ पर हल्की दस्तक दी, रेशमा ने पलक झपकते ही दरवाजा खोल दिया।
“हो गया ना?” उसने पूछा।
“हाँ।” मैंने बाहर निकलते हुए सुख से गदगद स्वर में कहा।
“पूरा… कर दिया न उसको?”
मैंने सिर हिलाया।
रेशमा अंदर घुसी।
“सोई है।” मैं पीछे से फुसफुसाया।
लाजो के चेहरे पर तृप्ति थी। रेशमा ने थोड़ा सा चादर उठाकर देखा, अंदर से उसके स्तन झाँक रहे थे।
लाजो की निद्रा टूट गई। बहन को देखते ही उसने चादर खींचकर मुँह ढक लिया, रेशमा ने चादर के ऊपर से ही उसको चूम लिया।



बीवी और साली एक साथ (Biwi Aur Sali Ek Sath)

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Bhauja की कहानियों का अवलोकन कर मुझे ऐसा लगा कि यहाँ काफ़ी हद तक कहानी सत्य तथ्यों के साथ लेखक पेश करता है। सभी पाठकों लिये पेश है मेरी सत्य कहानी !
यह घटना उन दिनों की है जब मेरी साली ग्रेजूएशन करने की जिद कर रही थी, मेरा ससुराल गाँव में है और वहाँ कोई कॉलेज नहीं है।

मेरी मैडम बोली- आप यहाँ हमारे पास रख कर करा दीजिये, मेरा भी काम बांट लेगी तो मुझे आराम मिल जायेगा।
तो मैंने कहा- ठीक है, बुला लो, अलग कमरे में रहने का पूरा इन्तजाम कर देना।
मैडम बोली- ठीक है।
वो हमारे साथ रह कर कॉलेज में पढ़ने लगी। साली जी देर रात तक पढ़ती, सुबह आराम से उठती।
यह देख मैडम परेशान होकर बोली- कल से हमारे साथ सोना, साथ जागना, घर का कुछ तो काम कर लिया करो।
‘ठीक है दीदी !’
रात खाना खाने के बाद मैडम फ्रेश होकर नाईटसूट में बेडरूम में आ गई तो मेरी साली बोली- मैं भी चेन्ज करके आती हूँ।
उसके जाते ही मैंने मैडम से कहा- फटाफट से एक किस दे दो।
मेरी बीवी बोली- आपकी साली सो जाय तब हमसे चिपक लेना !
‘ठीक है मेरी जान, जैसी मर्जी आपकी !
इतने में साली साहिबा फैंसी मैक्सी पहन परफ्यूम लगा कर बेडरूम में आई। उसकी खूबसूरती देख मेरी सांसें कुछ पल थम गई।
बैड पर मैं बीच में लेटा था, इधर उधर वे दोनों !
साली की मैक्सी का गला बड़ा था जिसमें से उसकी आकर्षक चूचियों के उभार मेरे मन को कामुक कर रहे थे।
पतली कमर पर डोरी कसी देख मेरा लण्ड फूलकर चिपचिपा हो रहा था।
खैर गपशप करते सो गए, नीद में करवट ली और कब मैं अपनी साली से चिपक गया, पता नहीं।
खैर रात में जब मेरी नींद जब खुली तो देखा कि सालीजी नागिन की तरह मुझसे चिपकी हुई थी, उसकी चूचियाँ साफ दिख रही थी।
मैंने उसके होंटों को चूमा तो वो जाग गई, बोली- जीजा जी, दीदी जाग जायेगी, जब वो कल मंदिर जायेगी, तब !
यह कहकर सालीजी ने मुझे किस किया- अभी सो जाईये !
अगले दिन मैडम रोजाना की तरह मंदिर गई, मेरे इंतजार की घड़ियाँ खत्म हो चली थी।
साली साहिबा चाय-नाश्ता लाई, चाय मेज पर रखते वक्त उसकी चूचियाँ बिजली गिरा रही थी।
मैं उसे अपनी बाहों में लेने के लिए उठा तो बोली- जीजाजी, पहले ब्रेकफास्ट कर लो। मैंने कहा- पहले रोमांस करेंगे, फिर नाश्ता !
बोली- अच्छा, दोनों एक साथ ! ठीक है ना?
यह कहते हुए वग मेरी बाहों में आ गई, मैंने उसकी चूचियों को हाथ से दबा कर देखा, चूचियाँ रबड की गेंद की तरह सख्त थी, मुझ से रुका नहीं जा रहा था, मेरा लण्ड फूलता गया, ऐसा लग रहा था कि फट जाएगा।
मैंने उसे सोफ़े पर लिटाया और उसके ऊपर लेट गया, बोला- जान, अब तड़फाना बन्द करो।
साली बोली- तो क्या करें?
मैंने कहा- कपड़े उतार लो !
वो बोली- मुझे शर्म आती है, आप खुद करो !
थोड़ी ही देर में उसने खुद ही अपने कपड़े उतार दिये, मैंने अपना लण्ड निकाल कर उसके हाथ में पकड़ा दिया।
मेरी साली बोली- कितना मोटा है, कितना गोरा !
मैने कहा- जान इस लण्ड को चूम करके अपनी चूत में धीरे धीरे डालो।
‘ठीक है !’ बोली- जीजाजी, पहली बार दर्द बहुत होगा, धीरे करना।
उसकी चूत गीली थी, मैंने अपना लण्ड का सुपारा उसकी चूत में डाला और धीरे धीरे हिलाने लगा।
वह मुस्करा कर बोली- थोड़ा अन्दर करो, बहुत खुजली हो रही है।
मैंने समझ लिया कि यह पूरा लन्ड खाने का मन बना चुकी है।
‘पहले अपने हाथ मेरे हाथों में दो, फिर मजा लो !’
बोली- बस? मेरी जान लो !
मैंने उसके हाथ पकड़ लिए और मैंने पूरा लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया, चूत का पर्दा फट गया था।
उसे दर्द हुआ पर मैंने उसके दर्द को अनदेखा करके उसकी चूत को चोदना शुरु कर दिया।कुछ ही देर बाद साली साहिबा बोली- बहुत मजा आ रहा है, जल्दी जल्दी करो ना !
इस तरह मैं मौका मिलते ही साली की चुदाई करने लगा। दो माह बीत गए, अब तो एक दिन भी अलग रहना हम दोनों को बुरा लगता था।
मैंने साली साहिबा से कहा- तुम्हें अपनी दीदी के सामने मेरे साथ सेक्स करने में तो कोई परेशानी तो नहीं होगी? मैंने मैडम से बात कर ली है, उसे कोई परेशानी नहीं।
वह तपाक से बोली- यदि उन्हें नहीं तो हमें भी नहीं ! पर आप पहले मुझसे करेंगे।
‘ठीक है !’
खैर रात हुई, तीनों बिस्तर पर लेट गये, कुछ देर बाद मैंने साली को चोदना शुरु किया।
तभी मैडम ने अपना हाथ से हमें टटोलना शुरु किया। लण्ड चूत के अंदर घुसा हुआ मस्त हो रहा था।
मैडम बोली- मैं टार्च की रोशनी से देखूँगी।
मैंने कहा- ठीक है।
मैडम देखते देखते कामुक हो गई, वो मेरे लण्ड और अपनी बहन की चूत को चाटने लगी।
तभी मेरी साली बोली- इनके अन्दर भी डाल दो ना !
मैंने कहा- एक शर्त पर ! तुम मेरा लण्ड अपने हाथ से अपनी बहन की चूत में डालोगी।
बोली- जानू, आपको जो अच्छा लगेगा वही आपकी जान करेगी।
साली साहिबा बोली- दीदी, आओ ना ! देखो, कितना प्यारा लण्ड है !
मैं अपनी बीवी के ऊपर लेट गया, साली साहिबा मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी दीदी की चूत पर रगड़ने लगी।
मैडम बोली- अन्दर घुसाओ ना !
मैंने लण्ड अन्दर घुसाया और मेरी साली अपने हाथों से कभी मेरे टट्टे, कभी मेरे चूतड़ तो कभी मेरी बीवी के चूचों को सहला रही थी।
इस तरह तीन साल बीत गए। अब वो कहती है- जीऊँगी तो दीदी-जीजू के साथ ! नहीं तो मर जाऊँगी।
मेरी साली साहिबा अब भी जिद करके हमारे साथ रह रही है, हर रात मिलन की रात होती है।

साली का कौमार्य भेदन (Sali Ka kaimarya bhedan)

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प्रेषक : मयंक गर्ग
मेरी शादी को सवा साल हो चुका था जब मेरी बीवी गुंजन ने मुझे बताया कि उसकी माहवारी नहीं हुई है, तो मैं उस दिन बहुत ही खुश हो गया, आठ दस दिन बाद उसे लेकर लेडी डॉक्टर के पास गया, टैस्ट करवाया तो पूरा यकीन हो गया कि वो पेट से है।

अब बीवी का ख़याल रखना था और उसे कम से कम कष्ट पड़े इस लिए मैंने थोड़े दिन के बाद अपने ससुराल फोन करके अपनी साली रचना को यहाँ बुलवा लिया। रचना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वह घर पर ही रहती थी। रचना मेरे साथ खूब हंसी मजाक कर लिया करती थी और वह दिखने में भी बहुत सेक्सी थी, बड़े विशाल चूचे, गोरे गाल, मस्त चाल और दो शब्दों में कहूँ तो एकदम तैयार माल !
रचना के यहाँ आने के बाद वो अपनी बहन का ख्याल रखने लगी थी, घर का सारा काम उसने सम्भाल लिया था। लेकिन मुझे तो उस दिन का इन्तजार था जब वो मेरे बिस्तर गर्म करने का काम अपनी दीदी से छुड़वा कर खुद सम्भालती।
उस दिन शनिवार था और गुंजन को बुखार हो गया था, गुंजन के लिए में डॉक्टर को घर लेकर आया। उसने कहा कि कुछ नहीं मामूली बुखार ही है ठीक हो जाएगा। उसने मेरी बीवी को नींद की गोली दे दी और कहा कि वह आराम करे।
शाम के खाने के बाद नींद की गोली असर दिखा गई और गुंजन सो गई। मैं और रचना बाहर के कमरे में थे।
शनिवार था इसलिए मैंने ठंडी बियर खोल रखी थी और हम दोनों ताश खेल रहे थे। बियर का ठंडा ठंडा नशा मुझे गर्म करने लगा था, रचना जब मुझसे मजाक करती थी तो मैं उसके उछलते कूदते स्तन देख कर मदहोश हुए जा रहा था। वैसे भी मेरे लंड को बीवी के गर्भवती होने की वजह से चूत या गांड की खुराक नहीं मिली थी। गांड और चूत के विटामिन ना मिलने से लंड की हालत पतली ही थी। रचना के दोनों उरोज जोर जोर से इधर उधर हो रहे थे इसका मतलब कि उसने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी। मेरे लंड में तनाव आने लगा। मैंने भी बगैर अंडरवीयर के ही लाल रंग का बरमुडा पहेना था जिसके आगे मेरा लंड खड़ा होने से छोटी छतरी बन गई थी।
मैंने गौर किया कि रचना भी मेरे बरमुड की उठान की तरफ कभी कभी देख रही थी, 20 साल की जवानी शायद इस फ़ल का स्वाद अनुभव करना चाहती थी।रचना के हल्के टी-शर्ट और छोटे बरमुडे की वजह से उसकी गोरी मांसल जाँघें मुझे दिख रही थी और लौड़ा परेशान होने लगा था। मैंने रचना को कहा- यहाँ थोड़ी गर्मी है, चलो छत पर चलते हैं।
वह मेरे साथ ऊपर आ गई, वह प्लास्टिक की कुर्सी लेकर मेरे आगे चल रही थी, ऊपर एक कुर्सी पहले से थी इसलिए मैं केवल अपनी बोतल लेकर चढ़ा। रचना मेरे आगे सीढ़ियाँ चढ़ रही थी और मैं उसके मटकते हुए कूल्हे देख रहा था, मन तो कर रहा था कि उसके चूतड़ों को अपने हाथ से सहारा देकर उसे छत पर ले जाऊँ, पर मैं खुद पर काबू रखे था। तभी रचना का पाँव सीढ़ियों में रखे कुछ सामान से टकराया और वो लड़खड़ा गई।
रचना गिरे उससे पहले मैंने अपनी बाजू में उसे पीछे से थाम लिया। मेरा तना हुआ लण्ड उसके चूतड़ों को छू बैठा, उसे भी मेरे लंड की गर्मी का अहसास हो गया, वह संकुचाती सी मेरी बाजुओं से निकली और हम दोनों ऊपर आ गए।
छत पर हम दोनों आमने सामने कुर्सी डाल कर बैठ गए, अब उसकी नजर मुझ से मिल नहीं रही थी। मैं समझ गया कि उसके इरादे भी डगमगा गए हैं !
मैंने भी आज अपनी साली की चूत मार लेने का मन बना ही लिया। दारु चढ़ी तो थी लेकिन फिर भी मैं होश में था। रचना भी बीच बीच में मेरी जांघों की तरफ देख रही थी, मैंने अब धीरे धीरे रोमाँटिक बातें चालू की बोयफ्रेंड वगैरह की।
थोड़ी देर में ही वह पूरी खुल गई और सारी बातें करने लगी मुझसे। रचना को मैंने बताया कि मैं कैसे कॉलेज में लड़कियों से मस्ती करता था।मैंने अपना पैर सामने रचना की कुर्सी पर रख दिया जो उसकी जाँघ के बाहरी हिस्से को छू रहा था, वह कुछ नहीं बोली !
हम दोनों बातें करते गए और मैं अपना पाँव उसकी जांघ पर रख कर सहलाने लगा, उसने कोई आपत्ति नहीं की।
मेरी हिम्मत अब खुल गई थी और मैंने अपनी कुर्सी उसके बगल में सरका ली, उसके कन्धे पर हाथ रख कर बात करने कगा। धीरे धीरे मैंने अपना हाथ रचना के वक्ष पर सरका दिया तो वह बोली- जीजू, यह क्या कर रहे हैं?
उसके आवाज में परेशानी से ज्यादा खुशी छिपी थी, मैंने दूसरा हाथ भी उसकी जांघ पर रखा और नीचे से उसके बरमुडा में जरा सा सरका कर दबा दिया।
रचना की आँखें बंद हो गई और वह सिसकारी भरने लगी। दोस्तो, सिसकारी का मतलब होता है मजा आना, तो रचना को गर्म देख मैंने भी हथौड़ा मार देने की ठान ली। मैंने रचना का हाथ पकड़ कर उसे खड़ी किया और अपनी जान्घों पर बिठा कर उसकी शर्ट में एक साथ दोनों हाथ घुसा दिये, उसके चूचे मेरे अनुमान के मुताबिक बगैर ब्रा के ही थे। नीचे मेरा लौड़ा उसके चूतड़ों की दरार में रास्ता खोजने में लग गया। कुछ देर बाद मैंने उसकी टीशर्ट उतारने की कोशिश की तो रचना ने मेरे हाथ रोक मेरी जाँघों से उठ कर नीचे आ गई। उसके पीछे मैं भी नीचे आ गया और आते ही सबसे पहले अपने बेडरूम के दरवाजे को बाहर से कुण्डी लगा दी ताकि नींद की गोली के नशे में सोई गुंजन जागे तो भी हम पकड़े तो ना जाएँ।
रचना दूसरे बेडरूम में आकर बेड पर बैठ गई थी, मैंने वहाँ आकर रचना को दबोच लिया और उसे लिटा कर उसके ऊपर आ कर होंठ उसके लबों पर टिका दिए।
कुछ देर उसके साथ प्रगाढ़ चुम्बन के बाद मैंने उसकी टी-शर्ट उसके गले से खींच ली तो उसके मस्त गुलाबी चुचूकों वाले चूचे मेरे सामने नुमाया थे। मैंने अपने अधर इन देसी दुग्ध कलशों पर रख दिए और रचना के दोनों हाथ स्वतः मेरी पीठ के ऊपर हाथ आ गए।
रचना के चुचूकों को काफ़ी देर चूसा और फ़िर मैंने उसके बरमुडा का बटन खोल दिया, उसे उसकी चिकनी जंघाओं पर से फ़िसलाते हुए उतार फेंका।
ओह क्या जवान चूत थी !
जी हाँ ! बिना किसी आन्तरिक आवरण के यारो ! फूली हुई, छोटे छोटे बालों वाली चूत के लाल लाल होंठ ऐसे बन्द थे मानो सुहागरात को शरमाती हुई दुल्हन अपना मुंह खोलने से कतरा रही हो !
मैंने अब निप्पल चूसते चूसते चूत के ऊपर हाथ फेरना शुरु किया, रचना की चूत अब गीली होने लगी थी। मुझे इस देसी सेक्सी चूत चूसने की तलब लगी और मैंने रचना के एक पाँव को बेड के सिराहने पर रखा और दूसराअपने बायें हाथ में पकड़ कर ऊपर उठा दिया। अब चूत के ऊपर मैं अपना मुँह रख के उसकी चूत के होंठों को हल्के हल्के जीभ से चाटने लगा, रचना की सिसकारियाँ बढ़ गई और एक तीव्र झटका लगा जब मेरी जीभ उसकी चूत के होंठों को पार करके अन्दर घुसी। उसकी चूत का रस खारा खारा था और चूत के अंदर जीभ जाते ही रचना ने दोनों हाथों से मेरा सिर कस कर पकड़ लिया।
पहली बार की चूत चुसाई उसको बहुत उत्तेजित कर रही थी। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
तीन चार मिनट रचना की चूत चूस और चाट कर मैं खड़ा हुआ और मैंने अपनी बनियान निकाली। मेरी छाती के बालों को देख उसके होंठों पर मुस्कान छा गई।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाया और उसके हाथ अपने बरमुडा की इलास्टिक पर रख दिए। बिना कुछ कहे वो समझ गई कि मैं क्या चाह रहा हूँ पर वो उसे नीचे खिसकाने का साहस ना कर पाई। मैंने उसका सिर पकड़ कर अपने बरमुडा में छिपे लिंग कर उसका चेहरा दबा दिया, कहा- रचना जी इसे उतारने पर ही आपको असली चीज के दर्शन हो पाएँगे।
उसने शरमा कर निगाहें ऊपर करके मेरी आंखों में देखा तो मैंने अपनी एक आँख दबा दी और खुद ही अपना बरमुडा नीचे सरका दिया।
लंड की लम्बाई देख कर रचना डर सी गई !
मैंने अपना 7 इंच लम्बा लंड पकड़ा और उसका अग्र भाग उसके अधरों पर फ़िराने लगा।जैसे ही उसके लब कुछ खुले, मैंने लण्ड को उसके मुख में पेल दिया।
रचना मुश्किल से आधा लंड ले पाई होगी कि मैं उसका मुखचोदन करने लगा। रचना को लण्ड चूसना नहीं आ रहा था, मैं लंड हिला हिला कर उसको चुसाने लगा पर सच कहूँ मुझे उसके लंड चूसने में बिलकुल मजा नहीं आया, शायद गुंजन लंड चूसने में सबसे बढ़िया है।
मैंने रचना के मुँह से अपना लंड और अपने चूतड़ों से लिपटे उसके हाथ दूर किये, रचना चुदने जितनी गर्म तो हो ही चुकी थी। मैंने रचना को धक्का देकर बिस्तर पर गिराया और उसके पैर पकड़ कर अपने कन्धों पर रख कर अपना लंड उसकी बिन खुली चूत की पंखुड़ियों पर रख दिया। रचना की चूत बहुत गीली हो चुकी थी।
मैंने बिना जल्दबाजी किये धीमे धीमे पहले लंड को उसकी चूत के ऊपर रगड़ा साथ ही उसके कूल्हों को सही एडजस्ट किया और फिर सही अवसर देख कर एक धीमा झटका मारा।
रचना चिल्ला पड़ी- ओह ओह्ह्ह्हह्ह अई माँ ! मर गई मैं !
इसके साथ ही मैंने बिना समय गंवाए अपने अगले झटके से उसका कौमार्य भेदन कर दिया।

साली जवान जीजा परेशान (SALI JAWAN JIJA PARESAN)

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प्रेषक : ऐपी फ़िज़
मेरी मस्त साली शिखा 19 साल की है पर चूची 34, कमर 30 और गांड 36 तो कुल मिलाकर चोदने के लिये मस्त चूत थी। पर साली हाथ ही नहीं रखने देती थी। जाने कितना ही वीर्य मुठ मार कर बहा चुका था उसके नाम पर।
पर कहते हैं कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। एक दिन वो मौका मिल ही गया। वो अपनी दीदी और जीजा यानि हमारे के यहाँ रहने आई।

मेरी पत्नी रुचि वैसे तो अपनी बहन से बहुत प्यार करती है पर जब भी मैं उसके पास अकेले रहने की कोशिश करता तो मेरी पत्नी उसे कोई बहाना कर अपने साथ ले जाती, शायद वो मेरी नीयत पहचान गई थी। रात को जब सब सोते तो मैं अपनी साली के सोने के बाद उसके बदन को सहलाता, चूची दबाता फिर मुठ मार कर सो जाता। वो एक माह के लिये यहां आई थी।
एक दिन मेरी पत्नी को आफिस जल्दी जाना पड़ा और उसे शाम को भी देर से आना था। मेरी साली सो रही थी, मैं उसके पास आया, वो उस समय एक स्कर्ट पहने सो रही थी। स्कर्ट उसकी गोरी मखमली टांगों से ऊपर उठ कर जांघों तक तक़रीबन चड्डी से कुछ ही सेंटीमीटर नीचे रह गई थी। सुबह सुबह इस दृश्य को देख कर मेरे अन्दर का शैतान जाग गया। वैसे भी मेरी साली को आये चार दिन हो गये थे और मैं अपनी बीवी को भी नहीं चोद सका था। सिर्फ़ मुठ मार कर सो जाता था।
मैं अपनी साली की गोरी, नर्म, गुदाज़ जांघों को सहलाने लगा। फ़िर मैंने जांघों पर चुम्मी ली और स्कर्ट को पूरा ऊपर उठा दिया। 15 मिनट तक मैं जांघों को चूसता और सहलाता रहा। फ़िर मैंने अपनी साली के चेहरे की तरफ देखा, वो अभी तक बिना हरकत के पड़ी हुई थी।
अब मैंने उसकी शर्ट का बटन खोल दिया और ब्रा खोलने की कोशिश में लग गया। मेरी शादी को दो साल हो गए हैं इसलिये ब्रा खोलने में मैं अनुभवी था। अब उसके मस्त चूचुकों को आज़ाद करा के मैं मसलने लगा। अभी तक आधा घंटा हो चुका था, फ़िर भी कोई हरक़त नहीं हुई थी। मुझे शक़ हुआ। मैंने ज़ोर से चूचुकों को मसला और चूसना शुरु कर दिया।
अब धीमी धीमी आहें मेरे कानों में सुनाई देने लगी। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने शिखा की तरफ़ देखा और कहा- आँखें खोल लो और मज़े लो, इस तरह ना मुझे मज़ा आयेगा और ना तुम्हें।
उसने अपनी आँखें खोल दी। उसका लाल चेहरा बता रहा था कि वो गर्म हो रही है, आखिर जवान थी और नया खून था।
अब मैं अपनी साली की शर्ट और ब्रा दोनों उतार के ढंग से चूची चूसने लगा। बीच बीच में मैं उन्हें मसल भी देता था। उसकी सिसकारियाँ तेज होती गई। अब उसके गदराये जिस्म को देख कर मेरे जिस्म मे चींटियाँ सी रेंगने लगी। मैंने शिखा के शरीर से बाक़ी कपड़े भी उतार दिये और जगह जगह चूमना शुरु कर दिया।
वो तो पागलों की तरह हाथों से मेरे शरीर पर नाखून मारने लगी और मेरे अंडरवीयर में हाथ डाल के मेरे लंड को दबाने लगी। मैं समझ गया कि अब यह पूरी तरह गर्म हो चुकी है। मैंने अपने कपड़े भी उतार दिये।
नई और कुंवारी चूत की सील तोड़ने और ज्यादा देर तक अपनी साली को चोदने के लिये मैंने ओनली मी स्प्रे शिश्न मुन्ड पर स्प्रे करा था। फ़िर अपनी साली को पलंग पर लिटा कर उसकी दोनों टांगों को फैला दिया और उसकी गुलाबी चूत पर अपनी जीभ चलाने लगा। वो मेरे बाल खींचने लगी। फ़िर मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत पर लंड को रख कर एक धक्का दिया।
करीब दो इंच लंड अन्दर चला गया मगर जैसे ही मैंने बाकी 5 इंच लंड अन्दर करने के लिये धक्का मारा, शिखा चीख पड़ी।
मैंने उसके चूचुकों को चूसना शुरु कर दिया। थोड़ी देर में वो शांत हो गई और अन्दर करने के लिये कहने लगी। अगले दो धक्कों में में मेरा 7 इंच का लंड पूरा अन्दर था। वो चीखती रही पर ये एक शाश्वत सत्य है कि लड़कियाँ पहली बार लंड अन्दर करने के समय जितना रोती-मचलती हैं, और अगर ढंग से पहली चुदाई का मज़ा दिया जाये तो वो बड़ी चुदासी हो जाती हैं और आगे जीवन में खुल कर चुदाई का मज़ा लेती और देती हैं। पर शिखा दर्द से रोने लगी और छुटने की कोशिश करने लगी। उस पर जैसे ही उसका पर्दा फ़टा वो तो बेहोश सी हो गई।
पूरा लंड अन्दर करने के बाद मैं उसकी चूची चूसने लगा और कुछ देर बिना लंड में कोई हरक़त किये पड़ा रहा। फ़िर धीरे धीरे मैंने अन्दर-बाहर करना शुरु कर दिया। थोड़ी देर में ही मैंने अपनी गति तेज़ कर दी। शिखा अब मेरे साथ चुदाई का मज़ा लेने लगी और उछल-उछल कर मेरे धक्कों का जवाब देने लगी।
कुछ देर शिखा को नीचे डाल के पेलने के बाद मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया तो शिखा देखने लगी कि अब क्या होने वाला है। मैं उसे पलंग के कोने पर उलटा लिटा कर उस के पैर खोल कर फ़िर अपना लंड अन्दर करने लगा और इस बार लंड अन्दर-बाहर करने के साथ मैंने उसकी गांड में उंगली करनी शुरु कर दी। उसकी साँस तेज़ चलने लगी और शरीर में हलचल सी होने लगी। मैं समझ गया कि यह अब झड़ने वाली है।
मैंने फ़िर अपना लंड बाहर निकाल लिया और शिखा को फ़िर मिशनरी स्टाइल में चोदना शुरु कर दिया। 4-5 तेज़ धक्कों में ही उसनें अपना पानी छोड़ना शुरु कर दिया और मुझे कस कर पकड़ लिया। 2-3 धक्कों के बाद ही मेरा पानी भी निकल गया और मैंने शिखा की नर्म, मुलायम और गर्म चूत के कोने कोने को भिगो दिया।
मैंने जब उससे पहली चुदाई के बारे में पूछा तो उसने कहा- सच में बहुत मज़ा आया।
उसने उठने की कोशिश की तो दर्द की शिकायत की। मैं अपनी गोद में उठा कर उसे बाथरुम में ले गया। वहाँ मैंने उसकी चूत को गर्म पानी से सेंका और धो दिया। सिकाई के कारण उसे दर्द में आराम हुआ। फ़िर उसने मेरा लंड धो दिया।

ଅନାମିକା ନାୟୀକା (ANAMIKA NAYIKA)

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ନନ୍ଦୁର ଲାଳୁଆ ବିଆ (NANDU RA LALUAA BIA)

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जीजा मेरे पीछे पड़ा… (JIJA MERE PICHHE PADA)

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शालिनी राठौर
कैसे हो जी…?
मजे में ना…?
भूले तो नहीं ना मुझे…?
मैं शालिनी जयपुर वाली… !
मेरी पहली कहानी “तो लगी शर्त” याद है ना?
बहुत पसंद की थी आप लोगों ने ! इतने मेल आए कि गदगद हो गई आप सबका प्यार देख कर।
आप सबका प्यार देख कर दिल किया कि आगे की मजेदार बातें भी आप लोगों से करूँ।
जैसा कि मैंने आपको बताया था कि जीजा वो दूसरा इंसान था जिसका लण्ड मैंने अपनी चूत में लिया था। पहला मेरा पति और दूसरा मेरा जीजा। जीजा ने मेरे घर में आकर मेरी जो चीखे निकलवाई कि मैं तो जीजा की और जीजा के लण्ड की दीवानी हो गई। उस चुदाई के बाद तो जीजा का अक्सर मेरे घर पर आना जाना हो गया और मेरे पति और जीजा की भी अच्छी दोस्ती हो गई। जीजा जब भी आता तो मुझे चोदने का एक भी मौका नहीं छोड़ता था या यूँ कहो कि मैं चुदवाए बिना जीजा को जाने ही नहीं देती थी।
जब भी जीजा आता और मुझे चोदता तो मेरी गाण्ड की इतनी तारीफ करता की पूछो मत। हर बार वो मुझे लण्ड गाण्ड में डलवाने के लिए मनाता पर मूसल जैसे लण्ड को देख कर मेरी हवा सरक जाती और मैं किसी न किसी बहाने जीजा को टाल देती।
एक दो बार जीजा ने अपनी उंगली घुसाई भी मेरी गाण्ड में जिससे मुझे बहुत दर्द हुआ। मैं डर गई कि जब पतली सी उंगली से ही इतना दर्द होता है तो जब मोटा मूसल जैसा लण्ड इसमें जाएगा तो मेरी तो जान ही निकल जायेगी।
कुछ महीने बीते और तभी जीजा की बहन यानि मेरी चचेरी बहन सुमन की ननद की शादी तय हो गई। जीजा ने हमें भी न्यौता दिया था। जीजा जब शादी का कार्ड देने आया था तो मुझे कह गया था कि शादी में जब आओ तो अपनी गाण्ड पर अच्छे से तेल लगा कर आना।
मैंने सोचा कि जीजा मजाक कर रहा है और मैंने वो बात हँस कर टाल दी।
आखिर शादी में जाने का दिन भी आ गया। मैं अपने पतिदेव के साथ बन-ठन कर जीजा के घर के लिए रवाना हो गई। जब मैं तैयार हो रही थी तो मुझे एकदम से जीजा की बात याद आई तो मेरी गाण्ड में गुदगुदी होने लगी। अनजाने में ही मेरा हाथ पहले चूत पर और फिर गाण्ड पर चला गया, मैं मन ही मन हँस पड़ी, मैंने कुछ सोचा और फिर एक उंगली भर कर गाण्ड पर तेल लगा लिया।
रास्ते भर मैं इसी बात को सोच सोच कर मंद-मंद मुस्कुराती रही। पतिदेव ने एक दो बार पूछा भी पर मैंने बातों बातों में टाल दिया।
सफर जैसे जैसे खत्म हो रहा था मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी। और फिर हम जीजा के घर पर पहुँच ही गए। जीजा भी जैसे मेरे ही इन्तजार में दरवाजे पर खड़ा था। मुझे देखते ही उसने आँख दबा कर मेरा स्वागत किया तो मैंने भी जवाब में आँख दबा दी। घर पहुँच कर सबसे मिलना जुलना हुआ और जीजा ने मेरे पति को अपने किसी दोस्त के साथ पास के शहर में कुछ सामन लाने भेज दिया।
कुछ ही देर बाद जीजा आये और मुझे बुला कर अपने साथ चलने को कहा।
“जीजा…सब लोग क्या सोचेंगे… अच्छा नहीं लगेगा ऐसे जाना !”
पर जीजा मुझे घर के पीछे वाले दरवाजे पर आने का बोल कर चले गए। मैं कुछ देर तो सोचती रही पर फिर अपने आप को जाने से नहीं रोक पाई। दरवाजे से निकली तो पीछे एक गाड़ी खड़ी थी। जीजा उसमे पहले से ही बैठा था। मैं भी जाकर बैठ गई तो जीजा ने गाड़ी एक सड़क पर दौड़ा दी।
इस बीच मैंने जीजा से दो-तीन बार पूछा- कहाँ ले जा रहे हो?
पर जीजा ने कोई जवाब नहीं दिया और बस बोले- तुम्हें जन्नत की सैर करवाने ले जा रहा हूँ।
कुछ देर के सफर के बाद जीजा ने खेतों में बने एक मकान की तरफ गाड़ी घुमा दी। मकान के गेट पर ताला लगा था। जीजा ने ही ताला खोला और हम दोनों अंदर चले गए।
अंदर जाते ही जीजा ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैं तो खुद जीजा की दीवानी थी तो भला मैं अपने आप को कैसे रोक सकती थी तो मैंने भी जीजा का साथ देने लगी। जीजा दीवानों की तरह मुझे चूम रहा था। उसके हाथ मेरी चूचियों को टटोल रहे थे।
कुछ देर बाद जीजा ने मुझे अपनी बाहों में उठाया और अंदर एक कमरे में ले गए जहाँ एक डबलबेड था। जीजा ने मुझे बेड पर लेटा दिया और खुद अपने कपड़े उतारने लगे।
मैंने पूछा तो जीजा ने बताया कि यह उनके एक दोस्त का मकान है और वो दोस्त मेरे पति को लेकर शहर गया है ताकि मैं तुम संग मज़ा कर सकूँ।
मेरी हँसी छूट गई जीजा की मेरे प्रति दीवानगी देख कर।
खुद के कपड़े उतारने के बाद जीजा मेरे पास आया और मेरे कपड़े मेरे शरीर से अलग करने लगा। देखते ही देखते जीजा ने मेरे बदन पर एक भी कपड़ा नहीं छोड़ा और मुझे बिल्कुल नंगी करके ही दम लिया।
जीजा ने अभी भी अंडरवियर पहना हुआ था जिसमें जीजा का लण्ड एक गाँठ की तरह लग रहा था। मैंने भी देर नहीं की और लण्ड महाराज को अंडरवियर की कैद से आजाद करवाया। बाहर निकलते ही लण्ड अपने पूरे शबाब के साथ तन कर खड़ा हो गया। मैं तो दीवानी थी इस लण्ड की। नौ इंच लम्बा और तीन इंच से ज्यादा मोटा लण्ड देख कर तो किसी भी औरत की चूत पानी पानी हो जाए तड़प उठे उसे अपने अंदर लेने को।
जीजा ने लण्ड मेरे मुँह की तरफ किया तो मैंने धीरे धीरे लण्ड को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया और सुपारे को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। फिर कुछ देर तक लण्ड को चूसा और जीजा को मस्त कर दिया। जीजा ने मुझे सीधा लेटाया और लण्ड मेरी चूत में उतार दिया। जीजा का लण्ड अंदर घुसते ही मेरी आह्ह निकल गई।
जीजा जबरदस्त चुदाई करने लगा। चुदाई करते करते उसने एक उंगली मेरी गाण्ड पर लगाईं तो उसे चिकनाई का एहसास हुआ।
जीजा हँस पड़ा और बोला- साली साहिबा अपने जीजा का कितना ख्याल रखती हैं… गाण्ड पर तेल लगा कर आई हैं। यह कहानी आप BHAUJA डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
मेरी भी हँसी छूट गई। जीजा ने स्पीड बढ़ा कर चुदाई करनी शुरू की तो आठ दस धक्कों के बाद ही मेरी चूत से झरना बह निकला। मैं झड़ गई थी।
मेरे झड़ने के बाद जीजा ने लण्ड चूत में से निकाला और मेरी गाण्ड के नीचे एक तकिया रख कर मेरी टाँगें खुली कर दी। मैं देख तो नहीं सकती थी पर जीजा ने बताया कि मेरी गाण्ड किसी फ़ूल की तरह खिली हुई थी। जीजा ने पास में रखी एक तेल की शीशी से कुछ तेल लेकर मेरी गाण्ड पर लगाया तो मैं सिहर उठी। अब मुझे डर सताने लगा था कि जीजा आज लण्ड से मेरी गाण्ड फाड़ देगा।
पर जीजा तेल ले लेकर मेरी गाण्ड पर और गाण्ड के अंदर लगाने लगा। मेरे अंदर मस्ती भरती जा रही थी। जीजा की तेल से सनी उंगली मुझे मेरी गाण्ड में बहुत मज़ा दे रही थी। जीजा ने तेल लगा लगा कर मेरी गाण्ड पूरी चिकनी कर दी और फिर अपना लण्ड मेरी गाण्ड पर रगड़ने लगा तो मैंने डर के मारे अपनी गाण्ड कस ली।
पर कितनी देर….? गाण्ड तो आज फटनी ही थी।
जीजा ने मेरी टाँगे अच्छे से खुली की और मेरी गाण्ड के छेद पर लण्ड रख कर अंदर की तरफ दबाने लगा। मुझे दर्द का एहसास हुआ पर तेल जीजा की मदद कर रहा था और जब जीजा ने थोड़ा जोर लगा कर लण्ड को अंदर सरकाया तो जीजा का मोटा सुपारा मेरी गाण्ड को भेद कर अंदर घुस गया। मेरी चीख निकल गई। दर्द के मारे आँखें फट पड़ी। जीजा ने मेरी हालत की तरफ ध्यान नहीं दिया और थोड़ा सा उचक कर एक और धक्का लगा कर करीब दो इंच लण्ड मेरी गाण्ड में उतार दिया। मैं दुगनी आवाज में चीख पड़ी- आह्ह….. जीजा मेरी गाण्ड फट गईई…. निकाल्ल लो बाहर…
पर जीजा तो पक्का खिलाड़ी था। वो तो बस मुझे मजबूती से पकड़ कर लण्ड को ज्यादा से ज्यादा अंदर तक उतारने में लगा था। मैं चीखती रही और जीजा मेरी हालत का मज़ा लेता रहा। हर बार थोड़ा रुक कर जीजा एक धक्का लगाता और लण्ड को और ज्यादा मेरी गाण्ड में उतार देता। गाण्ड में बहुत दर्द हो रहा था। मेरी आँखों से आँसू बह निकले थे। दर्द मुझ से बर्दास्त नहीं हो रहा था। मैं पुरजोर कोशिश कर रही थी जीजा का लण्ड अपनी गाण्ड से बाहर निकालने की पर जीजा ने मुझे ऐसे जकड़ रखा था कि मैं हिल भी नहीं सकती थी।
लण्ड आधे से ज्यादा मेरी गाण्ड में चला गया था। जीजा ने थोड़ा तेल मेरी गाण्ड और अपने लण्ड पर टपकाया और फिर जितना लण्ड गाण्ड में घुसा था उसे ही अंदर-बाहर करने लगे। हर धक्के के साथ मेरी दर्द भरी चीख निकल रही थी। जीजा अगले पाँच मिनट तक ऐसे ही मेरी गाण्ड में लण्ड पेलता रहा और हर धक्के के साथ थोड़ा सा लण्ड मेरी गाण्ड में सरकता रहा।
मैं दर्द के मारे रो रही थी। जब लण्ड थोड़ा सा रह गया तो जीजा ने एक जोरदार धक्का लगाया और पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में फिट कर दिया।
लण्ड पूरा घुसते ही जीजा ने थोड़ा सा तेल और टपकाया और फिर पहले धीरे धीरे और फिर तेज गति से लण्ड को मेरी गाण्ड में अंदर-बाहर करने लगा। कुछ देर तो मैं भी दर्द से तड़पती रही पर फिर मुझे भी यह अच्छा लगने लगा। जीजा ने मेरे आँसू साफ़ किये और मेरे होंठों पर चुम्बन देने लगा, मेरी चूचियाँ मसलने लगा।
मेरी गाण्ड धीरे धीरे जीजा के लण्ड की अभ्यस्त हो गई और अब लण्ड आराम से अंदर-बाहर हो रहा था। जीजा ने अपना लण्ड बाहर निकाला और मुझे घोड़ी बना कर मेरे ऊपर आ गए और पीछे से लण्ड मेरी गाण्ड में उतार दिया। इस आसन में लण्ड आराम से गाण्ड में आ-जा रहा था और मुझे इस में मज़ा भी ज्यादा आया।
अब जीजा मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर मसल रहे थे और पीछे से लण्ड मेरी गाण्ड में पेल रहे थे। मेरी दर्द भरी चीखें अब मस्ती भरी आहों में बदल गई थी। मेरी चूत से भी मस्ती भरा रस टपक रहा था। जीजा मस्त होकर मेरी गाण्ड मार रहा था और मैं मस्ती में गाण्ड उचका उचका कर जीजा का लण्ड अपनी गाण्ड में ले रही थी।
चूत चुदवाने से भी ज्यादा मज़ा महसूस हो रहा था क्यूंकि लण्ड पूरा रगड़ रगड़ कर अंदर आ-जा रहा था।
पन्द्रह मिनट की धक्कमपेल के बाद मैं घोड़ी बनी बनी थक गई थी। जीजा ने भी मेरी हालत को समझा और मुझे सीधा लेटा कर एक बार फिर लण्ड अंदर डाल दिया। सीधे लेटने के बाद जीजा मस्ती के मूड में था तो वो लण्ड एक बार मेरी गाण्ड में डालता और फिर निकाल कर मेरी चूत में घुसा देता। इस तरह जीजा मुझे दो दो मज़े एक साथ दे रहा था।
कुछ देर की मस्ती के बाद जीजा ने लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया और जोर जोर से धक्के मारने लगा। मैं समझ गई थी की जीजा का लण्ड अब रस की बौछार करने वाला है। मैं भी गाण्ड उठा उठा कर लण्ड अंदर लेने लगी।
करीब बीस पच्चीस धक्को के बाद जीजा के लण्ड से फव्वारा चल पड़ा और मेरी चूत को अपने गर्म गर्म वीर्य से भरने लगा। वीर्य की गर्मी मात्र से ही मेरी चूत झड़ गई। जीजा ने लण्ड के रस से मेरी चूत को लबालब भर दिया।
झड़ने के बाद जीजा मेरे ऊपर ही लेट गया। कुछ देर लेटने के बाद जीजा फिर से हरकत में आया और मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लगा। मेरी गाण्ड तो मोटे से लण्ड से पिटाई के बाद सूज कर लाल हो गई थी। जीजा के हाथ लगाने मात्र से ही दर्द हो रहा था पर जीजा बेदर्दी ने फिर से तेल लगा कर लण्ड को एक बार फिर मेरी दुखती गाण्ड में उतार दिया। मैं चीखती रही और जीजा बेदर्दी से मेरी गाण्ड मारता रहा।
सच में मेरे प्यारे जीजा को चीखे निकलवाने में बहुत मज़ा आता है। हम लोग शादी में तीन दिन रुके और जीजा ने भी तीन के तीन दिन मेरी गाण्ड और चूत का भुरता बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शादी के व्यस्त कार्यक्रम में भी उसने मेरी चुदाई के लिए समय निकाल ही लिया।
जब मैं वापिस जयपुर आई तो गाड़ी की सीट पर भी मैं सही से नहीं बैठ पा रही थी क्यूंकि मेरी गाण्ड दुःख रही थी। घर आकर भी कम से कम तीन चार दिन बाद मेरी गाण्ड का दर्द ठीक हुआ और मैंने सुख की साँस ली।
आगे भी बहुत कुछ हुआ वो अगली बार… तब तक के लिए आप सभी को आपकी प्यारी शालिनी भाभी का प्यार भरा चुम्बन…
मेरी गाण्ड मरवाई का किस्सा कैसा लगा मुझे मेल करके जरूर बताना। मेरा मेल आईडी तो पता है ना…
कहानी लिखने में मेरी मदद करने वाले मेरे प्रिय मित्र राज की आईडी तो आपको पता ही होगी फिर भी बता देती हूँ।

मेरे जीजू और देवर ने खेली होली (Mere Jiju Aur Devar Ne Kheli Holi)

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मैं अपने मम्मी-पापा के साथ सोनीपत में रहती हूँ। मेरी एक बड़ी बहन माला जिसकी शादी को अभी आठ महीने ही हुए हैं दिल्ली में है। जीजू रोहित का कपड़े का एक्सपोर्ट बिजनेस है।
मेरा रिश्ता भी दिल्ली में तय हो चुका है और मेरे होने वाले पति सुमित बंगलौर में सॉफ्ट वेयर इंजीनियर है। मेरे पापा का सोनीपत में बिज़नेस है।
अप्रैल में मेरी शादी निश्चित हुई है। शादी की खरीदारी के लिए मैं मम्मी के साथ दिल्ली आई हुई हूँ दीदी-जीजू के पास। जीजू बहुत मस्त हैं, दीदी को पांचवां महीना चल रहा है इसलिए उनसे तो घर का काम होता नहीं, मम्मी ही अक्सर रसोई में लगी रहती हैं। बाकी कामों के लिए एक नौकरानी रखी हुई है।
जीजू मेरे साथ अक्सर छेड़छाड़ करते रहते हैं। कई बार मेरे गालों को चूम लेते है और एक-आध बार तो मेरे स्तन भी दबा चुके हैं दीदी के सामने ही, दीदी भी कुछ नहीं कहती।
एक दिन दीदी के सामने ही जीजू ने कहा- नीतू अब तो तेरी शादी होने वाली है, शादी के बाद क्या होना है, तुझे पता है? कोई एक्स्पेरियंस है तुझे? मुझ से सीख ले कुछ ! मेरा भी कुछ काम बन जाएगा ! क्योंकि तेरी दीदी तो अब हाथ लगाने देती नहीं, तू ही कुछ मदद कर दे !
दीदी भी उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहती- हाँ हाँ ! इसे भी कुछ सिखा दो !
और जीजू मुझे अपनी बाँहों में लेकर भींच देते और यहाँ वहां छू भी लेते, मुझे भी यह सब अच्छा लगता था लेकिन ऊपरी मन से मैं जीजू दीदी की ऐसी बातों का विरोध करती थी। धीरे-धीरे जीजू की हरकतें बढ़ने लगी। अब तो वो दीदी के सामने ही मेरे होटों को चूम लेते और मेरे स्तन भी अच्छी तरह मसल देते थे।
इसी बीच होली आ गई। सभी उत्साहित थे होली खेलने के लिए। दीदी-जीजू की भी शादी के बाद पहली होली थी और मेरा रिश्ता भी अभी हुआ था। जीजू पहले ही दिन काफी सारे रंग, अबीर, गुलाल ले आए थे। होली वाले दिन मम्मी तो रसोई में भिन्न भिन्न पकवान बनाने में लग गई थी सुबह से ही।
जीजू ने मुझे और माला को बाहर बगीचे में बुला लिया होली खेलने के लिए। मैंने सफ़ेद टॉप और पैरेलल पहना था, दीदी ने गुलाबी सलवार-सूट पहना और जीजू टी-शर्ट और नेकर में थे।

जीजू की शरारत

पहले जीजू ने मुझे थोड़ा सा गुलाल लगाया मेरे गोरे गालों पर, फिर दीदी को भी गुलाल लगाया। दीदी ने भी रोहित के चेहरे पर गुलाल लगाया तो जीजू ने दीदी को चूम लिया उनके होटों पर। दीदी मेरी तरफ देख कर थोड़ा शरमाई तो जीजू ने कहा- अभी उसकी बारी भी आयेगी !
इतना कहते ही जीजू ने मुझे पकड़ लिया और मुझे चूमना शुरू कर दिया पहले होटों पर, गालों पर फिर कानों और गले पर।
इतने में जीजू ने अपने होंठ मेरे टॉप के ऊपर मेर स्तनों पर रख दिए। मैं कांप उठी। उनके होंठ कुछ खुले और मेरे चुचुक का उभार उनके होटों में दब गया। मेरी तो जैसे जान ही निकल गई। मैंने जीजू को हल्का सा धक्का देकर हटा दिया। दीदी सब देख रही थी और मुस्कुरा रही थी।
लेकिन जीजू कहाँ मुझे छोड़ने वाले थे! उन्होंने मुझे फिर पकड़ लिया इस बार उनके हाथ मेरे पृष्ठ उभारों पर थे और होंठ मेरे होंठों पर। मैंने उनकी पकड़ से छूटने का भरसक प्रयत्न किया मगर कहाँ मैं कोमल-कंचन-काया और कहाँ बलिष्ठ-सुडौल जीजू !
जीजू मुझे चूमते चूमते और मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए धकेल कर बगीचे में एक पेड़ तक ले गए और उसके सहारे मुझे झुका कर बेतहाशा मुझ से लिपटने लगे, मुझे चूमने चाटने लगे, मुझे नोचने लगे। मेरे शरीर का कोई अंग उनके हाथों से अछूता नहीं रहा।
उनके हाथ अब मेरे टॉप में जा चुके थे। चूँकि मैंने ब्रा नहीं पहनी थी तो मेरे नग्न स्तन उनके हाथों में आ गए और मैं सिहर उठी। दीदी खड़ी यह सारा खेल देख रही थी और हंस रही थी।
अब तो जीजू के हाथ मेरे चूतड़ों से फिसल कर आगे की ओर आ गए थे मेरे तन-मन में काम ज्वाला भड़कने लगी थी। अब मैं चाह कर भी जीजू का विरोध नहीं कर पा रही थी।
अब जीजू ने मुझे वहीं बगीचे में हरी घास पर लिटा लिया और मेरे टॉप को ऊपर उठा दिया। मेरा नग्न वक्ष-स्थल अब जीजू की आँखों के सामने था। उनके होंठ मेरे चुचूकों से खेलने लगे।

देवर आया होली खेलने

दीदी दूर खड़ी यह सब देख कर मस्त हो रही थी कि तभी मेरी नज़र अमित पर पड़ी जो दूर से यह सब नजारा देख रहा था।
मै आपको बताना भूल गई कि अमित सुमित का छोटा भाई है यानि मेरे देवर, जो दिल्ली में एम बी ए कर रहा है। मुझे तनिक भी याद नहीं रहा था कि वो भी होली खेलने यहाँ आ सकता है।
अमित को देखते ही मेरे तो जैसे प्राण ही निकल गए। उसने मुझे देख लिया था जीजू के साथ इस हालत में ! मैं तो गई बस !
मैंने जीजू को अपने ऊपर से धक्का दे कर हटाया और जल्दी से टॉप ठीक किया। इसी बीच मेरी हड़बड़ी देख कर दीदी ने भी अमित को देख लिया था। दीदी आगे बढ़ी और अमित स्वागत करते हुए कहा- आओ अमित ! होली की शुभकामनाएँ !
अमित आगे बढ़ा और दीदी को थोड़ा गुलाल लगाते हुए बोला- आप सभी को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ !
दीदी ने अमित को बगीचे में ही रखी कुर्सी पर बैठने को कहा। तब तक मैं भी वहाँ आ गई थी। जीजू भी मेरे साथ साथ ही थे। अमित ने मेरे जीजू को होली की बधाई दी और रंग लगाते हुए बोला- बहुत मस्ती हो रही है होली की ! अमित की नजरें मेरी तरफ थी।
मैंने अपने आप को संयत करके अमित को होली की शुभकामनाएँ देते हुए उसके चेहरे पर गुलाल लगाया।
अमित बोला- सिर्फ रंग से काम नहीं चलेगा ! मिठाई-विठाई खिलाओ !
इसी बीच दीदी अन्दर जा चुकी थी मम्मी को अमित के आने की सूचना देने और नाश्ते का प्रबंध करने !
मम्मी बाहर आई तो अमित ने उनको भी होली की मुबारकबाद दी। मम्मी ने सुमित और उनके मम्मी पापा के बारे में पूछा, कुछ देर बात करके मम्मी अंदर चली गई और दीदी ने हम सबको भी नाश्ते के लिए अंदर बुलाया।
जीजू आगे चल रहे थे, उनके पीछे मैं थी और मेरे पीछे अमित।
अचानक अमित ने मेरे पृष्ठ उभार पर चूंटी काटी, मैने चौंक कर पीछे देखा तो अमित ने अर्थपूर्ण नज़रों के साथ अपने होंठ गोल करते हुए मेरी तरफ एक चुम्बन उड़ा दिया। मेरे मन में हलचल होने लगी।
नाश्ते के बाद अमित बोला- अब थोड़ी होली हो जाए !
दीदी ने कहा- हाँ चलो ! बाहर बगीचे में ही चलते हैं !
हम चारों फिर बाहर आ गए। मम्मी रसोई में ही लगी रही। बाहर आते ही अमित ने मुझे पकड़ लिया, मेरे चेहरे और बालों में गुलाल भर दिया। दीदी-जीजाजी तो कुर्सियों पर बैठ गए।
मैंने भी अमित के हाथ से रंग का पैकेट छीन कर उसके सर पर उलट दिया।
तब अमित ने पूछा ही था कि पानी कहाँ है, उसकी नजर पौधों को पानी देने के लिए लगे नल और ट्यूब पर पड़ गई। उसने अपनी जेब से एक छोटी सी पुड़िया निकाली और इसे खोल कर मेरे बालों में डाल दिया और नल खोल कर ट्यूब से मेरे सर पर पानी की धार छोड़ दी।
मैं एकदम गुलाबी रंग से नहा गई। मेरे कपड़े मेरे बदन से चिपक गए और मेरे स्तन, चूचुक, चूतड़ सब उभर कर दिखने लगे।
तभी अमित ने अपनी एक बाजू से मेरी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ से पीले रंग का गुलाल निकाल कर पहले मेरे चेहरे पर लगाया और फिर मेरी पीठ की तरफ से मेरे टॉप को उठा कर मेरी कमर को पूरा रंग दिया।
दीदी-जीजू बैठे यह सब नज़ारा देख रहे थे।
अभी भी अमित का मन नहीं भरा था। वो मुझे दबोच कर उसी पेड़ के पास ले गया और उस पर मुझे झुका कर एक मुठ्ठी रंग मेरे पैरेलल में हाथ डाल कर मेरे चूतडों पर रगड़ दिया। इस पर मुझे बहुत गुस्सा आया जो मेरे चेहरे पर भी झलकने लगा।
अमित ने यह देख कर कहा- भाभी ! वो आपके जीजू क्या कर रहे थे आपके साथ? और मैं तो आपका प्यारा देवर हूँ। अगर साली आधी घर वाली होती है तो भाभी भी तो कुछ होती है।
उसने मुझे पेड़ के पीछे इस तरह कर लिया कि दीदी जीजू से ओट हो जाए। फिर उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, लेकिन गुलाल लगे होने के कारण उसे कुछ मज़ा नहीं आया तो उसने मेरा टॉप आगे से उठा कर मेरे होंठ साफ़ किए और अपने होंठ मेरे स्तनों पर टॉप के ऊपर रगड़ दिए। फिर उसने जोरदार चूमाचाटी शुरू कर दी। मैं उससे छूटने का भरसक प्रयत्न कर रही थी।
अमित ने कहा- भाभी ! प्यार से प्यार करने दो ! मैंने सब देख लिया है कि कैसे आप अपने जीजू के साथ लगी हुई थी।
अब अमित के हाथ मेरे स्तनों पर जम चुके थे। वो उन्हें बुरी तरह मसल रहा था। मेरे मुंह से उई ! आ ! आहऽऽ ! की आवाजें आने लगी थी।
मेरी आवाज़ सुनकर दीदी बोली- नीतू ! क्या हुआ ! और उठ कर हमारी तरफ़ आने लगी।
दीदी की आवाज़ सुन कर अमित ने अपने हाथ मेरे टॉप में से निकाल कर मेरे चेहरे पर रख दिए।
दीदी ने पास आकर फ़िर पूछा- क्या हुआ नीतू?
इससे पहले मैं कुछ बोलती, अमित बोल पड़ा- कुछ नहीं दीदी ! भाभी की आँख में जरा उंगली लग गई है।
और हम तीनों जीजू के पास आकर बैठ गए और सामान्य बातचीत होने लगी। पर उन तीनों की नज़रें रह रह कर मेरी ओर उठ जाती थी, जैसे कुछ पूछ रही हों ! जीजू और दीदी की नज़रें जैसे पूछ रही थी कि अमित ने कुछ ज्यादा ही तो छेड़छाड़ नहीं की ! और अमित की नज़र पूछ रही थी- भाभी ! कुछ मज़ा आया?
बात करते करते अमित ने पूछा- भाभी ! आज शाम को क्या कर रही हो?
मैंने सामान्य ढंग से कह दिया- कुछ खास नहीं !
तो अमित ने कहा- कल सुमित भैया का फ़ोन आया था, कह रहे थे कि अपनी भाभी को मेरी तरफ़ से कोई उपहार दिलवा देना उसी की पसन्द का ! शाम को बाज़ार भी खुल जाएगा, आप तैयार रहना मैं चार बजे तक आपको लेने आ जाऊँगा बाज़ार ले जाने।
दीदी और मैं एक साथ ही बोल उठी- अरे ! इसकी क्या जरूरत है !
तो अमित बोला- जरूरत क्यों नहीं है? एक उपहार भैया की ओर से, एक मेरी ओर से ! और भाभी आप भी तो मुझे कोई उपहार देंगी, देंगी ना !
मैं उसकी तरफ़ ही देख रही थी और वो मेरी आँखों में झाँक कर पूछ रहा था। उसकी आँखों में शरारत साफ़ दिख रही थी।
आखिर मुझे हाँ करनी ही पड़ी।
थोड़ी देर और बातें करने के बाद अमित जाने के लिए उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- भाभी एक बार गले तो मिल लो होली पर !
उसकी बात में प्रार्थना कम और आदेश ज्यादा झलक रहा था। मैं उठी और उसने मुझे अपनी बाहों में ले कर भींच लिया और दीदी-जीजू के सामने ही मेरे गालों को चूम लिया।
अब अमित जा चुका था। हम तीनों बगीचे में बैठे अभी कुछ देर पहले हुए सारे घटनाक्रम के बारे में सोच रहे थे। लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा था।
दीदी ने चुप्पी तोड़ी- अमित ने बहुत गलत किया ! उसने आप दोनों को देख लिया था शायद ! इसीलिए उसकी इतनी हिम्मत हुई। उसने सुमित को या किसी को इस बारे में बता दिया तो?
नहीं ! वो किसी से नहीं कहेगा ! वो भी तो कुछ ज्यादा ही कर गया। अगर उसे किसी को बताना होता तो वो यह सब ना करता, जीजू ने कहा।
इस पर मैं फ़ूट पड़ी- जीजू ! वो ज्यादा कर गया या आप ही कुछ जरूरत से आगे बढ़ गए थे? और दीदी आप? आप भी कुछ नहीं बोली जीजू को मेरे साथ बदतमीजी करते हुए?
जीजू बोले- बदतमीजी? अरे तुम इस बदतमीजी कहती हो? ऐसी छोटी मोटी छेड़छाड़ ना हो तो साली-जीजा के रिश्ते का मज़ा ही क्या?
मैंने जीजाजी की बात का उत्तर देते हुए कहा- तो फ़िर अमित का भी क्या कसूर ! देवर भाभी का रिश्ता भी तो हंसी-मज़ाक, छेड़छाड़ का ही होता है !
दीदी माहौल गर्म होते देख बोली- चलो छोड़ो इस बात को ! चलो ! नहा-धो लो ! फ़िर शाम को बाज़ार भी जाना है।
फ़िर हम सब नहा लिए और खाना खा कर आराम करने लगे। थोड़ी देर बाद दीदी ने चाय के लिए पूछा और वो चाय बनाने चली गई तो जीजू की फ़िर जुबान खुली- वैसे नीतू ! आज मज़ा आ गया तुम्हारी चूचियाँ चूस कर ! तुम्हें भी तो कम मज़ा नहीं आया होगा?
मैं भड़क गई- जीजू अब बस भी करो ! बहुत हो चुका !
बहुत क्या हो चुका? अभी तो लगभग सब कुछ ही बाकी है, अभी तो कुछ भी नहीं हुआ !
अच्छा तो जो बाकी रह गया है वो भी कर लो ! लो आपके सामने पड़ी हूँ ! कर लो अपने दिल की ! कहते हुए मैं जीजू के बराबर में आ गई।
जीजू ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले- तुम तो गुस्सा होने लगी।
इतना कहते हुए जीजू ने मेरा हाथ सहलाना शुरू कर दिया और मुझे मनाने लगे। हाथ सहलाते सहलाते जीजू मेरे कन्धे तक पहुँच गए और अब मेरे कंधे और गर्दन पर हाथ फ़िरा रहे थे। उसके बाद मेरी और से कोई आपत्ति ना देख फ़िर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में दबोच कर मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- मेरी अच्छी नीतू !
इतने में दीदी चाय लेकर आ गई। मैंने दीदी से कहा- मम्मी को भी यहीं बुला लो !
तो दीदी ने बताया कि मम्मी सो रही हैं।
शाम को साढ़े तीन बजे अमित का फ़ोन आया, कहने लगा- भाभी ! तैयार रहना, मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ आपको लेने।
शाम को साढ़े तीन बजे अमित का फ़ोन आया, कहने लगा- भाभी ! तैयार रहना, मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ आपको लेने।
मैंने उसे कहा- दीदी और जीजू भी चलेंगे हमारे साथ, तुम एक घण्टे से पहले मत आना क्योंकि इतना समय तो लग ही जाएगा तैयार होने में!
इस पर अमित बोला- नहीं ! आप अकेले ही आएँगी मेरे साथ !
मेरे मन में शंका हुई, कहीं फ़िर कोई शरारत या कुछ और तो नहीं सोच रहा है अमित ! मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि अमित ने मुझे जीजू के साथ देख लिया था। अगर उसने कुछ बता दिया अपने घर में या सुमित को तो क्या होगा !
फ़िर मैंने आग्रह किया कि सब इकट्ठे ही चलेंगे बाज़ार ! तो वो नहीं माना और मुझे बताया कि उसके पास मुझे दिखाने के लिए कुछ है।
पर मेरे बार बार पूछने पर भी उसने बताया नहीं कि क्या है और मुझे तैयार कर ही लिया अकेले चलने के लिए। दीदी, जीजू का तो वैसे भी कोई कार्यक्रम था ही नहीं जाने का।
अमित आया और हम दोनों गाड़ी में चलने लगे तो दीदी ने अमित से कहा- ज्यादा देर मत करना, दो घण्टे तक तो आ ही जाओगे?
इससे पहले मैं कुछ बोलती, अमित ने कहा- हाँ दीदी ! कोशिश करेंगे, पर देर भी हो सकती है।
और हम चल दिए। थोड़ा ही आगे गए थे कि अमित ने मेरे बाएँ कंधे पर हाथ रख कर मुझे अपनी ओर खींच लिया और मेरे गाल पर एक चुम्मा ले लिया।
मुझे बहुत बुरा लगा- यह क्या कर रहे हो अमित !
प्यार से एक चुम्मी ली है भाभी ! अच्छा बताओ कहाँ चलोगी?
तुम बताओ? कौन सी मार्केट आज खुली होगी?
अरे मार्केट का तो बाद में देखेंगे। कुछ मौज-मस्ती हो जाए ! वैसे भी गिफ़्ट तो पहले से ही है मेरे पास आपके लिए !
क्या है?
उसने अपना मोबाइल निकाला और कुछ बटन दबाए और मेरे हाथ में दे दिया।
देखो भाभी ! आपके लिए !
मैंने देखा कि उसमें जीजू और मेरा होली का छेड़छाड़ की वीडियो थी। मैं तो सन्न रह गई। लगभग तीन मिनट की वीडियो होगी वह।
क्यों भाभी ? कैसी लगी मूवी?
मेरे मुँह में जैसे बोल ही नहीं रहा था। मैंने अमित की ओर देखा तो वो मुझे ही देख रहा था और हमारी नज़रें मिलते ही उसने मुझे फ़िर अपनी ओर खींच कर मेरे होंठ चूम लिए और उसका एक हाथ मेरी जांघ पर आ गया। मैंने जींस पहनी हुई थी। वो एक हाथ से गाड़ी सम्भाल रहा था और दूसरे हाथ से मेरी जांघ। मैंने उसका हाथ हटाने की कोशिश की तो बोला- भाभी किसी होटल में कमरा ले लेते हैं।
मेरी समझ में सब आ चुका था। अमित मुझे ब्लैकमेल कर रहा था और इस वीडियो का फ़ायदा उठाना चाह रहा था। मैं फ़ंस चुकी थी। किसी तरह से हिम्मत जुटा कर मैंने अमित से कहा- प्लीज़ अमित ! इस वीडियो को डीलीट कर दो !
अरे भाभी ! इसमें ऐसा क्या है जो तुम डर रही हो। मुझे तुम्हारा और तुम्हारे जीजू का खेल अच्छा लगा तो रिकॉर्ड कर लिया, बस !
चलो अब किसी होटल में जाकर हम भी ऐसे ही कुछ खेलते हैं !
अमित ! क्या कह रहे हो? मैं तुम्हारी होने वाली भाभी हूँ ! तुम्हें शर्म आनी चाहिए !
भाभी ! जब आपको शर्म नहीं तो मुझे काहे की शर्म? आप तो अपने जीजू के साथ खूब मौज-मस्ती कर रही थी ! खूब ऐश की होगी जीजू से अपने? पहली बार का मज़ा अपने जीजू को दिया या किसी यार से लुटवा ली अपनी जवानी?
अमित ! तुम्हें पता है कि तुम क्या बके जा रहे हो? गाड़ी रोको ! मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ कहीं भी !
नीतू डीयर ! अब तुम अपनी मर्ज़ी से नहीं मेरी मर्ज़ी पर चलोगी।
अमित आप से तुम पर उतर आया था।
बता ना ! किससे अपनी चूत का उदघाटन करवाया?
मैंने यह सुन कर अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया और मेरे आँसू छलक पड़े। मैं सुबक पड़ी। इतनी अश्लील भाषा तो मैंने कभी सुनी ही नहीं थी।
अमित ने खाली सड़क देख गाड़ी एक तरफ़ लगाई और मेरे दोनों हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर मुझे अपनी तरफ़ खींचा और मेरे गालों पर से मेरे आँसू अपनी जीभ से चाट लिए। मैंने पीछे हटने की कोशिश की मगर अमित ने और मज़बूती से मुझे पकड़ कर अपने ऊपर गिरा सा लिया और कहा- ज्यादा नखरे मत कर ! अगर ना-नुकर की तो अभी यह वीडियो सुमित को भेज दूंगा।
इतना कह कर अमित ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और चूमते चूमते मेरे होंठ ऐसे चूसने लगा जैसे कोई फ़ल खा रहा हो। अब तक उसका एक हाथ मेरे शर्ट में जाकर मेरे स्तनों से खेलने लगा। मैं रोने लगी थी। पर मैंने अपने आप को अमित के हवाले कर दिया। मेरा विरोध ढीला पड़ते देख अमित ने भी थोड़ी नरमी दिखाई और मुझे छोड़ दिया और मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर पैन्ट के ऊपर ही रख लिया। मैंने फ़िर अपना हाथ पीछे खींच लिया। अब अमित कुछ नहीं बोला और गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।
थोड़ा चलने के बाद अमित बोला- नीतू ! तुम इतने नखरे क्यों दिखा रही हो। तुम्हारे जीजा को तुम्हारे साथ देख कर मैं तो समझा था कि तुम आसानी से मान जाओगी, तुम तो ऐसे नखरे दिखा रही हो जैसे कोई कुँवारी कन्या हो।
मुझे डर भी लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था। मेरे मुंह से गुस्से में निकल गया- तुमने क्या मुझे कोई चालू लड़की समझ लिया है?
मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें सह रही हूँ सिर्फ़ इस वीडियो के कारण ! जीजा-साली और देवर-भाभी के रिश्ते में यह सब थोड़ा बहुत चलता ही है और तुमने इसका गलत मतलब निकाला। ये रिश्ते बने ही इस तरह से हैं कि साली अपने जीजा से और देवर अपनी भाभी से हंसी मज़ाक में ही काफ़ी कुछ सीख सके। इसका मतलब यह नहीं कि वो सीमा ही लांघ जाएँ ! मैं मानती हूँ कि जो तुमने आज मेरे जीजाजी को मेरे साथ होली खेलते देखा वो इन पवित्र रिश्तों की सीमा का सरासर उल्लंघन था, पर जो तुमने किया उसमें क्या तुमने अपनी मर्यादा का ध्यान रखा?
अरे ! साली को तो आधी घरवाली कहा भी जाता है लेकिन हमारे हिन्दू समाज़ में भाभी को तो माँ तक का दर्ज़ा दिया गया है। भाभी तो एक ऐसी माँ की तरह होती है जिससे आप वो बात भी कर सकते हो जो अपनी माँ से कहते हुए हिचकते हो। भाभी तो एक माँ और एक दोस्त का मिलाजुला रूप है।
इसी प्रकार मैं ना जाने क्या क्या बोल गई अमित के सामने और वो चुपचाप सामने सड़क पर नज़र गड़ाए मेरी बात सुनता रहा और गाड़ी चलाता रहा। उसकी आँखों की नमी मैं देख पा रही थी।
अचानक उसने खाली सड़क देख कर गाड़ी रोकी और झुक कर मेरे पैरों की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए बोला- भाभी ! मुझे माफ़ कर दो ! जब मैंने आपको होली खेलते देखा तो पहले तो मुझे भी बहुत गुस्सा आया आपको उस हालत में देख कर, फ़िर मैंने सोचा कि चलो मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लूँ ! मगर आप तो गंगा की तरह निकली जो अपने में मेरे और आपके जीजू जैसी गंदगी समेट कर भी पवित्र बनी हुई है।
नहीं अमित ! तुमने तो मुझे देवी बना दिया, काफ़ी हद तक गलती मेरी भी थी, मुझे जीजू को उसी समय रोकना चाहिए था जब वो अपनी हद पार करने लगे थे। मैं भी एक इन्सान हूँ, एक लड़की हूँ, उस वक्त मेरी BHAUJA भी कुछ हद तक जागृत हो गई थी, इसी कारण मैं चाह कर भी जीजू और फ़िर तुम्हें वो सब करने से रोक नहीं पाई जो नहीं होना चाहिए था।
लेकिन जब तुमने मेरे साथ जबरदस्ती करने की और मुझे ब्लैक-मेल करने की कोशिश की तो मैं अपनी वासना से जागी।
मैं बोलती जा रही थी और अमित की आँखों से आँसू टप-टप गिर रहे थे। आत्म-ग्लानि उसे खाए जा रही थी। मैंने उसे इस तरह रोते देखा तो मेरा मन उसकी ओर से साफ़ हो गया और मैंने अपने दोनों हाथों से उसके आँसू पौंछते हुए उसे कहा- अब जो हो चुका उसे भूल जाओ और चलो बाज़ार, मुझे अपना उपहार भी तो लेना है !
इतना सुनते ही अमित बिलख उठा और उसने मेरी गोद में अपना सिर रख दिया। उसके मुँह से बार बार यही शब्द निकल रहे थे- भाभी, मुझे माफ़ कर दो भाभी, मुझे माफ़ कर दो !
मेरी आँखें भी गंगा-जमना की तरह बह रही थी। मैंने उसका सर ऊपर किया और अपने गले से लगा लिया।

एडिटर : सुनीता
प्रकाषक : BHAUJA.COM

पिंकी और सोनिया के बाद (Pinky Aur Soniya Ke Bad)

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मेरी सच्ची कहानी सब के सामने रखी।

मेरा साली-प्रेम कुछ ज्यादा है, तो मैं हाज़िर हूँ लगे हाथ छोटी साली की चुदाई की खानी लेकर !
जब वो भारत आई तो मैं उसे हवाई अड्डे लेने गया। काफी समय बाद मैं उसको देख रहा था, उसका भरा-भरा जिस्म, गोल-मोल गज़ब की गाण्ड, खुले हुए बाल ! ऐसी औरत को कौन मर्द इतने-इतने दिन ना चोदे? हाय मेरा तो लौड़ा जींस फाड़ने को उतारू हो रहा था। जब वो लहराती हुई, मटकती हुई आउटर से बाहर आ रही थी मेरी तरफ हाथ लहराती हुई- जीजू कह वो मेरे से लिपट गई।
मेरा गोपाल तो पहले से ही अकड़ा पड़ा था, ऊपर से उसने गले लगा लिया। उसने कसा हुआ टॉप पहना था, उसकी पहाड़ जैसी छाती जब मेरे चौड़े सीने से लगी तो मैंने भी उसको कस लिया। उसकी टॉप नाभि तक थी, मैंने उसकी पीठ को सहला दिया तो वो एकदम से कांप गई।
क्या हुआ साली साहिबा?
वो हड़बड़ाई, बोली- अकेले आये हैं क्या?
इतने सारे लोग लेकर दिल्ली आता क्या? वैसे क्या मस्त दिख रही हो?
सच में?
और क्या झूठ कह रहा हूँ?
मुझे मालूम था कि उसका मर्द उसको कम चोदता है। वैसे मुझे उम्मीद थी कि वो बाहर ज़रूर ठुकाई करवाती होगी। मैं भी कितना भाग्यशाली था, दोनों सालियाँ एक से बढ़कर एक ! दोनों के मर्द ना किसी काम के ! ऊपर से सोनिया डार्लिंग, जिसको उसकी माँ ने यहाँ सुधरने भेजा है, उसकी फुद्दी का इस जाट ने कबाड़ा बना दिया था, लगभग रोज़ मेरा मूसल अपनी फुद्दी में लेती थी। मेरी तो अब तक पांचों घी में और सर कढ़ाई में था।
बोली- जीजू रात कितनी है ! इस वक़्त कहाँ ड्राईव करोगे, किसी होटल में रुक लेते हैं, सुबह निकल लेंगे।
यहाँ होटल में रुकना भी आजकल कौन सा आसान है?
तो क्या हुआ? हम शादी शुदा हैं किसी को क्या मालूम?
मुझे लगता था वो मुझ पर पूरी लट्टू थी, मुझे भी उसकी और मोना की बात याद आ रही थी जो मैंने दूसरे फ़ोन से सुना था कि उसका खसम उसको मुश्किल से चोदता है।
हाँ हाँ ! क्यूँ नहीं? होटल वालों को क्या मालूम चलेगा? वैसे भी साली आधी घरवाली कहलाती है ! तुम तो हसीन हो, वैसे इस ड्रेस में पटाखा लग रही हो ! दिल तो रुकने का है !
अच्छा जीजा जी? उसने बड़ी अदा से देखा था।
मैंने एक बात सोच ली थी कि अगर मौका आज ही मिल गया तो मैं हाथ साफ़ कर लूँगा। वो सामान उठाने मेरे करीब आई तो मुझे दारू या बियर की गन्ध उससे आई क्यूंकि मैंने अभी पी नहीं थी।
मैं एक नंबर का दारूबाज़ था, हर शराब की महक मेरी नथुनों में रची है।
लगता है प्लेन में जाम से जाम टकराया है?
वो चुप रही।
मैंने ड्राईवर से कहा- बढिया से होटल चलो !
हम दोनों पीछे बराबर बैठे थे, उसने मेरा हाथ पकड़ा, बोली- और जीजू ! लाइफ कैसी है?
मस्त है ! तेरी कैसी है?
वो चुप रही।
क्या हुआ? कोई दर्द छुपा है दिल में? उसके हाथ को सहलाते हुए मरहम लगाने की कोशिश की।
छोड़ो जीजू ! पीकर इंसान झूठ नहीं बोलता और दर्द निकल आता है ! वो मुझसे प्यार नहीं करते ! पता नहीं क्यूँ? सिर्फ अपने बिज़नस में लगे रहते हैं !
वो रोने लगी।
मैंने अपनी बाजू उसकी कमर पर लपेटी मेरी उँगलियाँ उसकी नाभि के पास थी। मैंने उसको अपनी तरफ सरकाते हुए सीने से लगाया- चुप करो, अब तुम भारत में हो ! रोना छोड़ो और जिंदगी जियो।
उसने मुझे और जोर से कस लिया उसकी छाती का दबाव डालते मेरा भी आपा खोने लगा था, मैंने भी दोनों हाथ उसकी पीठ पर रख दिए और प्यार से सहलाया।
दोस्तो, मैं बना ही सालियों के दुःख काटने के लिए हूँ।
होटल में गए, कमरा लेकर उसको कहा- आता हूँ अभी !
केमिस्ट की दुकान से मैंने वोमेन-पेनेगरा 100 की गोली खरीदी, एक बोतल सिग्नेचर की पेकेट लेकर ऊपर गया।
आ गए जीजू !
हाँ ! रूम पसंद है क्या?
हाँ जीजाजी !
मैंने वेटर को बुला कर डिनर का आर्डर दिया, साथ में बियर भी।
वो बोली- मैं फ्रेश होकर आती हूँ।
मैंने दो पैग बनाए, उसमें मैंने वो गोली मिला दी।
जब वो लौटी, मेरा गोपाल ठन-ठन करने लगा।
बेहद छोटा सा हल्का गुलाबी टॉप, केप्री टाइप छोटा सा लोअर वो भी बारीक सा। उसकी काली पैंटी साफ़ साफ़ दिख रही थी और ब्रा भी।
उसकी चूचियाँ किसी भी मर्द को दीवाना कर देती।
क्या हुआ जीजू? मुझमें खो गए क्या?
पकड़ो, पैग पियो ! थोड़ी देर में बात करेंगे !
उसने मेरे साथ चीयर्स किया और अपना पैग गटकने लगी।
मैंने भी उसके साथ बौटम-अप किया। मैं चाहता था कि उसके साथ मेरा काम आज ही फिट बैठ जाए ताकि जब तक रहे, मैं उसको मसलता रहूँ।

बेहद छोटा सा हल्का गुलाबी टॉप, केप्री टाइप छोटा सा लोअर वो भी बारीक सा। उसकी काली पैंटी साफ़ साफ़ दिख रही थी और ब्रा भी।
उसकी चूचियाँ किसी भी मर्द को दीवाना कर देती।
क्या हुआ जीजू? मुझमें खो गए क्या?
पकड़ो, पैग पियो ! थोड़ी देर में बात करेंगे !
उसने मेरे साथ चीयर्स किया और अपना पैग गटकने लगी।
मैंने भी उसके साथ बौटम-अप किया। मैं चाहता था कि उसके साथ मेरा काम आज ही फिट बैठ जाए ताकि जब तक रहे, मैं उसको मसलता रहूँ।
उसको नशा होने लगा, मैंने दूसरा पैग भी बना लिया- लो जान साथ दो जीजू का !
नहीं जीजू, पहले सब घूम रहा है !
मेरी खातिर एक और !
मैंने उसको मस्त कर दिया, गोली ने असर दिखाया, बोली- मेरे बदन से सेक क्यूँ निकल रहा है?
मैंने कहा- लगता है साडू की याद आ गई?
बोली- उसका नाम मत लेना ! वो एक गे लगता है ! कई-कई दिन मेरे तो पास आने से कतराता रहता है !
वो उठी, लड़खड़ाती हुई खड़ी हुई खिड़की से बाहर देखने लगी। मैं उठा, उसके पीछे जा खड़ा हुआ, उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- क्या हुआ?
मेरा हाथ लगते ही उसका बदन कांप गया, वो नशे की गिरफ्त में थी।
“क्यूँ ? वो क्यूँ इतनी हसीन बीवी के पास नहीं आता? साला कितना बेवकूफ है?”
“कितनी हसीन हूँ मैं जीजा?”
“क्या बताऊँ? मुझे तो तुम बहुत हसीन दिखती हो, तुमने यह दारु कब से पीनी शुरु कर दी?”
“क्या करूँ जीजा, अकेलेपन में क्या करूँ? मुझे रातों को नींद नहीं आती इसके बिना ! इसको पीकर रात निकल जाती है !”
मैंने उसकी कमर में हाथ डाल लिया, उसके पेट को सहलाने लगा- मैं तो कुछ ही घंटों में तुझे देख पागल हो गया हूँ। वो साला क्या मर्द है?
उसके मुंह से मीठी मीठी सिसकारी फूटी- अह जीजू ! क्या कर रहे हो आप?
देख रहा हूँ छू कर कि भगवान ने तुझे कितनी मेहनत से बनाया होगा ! मैंने उसकी नाभि को सहलाया।
वो तड़प उठी, सी-सी करने लगी।
मैंने दूसरी बाजू भी डाल उसको पीछे से बाँहों में भर डाला। गोली की वजह से उसके अंग तनने लगे थे, गोली का काम ही यही है अगर किसी औरत को यह पूरी गोली खिला दो, उसके बाद किसी तरीके से औरत पर हल्का फुल्का हाथ फेरना पड़ता है, उससे औरत के जो अंग तन जाते हैं उनमें से उसके मम्मे मानो दूध से भर गए हो, उनमें ऐसी जलन होती है, उसका दिल करता है कि कोई मर्द मसल दे, उसके चुचूक वो भी तन जाते हैं, औरत चाहती है कोई चूसे, चुटकी से मसले, उसके चूतड भी कसाव खा जाते हैं, औरत चाहती है बस मर्द उसको रगड़ दे, उसकी चूत में अजीबोगरीब सी हलचल होती है, ये सब बातें मुझे मेरी काम वाली ने बताई, मैंने उसे एक गोली अपने सामने खिलाई तो उसने मुझे गोली खाने के बाद आते हर बदलाव से अवगत करवाया था।
मैंने साली की गर्दन पर होंठ रख दिए वो तो मिर्ची की तरह सी सी सी करने लगी। मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से रगड़ा तो वो और बहकने लगी- नहीं जीजू ! यह क्या सही होगा?
“सब सही है मेरी जान ! मैं तेरा दर्द जानता हूँ ! मैंने उसके लोअर को खोल दिया। काली पैंटी में उसकी गोरी गाण्ड देख मेरा बुरा हाल था, मैंने अपना लोअर भी उतार दिया, मेरा अंडरवीयर फटने को था।
मैंने पीछे खड़े खड़े ही उसका नाममात्र सा टॉप भी उतार दिया, उसकी गोरी पीठ पर काली स्ट्रिप ! हाय ! मैं मरे जा रहा था !
मैंने उसकी पीठ पर जगह जगह चूमा, मेरी उँगलियाँ उसकी पीठ, उसके चूतड़ों पर रेंग रही थी। वो एकदम से मेरी पकड़ से निकली, बोतल उठाई, उसमें से एक पैग डाला, एक मेरे में डाला, झट से पूरा उतार लिया हलक में और मैंने भी !
वो जाकर बिस्तर पर गिर गई, मैंने भी वक़्त गंवाए बिना उसको दबोच लिया वहीं बिस्तर पर !
मैंने उसकी ब्रा भी उतारी, उसके मम्मे अकड़े पड़े थे। जैसे-जैसे मैंने दबाये, वैसे-वैसे वो कोमल होने लगे, मतलब एक मर्द का हाथ ही उन्हें नर्म कर रहा था। मैंने उसके चुचूक दिल भर कर चूसे।
बोली- जीजू, बहुत प्यासी रह जाती हूँ मैं !
मैंने खींच कर उसकी पैंटी उतारी- हाय रब्बा ! क्या मस्त चूत थी साली की !
मैंने उसको जुबां से चाटा तो वो तड़पने लगी, मचलने लगी।
लेकिन मैंने उसको नहीं छोड़ा, बोली- जीजू या तो मुझे भी अपना चूसने को दो ?
मैं उसको इतना पागल करना चाहता था कि बाद में यह कबूतरी हाथ से न निकले !
वो जाकर बिस्तर पर गिर गई, मैंने भी वक़्त गंवाए बिना उसको दबोच लिया वहीं बिस्तर पर !
मैंने उसकी ब्रा भी उतारी, उसके मम्मे अकड़े पड़े थे। जैसे-जैसे मैंने दबाये, वैसे-वैसे वो कोमल होने लगे, मतलब एक मर्द का हाथ ही उन्हें नर्म कर रहा था। मैंने उसके चुचूक दिल भर कर चूसे।
बोली- जीजू, बहुत प्यासी रह जाती हूँ मैं !
मैंने खींच कर उसकी पैंटी उतारी- हाय रब्बा ! क्या मस्त चूत थी साली की !
मैंने उसको जुबां से चाटा तो वो तड़पने लगी, मचलने लगी।
लेकिन मैंने उसको नहीं छोड़ा, बोली- जीजू या तो मुझे भी अपना चूसने को दो ?
मैं उसको इतना पागल करना चाहता था कि बाद में यह कबूतरी हाथ से न निकले ! कबूतरी ऐसी थी कि जिसके पर कुतरने में जो मजा आएगा। मोना मेरी पत्नी भी कम नहीं थी, ये तीनों बहनें ही मस्त थी, अभी मैंने इसकी चूत नहीं ली थी लेकिन उसकी खुशबू ही ऐसी थी। उसकी बिन झांटों की चूत इतनी खूबसूरत दिख रही थी।
मैंने उसको तड़पाना जारी रखा, वो पागल हो रही थी। मैं जानता था कि उसकी चूत में जलन हो रही थी, लौड़ा खाने की जलन !
मैंने पैग पकड़ा, उसकी चूत पर पलट कर चाटने लगा। उसने मुझे जोर से धकेला और मेरी मजबूत जांघों पर बैठ कर उंगलियों को मेरे सीने पर चलाने लगी। थोड़ी घुटनों की तरफ सरकी, उसके गोरे कोमल चूतड़ जब घिस रहे थे तो मेरा लौड़ा तूफ़ान मचा रहा था।
वो झुकी, उसके दोनों मम्मे पूरे अकड़े थे, उसने मेरे लौड़े पर मारे जोर जोर से, लौड़ा पकड़ उसको अपने चुचूकों पर मारने लगी। किसी ब्लू फिल्म की रंडी से कम नहीं दिख रही थी, वो मानो कोई रंडी हो।
दोनों मम्मों के बीच उसने लौड़ा रगड़ा, फिर निप्पल पर रगड़ा, गांड को घिसती घिसती नीचे सरकी, मेरे सुपारे को ऐसे अंदाज़ में चूमा कि मैं उसकी अदा का दीवाना हो गया। पिंकी से कहीं आगे थी मर्द लुभाने में ! एक नंबर की चुदक्कड़ थी साली !
वो लौड़ा चूसने लगी। हाय क्या अंदाज था ! मुझे लिटा मेरी जांघों के पास बिस्तर पर अपनी गोरी गांड मेरी तरफ करके बैठ गई। मैंने उसके चूतड़ों को थपथपाया, दबाया और उसकी फुद्दी के दिख रहे छेद को ऊँगली से सहलाया।
वो उछाल खा गई- हाय जीजा जी ! क्या किया? इसमें अपना लौड़ा डालना !
“पहले मुझे अपनी प्यास बुझानी है, होंठों की भी फिर नीचे की भी !”
बोली- जीजू, पहले इसका पानी पियूंगी मैं ! फिर निचली को इसका पानी पिलाना !
हाय ! यह काम मोना नहीं करती ! वो लौड़े का माल नहीं पीती ! हाय, सोनिया को भी मैंने धोखे से पिलाया था ! पिंकी से मैंने कहा नहीं था।
मैंने भी खुद को खुला छोड़ दिया, उसका अंदाज़ देखने लगा। वो तो लौड़ा ऐसे चाटने लगी मानो रंडी हो ! उसने निप्पल की तरह मेरा लौड़ा चूसा काफी काफी देर ! लौड़े को मुंह में रखती, उसको चूसती, फिर निकालती। उसने हाथ हिलाना चालू किया, मेरी आँखें बंद होने लगी। मैंने भी लौड़े उसके हाथ से लिया उसके बालों को नोंचा और उसकी गालों पर लौड़ा मारा जोर जोर से ! लौड़े को हिलाने लगा, उसके ज़बड़े को पकड़ा और पूरा पानी उसके मुंह में निकाला।
हाय जीजू ! क्या अंदाज़ है आपका ! बहुत अच्छा लगा आपकी इस तानाशाही से ! हाय कितना माल निकलता है आपके लौड़े से !
उसने एक भी कतरा जाने दिया था, पूरा गटक गई थी। फिर उतनी देर चूसती रही जितनी देर मेरा दुबारा खड़ा नहीं हो गया।
हमने एक एक पैग लगाया।
वाह जीजू ! सोचा नहीं था कि पहली रात में ही आपका लौड़ा ले लूंगी !
“मैंने तेरी और मोना की बातें सुन ली थी, मैंने भी यह नहीं सोचा था कि पहले दिन ही ठोक लूँगा तुझे !”
आप बहुत पहुँचे हुए हो !
साली, तू भी कहाँ से कम है? एक नंबर की चुदक्कड़ है !
उसने अपने बाल की लट को झटका और मेरा लौड़ा मुंह में ले लिया।
मैंने उसको पटका और अपना मूसल उसकी फुद्दी में उतार दिया।
“हाय जीजू ! आपका बहुत बड़ा है ! क्या लौड़ा पाया है आपने ! मोना की तो चांदी है !”
मेरा पूरा लौड़ा जब घुस गया तो वो उठकर उठ उठ कर चूत मरवाने लगी- हाय जीजू ! और तेज़ मारो मेरी ! आज मुझे दिल खोल कर फक करो !
“साली, तेरा खसम कितने दिन बाद तुझे चोदता है?”
“उसकी छोड़ो जीजू ! वो तो गाण्डू है ! कई कई दिन पास नहीं आता ! उसका लड़कों के साथ ज्यादा लगाव है, वो एक गे-क्लब का मेंबर है ! जीजू, मुझे बच्चा चाहिए !
“यह तो मैं नहीं मानता कि तू उसके अलावा और किसी मर्द से वहाँ नहीं चुदती होगी? जैसी तुझमें भूख है !
लेकिन जीजू उससे मैं बच्चा नहीं लेना चाहती, वो नीग्रो है, उसका बच्चा भी वैसा हो गया तो फिर?
“यह ले सह चोट जीजे की ! मैं जोर जोर से उसको पेलने लगा। वो नशे में थी, ऊपर से गोली का असर था, गंदी-गंदी गालियाँ दे रही थी अपने खसम को ! नीग्रो का कितना बड़ा है ! आप जितना ही है ! लेकिन पिछले पांच महीनों से वो भी मेरी लाइफ में नहीं है !
तेरी गाण्ड मारूँ क्या?
“आज नहीं जीजू ! आज मेरी फुद्दी को अपना पानी पिलाओ ! रोम रोम खिल जाएगा इसका !
“हाय जीजू ! आपका बहुत बड़ा है ! क्या लौड़ा पाया है आपने ! मोना की तो चांदी है !”
मेरा पूरा लौड़ा जब घुस गया तो वो उठकर उठ उठ कर चूत मरवाने लगी- हाय जीजू ! और तेज़ मारो मेरी ! आज मुझे दिल खोल कर फक करो !
“साली, तेरा खसम कितने दिन बाद तुझे चोदता है?”
“उसकी छोड़ो जीजू ! वो तो गाण्डू है ! कई कई दिन पास नहीं आता ! उसका लड़कों के साथ ज्यादा लगाव है, वो एक गे-क्लब का मेंबर है ! जीजू, मुझे बच्चा चाहिए !
“यह तो मैं नहीं मानता कि तू उसके अलावा और किसी मर्द से वहाँ नहीं चुदती होगी? जैसी तुझमें भूख है !
लेकिन जीजू उससे मैं बच्चा नहीं लेना चाहती, वो नीग्रो है, उसका बच्चा भी वैसा हो गया तो फिर?
“यह ले सह चोट जीजे की ! मैं जोर जोर से उसको पेलने लगा। वो नशे में थी, ऊपर से गोली का असर था, गंदी-गंदी गालियाँ दे रही थी अपने खसम को ! नीग्रो का कितना बड़ा है ! आप जितना ही है ! लेकिन पिछले पांच महीनों से वो भी मेरी लाइफ में नहीं है !
तेरी गाण्ड मारूँ क्या?
“आज नहीं जीजू ! आज मेरी फुद्दी को अपना पानी पिलाओ ! रोम रोम खिल जाएगा इसका !
बोली- एक बार निकालो, मुझे रस से भीगा हुआ लौड़ा चाटना है !
उसने मेरा गीला लौड़ा साफ़ किया और बोली- एंगल चेंज करो जीजू !
कौन सा पसंद है साली रंडी तुझे?
हम्म ! मैं रंडी? आपके लिए रंडी भी बन जाऊंगी ! मुझे बहुत मजा आता है घोड़ी बन कर !
तो बन जा घोड़ी !
वो घोड़ी बन गई, बोली- जीजू पहले फुद्दी को चाटो !
मुझे उसकी फुदी पहले ही बहुत स्वाद लगी थी इसलिए चपड़-चपड़ मैं उसकी फुद्दी चाटने लगा। वो आहें भरने लगी।
तुम तीनों बहनें बहुत आग हो बिस्तर पर !
क्या मतलब है आपका? तीसरी कौन?
तेरी बड़ी बहन पिंकी और कौन?
वो भी आपसे चुद गई जीजू?
क्या करूँ रानी ! उसके घरवाले ने आधी रात को घर से निकाल दिया था, उस दिन मोना घर नहीं थी। वो आई, उसने खुद दारु पीकर मुझे मजबूर कर डाला कि मैं उसकी फुद्दी मारूँ !
जीजू, एक बात कहूँ, आप सोनिया को वापस भेज दो ! मैंने उसको फेसबुक पर देखा, उसके छोटे छोटे कपड़े ! उसकी बातों से बहुत चालू लगती है, कहीं बिगाड़ने में आप लोगों का मुफ्त में नाम ना आ जाए?
वो साली है ही रंडी ! उसने मुझे पागल कर दिया है, एक रात हम दोनों ही घर थे, पहले बोली- मुझे अकेली डर लगता है, मेरे साथ सोई। आधी रात को मेरी जाग खुली तो देखा कि वो मेरे लौड़े से खेल रही थी। मैंने थप्पड़ मारा, रोने लगी। फिर से मेरा लौड़ा पकड़ने लगी। मैंने एक थप्पड़ जड़ा, उसने मेरे सामने अपने सार कपड़े उतार दिए, मेरा लौड़ा चूसने लगी।
हाय जीजू, आपने किसी को छोड़ा भी है क्या?
मैंने उसकी फुद्दी में लौड़ा डालते हुए कहा- क्या करूँ? टच वुड ! मर्दानगी भगवान् ने बहुत दी है ! ऊपर से मेरा लौड़ा जो औरत लड़की देख लेती है, फिर इसके सपने लेती रहती है !
जोर जोर से उसकी फुद्दी मारने लगा, नीचे लटक रहे उसके दोनों मम्मे मैं मसलने लगा, सहलाने लगा।
वो भी गांड को धकेल-धकेल अपना फूद्दा मरवा रही थी- अह जीजू ! वाह ! सच में आपकी मर्दानगी गज़ब की है ! अह ! और करो जीजू !
मैंने उससे सोनिया और पिंकी के बारे कोरा झूठ बोला, दोनों को मैंने तरीके से बिस्तर में लिटाया था, नाम उनका लगा दिया मैंने।
अह अह ! एकदम से पलटी, मुझे सीधा लिटाया और मेरे लौड़े पर बैठ कर कूदने लगी।
साली, यह सब कहाँ से सीखा तुमने?
उसके मम्मे उछलते थे जब वो हिलती थी, बोली- उस नीग्रो ने मुझे यह सब चीज़ें करवा करवा के सिखा दी हैं, जीजू अब फिर से नीचे लिटा कर टांगें उठवा लो मेरी और जोर जोर से पेलो मुझे ! आज की रात जीजू आपके नाम ! अब तो मौका निकालना पड़ा करेगा !
मैंने जोर जोर से उसकी फुद्दी को झटके देने शुरु कर दिए, उसके अंग-अंग को मैंने मसला।
जब तू एअरपोर्ट में मिली, गले लगी थी न जान, मेरा गोपाल तब से व्याकुल था !
फाड़ डालो मेरी जीजा जी !
मैंने भी स्पीड बढ़ा दी और हम एक साथ झड़ने लगे। मेरे माल ने उसकी फुद्दी को अपने अमृत से भर दिया था।
इतना मजा आया कि क्या बताऊँ जीजू !
बताना क्या है रानी ! अब तो तेरी फुद्दी का भोसड़ा बना दूंगा।
सुबह जब उसकी नींद खुली, वो एकदम नंगी थी, मैंने सिर्फ अंडरवीयर पहना हुआ था, मुझे काफी नींद आई थी। उसने पिंकी की तरह रात को लेकर पछतावा नहीं दिखाया। इसने तो मेरे लौड़े को मसलते हुए अपने होंठों को छाती पर रगड़ते हुए उठाया, मेरा सोया लौड़ा भी खड़ा कर दिया।
मैंने कहा- जान, अब नहीं !
घर चलें?
घर आ गए, दो दिन सभी उससे मिलने आते रहे, हमें मौका नहीं मिल पाता था, वो मेरा लौड़ा लेने को पागल हुई पड़ी थी, उसने मोना को रात को खाने में नींद की ऐसी दवाई खिलाई कि मोना खाना खाते बिस्तर पर लेटी, उसको ऐसी नींद आई मानो वो जिंदा ही न हो।
छोटी साली ने कमरा बंद करके मेरा लौड़ा चूसा, बोली- गांड मरवाने को तयार हूँ जीजू !
स्लो म्यूजिक लगा वो मुझे नाच कर दिखाने लगी, एक एक कर उसने कपड़े उतारे और ज़मीन पर फेंके। दारु के पैग बना कर पिए और पिलाए।
हमने सोचा ही नहीं था कि कामवाली की बेटी को मोना ने दिन रात के लिए रख लिया था जब तक छोटी इंडिया में थी, वो साली को दूध देने आ गई, उस वक़्त मेरा लौड़ा उसकी गांड फाड़ रहा था, वो घबरा कर भाग गई।
हम भी पहले डर गए, मैंने साली को कहा- समझा लूँगा, तुम बस प्यार करती जाओ ! इसकी माँ ने मुझसे खूब फुद्दी मरवाई है, तब मेरी शादी भी नहीं हुई थी और अब लगता है इसका मुंह भी बंद करना होगा !
बाकी अगले भाग में ! बहुत कुछ बाकी है अभी यारो !
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